शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

न्यायप्रणाली पर हावी होती राजनीति ?
February 1, 2020 • सुनील जैन राना • राजनीति
एक बार फिर से निर्भया के बलात्कारियों की फांसी टल गई। यह कैसी विडंबना है ,यह कैसा कानून है ,यह कैसी लचर -पचर न्यायप्रणाली है? लगभग ८५ महीनों की जद्दो जहद के बाद पिछले माह जनवरी में निर्भया के दरिंदो को फांसी देने का फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाया गया था। लेकिन मेरे भारत महान में जहां एक ओर गरीब मध्यम वर्ग धन के अभाव में अच्छे वकील नहीं कर पाता और अपना सच्चा मुकदमा हार जाता है वहीं दूसरी ओर जघन्य अपराधियों को जो शायद ज्यादातर गरीब या मध्यम वर्ग के ही होते हैं उन्हें उनके झूठे मुकदमे लड़ने के लिए वकील भी मिल जाते हैं और धन बल भी मिल जाता है।
निर्भया के दरिंदे बलात्कारियों को कौन बचा रहा है इस बात की जांच होनी चाहिए। निर्भया के माँ -बाप तो सीधे ही इसमें एक राजनीतिक पार्टी का हाथ बता कर लोगो से -कोर्ट से न्याय की गुहार लगाते दिखाई दे रहे हैं। सच क्याहै पता नहीं लेकिन यह तो सच ही दिखाई दे रहा है की आज देश की न्यायप्रणाली के हाथ कैसे बंधे हुए हैं? निचली अदालत से हाई कोर्ट उसके बाद सुप्रीम कोर्ट तक ऐसे जघन्य अपराधियों की पहुंच बहुत बड़े कारनामें को अंजाम देती दिखाई दे रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अंतिम गुहार राष्ट्रपति महोदय के पास से ख़ारिज होने के बाद पुनः कानूनी लटके -झटके कौन दिला रहा है इन बलात्कारियों को जिनके पास लगता है न ज्यादा धन होगा और न ही ज्यादा बल होगा ?
निर्भया के केस से यह बात तो भली प्रकार समझ में आ जाती है की जब एक मध्यम गरीब जघन्य अपराधी ही कानून को ऐसे गुल खिला सकता है तो धन -बल वाले अपराधी तो कुछ भी कर सकते हैं। हमारी न्यायप्रणाली में इन सब बातों को देखते हुए बहुत सुधार की जरूरत है। * सुनील जैन राना *

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