सोमवार, 30 जून 2025

पत्ते ताश के

*किसने की पता नहीं पर ताश के 52 पत्ते और दो जोकर पर जो रिसर्च हुई है सो प्रस्तुत है!*

ताश के पत्तों में कुछ महानुभाव ज्योतिष्य ज्ञान का प्रतिफल युक्त गणित आजमाते है,  आप भी देखें: अपने पूर्वजों का ज्ञानार्जन ….

.......!!   *ताश का मर्म* !!......

हम ताश खेलते है, अपना मनोरंजन करते है। पर शायद कुछ ही लोग जानते होंगे कि *ताश का आधार वैज्ञानिक है* व साथ साथ ही *प्रकृति* से भी जुड़ा हुआ है :- 

आयताकार मोंटे कागज़ से बने पत्ते चार प्रकार के  ..... ईंट, पान, चिड़ी, और हुक्म, प्रत्येक 13 पत्तों को मिलाकर कुल 52 पत्ते होते हैं।

पत्ते.... एक्का से दस्सा, गुलाम, रानी एवं राजा

1. 52 पत्ते .......52 सप्ताह
2. 4 प्रकार के पत्ते .... 4 ऋतु         
3. प्रत्येक रंग के 13 पत्ते....          प्रत्येक ऋतु में 13 सप्ताह
4. सभी पत्तों का जोड़ ..1 से 13 = 91 × 4 = 364
5. एक जोकर..... 364+1= 365 दिन...1 वर्ष
6. दूसरा जोकर गिने..365 +1=366  दिन..लीप वर्ष
7. 52 पत्तों में 12 चित्र वाले पत्ते - 12 महिने
8. लाल और काला रंग ... दिन और रात!

*पत्तों का अर्थ:-* 
   1.    ईक्का- एक आत्मा 
   2 *दुक्की* - जीव और    पुद्गल 
   3 *तिक्की*- सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र 
  4.  *चौकी* - चार अनुयोग(प्रथमानुयोग,चरणानुयोग,करनानुयोग,द्रव्यानुयोग )
 5.  *पंजी* - पंच पाप से बचना(हिंसा,झूठ,चोरी,कुशील,परिग्रह)
6.  *छक्की* - षड आवश्यक कार्य करना (देव पूजा, गुरु उपासना,स्वाध्याय,संयम,तप,दान)
7.  *सत्ती*- सात तत्व को जानो (जीव, अजीव, आश्रव,संवर, निर्जरा,मोक्ष)
8.  *अटठी*- सिद्ध के आठ गुण प्रकट करो (अनंत दर्शन,अनंत ज्ञान,अनंत सुख, अनंत वीर्य, अव्यबाधत्व, अगुरुलघुत्व, अवगाहनत्व)
9.  *नव्वा*- नौ कषाय को भी त्यागो (हास्य,रति, अरति,शोक,भय, जुगुप्सा,स्त्रीवेद पुरुष वेद, नपुंसक वेद,)
10.  *दस्सी*- दस धर्म प्रकट करो (उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव,सत्य, शौच,संयम,तप,त्याग, आकिंचन,ब्रह्मचर्य)
11. *गुलाम*- मन की वासना के गुलाम मत बनो 
12. *रानी*- मोह रूपी माया को त्यागो
13. *राजा* - आत्म गुणों पर शासन करो

   
 मित्रो अवश्य पढ़ें। आनंद के साथ साथ ज्ञान भी। *भारतीय संस्कार और परंपरा को नमन*  जो हर कार्य में अच्छाई ढूंढ लेती हुई।
दृष्टिकोण दृष्टि बदल देता है
 🙏

मंगलवार, 24 जून 2025

krodh

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बंद में भी बिजली खप्त

“क्या आप जानते हैं? मोबाइल चार्जर बंद करने के बाद भी बिजली खर्च होती है जानिए क्यों?”

कई बार हम मोबाइल चार्ज करने के बाद चार्जर प्लग में ही छोड़ देते हैं। सोचते हैं अब तो मोबाइल डिस्कनेक्ट कर दिया, बिजली थोड़ी ही खर्च होगी! लेकिन असलियत इससे बिल्कुल अलग है।

मोबाइल चार्जर बंद करने के बाद भी बिजली क्यों खर्च होती है?

दरअसल, आपके मोबाइल चार्जर के अंदर ट्रांसफॉर्मर और सर्किट होते हैं, जो पावर सप्लाई से जुड़े रहते हैं। भले ही आपने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया, लेकिन पावर सप्लाई चालू रहती है। इसी को कहा जाता है “वैंपायर लोड” या “फैंटम पावर”।

कितना नुकसान होता है?

1 चार्जर ➔ दिनभर में लगभग 0.1 यूनिट तक खपत कर सकता है। अब सोचिए अगर घर में 5-6 चार्जर ऐसे ही लगे रहते हैं महीने में 15-20 यूनिट तक का नुकसान। मतलब हर महीने ₹100-₹200 तक का फालतू बिल।

सिर्फ चार्जर ही नहीं…

टीवी का स्टैंडबाय मोड, सेट-टॉप बॉक्स, वाई-फाई राउटर, लैपटॉप चार्जर ये सब बंद करने के बाद भी बिजली खाते हैं। यही वजह है कि बिजली का बिल आपकी सोच से ज्यादा आता है।
यहीं नहीं घर में जो स्टेबलाइजर होते हैं वे भी बिजली यूनिट खाते हैं।

कैसे बचाएं बिजली?

#: चार्जर निकालें ➔ जब इस्तेमाल न हो।
#: पावर स्ट्रिप या मल्टी प्लग इस्तेमाल करें ➔ एक बटन से सब बंद कर सकते हैं।
#: 5 स्टार रेटिंग वाले उपकरण और स्मार्ट प्लग्स का इस्तेमाल करें।

छोटी-छोटी आदतें बड़ा फर्क लाती हैं। एक छोटा सा चार्जर भी साल भर में सैकड़ों रुपये का नुकसान कर सकता है। अगर आप सच में बिजली बचाना चाहते हैं तो सिर्फ लाइट बंद करना काफी नहीं, चार्जर भी निकालना जरूरी है।

सोमवार, 23 जून 2025

इजराइल की कहानी

इजराइल कितना मजबूत है उसके हौसले कितने मजबूत है पढ़िए नेतन्याहु जैसा नेता मिलना किसी देश का सौभाग्य होता है, यहूदी काल के कपाल पर अदम्य जिजीविषा एवं शोर्य का हस्ताक्षर , बेंजामिन नेतन्याहू का भाषण का अंश इजरायल की पुकार ही नहीं यहूदियों का आत्मकथा का सार अंश भी है।भाषण का अंश...

75 साल पहले हमें मरने के लिए यहां लाया गया था। हमारे पास न कोई देश था, न कोई सेना थी। सात देशों ने हमारे विरुद्ध जंग छेड़ दी। हम सिर्फ 65000 थें। हमें बचाने के लिए कोई नहीं था। हम पर हमलें होतें रहे, होते रहे। लेबनान, सीरिया, इराक़, जॉर्डन,मिश्र, लीबिया, सऊदी , अरब जैसे कई देशों ने हमारे उपर कोई दया नहीं दिखाई। सभी लोग हमें मा'रना चाहते थे, किंतु हम बच गए।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने हमें धरती दी, वह धरती जो 65 प्रतिशत रेगिस्तान थी।  हमने उसको भी अपने खून से सींचा।  हमने उसे ही अपना देश माना क्योंकि हमारे लिए वही सबकुछ था। हम कुछ नहीं भूलें। हम फिर उन से बच गए। हम स्पेन से बच गए। हम हिटलर से बच गए। हम अरब से बच गए। हम सद्दाम हुसैन से बच गए। हम गद्दाफी से बच गए। हम हमास से भी बचेंगे, हम हिज्बुल्लाह से भी बचेंगे और हम ईरान से भी बचेंगे।

हमारे जेरुसलम पर अब तक 52 बार आक्रमण किया गया, 23 बार घेरा गया, 39 बार तोड़ा गया, तीन बार बर्बाद किया गया, 44 बार कब्जा किया गया लेकिन हम अपने जेरुसलम को कभी नहीं भूले वह हमारे हृदय में हैं,वह हमारे मस्तिष्क में हैं और जब तक हम रहेंगे जेरुसलम हमारी आत्मा में रहेगा। संसार यें याद रखें कि जिन्होंने हमें बर्बाद करना चाहा वह आज स्वयं नहीं है। मिश्र, लेबनान, वेवीलोन, यूनान, सिकंदर, रोमन सब खत्म हो गयें है। हम फिर भी बचे रहे।

