गाय के चमड़े से बेल्ट -पर्स
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टीवी पर बहस चल रही है की बाजार में गाय के चमड़े से बने
बेल्ट और पर्स आदि बिक रहे हैं।
जब गाय का कटान होगा तो उसका माँस खाने में आएगा ही
और फिर उसके चमड़े से उत्पाद बनेंगे ही।
सवाल यह है की गाय क्यों कट रही है ,कौन काट रहा है ,कौन
गाय को बेच रहा है ?इन सभी सवालों का जबाब है हिन्दू और
मुसलमान दोनों ?
सवाल कड़वा है और जबाब उससे भी कड़वा। सच यही है की
हिन्दू गाय को बेच रहा है ,कसाई गाय को खरीद रहा है और
गाय कट रही है। जब तक गाय दूध दे रही है पल रही है लेकिन
बाँझ होते ही या बछड़ा होते ही पालक उसे बोझ मानकर बेचने
निकल पड़ता है।
अब इस बात को दूसरी दृस्टि से सोचे तो इंसान माँस ही क्यों
खाता है ?भगवान ने इंसान की शारीरिक रचना शाकाहार के
लिए ही बनाई थी। लेकिन अधिकांश लोग आज पता नहीं क्यों
मांसाहारी हो गए हैं। विदेशों की बात छोड़ दे तो भारत की
125 करोड़ की आबादी में 25 करोड़ मुसलमानों को भी अलग
कर दे तो बाकि 100 करोड़ में से आज 20 करोड़ भी शाकाहारी
नहीं हैं ?अब तो अण्डे को भी शाकाहारी बताने -बनाने की लॉबी
फलफूल रही है। इस दृस्टि से देखें तो पूर्ण शाकाहारी 10 करोड़
भी नहीं मिल पायेंगे ?
जैसा खाओ अन्न -वैसा हो मन। मांसाहार विवेक को खत्म कर
मन में विकृति लाता है। मन की विकृति गलत कार्यो को जन्म
देती है। तामसिक भोजन सदैव मन में हिंसा -क्रोध को ही जन्म
देता है। सात्विक भोजन से मन निर्मल रहता है। जैन धर्म में
मांसाहार तो दूर की बात बल्कि लहसन -प्याज तक का निषेध
करता है। हिन्दुओं में भी नवरात्रों आदि में प्याज आदि का
प्रयोग नहीं करते।
कुल मिलाकर कहने का तातपर्य यह है की हिन्दू क्योंकि गाय
को गोमाता मानता है उसकी पूजा करता है इसलिए गाय का
कटान नहीं हो यह अच्छी बात है लेकिन क्या ही अच्छा हो की
इंसान किसी भी पशु -पक्षी का मांस ही ना खाये। इंसान के लिए
शाकाहारी भोजन की भरमार है ,फिर क्यों माँसाहार ?
कुछ लोग माँसाहार को ताकतवर आहार बताते हैं ,यह ठीक
नहीं है। बलशाली घोड़ा और ताकतवर हाथी दोनों शाकाहारी
ही हैं।