शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

गलत निर्णय?

*भारत सरकार द्वारा फल- सब्जी  को भी मांसाहारी बनाने का दुश्चक्र*

-चिरंजी लाल बगड़ा, कोलकाता

# अभी हाल ही में भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा FCO (Fertilizer Control Order) 1985 में संशोधन करते हुए 13 अगस्त 2025 को गजट नोटिफिकेशन के माध्यम से ऐसे प्रावधान जोड़े हैं  जिनके तहत अब बायो-स्टिमुलेंट में पशु- आधारित अमीनो एसिड (Animal Source Amino Acid) को वैध कर दिया गया है। 

# गजट नोटिफिकेशन के आईटम नंबर 26 के अनुसार मछलियों के मांस और खाल से निकाले गये प्रोटीन हाईड्रोलाईजेट को आलू की फसलों में फर्टिलाइजर के रूप में उपयोग करने की रिकमेंडेशन है। इसी तरह आईटम 30 के अनुसार गौजातीय/Bovine पशुओं के मांस और चमड़े से प्राप्त किये गये प्रोटीन हाईड्रोलाईजेट को टमाटर की फसलों में फर्टिलाइजर के रुप में उपयोग करने की रिकमेंडेशन है। जबकि आलू और टमाटर ऐसी सब्जियां हैं जिनका शाकाहारी समाज द्वारा भरपूर उपयोग किया जाता है। 

₹  फर्टिलाइजर के लिये आवश्यक अमीनो एसिड प्राकृतिक रूप से पौधों, दलहन, सोयाबीन, समुद्री शैवाल आदि से भी प्राप्त किए जा सकते हैं। गजट में लिखा भी है। इसके बावजूद भी मंत्रालय ने कत्लखानों एवं चमड़ा घरों से निकली गंदगी (हड्डियाँ, खून, चमड़ा, आंतरिक अवशेष आदि) से बने उत्पादों को कृषि उत्पादन में उपयोग करने की मंजूरी दी है, जो कि एक अक्षम्य कृत्य है।

#  यह भ्रष्ट कृत्य न सिर्फ शाकाहारी समाज की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाता है, बल्कि चुपके से भारतीय कृषि और खाद्य श्रृंखला में _गौजातीय पशुओं के वेस्ट_ को घुसाने का षड्यंत्र भी है।

#  स्लॉटर हाउस और मीट इंडस्ट्री के पास तो प्रतिदिन लाखों टन वेस्ट बचता है। अब इस वेस्ट को बायो-स्टिमुलेंट के नाम पर फर्टिलाइज़र में खपाने का रास्ता मंत्रालय ने खोल दिया है, जिसका सीधा लाभ स्लॉटर हाउस लॉबी को होगा। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह निर्णय सरकार  और मीट लाबी की मिली भगत का नतीजा है?

#  यह आदेश  करोड़ों शाकाहारी लोगों की धार्मिक आस्था और जीवनशैली के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन है।

#  उपरोक्त निर्णय संपूर्ण अहिंसक शाकाहारी  समाज के लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य है और इसे तत्काल वापस लिया जाना चाहिए।

शनिवार, 20 सितंबर 2025

पुरानी बातें

👉 हमारी या आपकी दादी या नानी माँ ने कहीं से MBA नहीं किया था लेकिन संयुक्त परिवार का संयोजन और अर्थ का प्रबंधन वो सबसे सुंदर ढंग से करतीं थीं।

👉 उन्होंने कोई समाज शास्त्र या राजनीतिशास्त्र नहीं पढ़ा था पर अपने आसपास के समाज से, पूरे गांव से उनके मधुर संबंध होते थे और अपने व्यवहार से उन्होंने पूरे गांव को आत्मीय रिश्तों से जोड़ कर रखा था।

👉 उन्होंने कोई मेडिकल साइंस नहीं पढ़ी थी पर सर्दी, जुकाम, बदन दर्द, मोच, चेचक और बुखार जैसी बीमारियों को ठीक कर देने का सामर्थ्य रखतीं थी।

👉 उन्होंने कहीं से स्ट्रेस मैनेजमेंट या इंस्प्रेशनल वीडियो नहीं देखे थे पर परिवार के हर हतोत्साहित में उत्साह का संचार कर देती थी।

👉 वो पेटा या किसी और ऐसे संगठन की मेंबर नहीं थीं पर सुबह गाय को पहली रोटी डालने से लेकर दरवाजे पर बैठने वाले कुत्ते, बिल्लियों, बैल और चिड़ियों की चिंता करती थी।

