अपराध-अपराधी-संरक्षण-विधवा विलाप https://suniljainrana.blogspot.com/
July 10, 2020 • सुनील जैन राना • राजनीति
अपराधी फ़रार हो गया ,अपराधी पकड़ा गया ,अपराधी मारा गया आदि ऐसे शब्द अक्सर समाचारों में पढ़े-सुने जाते रहे हैं। दर्जनों हत्या-लूटपाट-रंगदारी के मुकदमों से सुसज्जित विकास दुबे आख़िरकार मारा ही गया। आठ पुलिस वालो की हत्या में शरीक,फिर भी बेखौफ होकर सड़क के रास्ते कानपुर से १२०० किलोमीटर उज्जैन तक बैलोरो कार में होकर रास्ते भर पुलिस की गहन चैकिंग को धता पिलाकर महाकाल के दर तक पहुँच गया। जबकि पुलिस की दर्जनों टीमें उसे तलाश करने में लगी थी। ऐसी हैं हमारी सुरक्षा प्रणाली।
राजनीति में अपराधीकरण को अपनाकर रंक से राजा बने विकास दुबे के बड़े-बड़े सफ़ेदपोश लोगो ,पुलिस-प्रशासन से रोटी-बोटी का रिश्ता बनाकर कोर्ट-कचहरी आदि महकमों में भी इज्जत के साथ पहुँच रखता था। उसकी दबंगई और धन-बल से स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि उपरोक्त सभी उसके आगे नतमस्तक रहते थे , इसी कारण दर्जनों वारदातों के बाद भी सज़ा न मिल सकी।
लेकिन यमराज ने शायद उसके अहंकार भरे शब्द सुन लिये थे। बस फिर क्या था, विकास दुबे पुलिस के द्वारा मारा गया। अब विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद पक्ष-विपक्ष के नेताओं का अनर्गल विलाप टीवी चैनलों पर शुरू हो गया है। इसमें शर्मनाक बात तो यह है की अधिकांश विपक्ष विधवा विलाप में लग गया है। इसे जिन्दा क्यों नहीं पकड़ा-इसे मार क्यों दिया?जिन्दा पकड़ा जाता तो कहते यह अपने धन-बल से छूट जायेगा,मार दिया तो कहते हैं की अपनों को बचाने हेतु मार डाला। ऐसे खुद से भ्र्ष्ट नेता कभी नहीं सुधरेंगे,हर कार्य की आलोचना करना ही इनका मुख्य कार्य है।
राजनीति के समर्थन से अपराधीकरण पर कब लगाम लगेगी?कब तक बाहुबलियों के डर से बेबस पुलिस-प्रशासन एवं गवाह के मुकरने से संदेह का लाभ उठाकर अपराधी बचते रहेंगे?अक्सर यही होता रहा है,अपराधी अपराध कर खाकी -खादी का संरक्षण पाकर फ़रार हो जाता है। न्याय की चौखट पर पीड़ितों की संख्या बढ़ती जा रही है,उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है। ऐसे में यदि दुर्दांत अपराधी एनकाउंटर में मार दिया जाता है तो विधवा विलाप नहीं करना चाहिए। बहुत शर्मनाक है ऐसे दुर्दांत अपराधियों के पक्ष में अनर्गल भाषा बोलना। * सुनील जैन राना *
राजनीति में अपराधीकरण को अपनाकर रंक से राजा बने विकास दुबे के बड़े-बड़े सफ़ेदपोश लोगो ,पुलिस-प्रशासन से रोटी-बोटी का रिश्ता बनाकर कोर्ट-कचहरी आदि महकमों में भी इज्जत के साथ पहुँच रखता था। उसकी दबंगई और धन-बल से स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि उपरोक्त सभी उसके आगे नतमस्तक रहते थे , इसी कारण दर्जनों वारदातों के बाद भी सज़ा न मिल सकी।
लेकिन यमराज ने शायद उसके अहंकार भरे शब्द सुन लिये थे। बस फिर क्या था, विकास दुबे पुलिस के द्वारा मारा गया। अब विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद पक्ष-विपक्ष के नेताओं का अनर्गल विलाप टीवी चैनलों पर शुरू हो गया है। इसमें शर्मनाक बात तो यह है की अधिकांश विपक्ष विधवा विलाप में लग गया है। इसे जिन्दा क्यों नहीं पकड़ा-इसे मार क्यों दिया?जिन्दा पकड़ा जाता तो कहते यह अपने धन-बल से छूट जायेगा,मार दिया तो कहते हैं की अपनों को बचाने हेतु मार डाला। ऐसे खुद से भ्र्ष्ट नेता कभी नहीं सुधरेंगे,हर कार्य की आलोचना करना ही इनका मुख्य कार्य है।
राजनीति के समर्थन से अपराधीकरण पर कब लगाम लगेगी?कब तक बाहुबलियों के डर से बेबस पुलिस-प्रशासन एवं गवाह के मुकरने से संदेह का लाभ उठाकर अपराधी बचते रहेंगे?अक्सर यही होता रहा है,अपराधी अपराध कर खाकी -खादी का संरक्षण पाकर फ़रार हो जाता है। न्याय की चौखट पर पीड़ितों की संख्या बढ़ती जा रही है,उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है। ऐसे में यदि दुर्दांत अपराधी एनकाउंटर में मार दिया जाता है तो विधवा विलाप नहीं करना चाहिए। बहुत शर्मनाक है ऐसे दुर्दांत अपराधियों के पक्ष में अनर्गल भाषा बोलना। * सुनील जैन राना *
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें