गुरुवार, 27 सितंबर 2018
समन्वय द्वारा सारस्वत एवं सृजन सम्मान समारोह
सारस्वत सम्मान ---श्री नचिकेता जी , पटना
सृजन सम्मान ------श्रीमती संध्या सिंह , लख़नऊ
सृजन सम्मान -------श्रीमती निर्देश निधि ,बुलन्द शहर
चित्र में बायें से खड़े हैं वरिष्ठ पत्रकार डॉ वीरेंद्र आज़म
अंतर्राष्ट्रीय कवि श्री राजेन्द्र राजन
श्रीमती निर्देश निधि
श्रीमती संध्या सिंह
श्री नचिकेता जी
स्वयं मैं -सुनील जैन राना
सह संयोजक - समन्वय
मंगलवार, 25 सितंबर 2018
रविवार, 23 सितंबर 2018
शनिवार, 22 सितंबर 2018
शुक्रवार, 21 सितंबर 2018
गुरुवार, 20 सितंबर 2018
बुधवार, 19 सितंबर 2018
मंगलवार, 18 सितंबर 2018
रविवार, 16 सितंबर 2018
शनिवार, 15 सितंबर 2018
शुक्रवार, 14 सितंबर 2018
गुरुवार, 13 सितंबर 2018
मंगलवार, 11 सितंबर 2018
हुआ नहीं भारत बंद -अपनी कुल्हाड़ी अपने पैर मारी
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पेट्रोल और डीजल के बढ़ते हुए दामों के विरोध में कांग्रेस के नेत्तृव में अन्य कुछ दलों द्वारा सोमवार १० सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया गया। ठीक है राजनीती में सदैव विपक्ष द्वारा ऐसा हल्ला मचाया जाता रहा ही है। भारत बंद का मिलाजुला असर रहा। जहां कांग्रेस का जोर था वहां बंद रहा जहां कांग्रेस का जोर नहीं था वहां बंद नहीं के बराबर हुआ। लेकिन इस बंद ने कांग्रेस की नीतियों पर ही सवाल खड़े कर दिये। जिस तरह दश भर में कुछ जगह आगजनी और तोड़फोड़ की गई इससे कांग्रेस की मानसिकता ही उजागर हुई है। क्या ही अच्छा होता बंद शांति पूर्वक होता। ऐसा करने से राहुल गांधी की इमेज सुधरती। कुछ दिन पहले sc /st के विरोध में कथित स्वर्णो ने भी बंद का एलान किया था। बंद सफल रहा या नहीं लेकिन देश भर में उन्होने एक संदेश दिया बिना किसी हल्ले -आगजनी-तोड़फोड़ के।
कल के बंद में चलती बसों -ट्रेनों पर पथराव की अनेको वीडियो सामने आयी हैं। सोचकर भी डॉ लगता है की वे पत्थर जिस किसी की फ़ोर्स के साथ लगे होंगे उनका क्या हाल हुआ होगा। हो सकता है उनमे कोई इन्ही पत्थरबाज़ो के घरवाले भी हों। वाहन तोड़ देना या बसें फूंक देना यह कैसी राजनीती है। राष्ट्रीय सम्पत्ति का नुक्सान तो हम सभी का नुक्सान है। कांग्रेस समेत किसी सहयोगी दलोंने इन लोगो को नहीं रोका। इससे कांग्रेस को फायदे की जगह नुक्सान ही हुआ है। आम आदमी को इस तरह का भारत बंद समझ में नहीं आ रहा है। लोगो की प्रतिक्रिया यह है की यह तो राहुल गांधी का शक्ति प्रदर्शन था जो उनकी मानसिकता को दर्शा रहा है।
तेल का खेल या तेल के दाम की नीति तो कांग्रेस के समय से ही ऐसे ही चल रही है। अटलबिहारी बाजपेयी जी के समय तेल के दाम लगभग ४० रूपये रहे। उसके बाद कांग्रेस की मनमोहन सरकार के १० सालों में यह दाम बढ़कर ८२ रूपये तक हो गए थे। तब किसी ने हल्ला नहीं मचाया। अब पुनः ८२ रूपये के दामों पर भारत बंद कराया जा रहा है।
जनता का तो कहना यह भी है की यह सब सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर चल रहे मुकदमे के फैसले को
