शनिवार, 15 जनवरी 2022

जीव दया की भावना में कमी

जीव दया की भावना में कमी भौतिक युग की चकाचौंध में आज इंसान अपने नैतिक मूल्य भूलता जा रहा है। पिछले 25-30 वर्षों में ही इंसान की विचारधारा एवं रहनसहन में बहुत अंतर आ गया है। शहरों के पुराने क्षेत्रो एवं गांव कस्बो में आज भी पुरानी विचारधारा कायम है , लेकिन शहरी क्षेत्र में विचारधारा का आधुनिकीकरण हो गया है। संगठित परिवार, मिलजुल कर रहना, पहली रोटी गाय की, आखिरी रोटी कुत्ते की आदि चर्या का लोप हो रहा है। घुमन्तु गाय, बछड़े आदि की व्यवस्था तो शासन,प्रशाशन ने कर दी है लेकिन कुत्तो को रोटी न मिलने के कारण वे खूंखार होते जा रहे हैं। बोझा ढोने वाले पशुओं पर ज्यादती हो रही है। ज्यादा वजन ढोना, समय पर खाना, पानी न देना,बीमार हो जाने पर उपचार न कराना आदि बातें बढ़ रही हैं। गाय-भैंस पालक नन्हे जन्मे पशु के बछड़ा होते ही धर्य खो बैठते हैं। उसके थोड़ा बड़ा होते ही उसे बेच देते हैं। यह भी नहीं देखते की उसका खरीदार कौन है, वह निश्चित रूप से कसाई ही होता है। हिन्दू समाज मे सिर्फ गाय को गोमाता मान उसके प्रति श्रद्धा भाव रखा जाता है बाकी अन्य पशु पक्षी की दुर्दशा पर ध्यान नही दिया जाता है। इंसानों के लिये देश मे अनेको औषद्यालय हैं लेकिन आवारा, घायल,बीमार पशु पक्षी के लिये बहुत ही कम संख्या में अस्पताल हैं। सहारनपुर में दूर-दूर तक प्रशिद्ध श्री दया सिंधू जीव रक्षा केंद्र में ऐसे पशु पक्षियों का उपचार होता है जिनका कोई नहीं है। ऐसे अस्पताल प्रत्येक शहर,नगर में होने चाहिये। सुनील जैन राना

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