आस्था डराती है,भगवान कुछ नहीं कहते http://suniljainrana.blogspot.com/
March 6, 2020 • सुनील जैन राना • धर्म
हमारे भारत देश में अंध भक्तों की कमी नही है। कहीं कोई किसी चौराहे पर ही कोई पत्थर -मूर्ति -फोटो रख दे तो उस पर भी चढ़ावा चढ़ने लगता है।यदि किसी स्थान पर कोई कथित ढोंगी चमत्कारी बाबा अपना बोर्ड लगाकर बैठ जाये तो ही उनसे पुड़िया या उपचार पाने को भक़्तो का ताँता लग जाता है। ऐसे में प्रतिदिन सैंकड़ो लोग अपनी समस्या लेकर आते हैं और मुराद मांगते हैं। अब यदि उनमे से दस -बीस प्रतिशत लोग जो संयम ही ठीक होने वाले होते हैं और पुड़िया खाते ही ठीक हो जाते हैं उनके लिए तो वह ढोंगी बाबा किसी चमत्कारी बाबा से कम नहीं होंगे। बाकि के अस्सी प्रतिशत लोग जो न ठीक हुए और न ही दोबारा आये और न ही उनसे पूछने वाला कोई होता है उनके लिए बाबा ढोंगी ही रहे। उनमे से यदि कुछ वापस आकर बाबा से लड़ना भी चाहें तो अंध भक्त उसी को गलत बताकर उसके साथ दुर्व्यवहार कर देते हैं।
अब जिनकी मुराद पूरी हो गई उनके लिए तो ये ढोंगी बाबा किसी इष्ट से कम नहीं रहे। अब उनकी हर बात मानना उनका धर्म हो जाता है। बस इसी को कहते हैं आस्था। यही आस्था पत्थर को भगवान और भगवान को पत्थर बना देती है और यही आस्था दिखाती है रास्ता। इसी आस्था में श्रध्दा -भक्ति -समर्पण निहित होता है। यही मुख्य कारण है की हम जिस भी धर्म में पैदा हुए हैं जन्म से हमे उसी की भक्ति का ऐसा पाठ पढ़ाया गया होता है की हम अपने धर्म से अलग अन्य किसी भी धर्म को स्वीकार करना ही नहीं चाहते। सबसे अनोखी बात यह भी है की हम सिर्फ अपनी आस्था के अनुरूप अपने धर्म के इष्ट की ही पूजा करते हैं और उसी से ही डरते हैं अन्य किसी भी धर्म के ईश्वर से डर नहीं लगता है।पीपल के पेड़ से पीपल को पूजने वाले को ही डर लगता है अन्य को नहीं। कभी चिंतन कर सोचो की ऐसा क्यों होता है ?क्या हिन्दू को ईशामसीह या अल्लाह से डर लगता है ?क्या किसी मुसलमान को किसी हिन्दू देवी-देवता या ईशामसीह से डर लगता है? यदि ये सभी सर्वशक्तिमान हैं तो सभी को सभी से डर लगना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है,जिसकी जहां आस्था है वह उसी से डरता है अन्य से नहीं डरता है।इसका दूसरा पहलू यह हुआ की हमे आस्था डराती है भगवान कुछ नहीं कहते हैं।
अधिकांश लोग आस्तिक ही होते हैं और अपने इष्ट को कहीं न कहीं मत्था अवश्य टेकते हैं। हमारे जो भी भगवान ,इष्ट ,देवी देवता होते हैं उनके प्रति हमारी आस्था ,श्रध्दा ,भक्ति ,समर्पण से हमे शक्ति मिलती है ,बल मिलता है। उनके दर्शन मात्र से ही हमारा सोया हुस पुरुषार्थ जाग्रत होकर कार्य करने लगता है। जहां हमारी श्रध्दा -आस्था होती है उसी से हमे हिम्मत मिलती है और उसी से हमे डर भी लगता है। हमे हमारे इष्ट के प्रति आस्था ही हमे जगाती है एवं हमें डराती भी है। इन सब बातों से यह निष्कर्ष निकलता है की हमें आस्था डराती है ,भगवान कुछ नहीं कहते हैं। * सुनील जैन राना *
अब जिनकी मुराद पूरी हो गई उनके लिए तो ये ढोंगी बाबा किसी इष्ट से कम नहीं रहे। अब उनकी हर बात मानना उनका धर्म हो जाता है। बस इसी को कहते हैं आस्था। यही आस्था पत्थर को भगवान और भगवान को पत्थर बना देती है और यही आस्था दिखाती है रास्ता। इसी आस्था में श्रध्दा -भक्ति -समर्पण निहित होता है। यही मुख्य कारण है की हम जिस भी धर्म में पैदा हुए हैं जन्म से हमे उसी की भक्ति का ऐसा पाठ पढ़ाया गया होता है की हम अपने धर्म से अलग अन्य किसी भी धर्म को स्वीकार करना ही नहीं चाहते। सबसे अनोखी बात यह भी है की हम सिर्फ अपनी आस्था के अनुरूप अपने धर्म के इष्ट की ही पूजा करते हैं और उसी से ही डरते हैं अन्य किसी भी धर्म के ईश्वर से डर नहीं लगता है।पीपल के पेड़ से पीपल को पूजने वाले को ही डर लगता है अन्य को नहीं। कभी चिंतन कर सोचो की ऐसा क्यों होता है ?क्या हिन्दू को ईशामसीह या अल्लाह से डर लगता है ?क्या किसी मुसलमान को किसी हिन्दू देवी-देवता या ईशामसीह से डर लगता है? यदि ये सभी सर्वशक्तिमान हैं तो सभी को सभी से डर लगना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है,जिसकी जहां आस्था है वह उसी से डरता है अन्य से नहीं डरता है।इसका दूसरा पहलू यह हुआ की हमे आस्था डराती है भगवान कुछ नहीं कहते हैं।
अधिकांश लोग आस्तिक ही होते हैं और अपने इष्ट को कहीं न कहीं मत्था अवश्य टेकते हैं। हमारे जो भी भगवान ,इष्ट ,देवी देवता होते हैं उनके प्रति हमारी आस्था ,श्रध्दा ,भक्ति ,समर्पण से हमे शक्ति मिलती है ,बल मिलता है। उनके दर्शन मात्र से ही हमारा सोया हुस पुरुषार्थ जाग्रत होकर कार्य करने लगता है। जहां हमारी श्रध्दा -आस्था होती है उसी से हमे हिम्मत मिलती है और उसी से हमे डर भी लगता है। हमे हमारे इष्ट के प्रति आस्था ही हमे जगाती है एवं हमें डराती भी है। इन सब बातों से यह निष्कर्ष निकलता है की हमें आस्था डराती है ,भगवान कुछ नहीं कहते हैं। * सुनील जैन राना *
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