👉 उसे वोट लेना नहीं था, न ही अपने कामों के फोटो फेसबुक या व्हाट्सएप पर अपलोड करना था पर तब भी वो दरवाजे पर आने वाले हर भिखारी, भांट, नट इत्यादि को अन्न, पैसे और भोजन देती थी। 

👉 उसे अपनी स्थानिक बोली को छोड़कर ठीक से हिंदी बोलना भी नहीं आता था पर वो भारत के सारे तीर्थस्थानों का भ्रमण कर लेती थीं।

👉 उसने रामायण, महाभारत या पुराण नहीं पढ़े थे पर उसे दर्जनों पौराणिक आख्यान स्मरण थे।

👉 वो कोई पर्यावरणविद नहीं थीं लेकिन गंगा को गंगा जी, यमुना को यमुना जी कहतीं थीं और पेड़ के पत्ते को भी बिना जरूरत तोड़ने से मना करतीं थीं। 

👉 उन्होंने जैव विविधता पर कोई कोर्स नहीं किया था लेकिन हमें कहती थीं कि अनावश्यक जीव हत्या नहीं करनी।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

चर्बी से बनते पेंट एवं घी

चमड़ा सिटी के नाम से मशहूर कानपुर में जाजमऊ से गंगा जी के किनारे किनारे 10 -12 किलोमीटर के दायरे में आप घूमने जाओ

तो आपको नाक बंद करनी पड़ेगी,

यहाँ सैंकड़ों की तादात में गंगा किनारे भट्टियां धधक रही होती हैं,

इन भट्टियों में जानवरों को काटने के बाद निकली चर्बी को गलाया जाता है,

इस चर्बी से मुख्यतः 3 चीजे बनती हैं।

1- एनामिल पेंट (जिसे हम अपने घरों की दीवारों पर लगाते हैं)

2- ग्लू (फेविकोल इत्यादि, जिन्हें हम कागज, लकड़ी जोड़ने के काम में लेते हैं)

3- और तीसरी जो सबसे महत्वपूर्ण चीज बनती है वो है "शुध्द देशी घी"

जी हाँ " शुध्द देशी घी" 
यही देशी घी यहाँ थोक मंडियों में 120 से 150 रूपए किलो तक भरपूर बिकता है,

इसे बोलचाल की भाषा में "पूजा वाला घी" बोला जाता है,

इसका सबसे ज़्यादा प्रयोग भंडारे कराने वाले करते हैं। लोग 15 किलो वाला टीन खरीद कर मंदिरों में दान करके पुण्य कमा रहे हैं।

इस "शुध्द देशी घी" को आप बिलकुल नही पहचान सकते 
बढ़िया रवेदार दिखने वाला ये ज़हर सुगंध में भी एसेंस की मदद से बेजोड़ होता है,

औद्योगिक क्षेत्र में कोने कोने में फैली वनस्पति घी बनाने वाली फैक्टरियां भी इस ज़हर को बहुतायत में खरीदती हैं, गांव देहात में लोग इसी वनस्पति घी से बने लड्डू विवाह शादियों में मजे से खाते हैं। शादियों पार्टियों में इसी से सब्जी का तड़का लगता है। जो लोग जाने अनजाने खुद को शाकाहारी समझते हैं। जीवन भर मांस अंडा छूते भी नहीं। क्या जाने वो जिस शादी में चटपटी सब्जी का लुत्फ उठा रहे हैं उसमें आपके किसी पड़ोसी पशुपालक के कटड़े (भैंस का नर बच्चा) की ही चर्बी वाया कानपुर आपकी सब्जी तक आ पहुंची हो। शाकाहारी व व्रत करने वाले जीवन में कितना बच पाते होंगे अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।

अब आप स्वयं सोच लो आप जो वनस्पति घी आदि खाते हो उसमे क्या मिलता होगा।

कोई बड़ी बात नही कि देशी घी बेचने का दावा करने वाली कम्पनियाँ भी इसे प्रयोग करके अपनी जेब भर रही हैं।

इसलिए ये बहस बेमानी है कि कौन घी को कितने में बेच रहा है,

अगर शुध्द घी ही खाना है तो अपने घर में गाय पाल कर ही आप शुध्द खा सकते हो, या किसी गाय भैंस वाले के घर का घी लेकर खाएँ, या खुद घर मे बनाये, हम घर मे ही बनाते है। यही बेहतर होगा ||
आगे जैसे आपकी इच्छा.....
🙏

