रविवार, 31 जुलाई 2022

देश मे बहुत कार्य हो रहा है

विचार करने वाली बात है कि क्या भारत में रूपयों के पेड़ लग गये है? देश मे कहीं भी चले जाइए,किसी भी सड़क पर, सभी जगह काम चल रहा है। पुरानी सड़क चौड़ी हो रही है, नई सड़क बन रही है, 2 Lane वाली 4 lane हो रही है। नए Expressway बनाये जा रहे हैं। शहरों में flyover बन रहे हैं । शायद ही कोई रेलवे स्टेशन ऐसा होगा जहां काम न लगा हो। नई रेलवे लाइनें बिछ रही हैं। जो single Track थे उनको Double और Electrify किया जा रहा है। देश मे 4 तो नए DFC बोले तो Dedicated Freight Corridor बोले तो वो नई रेल लाइन बनाई जा रही हैं जिन पर सिर्फ मालगाड़ियां दौड़ेंगी। देश की जितनी भी Unmanned Railway Crossing बोले तो मानव रहित रेलवे फाटक थे उनके नीचे से अंडरपास बनाये जा रहे हैं। सन 2024 तक पूरे देश मे हर घर में नल से पानी ( कम से कम 55 लीटर पानी , प्रतिव्यक्ति , प्रतिदिन )देने की जोरदार तैयारियां चल रही है। कई गीगावाट सोलर पॉवर की तैयारी है। भविष्य में फ्यूल सेल टेक्नोलॉजी के लिए हाइड्रोजन को एक डॉलर प्रति किलो से नीचे बेचने की तैयारी चल रही है । सेना को आधुनिक बनाने के लिए हर हफ्ते नई मिसाइल का परीक्षण , एक से बढ़कर एक आधुनिक हथियारों की खरीदारी और आगे उनको देश में ही बनाने का जुनून भी सर पर हावी है । नमामि गंगे में ही गंगा और उनकी सभी सहायक नदियों के किनारे बसे शहरों में बड़े बड़े गहरे सीवर पाइप लाइन बिछा के Sewage Treatment Plant बनाये जा रहे हैं। बनारस का Sewage Treatment Plant बनारस से 30 Km दूर 30 एकड़ जमीन पर बनाया जा रहा है। पूरे बनारस शहर का Sewage वहां पाइप लाइन से जाएगा और ट्रीट हो के उस पानी को कृषि कार्यों में उपयोग होगा, ये सैकड़ों करोड़ का प्रोजेक्ट है और ऐसे ही Sewage Treatment Plants लगभग हर शहर कस्बे में बन रहे हैं। भारत माला, सागर माला , चार धाम आल वेदर रोड , पूरे चीन बॉर्डर पर आल वेदर आरटीरोड्स , बिल्कुल नया दिल्ली - मुम्बई एक्सप्रेस वे जैसे वृहद प्रोजेक्ट्स पर कार्य चल रहा है। Bullet Train प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। देश मे 100 से ज़्यादा Airports और हवाई पट्टी अपग्रेड की जा रही हैं। देश मे 12 करोड़ शौचालय और 2 करोड़ मकान बन गए प्रधान मंत्री आवास योजना में, ये जो मैंने काम गिनाए ये देश मे समानांतर चल रहे कुल विकास / निर्माण कार्यों का 10% भी नही है। गांव या शहर में देखिये, एक जेसीबी खाली नही है। सब किसी न किसी हाईवे निर्माण में लगी है। अब मुझे यह समझ में नही आ रहा कि ये जो देश भर में इतना निर्माण कार्य चल रहा है इसे बना कौन रहा है ? ये सब काम कर कौन रहा है ? अलादीन का चिराग और उसका जिन्न हाथ आ गया है क्या ? विपक्ष और प्रेस्टीट्यूट मीडिया कहता है कि सरकार रोज़गार देने में विफल रही... आखिर ये सब निर्माण कार्य करने वाले कामगार जापान से आये हैं या सिंगापुर से ? सड़क पर काम मे लगी जेसीबी कौन चला रहा है ? अडानी या अम्बानी ? रोज़गार कहते किसे हैं ? क्या सिर्फ सरकारी नौकरी को ? रोजगार का रोना रोने वालो बताओ आज खाली कौन है?

रविवार, 24 जुलाई 2022

चीन, पाकिस्तान, श्रीलंका

धोखेबाज़ चीन, पाकिस्तान एवं श्रीलंका अहंकारवादी, विस्तारवादी,साम्राज्यवादी, धोखेबाज़ चीन पूरे विश्व मे अपने इन्ही कारणों से अपनी साख खोता जा रहा है। अपने धन और ताकत के सहारे विश्व के कई देशों को अपने मकड़जाल में उलझाकर उनको बर्बाद करने पर तुला रहता है। धन बल के कारण चीन कमजोर देशों को आर्थिक मदद के बहाने धन के एवज में उनके बंदरगाह एवं महत्वपूर्ण भूमियों को अपने कब्जे में लेकर वहाँ अपनी सैन्य शक्ति स्थापित कर धमकी देता रहता है। अनेक देश चीन के चंगुल में फसते जा रहे हैं। चीन ऊपर से सहायता का दिखावा कर अंदर भितरघात में लगा रहता है। लेकिन अब उसकी यह नीति उसी पर भारी पड़ रही है। विश्व के कई देश उसके खिलाफ हो गए हैं। जिस प्रकार पाकिस्तान को आतंकी देश के रूप में देखा जाता है उसी प्रकार आज चीन को धोखेबाज़, मक्कार, विश्वासघाती देश के रूप में देखा जाने लगा है। जैसी करनी वैसी भरनी की कहावत चीन पर चरित्रार्थ हुई है। अप्रैल माह में चीन के हेनान प्रान्त में हुए बैंकिंग घोटाले ने चीन को सकते में डाल दिया है। चीन के एक बैंक से 6 अरब डॉलर गायब हो गए। जिसके बाद बैंक ने लोगो को उनका जमा पैसा देने से मना कर दिया। पैसा लेने वालों की भीड़ इतनी बढ़ गई कि चीन को बैंक के बाहर बैटल टैंक लगा देने पड़े। भीड़ के हिंसक प्रदर्शन से चीन घबरा गया। यह एक बानगी उस धनवान चीन की है जो दूसरों पर अपने धन का भार डालकर मनमानी करता था। पाकिस्तान की बात करें तो वहां भो बुरा हाल है। चीन के कर्ज में दबकर पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर है। दुनिया का कोई भी देश पाकिस्तान को डॉलर देना नही चाहता है।यहां तक कि 56 मुस्लिम देश भी पाकिस्तान की मदद करने से इनकार कर दिए हैं। पाकिस्तान में महंगाई अपने चरम पर है। कभी नियाजी कभी नवाजी सत्ता पर धावा बोल सत्तासीन हो रहे हैं।लेकिन जनता का भला करने में नाकाम हो रहे हैं। यही हाल श्रीलंका का हो गया है।श्रीलंका भी चीन की कूटनीति में फंसकर दिवालिया हो गया है। श्रीलंका की आर्थिक तबाही का मुख्य कारण चीन का कर्ज ही है। चीन ने श्रीलंका को अपने धन के मकड़जाल में उलझाकर उसे दिवालिया कर दिया है। श्रीलंका की आर्थिक स्तिथी पर संयुक्तराष्ट्र मानवाधिकार ने श्रीलंका की आर्थिक स्थिति के लिये चीन के कर्ज को जिम्मेदार माना है। चीन की इस चाल से अनेको देश तबाही की तरफ बढ़ रहे हैं। भारत पर भी चीन की निगाहें अच्छी नहीं हैं। लेकिन मोदी सरकार ने भारत देश की सुरक्षा-सम्प्रभुता के लिये अनेक कदम उठाए हैं। भारत भले ही चीन से अकेले सामना करने में सक्षम नहीं हो लेकिन आज मोदीजी के नेत्तरव में कई बड़े देश चीन के खिलाफ भारत के साथ खड़े हैं। सुनील जैन राना

