बुधवार, 4 सितंबर 2024
क्रोध से मुक्ति
पति ने अपनी गुस्सैल पत्नी से तंग आकर एक दिन उसे कीलों से भरा एक थैला देते हुए कहा, तुम्हें जब भी क्रोध आए तुम थैले से एक कील निकाल कर आंगन की दीवार में ठोंक देना।
पत्नी को अगले दिन जैसे ही क्रोध आया उसने एक कील आंगन की दीवार पर ठोंक दी। यह प्रक्रिया वह लगातार करती रही।
धीरे धीरे उसकी समझ में आने लगा कि कील ठोंकने की व्यर्थ मेहनत करने से अच्छा तो अपने क्रोध पर नियंत्रण करना है और क्रमशः कील ठोंकने की उसकी संख्या कम होती गई।
एक दिन ऐसा भी आया कि पत्नी ने दिन में एक भी कील नहीं ठोंकी।
उसने खुशी खुशी यह बात अपने पति को बताई। उसका पति बहुत प्रसन्न हुआ और कहा, जिस दिन तुम्हें लगे कि तुम एक बार भी क्रोधित नहीं हुई, ठोंकी हुई कीलों में से एक कील निकाल लेना।
पत्नी ऐसा ही करने लगी। एक दिन ऐसा भी आया कि आंगन की दीवार पर एक भी कील नहीं बची। उसने खुशी खुशी यह बात अपने पति को बताई।
पति अपनी पत्नी को आंगन में लेकर आया और कीलों के छेद दिखाते हुए पूछा, क्या तुम ये छेद भर सकती हो?
पत्नी ने कहा, नहीं जी
पति ने उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा,अब समझ में आया, क्रोध में तुम्हारे द्वारा कहे गए कठोर शब्द, दूसरे के दिल में ऐसे छेद कर देते हैं, जिनकी भरपाई भविष्य में तुम कभी नहीं कर सकती।
जब भी आपको क्रोध आये तो सोचिए कि कहीं आप भी किसी के दिल में शब्दो के द्वारा कील ठोंकने तो नहीं जा रहे। समय के साथ कील तो निकल जायेगी लेकिन निशान नहीं जायेंगे।शिष्टता एवं विनम्रता को अपने व्यवहार का आभूषण बनाए।
सुप्रभात🙏
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