गुरुवार, 27 अगस्त 2020

जैन दसलक्षण धर्म -एक बार जरूर पढ़ें

एक बार जरूर पढ़ें -जैन दसलक्षण धर्म संक्षिप्त में August 27, 2020 • सुनील जैन राना • जनहित भारत में अनेकों धर्म प्रचलित हैं ,सभी धर्म आत्मा से परमात्मा की बात बताते हैं। ऐसे ही जैन धर्म में पावन पर्व दसलक्षण धर्म बहुत शुद्धता -भक्ति से मनाया जाता है। इस पर्व की खासियत यह है की इन दस दिनों हमें धर्म में क्या करना है यह बताया जाता है। सिर्फ मंदिरजी जाकर भजन -कीर्तन -भक्ति काफी नहीं होती है हमें अपने जीवन में क्या बदलाव लाने चाहिये इस पर जोर दिया जाता है। हम आपको संक्षिप्त रूप में दस धर्म के विषय में बता रहे हैं। प्रथम दिन क्षमा धर्म - साधारण बोलचाल में क्रोध न करने को ही क्षमा मान लिया जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है ,क्षमा तो तब है जब विपरीत परिस्थितियों में भी क्रोध तो उतपन्न ही न होवे बल्कि मन में दूसरे प्रति अपशब्द -बैरभाव -द्वेष आदि भी उतपन्न नहीं होवे। द्वितीय दिन मार्दव धर्म - से तातपर्य अहंकार -मान कषाय को त्यागकर अपने मन को निर्मल -कोमल बनाना। तृतीय दिन आर्जव धर्म - से तातपर्य मन -वचन -काय में एकरूपता रख छलकपट -मायाचारी भावों को त्यागना। चतुर्थ दिन सत्य धर्म - से तातपर्य झूठ तो बोलना ही नहीं सिर्फ सच ही बोलना। जैसा देखा -सुना -जाना वैसा ही बोलने को सत्य कहा जाता है। पंचम दिन शौच धर्म - से तातपर्य सिर्फ नहाधोकर शरीर की शुध्दि शौच नहीं है बल्कि अपने मन में पवित्रता -शुचिता लाना शौच धर्म कहलाता है। छटा दिन संयम धर्म - से तातपर्य विवेकपूर्ण कार्य करते हुए हिंसा आदि न होने देना। अपने मन एवं इन्द्रियों पर संयम रखना। सातवां दिन तप धर्म - से तातपर्य सिर्फ तप कर शरीर को कष्ट देना नहीं बल्कि इच्छा निरोधो तपः अर्थात हमें अपनी इच्छाओं पर लगाम लगाकर धर्ममय होना चाहिये। आठवां दिन त्याग धर्म - से तातपर्य सिर्फ दान करना त्याग नहीं है। त्याग तो अपनी बुरी आदतों का ,मोह -राग द्वेष का ,अहंकार का ,कषायों का करना चाहिये। नौवां दिन आकिंचन धर्म - से तातपर्य संसारिक वस्तुओं से विरक्ति कर अपने मन को अपनी आत्मा में लीन करना। दसवां दिन ब्रह्मचर्य - से तातपर्य ब्रह्म का अर्थ है निजात्मा और चर्य का अर्थ है आचरण करना अर्थात संसारिक झंझटो को त्यागकर अपनी आत्मा में लीन होकर मुक्ति के मार्ग पर चलना। दसलक्षण धर्म के बाद क्षमावाणी पर्व आता है जो वास्तव में सिर्फ जैन धर्म नहीं बल्कि सभी धर्मो में मनाया जाना चाहिये। इस दिन सभी जैन लोग एक दूसरे से जाने -अनजाने हुई गलतियों के लिये आपस में क्षमा मांगते हैं ,क्षमा करते हैं। इन दसलक्षण धर्म से पहले उत्तम शब्द लगाया जाता है जो विषय को गूढ़ कर आत्मा प्राप्ति का संदेश देता है। वास्तव में ये दस धर्म नहीं बल्कि धर्म के दस लक्षण होते हैं। सभी धर्मी जीवों को इनका पालन करना चाहिये। *सुनील जैन राना *

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