मंगलवार, 4 सितंबर 2018



नोटबंदी - LOU -NPA या Gst ?
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देश में लगभग प्रत्येक छेत्र में मोदी सरकार पर हल्ला बोल चल रहा है। मोदी सरकार के किसी भी कार्य में खामी ढूंढकर हल्ला मचाना विपक्ष का एक मात्र कार्य रह गया दिखाई देता है। हाल ही में मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर हल्ला मचाया जा रहा है। पूर्व वित्त मंत्री वर्तमान नीतियों को देशहित में अहितकर बता रहे हैं। जबकि नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार पूर्व UPA सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका कहना है की पूर्व गोवर्नर रघुराम राजन ने बैंको द्वारा दिए गए लोन के वापसी में कमजोर नीति अपनाई जिसके कारण NPA बढ़ता चला गया।

विपक्ष में पहले नोटबंदी को अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक बताया था। फिर Gst को अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक बताया। लेकिन विपक्ष ने कभी भी पिछली सरकार द्वारा LOU की नीति से बाटें गए लोन पर कभी कोईबयान नहीं दिया जिसके कारण ही लाखो करोड़ का NPA हो गया। पिछले चार सालों में भी UPA सरकार के समय चार लाख करोड़ का NPA बढ़कर दस लाख करोड़ से ज्यादा हो गया। सवाल यह भी उठता है की मोदी सरकार में NPA क्यों कम नहीं हुआ ?

दरअसल पिछले कानूनों में इतनी लचक थी जिसका फायदा नेतागण -बड़े घराने -बड़े बैंक अधिकारी सब मिलकर उठाते थे। पूरी तरह बंदरबाट चल रही थी। विजय माल्या, नीरव मोदी जैसे न जाने कितने उद्योगपति कानूनों की बारीकी जानते थे और सुनियोजित तरीके से लोन ले लेते थे। यहाँ तक की ऐसे बड़े लोगो के विदेश जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी। विदेशों से उन्हें वापस लाने का भी कानून नहीं बनाया गया था।

अब मोदी सरकार में इन सब बातों को ध्यान में रख नए कानून बनाये जा रहे हैं। लाखों फर्जी कम्पनियाँ बंद कर दी गई हैं। लाखो NGO बंद कर दिए गए हैं। नोटबंदी से और कुछ नहीं तो आतंकवादियों की फण्डिंग बंद हुई है। Gst के फायदे अब सभी उद्योगपतियों को दिखाई दे रहे हैं। देश में कहीं भी अपना उत्पाद बेचने -भेजने में बहुत आसानी हो गई है। अब किसी नेता द्वारा LOU से लोन दिलवाना बंद हो गया है। NPA पर लगाम लगाई जा रही है। लोन लेने के लिए सख्त नियम -कानून बनाये जा रहे हैं। LOU के कारण ही बैंको में बेहताशा NPA बढ़ा था। एक कम्पनी ने सौ करोड़ का लोन लिया ,उस लोन से दूसरी कम्पनी खोलकर पैसा उसमे ट्रांसफर कर दिया। अब दूसरे बैंक से नई कम्पनी में सौ करोड़ दिखाकर पांच सौ करोड़ लोन ले लिया। ऐसा ही चल रहा था कॉर्पोरेट्स में। एक की टोपी दूसरे पर रखकर लाखों करोड़ उगाह लिए। बड़े नेताओं के आशीर्वाद से कोई कुछ कहने -सुनने वाला भी नहीं रहता था।

अब फिर से अर्थव्यवस्था पटरी पर आ गई है। हल्ला वही लोग मचा रहे हैं जिनका भ्र्ष्टाचार रूपी व्यापार बंद हो गया है। हल्ला इसलिए भी ज्यादा दिखाई दे रहा है क्योंकि अब टीवी मिडिया पर आकर कुछ भी बोलने की आज़ादी मिल रही है। किसी भी विषय की डिबेट में सात -आठ विभिन्न दलों के प्रवक्ता बुला लिए जाते हैं। जिनमे से सत्ता पक्ष के एक या दो होते हैं और बाकी विपक्ष के होते हैं। इसलिए डिबेट में बहुमत उन्ही का दिखाई देने लगता है। लेकिन सत्य छुपता नहीं है ,विकास के कार्य होंगे तो दिखाई देंगे नहीं होंगे तो नहीं दिखाई देंगे।


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