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दबाने के लिए किया गया। यंग इंडिया और नेशनल हेराल्ड केस में इनपर आरोपित भ्र्ष्टाचार में इनकी याचिका
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खारिज हो जाने के मामले को भारत बंद में हल्ला बोलकर दबा दिया जाए।
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कुछ भी हो लेकिन बंद के दौरान जो भी हुआ सही नहीं हुआ। इससे कांग्रेस और सहयोगी दलों की साख गिरी ही है। केंद्र सरकार को भी तेल के दाम बढ़ने के कारण बताने चाहिए। यदि देश पर पिछली सरकारों द्वारा कोई कर्जा था जिसका भुगतान अब यह सरकार कर रही है तो यह बात जनता को बताये। तेल के टैक्स से होने वाला मुनाफा किस मद में लग रहा है यह जनता को बताये। पिछले तेल बांड का भुगतान यदि अब हो रहा है तो यह जनता को बताये। बीजेपी सरकार कहती है की हम बहुत विकास के कार्य कर रहे हैं लेकिन आम जनता फिर भी परेशान क्यों है ?सोशल मिडिया पर अनेक बाते लिखी आती हैं की जो वादे किये थे वे पुरे नहीं हुए हैं। बीजेपी सरकार उनपर अपना स्पष्टीकरण दे। अन्यथा किसी न किसी बात पर ऐसे बंद होते ही रहेंगे।
http://suniljainrana.blogspot.com/
गुरुवार, 6 सितंबर 2018
एटम बम किसके पास ज्यादा ?
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टीवी मिडिया पर अक्सर भारत -पाकिस्तान और चीन के एटम बम एवं अन्य हथियारों के बारे में घंटो अलाप चलाया जाता है की किसके पास कितने बम और हथियार हैं। सबका तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।
सवाल यह है की क्या यह देशहित में है ?चीन आज सभी क्षेत्रों में बहुत आगे निकल पुरे विश्व को चुनौती दे रहा है। चीन की टेक्नोलॉजी आज विश्व में सबसे अग्रणी दिखाई दे रही है। भारत से बहुत आगे है चीन अतः चीन से किसी भी बात को मुकाबले में दिखाना भारत को नीचा दिखाना ही कहलायेगा।
रही बात पाकिस्तान की तो अमेरिका -चीन के टुकड़ो पर पल रहे पाकिस्तान की हालत वैसे ही बहुत खराब है। ऐसे में पाकिस्तान से भारत को मुकाबले में दिखाना भी भारत की तौहीन करना ही होगा। एटम बम के मामले में जरूर पाकिस्तान को भारत से ज्यादा एटम बम वाला देश बताया जाता है। ऐसा बताना भी ठीक नहीं है। भले ही पाकिस्तान के सभी प्रधानमंत्री भारत को एटम बम की धौंस दे चुके हों लेकिन यह उन्हें भी पता है की उनकी एक गलती भारत का तो कुछ ही नुकसान करेगी बदले में पाकिस्तान विश्व के नक्शे से साफ़ हो जायेगा।
भारतीय मिडिया को देश की सुरक्षा से संबंधित बातों को ऐसे बयान करना देशहित में नहीं है। सरकार को ऐसी डॉक्युमंट्री या डिबेट पर पाबंदी लगा देनी चाहिए। सिर्फ सरकारी आंकड़े या बयान ही इस संबंध में जारी होने चाहिए। भारतीय मिडिया को तो यह प्रचारित करना चाहिए की भले ही पाकिस्तान के पास भारत से ज्यादा एटम बम हो लेकिन भारत के एटम बम तकनीकी रूप से विकसित और बेहतरीन हालत में हैं जबकि पाकिस्तान के उधार लिए एटम बम न तो सम्पूर्ण हैं और न ही चलाने काबिल। गलती से चला भी दिये तो वह लक्ष्य पर जाने की बजाय पाकिस्तान में ही फूट जायेंगे। यही सत्य है। http://suniljainrana.blogspot.com/
मंगलवार, 4 सितंबर 2018
नोटबंदी - LOU -NPA या Gst ?