गुरुवार, 18 सितंबर 2025

कांग्रेस का कालापन

सरदार पटेल की जब मृत्यु हुई तो एक घंटे बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसकी घोषणा की। 
घोषणा के तुरन्त बाद उसी दिन एक आदेश जारी किया। उस आदेश के दो बिन्दु थे। पहला यह था की सरदार पटेल को दिया गया सरकारी कार उसी वक्त वापिस लिया जाय और दूसरा बिन्दु था की गृह मंत्रालय के वे सचिव/अधिकारी जो सरदार पटेल के अन्तिम संस्कार में बम्बई जाने चाहते हैं वो अपने खर्चे पर जायें।

लेकिन तत्कालीन गृह सचिव वी पी मेनन ने प्रधानमंत्री नेहरु के इस पत्र का जिक्र ही अपनी अकस्मात बुलाई बैठक में नहीं किया और सभी अधिकारियों को बिना बताये अपने खर्चे पर बम्बई भेज दिया।

उसके बाद नेहरु ने कैबिनेट की तरफ से तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद को सलाह भेजवाया की वे सरदार पटेल के अंतिम संस्कार में भाग न लें। लेकिन राजेंद्र प्रसाद ने कैबिनेट की सलाह को दरकिनार करते हुए अंतिम संस्कार में जाने का निर्णय लिया। लेकिन जब यह बात नेहरु को पता चली तो उन्होंने वहां पर सी राजगोपालाचारी को भी भेज दिया और सरकारी स्मारक पत्र पढने के लिये राष्ट्रपति के बजाय उनको पत्र सौप दिया।
इसके बाद कांग्रेस के अन्दर यह मांग उठी की इतने बङे नेता के याद में सरकार को कुछ करना चाहिए और उनका स्मारक बनना चाहिए तो नेहरु ने पहले तो विरोध किया फिर बाद में कुछ करने की हामी भरी।

कुछ दिनों बाद नेहरु ने कहा की सरदार पटेल किसानों के नेता थे इसलिये सरदार पटेल जैसे महान और दिग्गज नेता के नाम पर हम गावों में कुआँ खोदेंगे। यह योजना कब शुरु हुई और कब बन्द हो गयी किसी को पता भी नहीं चल पाया।

उसके बाद कांग्रेस के अध्यक्ष के चुनाव में नेहरु के खिलाफ सरदार पटेल के नाम को रखने वाले पुराने और दिग्गज कांग्रेसी नेता पुरुषोत्तम दास टंडन को पार्टी से बाहर कर दिया। 
ये सब बाते बरबस ही याद दिलानी पङती हैं जब कांग्रेसियों को सरदार पटेल का नाम जपते देखता हूं।

शनिवार, 13 सितंबर 2025

नामकरण संस्कार

🌹नामकरण : संस्कृति और पहचान🌹

भारतीय धर्मों के परिवार आजकल बच्चों के नाम पाश्चात्य तर्ज़ पर रखने लगे हैं। पूर्व में, विशेषकर तमिलनाडु में दिगम्बर जैन समुदाय में नामकरण की परंपरा तीर्थंकरों, जैन कथानकों में वर्णित पात्रों तथा जैन अधिष्ठाता देव–देवियों के नामों पर आधारित होती थी। आज भी कुछ परिवार इस परंपरा को संजोए हुए हैं। लेकिन देखने-सुनने में आता है कि श्वेताम्बर जैन परिवारों में पाश्चात्य तर्ज़ पर नाम रखने का चलन अधिक बढ़ गया है। जैसे—निकिता, आनवी, युवीर, येदांत, साख , अयान आदि। कई बार बुज़ुर्ग इन नामों का सही उच्चारण भी नहीं कर पाते हैं । प्रश्न यह है कि क्या हमें अपने बच्चों के नाम भी विदेशों से आयात करने चाहिए ?