हमें वे (इस्लाम) खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने हमारें रस्म रिवाज को कब्जाया। उन्होंने हमारें उपदेशों को कब्जाया। उन्होंने हमारी परंपरा को कब्जाया। उन्होंने हमारें पैगंबर को कब्जाया। कुछ समय पश्चात अब्राहम इब्राहिम कर दिया गया, सोलोमन, सुलेमान हो गया, डेविड, दाऊद बना दिया गया। मोजेज मूसा कर दिया गया। फिर एक दिन उन्होंने कहा - तुम्हारा पैगंबर ( मु'हम्मद) आ गया है। हमने इसे नहीं स्वीकार किया। करते भी कैसे? उनके आने का समय नहीं आया था। उन्होंने कहा स्वीकार करो़, कबूल लो। हमने नहीं कबूला। फिर हमें मा'रा गया। हमारे शहर को कब्जाया गया। हमारे शहर यसरब को मदीना बना दिया गया। हम क़'त्ल हुए,भगा दिए गए।

मक्का के काबा में हम दो लाख थे, मा'र दिए गए। हमें दुश्मन बता कर क़'त्ल किया गया। फिर सीरिया में, ओमान में यही हुआ। हम तीन लाख थे मा'र दिए गए इराक़ में हम दो लाख थे, तुर्की में चार लाख हमें मा'रा जाता रहा, मा'रा जाता रहा। वे हमें मा'र रहे हैं, मा'रते जा रहें हैं। हमारे शहर,धन, दौलत, घर,पशु,मान सम्मान सब कुछ कब्जाये़ जाते रहे, फिर भी हम बचे रहे। 1300 सालों में करोड़ों यहूदियों को मारा गया, फिर भी हम बचे रहे। 75 साल पहले वे हम पर थूकते थे, ज़लील करतें थे, मारते थे। हमारी नियति यही थी किंतु हम स्वयं पर, अपने नेतृत्व पर, अपने विश्वास पर टिके रहे हैं।

आज हमारे पास एक अपना देश है। एक स्वयं की सेना है, एक छोटी अर्थ व्यवस्था है। इंटेल, माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम, फेसबुक जैसी कई संस्थाएं हमने इस दौर में बनाई।आज हमारे चिकित्सक दवा बना रहे हैं, लेखक किताबें लिख रहें हैं। ये सबके लिए है,यह मानवता के कल्याण के लिए है।

हमने रेगिस्तान को हरियाली में बदला, हमारे फल, दवाएं, उपकरण, उपग्रह सभी के लिए है।हम किसी के दु'श्मन नहीं है, हमने किसी को खत्म करने की क़सम नहीं खाई है। हमें किसी को बर्बाद नहीं करना, हम साजिश भी नहीं करते, हम जीना चाहते हैं सिर्फ सम्मान से, अपने देश में, अपनी जमीन पर, अपने घर में।

पिछले हजार सालों से हमें मिटाया गया, खदेड़ा गया, कब्जाया जाता रहा,हम मिटे नहीं,हारे नहीं और न आगे कभी हारेंगे। हम जीतेंगे, हम जीत कर रहेंगे। हम 3000 सालों से यरुसलम में ही थे। आज़ हम अपने पहले देश इजरायल में है। यह हमारा ही था, हमारा ही है और हमारा ही रहेगा। यरुसलम हमसे है और हम यरुसलम से है।
साभार 

बुधवार, 18 जून 2025

नेहरू चचा

नेहरू चचा ने इतना सशक्त भारत बनाया कि 𝟏𝟗𝟖𝟒 में जब इंदिरा जी की मृत्यु हुई और राजीव जी प्रधानमंत्री बने तो देश मे आम नागरिक को दो बोरी सीमेन्ट लेने के लिये तहसीलदार से परमिट लेना पड़ता था।

एक किलो चीनी खरीदने तक के लिये भी परमिट लगता था। शादी विवाह में एक क्विंटल चीनी लेने के लिये तो लोग महीनों पहले से सोर्स सिफारिश खोजते फिरते थे।