शनिवार, 23 जुलाई 2022

मोदीजी जैसा कोई नहीं

मेरी पसंद के नेता मोदीजी। *1. सबसे पहले तो यह नेता कभी भी फटे-पुराने कपड़ों, बिखरे बालों या गन्दी स्थिति में नहीं दिखेगा!* *2. माननीय नरेंद्र मोदी की बॉडी लैंग्वेज बहुत प्रभावशाली लगती है। उसकी चाल मर्दानगी से भरी है।* *3. वह भगवा वस्त्र में साधु की तरह दिखता है, सैनिक पोशाक में सैनिक जैसा दिखता है, साधारण रोजमर्रा के कपड़ों में एक दिव्य राजकुमार जैसा दिखता है।* *4. देशभक्ति उनकी सांस है और अनुशासन उनका ब्लड ग्रुप है।* *5. भले ही वह दुनिया के किसी भी महान शख्सियत के साथ खड़े हों, लेकिन उनकी प्रतिभा मुट्ठी भर लगती है। अन्य प्रतिभाएँ बौनी लगती हैं।* *6. हमने अतीत में ऐसा कोई नेता नहीं देखा, जिसने चुनाव से पहले किये ग इतने असंभव वादों को पूरा किया हो।* *7. देश के शीर्ष पर होने के बावजूद वह अपने परिवार पर बिल्कुल भी विशेष उपकार नहीं करते हैं। उसके भाई-बहन उसके आसपास कभी नहीं देखे जाते। बिल्कुल नहीं।* क *8. वह कभी एक भी छुट्टी नहीं लेता।* *9. वह कभी बीमार नहीं होता।* *10. वह जानता है कि कितना कहना है और कब चुप रहना है, लेकिन वह यह भी जानता है कि दूसरे व्यक्ति को कैसे चुप रहना है।* *1 1। इस सारी व्यस्तता के बीच वह कोई वेदी नहीं है, उसका सेंस ऑफ ह्यूमर अद्भुत है।* *12. उनका भाषण तेज और अद्वितीय है। अभिव्यक्ति के लिए भाषा का प्रवाह भी बहुत अच्छा है। वे एक कवि भी हैं।* *13. वह अपने विरोधियों के धोखे या चुनौतियों से कभी नहीं डरता।* *14. वह अपने विरोधियों या अभियुक्तों की बकवास का जवाब देने में अपना समय बर्बाद नहीं करता, बल्कि पूरी कूटनीति के साथ अपने कर्तव्य के प्रति वफादार रहता है।* *15. न सिर्फ सही फैसला बल्कि उसकी सतर्कता और समर्पण की भी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।* *16. उनका व्यक्तित्व हिंदू संस्कृति का एक पवित्र प्रतीक प्रतीत होता है।* *17. उसकी आँखों में चरित्र की चमक इतनी शक्तिशाली है कि वह उसे सम्मोहित कर सकता है।* *18. इस आदमी को कोई प्रलोभन नहीं है, कोई डर नहीं है। उसके लिए स्वार्थ मायने नहीं रखता* *19. और आखिरी लेकिन कम से कम, 70 साल की उम्र में भी, यह आदमी दिन में 15 से 20 घंटे काम करता है, फिर भी हमने उसे कभी जम्हाई लेते नहीं देखा!* *💟 सहानुभूति के झरने* *यदि आप इस लेख के ऋणी हैं और आपको लगता है कि आपके प्रधान मंत्री अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से निभा रहे हैं, तो आप यह संदेश उन सभी को भेज सकते हैं जो माननीय नरेंद्र मोदी जी के शुभचिंतक हैं।*

बुधवार, 20 जुलाई 2022

मोदी विरोध क्यो?

*मोदी के अन्धविरोध की भी कोई सीमा नही है -* *वैक्सीन मुफ्त चाहिये पर टेक्स ना बढे- *रेलवे में हर सुविधा बढे पर किराया ना बढे - *सेना सन्नद्ध व हथियार बद्ध हो पर पेट्रोल की कीमत ना बढे- *किसानों की आय दुगनी हो पर कृषि सुधार कानून नहीं चाहिये - *टेक्स एकीकृत हो पर जीएसटी गलत है जो कल के 31% से आज 5 से 28% ही है - *नोटबन्दी गलत है चाहे चिदम्बरम द्वारा बेची गयी मशीन से पाकिस्तान सेम नम्बर के नकलीनोट छापकर भारत में आतंकवादियों को देकर फैला रहा हो - *काम सारे आउट सोर्सिंग से हो या ठेके पर - पर नौकरी में भर्तियां बढे - *लाभार्थी वर्ग में उनकी ही संख्या ज्यादा है पर आरोप यह कि मोदी उनका विरोधी है - *मोदी आतंकी हमले रोके पर पलटवार व कानून सख्त किये बगैर - वर्ना हम आधी रात को कोर्ट खुलवाकर आतंकी की फांसी रुकवायेंगे- *केन्द्र सरकार के 50 साल पुराने नियमों को नहीं मानेंगे पर राज्यों के साथ मोदी भेदभाव करते हैं - *पप्पू को बदनाम किया मोदी ने - तो पोने पिच्छतीस, जवाब का सवाल व यह चील यहां उपर क्यों उड रही है, संसद में आंख मारना, मोदी के गले पडने का बचपना, राफेल सोदे पर चार चार आंकडे व बेवजह चौकीदार चोर का नारा यह मोदी ने लगवाया था पप्पू से -? *आदमी अपने कर्मों से बदनाम होता है - व पप्पू कहलाता है - *तुम असभ्य गाली दो या सुनियोजित दंगे करवाओ! वह चुप रहकर कानूनी कार्यवाही भी करे तो वह चुप क्यों रहता है - *और बोले तो कहो बोलता है, चुप ही नहीं होता- विपक्ष व अन्धविरोधियों की यह सब विरोधाभासी, रोज की दिन चर्या है - *और अब ताजा मामला लेलो - खाद्यपदार्थ पर जीएस टी -? कल तक कहते थे माल व खुदरा में व्यवसायिक कम्पनियों के आने से छोटा व्यापारी बर्बाद हो रहा है -रोजगार समाप्त व गरीबी बड रही है - ग्लोबल युग व कानूनन वह बिना बडी कमी के किसी को व्यापार करने से रोक तो नहीं सकता - यही कांग्रेस थी जो विरोध के बाद भी भारत को WTO से जोडकर की मानी - पर आप लोकल दुकान-दार से सामान खरीदें वह सेहत हेतू भी ठीक है व आपका सामाजिक व्यवहार भी उस पडोसी दुकानदार से है, वह आपका अपना है सुख दुख का साथी है वही उधार भी दे देता है - वह पनपे तो ठीक ही है ना - तो सरकार ने पैक्ड सामान पर जीएसटी लगा दिया पर खुले सामान पर नहीं लगाया,जो सामान कम्पनी का नहीं है वह व्यापारी खुद पिसवाता बिनवाता है - इससे आप की जेब पर वजन भी नहीं बढेगा एव वह व्यापारी भी पनपेगा- जो पैक्ड सामान आप आन लाइन मंगवाते हो वह आप घर पर क्यों तैय्यार नहीं करते - उससे हर तरह का लाभ है या नहीं -? तो आप में यह आदत पनपे विदेशी देशी कम्पनी का पैक्ड पुराना सामान आपको मंहगा पडने से आप ना खरीदें यह उसकी मन्शा है - तो गलत क्या है - और यह तो शुरूआत है अगर आपका समर्थन मिला तो यह गति बढेगी हर वस्तु स्थानीय हो कम्पनी की पैक्ड नहीं इससे सबको लाभ होगा - वर्ना अंकल चिप्स की 5/- की आलू चिप्स टशन व फैशन मे आप 20/- में जब खरीदते हो - पास के हलवाई से 300-400 रुपये कि की शुद्ध रबड़ी के बजाय नकली दूध से बनी पैक्ड रबडी 650/-किलो में लेते हो वह तो ठीक है ना -? सरकार का इरादा इसमें वस्तु मंहगा करना नहीं है? -आपको स्थानीय खाद्यपदार्थ की तरफ मोडना है - जैसे अग्निपथ रोजगार का विकल्प नहीं है देश की आन्तरिक व बाहरी सुरक्षा का मजबूत उपाय है - पर सत्ता के भूखों की सारंगी आप बजाओगे तो 800 साल की मुगलों की गुलामी जिस कमजोरी से आयी वो तथा जिस व्यापारिक रणनीति से अंग्रेज 200 साल राज कर गये - वह कमियां दूर ना हुयी तो - क्या वापस "भारतीय नूर दो दीनार" के इतिहास में लौटने या नील की खेती की अनिवार्यता भुगतने की मानसिकता बना ली है - छोटी चीजों से ही बडे परिवर्तन की शुरूआत होती है - जब आप इन छोटे परिवर्तनों पर ही अपनी सुविधा छोडने पर हिचकते हो -तो बडे परिवर्तन जैसी रोज मांग करते हो? इजराइल जैसी व्यवस्था लाने- चीन व म्यांमार जैसे कदम उठाने को क्या खाक तैय्यार होंगें - सोचना जरूर.... •सिर्फ ब्रांडेड आटे पर टैक्स लगा है... •नहीं देना है टैक्स तो अपने यहां के "लोकल चक्की वाले" के यहां से आटा लो, सेहत भी बनी रहेगी... •सरकार चाहती है कि दूध,दही,मख्खन ,घी ,आटा,बेसन , सूजी आदि ब्रांड में मत खरीदो... •लोकल लोगों से लो, आज से 10 -15 साल पहले भी तो जैसे इन चीजों का कोई ब्रांड नहीं था... •आलस और कामचोरी पर GST लग रहा है- •घी , दही , मक्खन , छाछ तो घर पर भी बन सकती है... आटा, बेसन व कुछ अन्य तो चक्की पर भी पीसा या पिसवाया ज़ा सकता है.. साभार.