वहीं दूसरी ओर विदेशी धर्मावलंबी आज भी परंपरागत नामों को महत्व देते हैं। उनके नाम से ही धर्म की पहचान हो जाती है। इसके विपरीत भारतीय धर्मों में नामों से पहचान करना कठिन होता जा रहा है। विदेशी शैली पर नाम रखकर हम क्या सिद्ध करना चाहते हैं ? याद कीजिए—लॉर्ड मैकाले ने सौ वर्ष पहले कहा था कि भारत पर स्थायी विजय पाने के लिए भारतीय संस्कृति को समाप्त करना आवश्यक है। अंग्रेजों के शासनकाल में यह पूरी तरह संभव नहीं हो पायी । लेकिन उनके जाने के बाद धीरे-धीरे भारतीय संस्कृति में ह्रास शुरू हो गया।

भाषा बदली—लोग अंग्रेज़ी में बात करना अपनी शान समझने लगे। पहनावा बदला—रीति-रिवाज़ बदल गए।खानपान बदला—पढ़ाई और शिक्षा पद्धति बदली। स्वरोज़गार के बजाय नौकर बनना ज़्यादा पसंद आने लगा। मंदिरों की पूजा-पद्धति और समय में भी बदलाव होने लगा। जन्मदिन, नववर्ष जैसे पाश्चात्य जश्न ने धार्मिक पर्वों का स्थान लेना शुरू कर दिया।

अब समय है कि हम गंभीर चिंतन और मनन करें। नामकरण से लेकर जीवनशैली तक भारतीय बने रहें, यही हमारी असली पहचान है। यदि हम अपने बच्चों को भारतीय और धार्मिक नाम देंगे तो उनमें संस्कार, आस्था और परंपरा स्वतः जीवित रहेगी। नाम केवल पहचान नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के संस्कार का आधार है। आइए हम संकल्प लें कि भारतीय संस्कृति की धरोहर को जीवित रखें और इसे गर्व के साथ आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएँ।

सुगालचन्द जैन, चेन्नई

शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

क्या होगा नेपाल का?

अब क्या होगा नेपाल का 
सरकार गिरा दी.
संसद फूक दी. 
जेल से अपराधी भगा दिए.
किसी को जिन्दा जला दिया.
किसी का घर जला दिया.
राष्ट्रपति भवन जला दिया.
सुप्रीम कोर्ट जला दिया.
क्या यह सही किया?
 सिर्फ सरकार बदलनी थी 
बाकी सब क्या जरूरी था? 
जोश में होश खो बैठना 
जनता का ही नुकसान है 
अब पुनः निर्माण होगा 
जनता की भलाई का धन 
निर्माण कार्य में लगेगा 
जो दस्तावेज जल गये 
उनकी पूर्ति कैसे होगी?
नई सरकार क्या ठीक होगी? 
क्या उसमेँ भृष्टाचारी नहीं होंगे?
किसी भी देश में कैसा भी 
आंदोलन हो उसमेँ 
आगजनी से जनता का ही 
नुकसान है. हो सकता है 
ऐसे में अराजक तत्व ही 
आगजनी करते हो 
ऐसे तत्वों का ध्यान 
बाकी जनता को रखना चाहिए.
देश की सम्पत्ति का नुकसान 
जनता का नुकसान भी होता है.

बुधवार, 10 सितंबर 2025

चिंतनीय विचार

एक करोड़ का सोने -जवाहर का कलश जैन मंदिर से चोरी हो गया था. चोर भी मिल गया और कलश भी मिल गया. 
लेकिन समझ में नहीं आता आखिरकार क्यों जैन मंदिरो में सोने - चांदी का इतना प्रयोग हो रहा है. आज के समय में जैन तिरथो को बचाना ही मुश्किल हो रहा है. सुरक्षा के उपाय बहुत कम हैँ. 
हमारे मुनिगण भी नये -नये भव्य करोड़ो की लागत से मंदिर बनवा रहे हैं. कौन करेगा उनकी देखभाल? इस तरफ किसी का ध्यान नहीं है.
 जैन पॉपुलैशन कम होती जा रही है. नई पीढ़ी पढ़ लिखकर जॉब कर रही है. वह कभी कभाक जैन मंदिर भी चली जाये तो बड़ी बात है.ऐसे में प्रबुद्ध जैन समुदाय को गहरा चिंतन करना चाहिए. 
मंदिर तो देशभर में बहुत हैं, अब जैन ओशधालय, स्कूल, कॉलेज बनवाने चाहिए. जो सबके काम आ सकें.
 सुनील जैन राना, सहारनपुर

सोमवार, 8 सितंबर 2025

क्षमावाणी पर्व

🙏 क्षमावाणी 🙏
मेरे द्वारा मेरे वचनों से, मेरे व्यवहार से, मेरे आचरण से, कोई ठेस पहुँची हो तो मैं विनम्रता पूर्वक आपसे क्षमा माँगता हूँ। 🙏
 🌹सुनील जैन राना 🌹

रविवार, 7 सितंबर 2025

हमारा ब्रह्मान्ड

ब्रह्मांड का 95% भाग अदृश्य क्यों है? 