तब भारत में एलपीजी के कनेक्शन के लिये 𝟐 से 𝟑 साल का समय लगता था। यकीन मानिए घर में एलपीजी होते हुए भी गृहणियां स्टोव जलाती थीं, क्योंकि उन्हें डर रहता था कि अगर गैस खत्म हो गयी तो ब्लैक और लम्बी लम्बी लाइनों में रात भर लगने के बाद अगला पूरा दिन खड़े रहकर गैस सिलेंडर भरवाना बहुत बड़ा काम था।

ये वो ज़माना था जब देश मे बजाज स्कूटर प्रीमियम पर बिकते थे, मतलब 𝟓𝟎𝟎𝟎 का स्कूटर और 𝟔𝟎𝟎𝟎 ब्लैक तब 𝟏𝟏,𝟎𝟎𝟎 में स्कूटर मिलेगा। तब टेलीफोन के कनेक्शन मिलने में 𝟕 से 𝟏𝟎 साल लग जाते थे और बहुत जबरदस्त ब्लैक होती थी।

उस नेहरु खानदान के शासनकाल के जमाने में हर किसी वस्तु का ब्लैक मार्केटिंग होता था। साथ ही हर खाद्य पदार्थ और सीमेंट जैसी अनेक वस्तुओं में मिलावट होती थीं।

आधुनिक भारत के निर्माता नेहरू चचा कितने बड़े युगद्रष्टा थे इसका एक और क़िस्सा सुनिये। नेहरू चचा ने 𝟏𝟗𝟓𝟕 में राजधानी दिल्ली के विकास के लिए 𝐃𝐃𝐀 की स्थापना की।

ऐसी एजेंसी जो मास्टर प्लान बनाती थी उसमें अगले 𝟓𝟎 वर्षों की ही प्लानिंग करती थी कि 𝟓𝟎 साल बाद ये शहर कैसा होगा। इसकी प्लानिंग करके ही शहर बसाया जाता है। उसकी सड़कें, पुल, सार्वजनिक परिवहन, रेलवे स्टेशन, बिजली पानी की व्यवस्था सब 𝟓𝟎 साल का सोच कर की जाती है।

नेहरू चाचा कहते थे "मेरे सपनों का भारत" चचा ने सपने में भी कभी नही सोचा था कि दिल्ली वाले जिंदगी में कभी कार तो क्या स्कूटर भी खरीद पाएंगे, इसलिये 𝟔𝟎 और 𝟕𝟎 के दशक में बने दिल्ली के 𝐃𝐃𝐀 फ्लैट्स देख लीजिये। किसी फ्लैट में कार तो छोड़ो स्कूटर खड़ा करने तक की जगह नहीं है।

नेहरू चिचा कितने बड़े युगद्रष्टा थे इसकी एक और मिसाल '𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚 𝐔𝐧𝐛𝐨𝐮𝐧𝐝𝐬' नामक किताब के लेखक गुरुचरण दास ने दी है। आप 𝟔𝟎 और 𝟕𝟎 के दशक में 𝐏&𝐆 के 𝐂𝐄𝐎 रहे हैं। नेहरू और इंदिरा के भारत में किसी कंपनी को टूथपेस्ट की ज़्यादा ट्यूब बनाने के लिए भी भारत सरकार से आज्ञा लेनी पड़ती थी।

𝟕𝟎 के दशक में एक बार तमिलनाडु में फ्लू फैल गया।𝐏&𝐆 का मशहूर विक्स इन्हेलर और विक्स वेपोरब तब भी बनता था। फ्लू फैला तो विक्स बाजार से गायब हो गई। कंपनी ने भारत सरकार से 𝟓 लाख अतिरिक्त विक्स इन्हेलर बनाने की इजाजत मांगी। वो इजाजत डेढ़ महीने में आयी तब तक फ्लू ठीक हो चुका था।

बजाज के पास तब भी क्षमता थी कि वे लाखों स्कूटर बना देते पर नेहरू और इंदिरा ने उनको कभी भी बड़ी संख्या में स्कूटर बनाने नहीं दिए जिससे ब्लैक मार्केटिंग बंद हो सके।