सोमवार, 18 जुलाई 2022

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एक के साथ एक मुफ्त

*"एक खरीदें एक मुफ्त पाएं"* देखने में यह एक marketing लगती है लेकिन *वास्तविक जीवन में इसके कई मायने हैं* 🙏🙏 जब हम *क्रोध* खरीदते हैं तो हमें *एसिडिटी* मुफ्त में मिल जाती है,, जब हम *ईर्ष्या* खरीदते हैं तो *सिरदर्द* मुफ्त में मिल जाता है,, जब हम *नफरत* खरीदते हैं तो *अल्सर* मुफ्त में मिल जाता है,, जब हम *तनाव* खरीदते हैं तो *रक्तचाप* मुफ्त में मिल जाता है,, ऐसे ही जब हम बातचीत से *विश्वास* खरीदते हैं तो *दोस्ती* मुफ्त में प्राप्त हो जाती है,, जब हम *व्यायाम* खरीदते हैं तो अच्छा *स्वास्थ्य* मुफ्त में प्राप्त जाता है जब हम *शांति* खरिदते हैं तो हमें *समृद्धि* मुफ्त में प्राप्त हो जाती है,, जब हम *ईमानदारी* खरिदते हैं तो अच्छी *नींद* मुफ्त में प्राप्त हो जाती है, जब हम *प्यार भाव* खरीदते हैं तो हमें सभी अच्छे गुणों के साथ *ईश्वर की कृपा* प्राप्त हो जाती है,, अब ये हम पर निर्भर करता है कि हमें क्या खरीदना चाहिए* जब हम *सत्संग* खरीदते हैं तो हमें *शांति* मुफ्त में प्राप्त हो जाती है। अपने जीवन को सरल बनाना चाहिए।

रविवार, 17 जुलाई 2022

कल और आज में अंतर

✍️ आखिर अंतर फिर भी रह ही गया.! 😒 🤔 1) बचपन में जब हम रेल की यात्रा करते थे तो माँ घर से खाना बनाकर साथ ले जाती थी, पर रेल में कुछ अमीर लोगों को जब खाना खरीद कर खाते हुए देखते, तब बड़ा मन करता था कि काश ! हम भी खरीद कर खा पाते.! पिताजी ने समझाया, ये हमारे बस का नहीं.! ये तो बड़े व अमीर लोग हैं जो इस तरह पैसे खर्च कर सकते हैं, हम नहीं कर सकते.! बड़े होकर देखा कि हम भी रेल का खाना खरीद सकते हैं। अब जब हम खाना खरीद कर खा रहे हैं, तो "स्वास्थ्य सचेतन के लिए," वो बड़े लोग घर का भोजन साथ लेकर जा रहे हैं.! आखिर अंतर रह ही गया.! 😒 🤔 🧐🧐🧐🧐🧐🧐🧐🧐 2) हम अपने बचपन में जब सूती कपड़े पहनते थे, तब अमीर लोग टेरीलिन पहनते थे.! बड़ा मन करता था कि हम भी टेरीलिन के कपड़े पहनें, पर पिताजी कहते- हम इतना खर्च नहीं कर सकते.! बड़े होकर जब हम टेरीलिन पहनने लगे, तब वो लोग सूती कपड़े पहनने लगे हैं.! अब सूती कपड़े महँगे हो गए ! हम अब उतना खर्च नहीं कर सकते.! आखिर अंतर रह ही गया..!!! 😒 🤔 ⚖⚖⚖⚖⚖⚖⚖ 3) बचपन में जब खेलते-खेलते हमारा पतलून घुटनों के पास से फट जाता तो बड़ी लज्जा का अनुभव होता था। माँ बड़ी कारीगरी से उसे रफू कर देती, और हम खुश हो जाते थे। बस उठते-बैठते अपने हाथों से घुटनों के पास का वो रफू वाला हिस्सा जरूर ढँक लेते थे ! बड़े होकर अपने पास कई पतलून हो गए और फटा पतलून पहनने की ज़रूरत नहीं रही। किंतु अब वे लोग घुटनों के पास फटे पतलून महँगे दामों में बड़े दुकानों से खरीद कर पहन रहे हैं.! आखिर अंतर रह ही गया..!! 🤔 😒 ⚖⚖⚖⚖⚖⚖⚖⚖ 4) बचपन में हम साईकिल बड़ी मुश्किल से खरीद पाए, तब वे स्कूटर पर जाते थे ! जब हमने स्कूटर खरीदा तो वो कार की सवारी करने लगे और जब तक हम मारुति खरीद पाए, वो बड़ी वाली कार पर जाते दिखे.! और हम जब रिटायरमेन्ट का पैसा लगाकर अंतर को मिटाने के लिए अच्छी कार खरीद लाए, तो वो साईकिलिंग करते नज़र आए, स्वास्थ्य के लिए। आखिर अंतर फिर भी रह ही गया..!!! 🤔 😒 हर हाल में हर समय दो विभिन्न लोगों में "अंतर" रह ही जाता है। "अंतर" सतत है, सनातन है, अतः सदा सर्वदा रहेगा। कभी भी दो भिन्न व्यक्ति और दो विभिन्न परिस्थितियां एक जैसी नहीं होतीं। कहीं ऐसा न हो कि, कल की सोचते-सोचते और तुलना करते-करते हम अपने आज को ही खो दें और फिर कल इसी आज को याद करें! 👍 इसलिए जिस हाल में हैं... जैसे हैं... प्रसन्न रहे.... SUSHIL AGGARWAL

दवा कम्पनियां और डॉक्टर

दवाई कम्पनियां और डॉक्टर कोविड महामारी के दौरान भारत ने न सिर्फ अपने देश के नागरिकों को टीका उपलब्ध कराया बल्कि विश्व के अनेको देशों को भी कोविड का टीका भेजने में मदद की। यह सब मोदीजी की सक्षमता के कारण सम्भव हो पाया है। भारत से लगभग 150 देशों को दवाइयां निर्यात होती हैं लेकिन कई ब्रांडेड विदेशी कम्पनियों की महंगी दवाइयां आयात भी होती हैं। सरकार अनेको आम आदमी के काम आने वाली दवाइयां कम कीमत पर उपलब्ध करवा रही रही है, लेकिन फिर भी अनेको दवाइयां-इंजेक्शन आदि बहुत महंगे दाम पर मिल रहे हैं। कुछ का तो हाल ऐसा है कि प्रिंट रेट इतना ज्यादा है की जिसे पता है वह मोलभाव कर दाम कम करवा लेता है।कुछ दवाओं पर दाम दुगने से लेकर पांच गुने तक प्रिंट हैं। यानी दुकानदार को दिए गए रेट पर से ज्यादा कई गुने रेट प्रिंट होते हैं। अनेको दवाइयां-इंजेक्शन-प्रोटीन पाउडर आदि पर मूल कीमत से 5 से 10 गुने तक रेट प्रिंट किये जा रहे हैं। दवा कम्पनियां ब्रांडेड दवाई के अनुरूप दवाई बनाकर देशभर में डॉक्टरों को महंगे उपहार एवं विदेशों के टूर उपलब्ध कराकर उन दवाईयों पर मनमाने रेट डालकर खुद के भी वारे न्यारे कर रही हैं और डॉक्टरों की भी मौज आ रही है। अभी हाल ही में माइक्रो लैब दवा कम्पनी ने अपनी एक दवाई जिसका नाम डोलो है को बेचने के लिये लगभग 1000 करोड़ के उपहार देश भर के डॉक्टरों को दिए। तब डॉक्टरों ने कोविड के समय डोलो लिखनी शुरू कर दी। जो कार्य सस्ती दवाई पैरासिटामोल एवम क्रोसिन करती है वही कार्य डोलो करती है। यह तो एक छोटा उदाहरण है। हद तो यह है कि अनेकों डॉक्टर अपने अनुसार छोटी दवा कम्पनियों से दवाई बनवाकर महंगा प्रिंट डलवा लेते है। उनके पर्चे पर लिखी दवाई उन्ही के यहां मिलेगी अन्य जगह नहीं मिलेगी। हालांकि पांचों उंगलिया एक सी नही होती फिर भी ज्यादातर उंगलिया असमान ही होती हैं। मानवता के देवता ही मानवता के दुश्मन बने हुए हैं। सरकार को यह अध्यादेश लाना चाहिये की प्रत्येक डॉक्टर दवाई की जगह साल्ट लिखे ताकि उपभोक्ता उस साल्ट की दवाई कहीं से भी ले सके। साथ ही डॉक्टरों की अपनी दवाई की दुकानें नहीं होनी चाहिये। दवाई ऐसी लिखी जानी चाहिए जो सब जगह मिल जाये। सरकार जेनरिक दवाइयों को प्रोत्साहित करना चाह रही है लेकिन दवा कम्पनियां और डॉक्टर्स इसे कामयाब नहीं होने दे रहे हैं। बीमारी किसी के हाथ की बात नहीं है। अमीर - गरीब सभी बीमार होते ही हैं। ऐसे में अमीर आदमी तो कहीं भी उपचार करा लेता है लेकिन गरीब आदमी बिना उपचार ही मृत्यु को प्राप्त ही जाता है। सुनील जैन राना

