शनिवार, 4 जुलाई 2020

ऑनलाइन पढ़ाई - फ़ायदा कम ,नुकसान ज्यादा

ऑनलाइन पढ़ाई -फ़ायदा कम नुक्सान ज्यादा https://suniljainrana.blogspot.com/
July 4, 2020 • सुनील जैन राना • जनहित
भारत जैसे देश में जहां सभी बच्चों को स्कूल नसीब न होता हो, बड़े स्कूलों की महंगी पढ़ाई 5%बच्चों को भी नसीब न हो पाती हो, जहां मध्यम-छोटे स्कूलों की भरमार तो हो लेकिन उनमें शिक्षा की गुणवत्ता,शिक्षकों की गुणवत्ता ,बेसिक जरूरतें भी पूरी न हो पाती हों तो ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई का क्या ओचित्य रह जाता है? कभी किसी नें यह सर्वे भी नहीं किया होगा की कितने स्कूलों में कितने बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर पा रहे हैं ?
मध्यम वर्ग जिसके पास स्मार्ट फोन -लैपटॉप -नेटवर्क नहीं होता वह क्या करेगा ?किसी के पास स्मार्ट फोन है लेकिन २ या ३ बच्चे हैं तो वह कैसे मैनेज करेगा ?अपना कार्य करेगा या बच्चों को पढ़ायेगा ,इतना डेटा कहाँ से लाएगा ?बड़े नगरों -शहरों में ही अभी नेटवर्क डाउन रहता है ऐसे में छोटे शहर -कस्बे -गाँव वाले कैसे बच्चों को पढ़ा पायेंगे ?
कोरोना कार्यकाल में रोजगार -व्यापार -कमाई के साधन कम हो गए ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई के अतिरिक्त खर्चे कैसे बर्दास्त होंगे ?स्कूलों की फ़ीस क्यों नहीं माफ़ की गई? इस पर भी ऑनलाइन पढ़ाई कराने वाली अनट्रेंड टीचर जो स्कूल में ही ढंग से नहीं पढ़ा पाती थी अब ऑनलाइन कैसे पढ़ा रही होंगी ,कभी यह सोचा है किसी ने ?बड़े स्कूलों -बड़े घर के बच्चों की बात छोड़ दे तो अन्य बच्चों में तो हीन भावना ही जन्म ले रही है। 
कभी किसी ने सोचा है की अधिकांश बच्चो की आँखे तो पहले से ही कमजोर रहती थी अब ऑनलाइन पढ़ाई से उनकी आँखों पर कितना जोर पड़ेगा ?मोबाईल पर कुछ घंटो की पढ़ाई ,फिर मोबाईल को बार -ंबार खोलकर देखकर होम वर्क पूरा करना। हम सभी अंदाजा लगा सकते हैं की इससे बच्चों की आँखों पर कितना जोर पड़ता होगा ?आने वाले समय में लगभग सभी बच्चों की आँखों पर चश्मा तो लगा ही होगा। आजकल के बच्चे मोबाईल पर ही लगे रहते हैं लेकिन मोबाईल देखना और मोबाईल से पढ़ने कार्य करने में बहुत अंतर् है। 
कोरोना महामारी तो समय के साथ खत्म हो ही जाएगी लेकिन साल -छ महीने की पढ़ाई कराकर बच्चों का भविष्य खराब मत करो। ऐसे में बच्चों की आँखे खराब हो गई तो उनके भविष्य पर असर पड़ेगा। जो बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं उनमें हीन भावना जन्म ले रही है जो उनके भविष्य के लिए घातक हो सकती है। मध्यम वर्ग के अभिभावक दोहरी मार से मरे जा रहे हैं। फ़ीस माफ़ हो नहीं रही ऊपर से अतिरिक्त खर्चा कैसे बर्दास्त करें?इस पर सरकार को, स्कूल वालो को ,अभिभावकों को मंथन करना ही चाहिए। * सुनील जैन राना  *  सहारनपुर -२४७००१ 

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