गुरुचरण दास लिखते हैं कि बिड़ला जी के बेटे आदित्य बिड़ला ने भारत मे जब हिंडाल्को खड़ी की तो नेहरू इंदिरा ने उनको इतना परेशान किया कि उन्होंने फिर कभी देश में लम्बे समय तक कोई फैक्ट्री नहीं लगाई। जबकि उन्होंने अपने जीवन मे देश के बाहर 𝟑𝟐 बहुत बड़ी बड़ी फैक्टरी लगाई।
🤔😳😢
इसलिये आज के बाद यदि आपके मित्र कांग्रेसी ये कहे कि नेहरू जी ने 𝐈𝐈𝐓, 𝐀𝐈𝐈𝐌𝐒, 𝐈𝐒𝐑𝐎 बनाए तो उसके मुंह पर यह पोस्ट दे मारना।🫣 🇮🇳🙇‍♂️

रविवार, 15 जून 2025

महा कंजूस निज़ाम

साल 1911 में उस्मान अली खान हैदराबाद के निजाम बने। तब निजाम की कुल नेट वर्थ 17.47 लाख करोड़ यानी दो सौ तीस बिलियन डॉलर की आंकी गई थी।निजाम की कुल संपत्ति उस समय अमेरिका की कुल जीडीपी की दो फीसदी के बराबर बैठती थी।निजाम के पास अपनी करेंसी थी।सिक्का ढालने के लिए अपना टकसाल था।सौ मिलियन पाउंड का सोना, चार सौ  मिलियन पाउंड के जवाहरात थे।निजाम के पास जैकब डायमंड भी था। निज़ाम हैदराबाद दुनिया के इस सबसे बड़े ,शुतुरमुर्ग के अंडे के बराबर 282 कैरेट के इस हीरे को ,जिसकी कीमत उस वक्त ही नौ सौ करोड़ रूपये थी,साबुनदानी में रखते थे और कभी-कभी पेपरवेट की तरह इस्तेमाल करते थे। उनके बगीचे में दर्जन भर ट्रक खड़े थे, जो लदे हुए माल के वजन के कारण, कीचड़ में बुरी तरह धंसे जा रहे थे।माल था- सोने की ठोस ईंटे। महल के तलघरों मे मुक्ता, नीलम, पुखराज आदि के टोकरे भर-भर कर इस तरह रखे जाते थे जैसे कि कोयले के टोकरे भरे हुए हों। निजाम के पास अनगिनत करोड़ रुपए की ऐसी नगदी थी जो पुराने अखबारों में लिपटी,तहखानों और धूल से अटे पड़े कोनों में पड़ी रहती थी और इसमें से कई हजार पौंड और रुपए तो हर साल चूहे कुतर जाते थे।

ऊपर वाला किस हद तक मज़ाक़िया हो सकता है ,निजाम इसकी मिसाल थे।एटीएम मशीन के चौकीदार सी किस्मत लिखी खुदा ने इनकी।दुनिया का यह सबसे अमीर आदमी ,दुनिया का सबसे बडा कंजूस भी था। दीवान जर्मनी दास ने अपनी मशहूर किताब 'महाराजा' में लिखा है ,जब भी वो किसी को अपने यहाँ बुलाते थे, उनको बहुत कम खाना परोसा जाता था।चाय पर भी सिर्फ़ दो बिस्कुट खाने के लाए जाते थे।एक उनके लिए और दूसरा मेहमान के लिए।जब भी निज़ाम को उनके जानने वाले अमरीकी, ब्रिटिश या तुर्क़ सिगरेट पीने के लिए ऑफ़र करते थे, तो वो सिगरेट के पैकेट से ,एक के बजाय चार-पाँच सिगरेट निकाल कर अपने सिगरेट केस में रख लिया करते थे।उनकी अपनी सिगरेट सस्ती चारमिनार हुआ करती थी, जिसका उस ज़माने में दस सिगरेटों का पैकेट बारह पैसे में आया करता था।

डॉमिनिक लापियरे और लैरी कॉलिंस ने अपनी किताब 'फ़्रीडम एट मिडनाइट' में एक दिलचस्प किस्सा लिखा है, ''हैदराबाद में रस्म थी कि साल में एक बार रियासत के कुलीन लोग निज़ाम को सोने का एक सिक्का भेट करते थे जिन्हें वो बस छू कर उन्हें वापस लौटा देता था।लेकिन आखिरी निज़ाम उन सिक्कों को लौटाने के बजाए अपने सिंहासन पर रखे एक कागज़ के थैले में डालते जाते थे।एक बार जब एक सिक्का ज़मीन पर गिर गया तो निज़ाम उसे ढ़ूढ़ने के लिए अपने हाथों और पैरों के बल ज़मीन पर बैठ गए और लुढ़कते हुए सिक्के के पीछे तब तक भागते रहे जब तक वो उनके हाथ में नहीं आ गया। 