शनिवार, 16 जुलाई 2022

जामुन की लकड़ी

हर व्यक्ति अपने घर की पानी की टंकी में जामुन की लकड़ी का एक टुकड़ा जरूर रखें, एक रुपए का खर्चा भी नहीं और लाभ ही लाभ मात्र आपको जामुन की लकड़ी को घर लाना है अच्छी तरह साफ सफाई कर कर पानी की टंकी में डाल देना है इसके बाद आपको फिर पानी की टंकी की साफ सफाई की जरूरत नहीं पड़ेगी।,,,,,,,,,,,,,, *नाव की तली में जामुन की लकड़ी क्यों लगाते हैं, जबकि वह तो बहुत कमजोर होती है* -. क्या आप जानते हैं भारत की विभिन्न नदियों में यात्रियों को एक किनारे से दूसरे किनारे पर ले जाने वाली नाव की तली में जामुन की लकड़ी लगाई जाती है। सवाल यह है कि जो जामुन पेट के रोगियों के लिए एक घरेलू आयुर्वेदिक औषधि है, जिसकी लकड़ी से दांतो को कीटाणु रहित और मजबूत बनाने वाली दातुन बनती है, उसी जामुन की लकड़ी को नाव की निचली सतह पर क्यों लगाया जाता है। वह भी तब जबकि जामुन की लकड़ी बहुत कमजोर होती है। मोटी से मोटी लकड़ी को हाथ से तोड़ा जा सकता है। *नदियों का पानी पीने योग्य कैसे बना रहता है* -. बहुत कम लोग जानते हैं कि जामुन की लकड़ी एक चमत्कारी लकड़ी है। यह पानी के अंदर रहते हुए सड़कर खराब नहीं होती बल्कि इसमें एक चमत्कारी गुण होता है। यदि इसे पानी में डूबा दिया जाए तो यह पानी का शुद्धिकरण करती है और पानी में कचरा जमा होने से रोकती है। कितना आश्चर्यजनक है कि हम जिन पूर्वजों को अनपढ़ मानते हैं उन्होंने नदियों को स्वच्छ बनाए रखने और नाव को मजबूत बनाए रखने का कितना असरकारी समाधान निकाला। *बावड़ी की तलहटी में 700 साल बाद भी जामुन की लकड़ी खराब नहीं हुई* -. जामुन की लकड़ी के चमत्कारी परिणामों का प्रमाण हाल ही में मिला है। *देश की राजधानी दिल्ली में स्थित निजामुद्दीन की बावड़ी की जब सफाई की गई तो उसकी तलहटी में जामुन की लकड़ी का एक स्ट्रक्चर मिला है। भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख श्री केएन श्रीवास्तव ने बताया कि जामुन की लकड़ी के स्ट्रक्चर के ऊपर पूरी बावड़ी बनाई गई थी। शायद इसीलिए 700 साल बाद तक इस बावड़ी का पानी मीठा है और किसी भी प्रकार के कचरे और गंदगी के कारण बावड़ी के वाटर सोर्स बंद नहीं हुए। जबकि 700 साल तक इसकी किसी ने सफाई नहीं की थी।* *आपके घर में जामुन की लकड़ी का उपयोग* -. यदि आप अपनी छत पर पानी की टंकी में जामुन की लकड़ी डाल देते हैं तो आप के पानी में कभी काई नहीं जमेगी। 700 साल तक पानी का शुद्धिकरण होता रहेगा। आपके पानी में एक्स्ट्रा मिनरल्स मिलेंगे और उसका टीडीएस बैलेंस रहेगा। यानी कि जामुन हमारे खून को साफ करने के साथ-साथ नदी के पानी को भी साफ करता है और प्रकृति को भी साफ रखता है। *कृपया हमेशा याद रखिए कि दुनियाभर के तमाम राजे रजवाड़े और वर्तमान में अरबपति रईस जो अपने स्वास्थ्य के प्रति चिंता करते हैं। जामुन की लकड़ी के बने गिलास में पानी पीते हैं।*

मंगलवार, 12 जुलाई 2022

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जैनिज़्म मुनि इमेजेज

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तब और अब

Sunita Vyas आज से चालीस-पैतालिस साल पहले की बात बतलाऊँ। तब अमीर भी इतने अमीर नहीं होते थे कि एकदम अलग-थलग हो जावें। अपना लोटा-थाली अलग लेकर चलें। पंगत में सब साथ ही जीमते थे। मिठाइयों की दुकान पर वही चार मिठाइयाँ थीं, बच्चों के लिए ले-देकर वही चंद खिलौने थे। जब बाज़ार ही नहीं होगा तो करोड़पति भी क्या ख़रीद लेगा? अमीर से अमीर आदमी भी तब दूरदर्शन पर हफ्ते में दो बार रामायण, तीन बार चित्रहार और नौ बार समाचार नहीं देख सकता था, क्योंकि आते ही नहीं थे। देखें तो उस ज़माने में तक़रीबन सभी एक जैसे ग़रीब-ग़ुरबे थे। सभी साइकिल से चलते थे। कोई एक तीस मार ख़ां स्कूटर से चलता होगा। हर घर में टीवी टेलीफोन नहीं थे। फ्रिज तो लखपतियों के यहां होते, जो शरबत में बर्फ़ डालकर पीते तो सब देखकर डाह करते। लोग एक पतलून को सालों-साल पहनते और फटी पतलून के झोले बना लेते। चप्पलें चिंदी-चिंदी होने तक घिसी जातीं। कोई लाटसाहब नहीं था। सब ज़िंदगी के कारख़ाने के मज़दूर थे। जीवन जीवन जैसा ही था, जीवन संघर्ष है ऐसा तब लगता नहीं था। दुनिया छोटी थी। समय अपार था। दोपहरें काटे नहीं कटतीं। पढ़ने को एक उपन्यास का मिल जाना बड़ी दौलत थी। दूरदर्शन पर कोई फ़िल्म चल जाए तो सब चाव से बाड़े में दरी बिछाकर देखते। सूचनाएँ कहीं नहीं थीं, सिवाय पुस्तकों के, और पुस्तकें केवल वाचनालयों में मिल सकती थीं। चीज़ें सरल थीं। सपने संतरे की गोलियों से बड़े न थे। छुपम-छुपई खेलते, रेडियो सुनते, कैसेट भराते, सड़क पर टायर दौड़ाते दिन बीत जाते थे। शहर में मेला लगता तो रोमांच से सब उफन पड़ते। मेला देखना त्योहार था। टॉकिज में पिक्चर देखने, फ़ोटो खिंचाने के लिए लोग सज-सँवरकर तैयार होकर घर से निकलते थे। एक अलग ही भोलापन सबके दिल में था। उस दुनिया के क़िस्से सुनाओ तो लगता है वो कितने मुश्किल दिन थे। उस वक़्त तो कभी लगा नहीं कि ये मुश्किल दिन हैं। मुश्किल दिन तो ये आज के हैं, जो समझ ही नहीं आते। इनके मायने ही नहीं बूझते। हिरन जैसा मन दिनभर यहाँ-वहाँ डोलता है और उसकी प्यास ही नहीं मिटती। कोई नहीं जानता किसको क्या चाहिए। युग की वृत्ति के विपरीत बात कह रहा हूँ किन्तु सोचकर कहता हूँ कि दीनता और अभाव में सुख है, या एक प्रशान्त क़िस्म का संतोष कह लें। मन को बहुत सारे विकल्प चाहिए, उन विकल्पों में ख़ुद को भरमाना, उलझाना, अनिर्णय में रहना उसको अच्छा लगता है। जबकि देह की ज़रूरतें ज़्यादा नहीं और वो पूर जावें तो आत्मा भी देह में प्रकृतिस्थ रहती है। अधिक आवश्यकता होती नहीं है। बचे हुए भोजन को सुधारकर फिर खाने योग्य बना लेने में सुख है। पुराने वस्त्रों में पैबंद लगाकर उन्हें फिर चला लेने में। स्मरण रहे, यह सब इसलिए नहीं कि धन का अभाव है या चीज़ों की कोई कमी है। दुकानें लदी पड़ी हैं चीज़ों से। किन्तु मन को बाँधना ज़रूरी है। इसे बेलगाम छोड़ा कि आप भरमाए। इधर जब से बाज़ार चीज़ों से भर गए हैं, विषाद सौ गुना बढ़ गया। बाज़ार रचे ही इसलिए गए हैं कि अव्वल वो मनुष्य में नई-नई इच्छाएँ पैदा करें, और दूसरे उन इच्छाओं को पूरा करने के सौ विकल्प आपको दें। कपड़ों की दुकान पर चले जाएँ, हज़ार तरह के विकल्प। मिठाइयों की दुकान पर हज़ार पकवान। जूतों की दुकान पर हज़ार ब्रांड। पढ़ने को हज़ार किताबें और देखने को हज़ार फ़िल्में। सब तो कोई भोग न सकेगा और कोई धन्नासेठ भोग ले तो रस न पा सकेगा। एकरसता एक समय के बाद भली लगने लगती है। जब भूमण्डलीकरण शुरू हुआ था, तब सब एकरसता से ऊबे हुए थे और बड़ी विकलता से विकल्पों की तरफ़ गए। अब उस परिघटना को तीस-इकतीस साल पूरे हो गए। अब कालान्तर होना चाहिए। अनुभव से कहता हूँ परिग्रह दु:ख ही देता है। मैंने इससे भरसक स्वयं को बचाए रखा- जूते-कपड़े-सामान कम ही रखे- किन्तु पुस्तकों का बहुत परिग्रह किया है, और भले वो सात्विक वृत्ति का संयोजन हो किन्तु उसमें भी क्लेश है। एक बार में एक ही पुस्तक पढ़ी जा सकती है, किन्तु हज़ार पुस्तकें पढ़ी जाने को हों तो मन उधर दौड़ता है। ये मन की दौड़ ही दु:ख का कारण है। वाचनालयों के वो दिन याद आते हैं, जब एक पुस्तक आप इशू कराकर लाते थे और महीना-पखवाड़ा उसी के साथ बिताते थे। उस ज़माने में तो किसी को कोई पत्रिका कहीं से मिल जावे तो बड़े चाव से पढ़ता था। अख़बार तक नियमपूर्वक आद्योपान्त बाँचे जाते थे। इसी से कहता हूँ कि हर वो वृत्ति जो कहती है कि खाने को बहुत है, पहनने को बहुत है, पढ़ने को बहुत है, वो बड़ा कष्ट देने वाली है। जब पूरी पृथ्वी रिक्त थी, तब भी मनुज अपनी देह के आकार से अधिक जगह पर नहीं सो जाते थे। हाँ, मन का आकार बेमाप है। इस कस्तूरी मृग के बहकावे में जो आया, सो वन-प्रान्तर भटका, दिशा भूला, देश छूटा, विपथ ही हुआ जानो। इसकी लगाम कसना ही सबसे बड़ी कला है, बाक़ी कलाएँ पीछे आती हैं। साभार अग्रेषित