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देश में लगभग प्रत्येक छेत्र में मोदी सरकार पर हल्ला बोल चल रहा है। मोदी सरकार के किसी भी कार्य में खामी ढूंढकर हल्ला मचाना विपक्ष का एक मात्र कार्य रह गया दिखाई देता है। हाल ही में मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर हल्ला मचाया जा रहा है। पूर्व वित्त मंत्री वर्तमान नीतियों को देशहित में अहितकर बता रहे हैं। जबकि नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार पूर्व UPA सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका कहना है की पूर्व गोवर्नर रघुराम राजन ने बैंको द्वारा दिए गए लोन के वापसी में कमजोर नीति अपनाई जिसके कारण NPA बढ़ता चला गया।
विपक्ष में पहले नोटबंदी को अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक बताया था। फिर Gst को अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक बताया। लेकिन विपक्ष ने कभी भी पिछली सरकार द्वारा LOU की नीति से बाटें गए लोन पर कभी कोईबयान नहीं दिया जिसके कारण ही लाखो करोड़ का NPA हो गया। पिछले चार सालों में भी UPA सरकार के समय चार लाख करोड़ का NPA बढ़कर दस लाख करोड़ से ज्यादा हो गया। सवाल यह भी उठता है की मोदी सरकार में NPA क्यों कम नहीं हुआ ?
दरअसल पिछले कानूनों में इतनी लचक थी जिसका फायदा नेतागण -बड़े घराने -बड़े बैंक अधिकारी सब मिलकर उठाते थे। पूरी तरह बंदरबाट चल रही थी। विजय माल्या, नीरव मोदी जैसे न जाने कितने उद्योगपति कानूनों की बारीकी जानते थे और सुनियोजित तरीके से लोन ले लेते थे। यहाँ तक की ऐसे बड़े लोगो के विदेश जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी। विदेशों से उन्हें वापस लाने का भी कानून नहीं बनाया गया था।
अब मोदी सरकार में इन सब बातों को ध्यान में रख नए कानून बनाये जा रहे हैं। लाखों फर्जी कम्पनियाँ बंद कर दी गई हैं। लाखो NGO बंद कर दिए गए हैं। नोटबंदी से और कुछ नहीं तो आतंकवादियों की फण्डिंग बंद हुई है। Gst के फायदे अब सभी उद्योगपतियों को दिखाई दे रहे हैं। देश में कहीं भी अपना उत्पाद बेचने -भेजने में बहुत आसानी हो गई है। अब किसी नेता द्वारा LOU से लोन दिलवाना बंद हो गया है। NPA पर लगाम लगाई जा रही है। लोन लेने के लिए सख्त नियम -कानून बनाये जा रहे हैं। LOU के कारण ही बैंको में बेहताशा NPA बढ़ा था। एक कम्पनी ने सौ करोड़ का लोन लिया ,उस लोन से दूसरी कम्पनी खोलकर पैसा उसमे ट्रांसफर कर दिया। अब दूसरे बैंक से नई कम्पनी में सौ करोड़ दिखाकर पांच सौ करोड़ लोन ले लिया। ऐसा ही चल रहा था कॉर्पोरेट्स में। एक की टोपी दूसरे पर रखकर लाखों करोड़ उगाह लिए। बड़े नेताओं के आशीर्वाद से कोई कुछ कहने -सुनने वाला भी नहीं रहता था।
अब फिर से अर्थव्यवस्था पटरी पर आ गई है। हल्ला वही लोग मचा रहे हैं जिनका भ्र्ष्टाचार रूपी व्यापार बंद हो गया है। हल्ला इसलिए भी ज्यादा दिखाई दे रहा है क्योंकि अब टीवी मिडिया पर आकर कुछ भी बोलने की आज़ादी मिल रही है। किसी भी विषय की डिबेट में सात -आठ विभिन्न दलों के प्रवक्ता बुला लिए जाते हैं। जिनमे से सत्ता पक्ष के एक या दो होते हैं और बाकी विपक्ष के होते हैं। इसलिए डिबेट में बहुमत उन्ही का दिखाई देने लगता है। लेकिन सत्य छुपता नहीं है ,विकास के कार्य होंगे तो दिखाई देंगे नहीं होंगे तो नहीं दिखाई देंगे।
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