बुधवार, 12 अगस्त 2020

अस्पताल -डॉक्टर , भगवान भी -शैतान भी

अस्पताल -डॉक्टर ,भगवान भी -शैतान भी https://suniljainrana.blogspot.com/ August 12, 2020 • सुनील जैन राना • जनहित देश के अनेक अस्पताल एवं अनेक डॉक्टर मरीज के लिए मंदिर और भगवान जैसे हैं। लालच से रहित अपने कार्य के प्रति निष्ठा और कर्मठता उनकी पहचान होती है। लेकिन इसके विपरीत कुछ अस्पताल और डॉक्टर शैतान जैसे प्रतीत होते हैं। उनमें मानवता तो जैसे होती ही नहीं बस धन कमाना ही उनका मुख्य उद्देश्य होता है। सूत्र बताते हैं की कुछ अस्पतालों में डॉक्टरों की सेलरी उनको दिये गये टारगेट के हिसाब से तय होती है अर्थात जितना कमाकर दोगे उसके हिसाब से मिलेगा। इसी कारण कई बार सुनने में आता है की फलां मरीज धन की कमी से उपचार पूरा न होने से मर गया। कई बार मृतक की बॉडी तब तक नहीं दी जाती जब तक पुरे बिल का भुगतान न हो जाये। ऐसे समाचार भी मिल रहे हैं की कोरोना से मृतक की बॉडी से कुछ मुख्य अंग निकाल लिए गये। कोरोना काल में डॉक्टरों के पास मरीजों की कतार लगी रहती है। डॉक्टर और मरीज दोनों ही सुरक्षा से लापरवाह दिखाई दे रहे हैं। मास्क और सेनिटाइज़र का कोई इंतजाम दिखाई नहीं दे रहा है। कोरोना मरीज भर्ती अस्पतालों में मरीजों का नंबर नहीं आ रहा है। मज़े की बात यह है की जिस बीमारी का कोई उपचार नहीं उस बीमारी के उपचार का बिल बहुत तगड़ा आ रहा है। कुछ ही दिनों के ईलाज का बिल लाखों में आ रहा है, डिटेल बताने को कोई तैयार नहीं, कहने -सुनने वाला भी कोई नहीं। कुछ सर्जन डॉक्टर जिन्होंने अपना नर्सिंगहोम बना लिया है अब उस खर्च को पूरी मेहनत से मुहमांगे दामों पर उपचार कर बसूलने में लग गये हैं। विभिन्न प्रकार के ऑपरेशनों का ठेका बता दिया जाता है या फिर बेहताशा दवाइयों आदि का खर्च जो बार -बार करवाया जाता है। ऑपरेशन के समय बेहताशा दवाइयों का डब्बा उन्ही के मेडिकल स्टोर से मंगवाया जाता है जो शायद ज्यों का त्यों पिछले रस्ते से वापस होकर फिर अगले मरीज़ के काम आता है। कई जगह तो दवाई के साथ साबुन की टिक्की भी लिखी होती है। पता नहीं वह डॉक्टर एक दिन में कितने साबुन से हाथ धोता होगा? ऐसे अनेकों किस्से सुनने में आते ही रहते हैं। अस्पताल और डॉक्टर मंदिर और भगवान समान मानें जाते हैं ,ऐसे में कुछ जगह यदि ऐसे गलत कार्य होंगे तो बहुत विडंबना की बात है। अस्पतालों में व्यवस्था की कमीं हो सकती है लेकिन डॉक्टरों में मानवता की कमी होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है। सबके कर्मों का लेखाजोखा लिखा जा रहा है। सबको जबाब देना ही पड़ेगा। मानव जीवन मिला है तो क्यों न कुछ परोपकार ही कर लें। धन यहीं रह जायेगा परोपकार ही साथ जायेगा। * सुनील जैन राना *

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