शनिवार, 29 जून 2024

मिलावट का बाज़ार

बढ़ रही मिलावट, मीडिया के कारण बाजार में मिलावटी वस्तुएँ धड़ल्ले से बेची जा रही हैं। दूध -सिंथेटिक, मावा -सिंथेटिक, पनीर- सिंथेटिक, घी -सिंथेटिक, मसालों में मिलावट, फल- सब्जियां कैमिकल से पकी हुई, यों कहिये की बाज़ार में शायद ही खाने की कोई वस्तु बिना मिलावट या बिना कैमिकल के मिलती हो। मिलावट के बाजार में ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में कुछ लोग खाद्य पदार्थों में ज़हर बेच रहे हैं। उन्हें अपनी कमाई के अलावा उनके द्वारा बेची जा रही वस्तुओं से कोई बीमार हो जाये या किसी की जान चली जाये इस बात से कोई सरोकार नहीं होता। कभी- कभाक पकड़-धकड़ में उनमें से कुछ पकड़े जाते हैं। भृष्टाचार के चलते अधिकांश का बाल भी बांका नहीं होता। मिलावटी बाजार के बढ़ने में मीडिया सहयोगी की बात इस कारण कही जा रही है की कुछ दशक पहले तक इतनी मिलावट नहीं थी जितनी अब हो रही है। इसका मुख्य कारण बेरोजगारी एवं टीवी मीडिया ही है। सिंथेटिक दूध का कारोबार जब से अधिक बढ़ा है जब मीडिया ने सिंथे दूध कैसे बनता है इसका पूरा तरीका टीवी पर दिखाया है। ऐसे में जो लोग बेरोजगार थे वे भी इस धंधे में लग गए। इसी प्रकार अन्य मिलावटी खाद्य पदार्थ की कोई फैक्ट्री पकड़ी गई तो टीवी मीडिया उसमें बनने वाले मिलावटी पदार्थों को तो दिखता ही है बल्कि वे कैसे बनाये गए यह भी बताता है। ऐसा करने से अन्य बहुत से लोग उस कार्य मे लग जाते हैं। कौन सा फल कौन से कैमिकल से पकता है, कौन सी सब्जी में कौन सी दवाई लगती है, मसालों में क्या मिलावट की जाती है, चाय की पत्ती में क्या मिलाते हैं,आदि बातें आमजन को टीवी से पता चल जाती हैं। यही नहीं महुए से देसी शराब कैसे बनती है यह फार्मूला भी टीवी से पता चल जाता है। ऐसे ही अनेको बातें जो गोपनीय होती हैं वह टीवी चैनलों से सार्वजनिक हो जाती हैं, जिसके कारण मिलावट का बाज़ार बढ़ जाता है जो जनहित में बहुत हानिकारक हो रहा है। जनहित में इस प्रकार के फार्मूले वाले समाचारों पर रोक लगनी चाहिए। सुनील जैन राना

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