निजाम ने अपने कमरे का बिजली कनेक्शन इसलिए कटवा रखा था, ताकि बिजली का बिल ज्यादा न आए।निजाम का बेडरूम चरम सीमा की गरीबी और बदहाली की कहानी कहता था।यहाँ जो गृहस्थी मौजूद थी उनकी,उसमें एक बेहद पुराना पलंग, टूटी टेबल, सड़ी हुई तीन कुर्सियां, राख से लदी ऐश-ट्रे, कचरे से सनी रद्दी की टोकरियां, शाही कागजात के धूल-सने ढेर, कोने-कोने में मकड़ी के जालों का जंगल और रद्दी की टोकरियाँ शामिल थी। उनके कमरे में एक ऐश-ट्रे भी थी जो साल में सिर्फ एक बार निजाम के जन्म दिन पर साफ की जाती थी। 

डोमिनिक लैपीयरे और लैरी कॉलिन्स लिखते है ,निजाम अपने बेडरूम मे बिछी दरी पर बैठकर ,मामूली टिन-प्लेटों में भोजन किया करते थे।उनके महल की पचासों आबनूसी अलमारियाँ बेशक़ीमती कपडों से भरी हुई थी ,पर वो बिना इस्तरी किया सूती पायजामा पहना करते थे। वह खुद के बुने मोजे पहनते थे और फटे कुर्तों को सिलकर पहन लेते वह महीनों तक इन कपड़ों को बदलते भी नहीं थे।उनके सिर पर,पैंतीस सालों तक एक ही मैलीकुचैली फफूँद लगी टोपी मौजूद बनी रही,और उनके पैरों मे हमेशा लोकल बाजार से मामूली दाम पर खरीदी गई घटिया चप्पलें हुआ करती थी। अब ऐसे आदमी के साथ कौन रहे ,सो उनकी सारी ही बेगमें वक्त रहते अपना चौका चूल्हा अलग कर चुकी थीं,लिहाज़ा निज़ाम बुढ़ापे में एक मामूली से बरामदे में सोते थे जिसमें बकरी भी बंधी होती थी।

और सबसे दिलचस्प सूचना सबसे आखिर मे। पोस्ट के साथ चिपकाई गई फोटो ,अमीरी और कंजूसी की अति वाले इस अनोखे आदमी और उनकी बेगम की नही है। 

मुकेश नेमा

शनिवार, 14 जून 2025

जामुन 🙂

जामुन:----
भारत को जम्बू द्वीप के नाम से भी जाना जाता है और यह नाम जामुन के वजह से है।आश्चर्य की बात तो है कि किसी फल के वजह से किसी देश का नामकरण किया गया !

दरअसल जामुन के कई नाम है और उन्हीं में से एक नाम है जम्बू ।  भारत में जामुन की बहुतायत रही है । हमारे देश में इसकी पेड़ों की संख्या लाखों-करोड़ों में है और शायद इसी कारण से यह फल हमारे देश का पहचान बन गया।

भारतीय माइथोलॉजी के दो प्रमुख केंद्र रामायण और महाभारत में भी यह विशेष पात्र रहा है।भगवान राम ने अपने 14 वर्ष के वनवास में मुख्य रूप से जामुन का ही सेवन किया था वहीं श्री कृष्णा के शरीर के रंग को ही जामुनी कहा गया है। संस्कृत के श्लोकों में अक्सर इस नाम का उच्चारण आता है।

जामुन विशुद्ध रूप से भारतीय फल है।भारत का हर गली - मोहल्ला ईसके स्वाद से परीचित हैं। जामुन एक मौसमी फल है। खाने में स्वादिष्ट होने के साथ ही इसके कई औषधीय गुण भी हैं। 

जामुन अम्लीय प्रकृति का फल है पर यह स्वाद में मीठा होता है। जामुन में भरपूर मात्रा में ग्लूकोज और फ्रुक्टोज पाया जाता है. जामुन में लगभग वे सभी जरूरी लवण पाए जाते हैं जिनकी शरीर को आवश्यकता होती है।

जामुन खाने के फायदे:-
1. पाचन क्रिया के लिए जामुन बहुत फायदेमंद होता है. जामुन खाने से पेट से जुड़ी कई तरह की समस्याएं दूर हो जाती हैं.