सोमवार, 11 जुलाई 2022

इतिहास से

*खोयी हुई, या गायब की हुई इतिहास की एक झलक *622 ई से लेकर 634 ई तक मात्र 12 वर्ष में अरब के सभी मूर्तिपूजकों को मुहम्मद ने तलवार से जबरदस्ती मुसलमान बना दिया! (मक्का में महादेव काबळेश्वर (काबा) को छोड कर!)* *634 ईस्वी से लेकर 651 तक, यानी मात्र 16 वर्ष में सभी पारसियों को तलवार की नोंक पर जबरदस्ती मुसलमान बना दिया!* *640 में मिस्र में पहली बार इस्लाम ने पांँव रखे, और देखते ही देखते मात्र 15 वर्ष में, 655 तक इजिप्ट के लगभग सभी लोग जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!* *नार्थ अफ्रीकन देश जैसे अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को आदि देशों को 640 से 711 ई तक पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म में जबरदस्ती बदल दिया गया!* *3 देशों का सम्पूर्ण सुख चैन जबरदस्ती छीन लेने में मुसलमानो ने मात्र 71 वर्ष लगाए!* *711 ईस्वी में स्पेन पर आक्रमण हुआ, 730 ईस्वी तक स्पेन की 70% आबादी मुसलमान थी!* *मात्र 19 वर्ष में तुर्क थोड़े से वीर निकले, तुर्कों के विरुद्ध जिहाद 651 ईस्वी में आरंभ हुआ, और 751 ईस्वी तक सारे तुर्क जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!* *इण्डोनेशिया के विरुद्ध जिहाद मात्र 40 वर्ष में पूरा हुआ! सन 1260 में मुसलमानों ने इण्डोनेशिया में मारकाट मचाई, और 1300 ईस्वी तक सारे इण्डोनेशियाई जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!* *फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान, जॉर्डन आदि देशों को 634 से 650 के बीच जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!* *सीरिया की कहानी तो और दर्दनाक है! मुसलमानों ने इसाई सैनिकों के आगे अपनी महिलाओ को कर दिया! मुसलमान महिलाये गयीं इसाइयों के पास, कि मुसलमानों से हमारी रक्षा करो! बेचारे मूर्ख इसाइयों ने इन धूर्तो की बातों में आकर उन्हें शरण दे दी! फिर क्या था, सारी "सूर्पनखा" के रूप में आकर, सबने मिलकर रातों रात सभी सैनिकों को हलाल करवा दिया!* *अब आप भारत की स्थिति देखिये!* *उसके बाद 700 ईस्वी में भारत के विरुद्ध जिहाद आरंभ हुआ! वह अब तक चल रहा है!* *जिस समय आक्रमणकारी ईरान तक पहुँचकर अपना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर चुके थे, उस समय उनकी हिम्मत नहीं थी कि भारत के राजपूत साम्राज्य की ओर आंँख उठाकर भी देख सकें!* *636 ईस्वी में खलीफा ने भारत पर पहला हमला बोला! एक भी आक्रान्ता जीवित वापस नहीं जा पाया!* *कुछ वर्ष तक तो मुस्लिम आक्रान्ताओं की हिम्मत तक नहीं हुई भारत की ओर मुँह करके सोया भी जाए! लेकिन कुछ ही वर्षो में गिद्धों ने अपनी जात दिखा ही दी! दुबारा आक्रमण हुआ! इस समय खलीफा की गद्दी पर उस्मान आ चुका था! उसने हाकिम नाम के सेनापति के साथ विशाल इस्लामी टिड्डिदल भारत भेजा!* *सेना का पूर्णतः सफाया हो गया, और सेनापति हाकिम बन्दी बना लिया गया! हाकिम को भारतीय राजपूतों ने मार भगाया और बड़ा बुरा हाल करके वापस अरब भेजा, जिससे उनकी सेना की दुर्गति का हाल, उस्मान तक पहुंँच जाए!* *यह सिलसिला लगभग 700 ईस्वी तक चलता रहा! जितने भी मुसलमानों ने भारत की तरफ मुँह किया, राजपूत शासकों ने उनका सिर कन्धे से नीचे उतार दिया!* *उसके बाद भी भारत के वीर जवानों ने पराजय नही मानी! जब 7 वीं सदी इस्लाम की आरंभ हुई, जिस समय अरब से लेकर अफ्रीका, ईरान, यूरोप, सीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया, तुर्की यह बड़े बड़े देश जब मुसलमान बन गए, भारत में महाराणा प्रताप के पूर्वज बप्पा रावल का जन्म हो चुका था!* *वे अद्भुत योद्धा थे, इस्लाम के पञ्जे में जकड़ कर अफगानिस्तान तक से मुसलमानों को उस वीर ने मार भगाया! केवल यही नहीं, वह लड़ते लड़ते खलीफा की गद्दी तक जा पहुंँचे! जहाँ स्वयं खलीफा को अपनी प्राणों की भिक्षा माँगनी पड़ी!* *उसके बाद भी यह सिलसिला रुका नहीं! नागभट्ट प्रतिहार द्वितीय जैसे योद्धा भारत को मिले! जिन्होंने अपने पूरे जीवन में राजपूती धर्म का पालन करते हुए, पूरे भारत की न केवल रक्षा की, बल्कि हमारी शक्ति का डङ्का विश्व में बजाए रखा!* *पहले बप्पा रावल ने पुरवार किया था, कि अरब अपराजित नहीं है! लेकिन 836 ई के समय भारत में वह हुआ, कि जिससे विश्वविजेता मुसलमान थर्रा गए!* *सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने मुसलमानों को केवल 5 गुफाओं तक सीमित कर दिया! यह वही समय था, जिस समय मुसलमान किसी युद्ध में केवल विजय हासिल करते थे, और वहाँ की प्रजा को मुसलमान बना देते!* *भारत वीर राजपूत मिहिरभोज ने इन आक्रांताओ को अरब तक थर्रा दिया!* *पृथ्वीराज चौहान तक इस्लाम के उत्कर्ष के 400 वर्ष बाद तक राजपूतों ने इस्लाम नाम की बीमारी भारत को नहीं लगने दी! उस युद्ध काल में भी भारत की अर्थव्यवस्था अपने उत्कृष्ट स्थान पर थी! उसके बाद मुसलमान विजयी भी हुए, लेकिन राजपूतों ने सत्ता गंवाकर भी पराजय नही मानी, एक दिन भी वे चैन से नहीं बैठे!* *अन्तिम वीर दुर्गादास जी राठौड़ ने दिल्ली को झुकाकर, जोधपुर का किला मुगलों के हाथो ने निकाल कर हिन्दू धर्म की गरिमा, को चार चाँद लगा दिए!* *किसी भी देश को मुसलमान बनाने में मुसलमानों ने 20 वर्ष नहीं लिए, और भारत में 800 वर्ष राज करने के बाद भी मेवाड़ के शेर महाराणा राजसिंह ने अपने घोड़े पर भी इस्लाम की मुहर नहीं लगने दी!* *महाराणा प्रताप, दुर्गादास राठौड़, मिहिरभोज, रानी दुर्गावती, अपनी मातृभूमि के लिए जान पर खेल गए!* *एक समय ऐसा आ गया था, लड़ते लड़ते राजपूत केवल 2% पर आकर ठहर गए! एक बार पूरा विश्व देखें, और आज अपना वर्तमान देखें! जिन मुसलमानों ने 20 वर्ष में विश्व की आधी जनसंख्या को मुसलमान बना दिया, वह भारत में केवल पाकिस्तान बाङ्ग्लादेश तक सिमट कर ही क्यों रह गए?* *राजा भोज, विक्रमादित्य, नागभट्ट प्रथम और नागभट्ट द्वितीय, चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, समुद्रगुप्त, स्कन्द गुप्त, छत्रसाल बुन्देला, आल्हा उदल, राजा भाटी, भूपत भाटी, चाचादेव भाटी, सिद्ध श्री देवराज भाटी, कानड़ देव चौहान, वीरमदेव चौहान, हठी हम्मीर देव चौहान, विग्रह राज चौहान, मालदेव सिंह राठौड़, विजय राव लाँझा भाटी, भोजदेव भाटी, चूहड़ विजयराव भाटी, बलराज भाटी, घड़सी, रतनसिंह, राणा हमीर सिंह और अमर सिंह, अमर सिंह राठौड़, दुर्गादास राठौड़, जसवन्त सिंह राठौड़, मिर्जा राजा जयसिंह, राजा जयचंद, भीमदेव सोलङ्की, सिद्ध श्री राजा जय सिंह सोलङ्की, पुलकेशिन द्वितीय सोलङ्की, रानी दुर्गावती, रानी कर्णावती, राजकुमारी रतनबाई, रानी रुद्रा देवी, हाड़ी रानी, रानी पद्मावती, जैसी अनेको रानियों ने लड़ते-लड़ते अपने राज्य की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए!* *अन्य योद्धा तोगा जी वीरवर कल्लाजी जयमल जी जेता कुपा, गोरा बादल राणा रतन सिंह, पजबन राय जी कच्छावा, मोहन सिंह मँढाड़, राजा पोरस, हर्षवर्धन बेस, सुहेलदेव बेस, राव शेखाजी, राव चन्द्रसेन जी दोड़, राव चन्द्र सिंह जी राठौड़, कृष्ण कुमार सोलङ्की, ललितादित्य मुक्तापीड़, जनरल जोरावर सिंह कालुवारिया, धीर सिंह पुण्डीर, बल्लू जी चम्पावत, भीष्म रावत चुण्डा जी, रामसाह सिंह तोमर और उनका वंश, झाला राजा मान, महाराजा अनङ्गपाल सिंह तोमर, स्वतंत्रता सेनानी राव बख्तावर सिंह, अमझेरा वजीर सिंह पठानिया, राव राजा राम बक्श सिंह, व्हाट ठाकुर कुशाल सिंह, ठाकुर रोशन सिंह, ठाकुर महावीर सिंह, राव बेनी माधव सिंह, डूङ्गजी, भुरजी, बलजी, जवाहर जी, छत्रपति शिवाजी!* *ऐसे हिन्दू योद्धाओं का संदर्भ हमें हमारे इतिहास में तत्कालीन नेहरू-गाँधी सरकार के शासन काल में कभी नहीं पढ़ाया गया! पढ़ाया ये गया, कि अकबर महान बादशाह था! फिर हुमायूँ, बाबर, औरङ्गजेब, ताजमहल, कुतुब मीनार, चारमीनार आदि के बारे में ही पढ़ाया गया!* *अगर हिन्दू सङ्गठित नहीं रहते, तो आज ये देश भी पूरी तरह सीरिया और अन्य देशों की तरह पूर्णतया मुस्लिम देश बन चुका होता!* *ये सुंदर विश्लेषण जानकारी हिंदू समाज तक पहुंचना अनिवार्य है! हर वर्ग और समाज में वीरों की गाथाओं को बताकर उन्हें गर्व की अनुभूति करानी चाहिए!* अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ट्रस्ट राष्ट्रीय संगठन महामंत्री यशपाल सिंह डिस्ट्रिक्ट बहराइच गोकुलपुर उत्तर प्रदेश साभार

