हम क्यों लड़ते हैं,क्योंकि मेरी भावना नहीं पढ़ते हैं?
February 27, 2020 • सुनील जैन राना • धर्म
धर्म नहीं सिखाता आपस में बैर रखना फिर क्यों आपस में लड़ते हैं हम ?विभिन्न संस्कृतियों और धर्मो के भारत देश में कभी-कभी आपस के भाईचारे में कुछ ग्रहण सा लग जाता है। ग्रहण लगने का कारण में अधिकांशतः सस्ती राजनीति के सस्ते बोल होते हैं। आज के कुछ नेतागण अपनी नेतागिरी को चमकाने के लिए कटु और अनर्गल बयान देते हैं जिनसे हिंसा का वातावरण हो जाता है। आज के दौर में यही हो रहा है भारत देश में।
भारत देश में जैन धर्म का विस्तार बहुतायत में था लेकिन विरोधी विचारधारा के कारण समय -समय पर जैन धर्म का ह्रास होता रहा है। जो जैन पहले कम जनसंख्या में करोड़ो की तादाद में होते थे आज आधे करोड़ में सिमट गए हैं फिर भी आज जैन समुदाय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी है। साक्षरता में ,व्यापार में ,टैक्स देने में जैन लोग सबसे आगे हैं।
ऐसा क्यों है?इसका मुख्य कारण है श्री जुगल किशोर जी मुख्तयार द्वारा रचित मेरी भावना का अनुशरण करना। भगवान महावीर ने अहिंसा का संदेश देते हुए जियो और जीने का पाठ पढ़ाया। बस यही से अच्छे -सच्चे -सुंदर जीवन की शुरुवात हो जाती है। कहते हैं जैसा खाओ अन्न -वैसा हो मन। जैन धर्म में भक्ष्य -अभक्ष्य का सूक्ष्म विवेचन बताया गया है। आज मांसाहार की अधिकता के चलते ही मन में विकारी भाव उत्प्न्न हो रहे हैं जो किसी भी बात में हिंसा का रूप ले लेते हैं। मन स्वच्छ -खानपान स्वच्छ तो सभी कार्य स्वछता और पूर्णता से पूर्ण होते हैं।
हम बात कर रहे थे मेरी भावना की ,इसमें गृहस्ती में रहते हुए स्वयं के लिए ,परिवार के लिए ,समाज के लिए ,देश के लिए हमे कैसी भावना भानी चाहिए यह बताया है। क्या करना चाहिए ,क्या नहीं करना चाहिए यह बताया है। जैसे कुछ लाइनें- नहीं सताऊं किसी जीव को झूठ कभी नहीं कहा करूं। अहंकार का भाव न रखूं नहीं किसी पर क्रोध करूं। देख दुसरो की बढ़ती को कभी न ईर्ष्या भाव धरूँ। मैत्री भाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे। होकर सुख में मग्न न फूलें दुःख में कभी न घबरावें। सुखी रहें सब जीव जगत के कोई कभी न घबरावें। बैर -पाप अभिमान छोड़ सब नित्य नयें मंगल गांवें। ज्ञान चरित उन्नत कर अपना मनुज -जन्म-फल -सब पांवे। परम् अहिंसा धर्म जगत में फैले सर्वहित किया करे। वस्तु स्वरूप विचार ख़ुशी से सब दुःख संकट सहा करे। ऐसी ही ४४ सारगर्भित लाइनों से पूर्ण मेरी भावना को हम सभी को भानी चाहिये। * सुनील जैन राना *
भारत देश में जैन धर्म का विस्तार बहुतायत में था लेकिन विरोधी विचारधारा के कारण समय -समय पर जैन धर्म का ह्रास होता रहा है। जो जैन पहले कम जनसंख्या में करोड़ो की तादाद में होते थे आज आधे करोड़ में सिमट गए हैं फिर भी आज जैन समुदाय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी है। साक्षरता में ,व्यापार में ,टैक्स देने में जैन लोग सबसे आगे हैं।
ऐसा क्यों है?इसका मुख्य कारण है श्री जुगल किशोर जी मुख्तयार द्वारा रचित मेरी भावना का अनुशरण करना। भगवान महावीर ने अहिंसा का संदेश देते हुए जियो और जीने का पाठ पढ़ाया। बस यही से अच्छे -सच्चे -सुंदर जीवन की शुरुवात हो जाती है। कहते हैं जैसा खाओ अन्न -वैसा हो मन। जैन धर्म में भक्ष्य -अभक्ष्य का सूक्ष्म विवेचन बताया गया है। आज मांसाहार की अधिकता के चलते ही मन में विकारी भाव उत्प्न्न हो रहे हैं जो किसी भी बात में हिंसा का रूप ले लेते हैं। मन स्वच्छ -खानपान स्वच्छ तो सभी कार्य स्वछता और पूर्णता से पूर्ण होते हैं।
हम बात कर रहे थे मेरी भावना की ,इसमें गृहस्ती में रहते हुए स्वयं के लिए ,परिवार के लिए ,समाज के लिए ,देश के लिए हमे कैसी भावना भानी चाहिए यह बताया है। क्या करना चाहिए ,क्या नहीं करना चाहिए यह बताया है। जैसे कुछ लाइनें- नहीं सताऊं किसी जीव को झूठ कभी नहीं कहा करूं। अहंकार का भाव न रखूं नहीं किसी पर क्रोध करूं। देख दुसरो की बढ़ती को कभी न ईर्ष्या भाव धरूँ। मैत्री भाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे। होकर सुख में मग्न न फूलें दुःख में कभी न घबरावें। सुखी रहें सब जीव जगत के कोई कभी न घबरावें। बैर -पाप अभिमान छोड़ सब नित्य नयें मंगल गांवें। ज्ञान चरित उन्नत कर अपना मनुज -जन्म-फल -सब पांवे। परम् अहिंसा धर्म जगत में फैले सर्वहित किया करे। वस्तु स्वरूप विचार ख़ुशी से सब दुःख संकट सहा करे। ऐसी ही ४४ सारगर्भित लाइनों से पूर्ण मेरी भावना को हम सभी को भानी चाहिये। * सुनील जैन राना *