2. मधुमेह के रोगियों के लिए जामुन एक रामबाण उपाय है. जामुन के बीज सुखाकर पीस लें. इस पाउडर को खाने से मधुमेह में काफी फायदा होता है.

3. मधुमेह के अलावा इसमें कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो कैंसर से बचाव में कारगर होते हैं. इसके अलावा पथरी की रोकथाम में भी जामुन खाना फायदेमंद होता है. इसके बीज को बारीक पीसकर पानी या दही के साथ लेना चाहिए.

4. अगर किसी को दस्त हो रहे जामुन को सेंधा नमक के साथ खाना फायदेमंद रहता है. खूनी दस्त होने पर भी जामुन के बीज बहुत फायदेमंद साबित होते हैं.

5. दांत और मसूड़ों से जुड़ी कई समस्याओं के समाधान में जामुन विशेषतौर पर फायदेमंद होता है. इसके बीज को  पीस लीजिए. इससे मंजन करने से दांत और मसूड़े स्वस्थ रहते हैं.

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 जामुन मधुमेह के रोगियों के लिए रामबाण है। यह पाचनतंत्र को तंदुरुस्त रखता हैं । साथ ही दांत और मसूड़े के लिए बेहद फायदेमंद है ।

जामुन में कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, कैल्शियम, आयरन और पोटैशियम होता है।आयुर्वेद में जामुन को खाने के बाद खाने की सलाह दी जाती है। 

जामुन के लकड़ी का भी कोई जबाव नहीं है। एक बेहतरीन इमारती लकड़ी होने के साथ ईसके पानी मे टिके रहने की बाकमाल शक्ति है‌। 

अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल या हरी काई नहीं जमती सो टंकी को लम्बे समय तक साफ़ नहीं करना पड़ता |

प्राचीन समय में जल स्रोतों के किनारे जामुन की बहुतायत होने की यही कारण था इसके पत्ते में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो कि पानी को हमेशा साफ रखते हैं। कुए के किनारे अक्सर जामुन के पेड़ लगाए जाते थे।

जामुन की एक खासियत है कि इसकी लकड़ी पानी में काफी समय तक सड़ता नही है। जामुन की इस खुबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़े पैमाने पर होता है।

जामुन औषधीय गुणों का भण्डार होने के साथ ही किसानो के लिए भी उतना ही अधिक आमदनी देने वाला फल है ।

  नदियों और नहरों के किनारे मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिए जामुन का पेड़ काफी उपयोगी है।  अभी तक व्यवसायिक तौर पर योजनाबद्ध तरीके से जामुन की खेती बहुत कम देखने को मिलती हैं। देश के अधिकांश हिस्से में अनियोजित तरीके से ही किसान इसकी खेती करते हैं।

अधिकतर किसान जामुन के लाभदायक फल और बाजार के बारे में बहुत कम जानकारी रखते हैं, शायद इसी कारणवश वो जामुन की व्यवसायिक खेती से दूर हैं।जबकि सच्चाई यह है कि जामुन के फलों को अधिकतर लोग पसंद करते हैं और इसके फल को अच्छी कीमत में बेचा जाता है।

जामुन की खेती में लाभ की असीमित संभावनाएं हैं।इसका प्रयोग दवाओं को तैयार करने में किया जाता है, साथ ही जामुन से जेली, मुरब्बा जैसी खाद्य सामग्री तैयार की जाती है।

सबसे खास बात कि जामुन हम भारतीयों की पहचान रही है अतः इस वृक्ष के संरक्षण और संवर्धन में हम सभी को अपना योगदान देना चाहिए।

#जाबुन #फल #पेड़ #Hancock #अच्छीजानकारी #फेसबुकपोस्ट #हिंदीजानकारी #मोटिवेशनलपोस्ट 🌳🌴🙏🏻❤️🌿💐