शनिवार, 9 जुलाई 2022

रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम

रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम जरूरी बरसात के चार महीने देश के कुछ राज्य बाढ़ की विभीषिका से त्रस्त रहते हैं। ऐसा दशकों से होता आ रहा रहा है। बरसात के इन महीनों में देश के अनेको हिस्से जलमग्न रहते हैं। इससे बचने के उपाय तो हैं लेकिन इच्छा शक्ति और कहीं धन की कमी के कारण योजनायें किर्यान्वित नही हो पा रही रही हैं। बरसात का पानी धरती में जाये इसके लिये बड़े पैमाने पर दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ दूरगामी योजनायें बनाकर कार्य करने की जरूरत है। हिंदी पखवाड़े की तर्ज पर भूगर्भ जल सप्ताह मनाकर बरसात का पानी धरती में नहीं भेजा जा सकता है। इसके लिये सरकारी, गैरसरकारी स्तर पर प्रत्येक नगर-शहर-कस्बे-गाँव आदि के सरकारी, गैरसरकारी कार्यालयों , अस्पतालों, होटलों,बड़े स्कूलों, बड़ी सोसाइटियों, मॉल, बैंक आदि बिल्डिंगों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनवाने बहुत जरूरी हैं। लोगो मे इसके प्रति जागरूकता बहुत जरूरी है। यही नहीं यदि गली-मोहल्लों-सड़कों पर बहता पानी जहां भी जाकर अंत होता हो उस जगह उस पानी को धरती में जाने के व्यापक उपाय किये जाने चाहिये तभी बरसात का पानी बरबाद होने से बचाया जा सकता है। पानी का अंधाधुंध दोहन हो रहा है लेकिन साथ ही पानी बचाने की सोच का भी दोहन हो रहा है। यदि हम अभी सचेत नहीं हुए तो आने वाले समय मे पानी की किल्लत का सामना करना पड़ेगा। केंद्र व राज्य सरकारें मनरेगा के इस्तेमाल नहरे बनाने में करे एवं नहरों को आपस मे जोड़ने का कार्य करे तो जहां ज्यादा पानी है उसे कम पानी की जगह मोड़कर बाढ़ की विभीषिका से बचा जा सकता है। सरकार के साथ जनता का सहयोग बहुत जरूरी होता है तभी ऐसी योजनायें किर्यान्वित हो पाती हैं। बरसात का पानी धरती में जायेगा तभी धरती माँ भी सभी को भरपूर पानी दे पायेगी। सुनील जैन राना

जिंदगी के दस सूत्र

*खुशवंत सिंह* के लिखे ज़िंदगी के दस सूत्र । इन दसों सूत्रों को पढ़ने के बाद पता चला कि सचमुच खुशहाल ज़िंदगी और शानदार मौत के लिए ये सूत्र बहुत ज़रूरी हैं। 1. *अच्छा स्वास्थ्य* - अगर आप पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं, तो आप कभी खुश नहीं रह सकते। बीमारी छोटी हो या बड़ी, ये आपकी खुशियां छीन लेती हैं। 2. *ठीक ठाक बैंक बैलेंस* - अच्छी ज़िंदगी जीने के लिए 55 साल तक काम करना चाहिए और बहुत अमीर होना ज़रूरी नहीं। पर इतना पैसा बैंक में हो कि आप आप जब चाहे बाहर खाना खा पाएं, सिनेमा देख पाएं, समंदर और पहाड़ घूमने जा पाएं, तो आप खुश रह सकते हैं। उधारी में जीना आदमी को खुद की निगाहों में गिरा देता है। 3. *अपना मकान* - मकान चाहे छोटा हो या बड़ा, वो आपका अपना होना चाहिए। अगर उसमें छोटा सा बगीचा हो तो आपकी ज़िंदगी बेहद खुशहाल हो सकती है। 4. *समझदार जीवन साथी* - जिनकी ज़िंदगी में समझदार जीवन साथी होते हैं, जो एक-दूसरे को ठीक से समझते हैं, उनकी ज़िंदगी बेहद खुशहाल होती है, वर्ना ज़िंदगी में सबकुछ धरा का धरा रह जाता है, सारी खुशियां काफूर हो जाती हैं। हर वक्त कुढ़ते रहने से बेहतर है अपना अलग रास्ता चुन लेना। 5. *दूसरों की उपलब्धियों से न जलना* - कोई आपसे आगे निकल जाए, किसी के पास आपसे ज़्यादा पैसा हो जाए, तो उससे जले नहीं। दूसरों से खुद की तुलना करने से आपकी खुशियां खत्म होने लगती हैं। 6. *गप से बचना* - लोगों को गपशप के ज़रिए अपने पर हावी मत होने दीजिए। जब तक आप उनसे छुटकारा पाएंगे, आप बहुत थक चुके होंगे और दूसरों की चुगली-निंदा से आपके दिमाग में कहीं न कहीं ज़हर भर चुका होगा। 7. *अच्छी आदत* - कोई न कोई ऐसी हॉबी विकसित करें, जिसे करने में आपको मज़ा आता हो, मसलन गार्डेनिंग, पढ़ना, लिखना। फालतू बातों में समय बर्बाद करना ज़िंदगी के साथ किया जाने वाला सबसे बड़ा अपराध है। कुछ न कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे आपको खुशी मिले और उसे आप अपनी आदत में शुमार करके नियमित रूप से करें। 8. *ध्यान* - रोज सुबह कम से कम दस मिनट ध्यान करना चाहिए। ये दस मिनट आपको अपने ऊपर खर्च करने चाहिए। इसी तरह शाम को भी कुछ वक्त अपने साथ गुजारें। इस तरह आप खुद को जान पाएंगे। 9. *क्रोध से बचना* - कभी अपना गुस्सा ज़ाहिर न करें। जब कभी आपको लगे कि आपका दोस्त आपके साथ तल्ख हो रहा है, तो आप उस वक्त उससे दूर हो जाएं, बजाय इसके कि वहीं उसका हिसाब-किताब करने पर आमदा हो जाएं। 10. *अंतिम समय* - जब यमराज दस्तक दें, तो बिना किसी दुख, शोक या अफसोस के साथ उनके साथ निकल पड़ना चाहिए अंतिम यात्रा पर, खुशी-खुशी। शोक, मोह के बंधन से मुक्त हो कर जो यहां से निकलता है, उसी का जीवन सफल होता है। *मुझे नहीं पता कि खुशवंत सिंह ने पीएचडी की थी या नहीं। पर इन्हें पढ़ने के बाद मुझे लगने लगा है कि ज़िंदगी के डॉक्टर भी होते हैं। ऐसे डॉक्टर ज़िंदगी बेहतर बनाने का फॉर्मूला देते हैं । ये ज़िंदगी के डॉक्टर की ओर से ज़िंदगी जीने के लिए दिए गए नुस्खे है।*

शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

भारत मे शिक्षा

*इंग्लैंड में पहला स्कूल 1811 में खुला उस समय भारत में 7,32,000 गुरुकुल थे, आइए जानते हैं हमारे गुरुकुल कैसे बन्द हुए।* *हमारे सनातन संस्कृति परम्परा के गुरुकुल में क्या क्या पढाई होती थी, ये जान लेना पहले जरूरी है।* 01 अग्नि विद्या (Metallurgy) 02 वायु विद्या (Flight) 03 जल विद्या (Navigation) 04 अंतरिक्ष विद्या (Space Science) 05 पृथ्वी विद्या (Environment) 06 सूर्य विद्या (Solar Study) 07 चन्द्र व लोक विद्या (Lunar Study) 08 मेघ विद्या (Weather Forecast) 09 पदार्थ विद्युत विद्या (Battery) 10 सौर ऊर्जा विद्या (Solar Energy) 11 दिन रात्रि विद्या 12 सृष्टि विद्या (Space Research) 13 खगोल विद्या (Astronomy) 14 भूगोल विद्या (Geography) 15 काल विद्या (Time) 16 भूगर्भ विद्या (Geology Mining) 17 रत्न व धातु विद्या (Gems & Metals) 18 आकर्षण विद्या (Gravity) 19 प्रकाश विद्या (Solar Energy) 20 तार विद्या (Communication) 21 विमान विद्या (Plane) 22 जलयान विद्या (Water Vessels) 23 अग्नेय अस्त्र विद्या (Arms & Ammunition) 24 जीव जंतु विज्ञान विद्या (Zoology Botany) 25 यज्ञ विद्या (Material Sic) ये तो बात हुई वैज्ञानिक विद्याओं की, अब बात करते हैं व्यावसायिक और तकनीकी विद्या की ! 26 वाणिज्य (Commerce) 27 कृषि (Agriculture) 28 पशुपालन (Animal Husbandry) 29 पक्षिपलन (Bird Keeping) 30 पशु प्रशिक्षण (Animal Training) 31 यान यन्त्रकार (Mechanics) 32 रथकार (Vehicle Designing) 33 रतन्कार (Gems) 34 सुवर्णकार (Jewellery Designing) 35 वस्त्रकार (Textile) 36 कुम्भकार (Pottery) 37 लोहकार (Metallurgy) 38 तक्षक 39 रंगसाज (Dying) 40 खटवाकर 41 रज्जुकर (Logistics) 42 वास्तुकार (Architect) 43 पाकविद्या (Cooking) 44 सारथ्य (Driving) 45 नदी प्रबन्धक (Water Management) 46 सुचिकार (Data Entry) 47 गोशाला प्रबन्धक (Animal Husbandry) 48 उद्यान पाल (Horticulture) 49 वन पाल (Horticulture) 50 नापित (Paramedical) *जिस देश के गुरुकुल इतने समृद्ध हों उस देश को आखिर कैसे गुलाम बनाया गया होगा?* *मैकाले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे।* *1850 तक इस देश में “7 लाख 32 हजार” गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे “7 लाख 50 हजार” मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में ‘Higher Learning Institute’ हुआ करते थे। उन सबमें 18 विषय पढ़ाए जाते थे और ये गुरुकुल समाज के लोग मिलके चलाते थे न कि राजा, महाराजा।* *अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Luther और दूसरा था Thomas Munro ! दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। Luther, जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100% साक्षरता है।* *मैकाले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है – “कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले उसे पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।” इस लिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया | जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज की तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया, उनमें आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा- पीटा, जेल में डाला।* *गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी। इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया। उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था। इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी, ये तीनों गुलामी ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी देश में मौजूद हैं।* *मैकाले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि “इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपनी परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।”* *उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ साफ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, जबकि अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, उस देश का कैसे कल्याण संभव है?* *हमारी पुरानी शिक्षा पद्धति बहुत ही समृद्ध और विशाल थी और यही कारण था कि हम विश्वगुरु थे। हमारी शिक्षा पद्धति से पैसे कमाने वाले मशीन पैदा नहीं होते थे बल्कि मानवता के कल्याण हेतु अच्छे और विद्वान इंसान पैदा होते थे। आज तो जो बहुत पढ़ा लिखा है वही सबसे अधिक भ्रष्ट है, वही सबसे बड़ा चोर है।* *हमने अपना इतिहास गवां दिया है!* *क्योंकि अंग्रेज हमसे हमारी पहचान छीनने में सफल हुए। उन्होंने हमारी शिक्षा पद्धति को बर्बाद कर के हमें अपनी संस्कृति, मूल धर्म, ज्ञान और समृद्धि से अलग कर दिया।* *आज जो स्कूलों और कॉलेजों का हाल है वो क्या ही लिखा जाए! हम न जाने ऐसे लोग कैसे पैदा कर रहें हैं जिनमें जिम्मेवारी का कोई एहसास नहीं है। जिन्हें सिर्फ़ पद और पैसों से प्यार है। हम इतने अससल कैसे होते जा रहें हैं? किसी भी समाज की स्थिति का अनुमान वहां के शैक्षणिक संस्थानों की स्थिति से लगाया जा सकता है। आज हम इसमें बहुत असफल हैं। हमने स्कूल और कॉलेज तो बना लिए लेकिन जिस उद्देश्य के लिए इसका निर्माण हुआ उसकी पूर्ति के योग्य इंसान और सिस्टम नहीं बना पाए!* *जब आप अपने देश का इतिहास पढ़ेंगे तो आप गर्व भी महसूस करेंगे और रोएंगे भी क्योंकि आपने जो गवां दिया है वो पैसों रुपयों से नहीं खरीदा जा सकता! हमें एक बड़े पुनर्जागरण की जरूरत है। सरकारें आएंगी जाएंगी, इनसे बहुत उम्मीद करना बेवकूफी होगी, जनता जब तक नहीं जागती हम अपनी विरासत को कभी पुनः हासिल नहीं कर पाएंगे!* साभार

पाप किसे कहते हैं?

पाप किसे कहते हैं ? इस पर भगवान महावीर बताते हैं "जो आत्मा को मलिन करें तथा जो बांधते सुखकारी ,भोगते दुखकारी, अशुभ योग से बंधे, सुख पूर्वक बांधा जाए, दुख पूर्वक भोगा जाए । पाप अशुभ प्रकृति रूप है, जिसका फल कड़वा, और जो प्राणी को मैला करें उसे पाप कहते हैं" जैन धर्मानुसार पाप 18 प्रकार से बांधा जाता है और 82 प्रकार से भोगा जाता है । भगवती सूत्र प्रथम शतक कें नवें उद्देश्य में भगवान ने फरमाया है कि "इन 18 पापस्थानो का सेवन करने से जीव भारी होता है और नीच गति में जाता है । इनका त्याग करने से जीव हल्का होता है और उर्ध्व गति प्राप्त करता है , 82 प्रकार से पाप के अशुभ फल भोग जाते हैं, इन पापों को जानकर पाप के कारणों को छोड़ने से जीव इस भव और परभव में निराबाध परम सुख प्राप्त करता है।" जैन धर्म में पाप का वर्णन क्यों किया गया ? इसलिए क्योंकि जीव इन पापों की पहचान कर उससे मुक्ति का प्रयास करें । जैन धर्म में 18 पाप के प्रकार निम्नलिखित हैं । 1.प्रणातिपात- किसी भी जीव की हिंसा करना ,उसका वध कर देना, उसे जान से मार देना यह सबसे बड़ा पाप है । 2. मृषावाद- असत्य वचन बोलना ,हमेशा झूठ बोलना यह सबसे बड़ा पाप है । 3. अदत्तादान- किसी से पूछे बिना उसकी वस्तु लेना, चोरी करना यह पाप है । 4. मैथुन - असंयमित होकर कुशील का सेवन करना पाप है। 5. परिग्रह - किसी वस्तु को संचित करना, द्रव्य आदि रखना ममता रखना पाप है। जो वस्तु हमारी आत्मा में कलेश उत्पन्न करें और उसके मूल स्वरूप में परिवर्तन लाए जिससे आत्मा अपनी पहचान खो जाती है ,वह पाप है। 6.क्रोध - खुद तपना ,दूसरों को तड़पाना, अत्यधिक क्रोध करना पाप है क्रोध सभी प्रकार की हानियों की जड़ है और यह पाप का मूल है। 7. मान- अंहकार (घमंड करना) पाप है । 8. माया- ठगाई करना, कपट पूर्वक आचरण करना । 9. लोभ - तृष्णा बढ़ना,अत्यधिक पाने की लालसा करना 10.राग- मनोज्ञ वस्तु पर स्नेह रखना, प्रीति करना । 11.द्वेष- अमनोज्ञ वस्तु पर द्वेष करना । 12. कलह - क्लेश करना । 13. अभ्याख्यान - किसी पर झूठा कलंक लगाना । 14. पैशुन्य- दूसरों की चुगली करना । 15. परपरिवाद- दूसरों का अवर्णवाद (निन्दा) बोलना । 16.रति अरति- पांच इंद्रियों के 23 विषयों में से मनोज्ञ वस्तु पर प्रसन्न होना, अमनोज्ञ वस्तु पर नाराज होना । 17.मायामृषावाद- कपट सहित झूठ बोलना । 18.मिथ्यादर्शन - असाधु को साधु समझना, कुदेव, कुगुरु कुधर्म पर श्रद्धा रखना । इस प्रकार उपरोक्त वर्णित 18 पापों को छोड़ देने से ही जीव की मुक्ति संभव होती है । इसलिए प्रत्येक जैन मुनि और जैन श्रावक छोटे से छोटे जीव की हिंसा के बारे में भी विचार करता है। जय जिनेंद्र