हम रात के आकाश में असंख्य तारे,ग्रह और आकाशगंगाएँ देखते हैं। आधुनिक टेलिस्कोप हमें अरबों प्रकाश-वर्ष दूर तक झाँकने की क्षमता देते हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि जो कुछ हम देख सकते हैं,वह सिर्फ 5% है। बाकी 95% ब्रह्मांड पूरी तरह अदृश्य है। आखिर ऐसा क्यों है? 

1. दृश्य ब्रह्मांड कितना है?
हमारे चारों ओर जितने तारे,ग्रह,निहारिकाएँ और आकाशगंगाएँ हैं,ये सब साधारण पदार्थ यानी प्रोटॉन,न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन से बने हैं। यही पदार्थ प्रकाश के साथ क्रिया करता है इसलिए हमें दिखाई देता है,लेकिन इसका योगदान पूरे ब्रह्मांड में मात्र 5% है। 

2. डार्क मैटर लगभग 27%
* डार्क मैटर ऐसा पदार्थ है जिसे हम सीधे देख नहीं सकते,क्योंकि यह प्रकाश को न तो उत्सर्जित करता है और न ही अवशोषित।
* फिर भी यह गुरुत्वाकर्षण बल डालता है।
* वैज्ञानिकों ने आकाशगंगाओं के घूमने की गति का अध्ययन करके पाया कि वहाँ जितना दृश्य पदार्थ है,उससे कहीं ज्यादा द्रव्यमान होना चाहिए।
* यही “अदृश्य द्रव्यमान” डार्क मैटर कहलाता है।
* यही डार्क मैटर गैलेक्सियों को एक साथ बांधे रखता है और ब्रह्मांड की संरचना को स्थिर बनाए रखता है। 

3. डार्क एनर्जी लगभग 68%
* 1990 के दशक में वैज्ञानिकों ने खोजा कि ब्रह्मांड का विस्तार सिर्फ जारी नहीं है बल्कि वह लगातार तेज़ी से बढ़ रहा है।
* गुरुत्वाकर्षण तो वस्तुओं को पास लाने का काम करता है तो फिर ब्रह्मांड तेज़ी से क्यों फैल रहा है?
* इसका मतलब है कि कोई अदृश्य शक्ति काम कर रही है जो अंतरिक्ष को फैलाने पर मजबूर कर रही है।
* इस रहस्यमयी शक्ति को वैज्ञानिकों ने नाम दिया,डार्क एनर्जी।
* डार्क एनर्जी ब्रह्मांड की कुल ऊर्जा का सबसे बड़ा हिस्सा है और आज भी विज्ञान की सबसे बड़ी पहेली बनी हुई है। 

4. अदृश्य क्यों है यह सब?
* हमारी आँखें और टेलिस्कोप प्रकाश पर निर्भर करते हैं।
* लेकिन डार्क मैटर और डार्क एनर्जी प्रकाश के साथ कोई क्रिया नहीं करते।
* वे न तो चमकते हैं,न रोशनी को रोकते हैं।
* इसलिए हम इन्हें सीधे नहीं देख सकते,बस इनके गुरुत्वाकर्षण और विस्तार पर असर से इनके अस्तित्व का अंदाज़ा लगाते हैं। 

5. वैज्ञानिक चुनौती
आज तक वैज्ञानिकों ने न तो डार्क मैटर के कणों को पकड़ा है और न ही डार्क एनर्जी की सही प्रकृति को समझ पाए हैं।
लेकिन टेलिस्कोप,पार्टिकल एक्सपेरिमेंट और कॉस्मिक सर्वे लगातार इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं।
संभव है आने वाले दशकों में हमें पता चले कि असल में यह “अदृश्य ब्रह्मांड” क्या है। 

निष्कर्ष
ब्रह्मांड का 95% हिस्सा हमें दिखाई नहीं देता क्योंकि यह डार्क मैटर और डार्क एनर्जी से बना है जो प्रकाश के साथ क्रिया नहीं करते। हम इन्हें केवल उनके प्रभावों से महसूस कर सकते हैं गैलेक्सियों की गति और ब्रह्मांड के विस्तार में। यह अदृश्य ब्रह्मांड हमारे लिए सबसे बड़ी खगोलीय पहेलियों में से एक है और इसे समझना आने वाले विज्ञान की सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिना जाएगा।

सिंथेटिक दूध