शनिवार, 7 जून 2025

स्वछता की सोच में कमी

कल निर्जला एकादशी पर नगर में जगह - जगह छबील लगाकर मीठा शरबत, गन्ने का रस आदि पिलाया गया।
लेकिन ऐसा पुण्य कमाने वाले थोड़ा ध्यान बाद में सड़को पर फैले गिलासो पर भी देते और एक प्लास्टिक का बैग ही एक तरफ रख देते और सभी को शरबत पीने के बाद गिलास बैग में डालने को कहते तो काफ़ी हद तक समस्या का समाधान हो जाता।
इससे भी ज्यादा गलत बात तो यह है की प्लास्टिक के पतले गिलास जिन पर पाबन्दी है उनमें शरबत पिलाया जाना  ठीक नहीं है। कुछ जगहों पर तो पेपर के गिलास इस्तेमाल किये गये लेकिन वे भी सड़को पर बिखरे रहें। और जहां प्लास्टिक के पतले गिलास इस्तेमाल हुए वहाँ का तो बुरा हाल ही था।
दरअसल स्वछता के प्रति आम लोगों की लापरवाही के कारण नगर की नालियों में प्लास्टिक कचरा यानि थैलिया, पाउच, छोटी बोतले अटकी पड़ी रहती हैं। जिसके कारण नाले भी ऐसे कचरे से अटे रहते हैं।
वैसे तो पतली प्लास्टिक की थैलिया, कैरी बैग, प्लास्टिक के गिलासो पर पाबंदी है लेकिन ये आज भी बाजार में आसानी से उपलब्ध है। जनमानस को खुद ही सोचना चाहिए की ये सभी हमारे लिए नुकसान दायक हैं।
सुनील जैन राना

बुधवार, 4 जून 2025

अशांति वाहक ट्रम्प

लाशों पर राजनीती 
रूस - यूक्रेन में समझौते के कोई आसार नहीं हैं। एक तरफ रूस नें यूक्रेन पर बम्बारी कर कहर बरसा रखा है वहीं दूसरी ओर यूक्रेन नें भी रूस पर गोपनीय तरीके से जो हमला किया है वह रूस को बहुत भारी पड़ गया है।

बहुत दुर्भाग्य पूर्ण बात यह है की दोनों देशों में अपने - अपने छ -छ हज़ार सैनिकों के शवों की अदला - बदली पर सहमति बन गई है। पुतिन और जैलेंसकी के लिए ये सिर्फ सैनिकों के शव हो सकते हैं लेकिन जिन परिवारों के ये शव होंगे उनका क्या हाल होगा?

अहंकारी पुतिन और नासमझ जैलेंसकी जो अपनी सनक में सैनिकों को मरवा रहें हैं और अपने देश को खंडर बनवा रहें हैं। यूक्रेन तो वास्तव में खंडर ही बन गया है। लेकिन अभी भी जैलेंसकी खैरात के हथियारों पर बाकी बचे यूक्रेन को खंडर बनवा कर ही दम लेंगें। आखिरकार एक कॉमेडियन की स्टेज वाली बुद्धि देश को कैसे चला सकती है यह दिखाई दे रहा है।

यही हाल अमेरिका का है, एक बड़ा व्यापारी हर कार्य में अपना फायदा या देश का फायदा ही देखता रहता है। ट्रम्प भी ऐसा ही कर रहें हैं। लेकिन उन्हें यह सोचना चाहिए की यदि वे दुनिया पर हुकूमत कर रहें हैं या करना चाहते हैं तो अनेकों निर्णय फायदे या नुकसान से परे होती हैं। अपने निर्णयों से ट्रम्प की दुनिया भर में आलोचना हो रही है। ज़ब ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति बने तब उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन की आलोचना करते हुए कहा था की यूक्रेन को लाखों करोड़ के हथियार यूक्रेन को देकर हमें क्या फायदा हुआ? अब ट्रम्प भी जो बाइडन वाला कार्य कर रहें हैं। जबकि ट्रम्प नें कहा था की मै सत्ता प्राप्त करते ही कुछ ही दिनों में रूस - यूक्रेन युद्ध रुकवा दूंगा लेकिन शान्ति का संदेश देने वाले ट्रम्प दुनिया में अशांति ही फैला रहें हैं।

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