रविवार, 3 जुलाई 2022

जुगाड़ - सुविधाशुल्क

जुगाड़, सुविधाशुल्क- भृष्टाचार नहीं? भारतीय किसी भी कार्य मे पीछे नहीं रहते। दो शस्त्र ऐसे हैं जिनके द्वारा सभी कार्य पूर्ण हो जाते हैं। इन शस्त्रों का नाम है जुगाड़ एवं सुविधाशुल्क। कार्य सरकारी हो या गैरसरकारी, इन दोनों हथियारों से सभी कार्य सध जाते हैं। बस बात यह है की किसी के पास जुगाड़ होता है और किसी के पास नहीं भी होता है तो वह सुविधाशुल्क से कार्य करा लेता है। सुविधाशुल्क की अपनी महिमा है जिसके द्वारा कार्य घर बैठे ही हो जाता है। जुगाड़ से कार्य कराने में थोड़ा दिमाग लगाना पड़ता है और थोड़ी भागदौड़ करनी पड़ती है। जुगाड़ भी दो प्रकार के होते है एक तो मैकेनिकल और दूसरा फर्जीकल। मैकेनिकल जुगाड़ में यदि कोई वाहन, मशीन आदि न चल रही हो तो जुगाड़ से चला दी जाती है। फर्जीकल जुगाड़ सरकारी जैसे कार्यो में काम आते हैं। जिसके द्वारा किसकी पहुँच कहाँ तक है उसी अनुसार कार्य सध जाता है। अब बात करें सुविधाशुल्क की तो इससे तातपर्य कुछ शुल्क देकर सुविधा लेना है।इसका प्रयोग आम आदमी से ज्यादा व्यापारी वर्ग करता है। अनेक सरकारी कार्य सुविधाशुल्क नामक द्रव्य से हो जाते हैं। सुविधाशुल्क का पैमाना सम्बन्धित विभाग के नियम-कानूनों पर आधारित होता है। जितने कठोर कानून उतना ज्यादा सुविधाशुल्क। सरकार द्वारा कुछ विभागों के इतने कठोर कानून बना दिये हैं जिसकी पूर्ति सम्भव नही हो पाती। तब वह सुविधाशुल्क से पूरी की जाती है। लाइसेंस विभाग यानि विभिन्न तरह के लाइसेंस का रिनिवल। इसमें ऐसा होता है की लाइसेंस की सरकारी फीस से ज्यादा सुविधाशुल्क दिया जाता है। आरटीओ विभाग ऐसा विभाग है जिससे सभी का पाला पड़ता है। अक्सर आरटीओ विभाग के बाहर बहुत से लोग मिल जाएंगे जो आपका कार्य घर बैठे ही करवा देते है सुविधाशुल्क शुल्क लेकर।वरना लम्बी-लम्बी लाइने, कई खिड़कियां। आरटीओ का एक विभाग सड़को पर चालान काटता है। जिसका कार्य राजस्व एवं अपनी जेब की बढ़ोतरी करना होता है। खानपान विभाग और दवा-दारू विभाग के तो मज़े ही हैं। सख्त कानून और दुकाने ही दुकानें। होली - दीवाली पर मज़े ही मज़े। बहुत लंबी लिस्ट है इन विभागों की जहां बिना किसी परेशानी के कार्य सध जाते हैं। दरअसल सच यह है की कानून जितने ज्यादा कठोर होंगे सुविधाशुल्क भी उतना ही ज्यादा चलेगा। अब सुविधाशुल्क को भृष्टाचार माना जाये क्या? यह तो दो पक्षों के बीच का लेनदेन हुआ। जिसमें देने वाला भी खुश और लेने वाला भी खुश। इसके द्वारा किसी भी प्रकार की राष्ट्रीय क्षति नहीं होती जबकि भृष्टाचार जनता की भलाई के धन का दुरुपयोग होना कहलाता है। मोदीजी-योगीजी के समय से ऊपरी स्तर के भृष्टाचार में बहुत कमीं आई है लेकिन निचले स्तर का सुविधाशुल्क बहुत बढ़ गया है। कानून सरल होने चाहिये। जितने कठोर कानून होंगे उतना ज्यादा भृष्टाचार बढ़ेगा। कठोर कानूनों में सुविधाशुल्क भृष्टाचार में बदल जाता है। सुनील जैन राना

भारतीय संस्क्रति अपनाओ

*हमारे पास तो पहले से ही अमृत से भरे कलश थे...!* *फिर हम वह अमृत फेंक कर उनमें कीचड़ भरने का काम क्यों कर रहे हैं...?🤔* *जरा इन पर विचार करें...🧐👇* ० यदि *मातृनवमी* थी, तो Mother’s day क्यों लाया गया? ० यदि *कौमुदी महोत्सव* था, तो Valentine day क्यों लाया गया? ० यदि *गुरुपूर्णिमा* थी, तो Teacher’s day क्यों लाया गया? ० यदि *धन्वन्तरि जयन्ती* थी, तो Doctor’s day क्यों लाया गया? ० यदि *विश्वकर्मा जयंती* थी, तो Technology day क्यों लाया गया? ० यदि *सन्तान सप्तमी* थी, तो Children’s day क्यों लाया गया? ० यदि *नवरात्रि* और *कन्या भोज* था, तो Daughter’s day क्यों लाया गया? ० *रक्षाबंधन* है तो Sister’s day क्यों ? ० *भाईदूज* है तो Brother’s day क्यों ? ० *आंवला नवमी, तुलसी विवाह* मनाने वाले हिंदुओं को Environment day की क्या आवश्यकता ? ० केवल इतना ही नहीं, *नारद जयन्ती* ब्रह्माण्डीय पत्रकारिता दिवस है... ० *पितृपक्ष* ७ पीढ़ियों तक के पूर्वजों का पितृपर्व है... ० *नवरात्रि* को स्त्री के नवरूपों के दिवस के रूप में स्मरण कीजिये... *सनातन पर्वों को अवश्य मनाईये...* हमारी सनातन संस्कृति में मनाए जाने वाले विभिन्न पर्व और त्योहार मिशनरीयों के धर्मांतरण की राह में बाधक हैं। बस, इसीलिए हमारी धार्मिक परंपराओं से मिलते जुलते उत्सव कार्यक्रम मिशनरीयों द्वारा लाए जा रहे हैं। ताकि आपको सनातन सभ्यता से तोड़कर धर्मांतरण की ओर प्रेरित किया जा सके... अब पृथ्वी के सनातन भाव को स्वीकार करना ही होगा। यदि हम समय रहते नहीं चेते तो वे ही हमें वेद, शास्त्र, संस्कृत भी पढ़ाने आ जाएंगे! इसका एक ही उपाय है कि, अपनी जड़ों की ओर लौटिए। अपने सनातन मूल की ओर लौटिए। व्रत, पर्व, त्यौहारों को मनाइए। अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत कीजिये। जीवन में भारतीय पंचांग अपनाना चाहिए, जिससे भारत अपने पर्वों, त्यौहारों से लेकर मौसम की भी अनेक जानकारियां सहज रूप से जान व समझ लेता है।

पाप किसे कहते हैं?

पाप किसे कहते हैं ? इस पर भगवान महावीर फरमाते हैं, "जो आत्मा को मलिन करें तथा जो बांधते सुखकारी ,भोगते दुखकारी, अशुभ योग से बंधे, सुख पूर्वक बांधा जाए, दुख पूर्वक भोगा जाए । पाप अशुभ प्रकृति रूप है, जिसका फल कड़वा, और जो प्राणी को मैला करें उसे पाप कहते हैं" जैन धर्मानुसार पाप 18 प्रकार से बांधा जाता है और 82 प्रकार से भोगा जाता है । भगवती सूत्र प्रथम शतक कें नवें उद्देश्य में भगवान ने फरमाया है कि "इन 18 पापस्थानो का सेवन करने से जीव भारी होता है और नीच गति में जाता है । इनका त्याग करने से जीव हल्का होता है और उर्ध्व गति प्राप्त करता है , 82 प्रकार से पाप के अशुभ फल भोग जाते हैं, इन पापों को जानकर पाप के कारणों को छोड़ने से जीव इस भव और परभव में निराबाध परम सुख प्राप्त करता है।" जैन धर्म में पाप का वर्णन क्यों किया गया ? इसलिए क्योंकि जीव इन पापों की पहचान कर उससे मुक्ति का प्रयास करें । जैन धर्म में 18 पाप के प्रकार निम्नलिखित हैं । 1.प्रणातिपात- किसी भी जीव की हिंसा करना ,उसका वध कर देना, उसे जान से मार देना यह सबसे बड़ा पाप है । 2. मृषावाद- असत्य वचन बोलना ,हमेशा झूठ बोलना यह सबसे बड़ा पाप है । 3. अदत्तादान- किसी से पूछे बिना उसकी वस्तु लेना, चोरी करना यह पाप है । 4. मैथुन - असंयमित होकर कुशील का सेवन करना पाप है। 5. परिग्रह - किसी वस्तु को संचित करना, द्रव्य आदि रखना ममता रखना पाप है। जो वस्तु हमारी आत्मा में कलेश उत्पन्न करें और उसके मूल स्वरूप में परिवर्तन लाए जिससे आत्मा अपनी पहचान खो जाती है ,वह पाप है। 6.क्रोध - खुद तपना ,दूसरों को तड़पाना, अत्यधिक क्रोध करना पाप है क्रोध सभी प्रकार की हानियों की जड़ है और यह पाप का मूल है। 7. मान- अंहकार (घमंड करना) पाप है । 8. माया- ठगाई करना, कपट पूर्वक आचरण करना । 9. लोभ - तृष्णा बढ़ना,अत्यधिक पाने की लालसा करना 10.राग- मनोज्ञ वस्तु पर स्नेह रखना, प्रीति करना । 11.द्वेष- अमनोज्ञ वस्तु पर द्वेष करना । 12. कलह - क्लेश करना । 13. अभ्याख्यान - किसी पर झूठा कलंक लगाना । 14. पैशुन्य- दूसरों की चुगली करना । 15. परपरिवाद- दूसरों का अवर्णवाद (निन्दा) बोलना । 16.रति अरति- पांच इंद्रियों के 23 विषयों में से मनोज्ञ वस्तु पर प्रसन्न होना, अमनोज्ञ वस्तु पर नाराज होना । 17.मायामृषावाद- कपट सहित झूठ बोलना । 18.मिथ्यादर्शन - असाधु को साधु समझना, कुदेव, कुगुरु कुधर्म पर श्रद्धा रखना । इस प्रकार उपरोक्त वर्णित 18 पापों को छोड़ देने से ही जीव की मुक्ति संभव होती है । इसलिए प्रत्येक जैन मुनि और जैन श्रावक छोटे से छोटे जीव की हिंसा के बारे में भी विचार करता है। जय जिनेंद्र

पुरानी यादें

एक जमाना था... खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि साइकिल बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे म...