धनवान ही माननीय होते हैं ?भले ही वे अपराधी या भ्र्ष्टाचारी हों
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हमारे भारत महान में ऐसी बहुत सी बातें देखने में आती हैं जिससे लगता है की माननीय होने के लिए धनवान होना बहुत जरूरी है। छोटे -मोटे झगड़े -नियम -कानून तो जैसे धनवान के लिए कोई अहमियत ही नहीं रखते।
कानून की गाज आम आदमी पर तुरंत गिर जाती है वहीं धनवान पर कानून की गाज गिरने से पहले ही धनवान
का जुगाड़ काम कर जाता है।
देश का एक नामी विजय माल्या धनवान जो भारतीय बैंको से लगभग ९००० करोड़ रूपये लेकर विदेश को निकल लिया था अभी तक उसको देश का कानून भगोड़ा भी घोषित नहीं कर पाया है। जबकि एक आम आदमी यदि बैंक का लोन समय पर चुकता न कर पाये तो बैंक उसकी कुर्की तक करवा देता है। लेकिन धनवान के लिए
कई बैंको समेत केंद्र सरकार एवं कानून व्यवस्था सब ताक पर रखी दिखाई देती है।
अपराधी प्रवृति के बाहुबली धनवान के आगे प्रसाशन पस्त होता दिखाई दे जाता है। भ्र्ष्टाचारी प्रवृति के नेता के
धन की जांच भी होती दिखाई नहीं देती। यदि होती भी है तो उसका धन काला नहीं सफेद ही पाया जाता दिखाई
देता रहा है।
मोदी सरकार भी इन सब बातों से पीड़ित है। मोदीजी के अहम फैसले नोटबंदी को बैंको और धनवानों की मिलीभगत से टॉय टॉय फिस्स के जैसे ही कर दिया। सबके पुराने नोट बदले गए अब चाहे वो काले थे या सफेद
थे। दशकों से बड़े धनवानों और बड़े बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से बिना सुरक्षा लाखों करोड़ का लोन दे
दिया गया जिसमें भ्र्ष्टाचार अवश्य ही निहित होगा। आज वही लोन NPA कहला रहा है। काश यह धन वापस
आता तो जनता की भलाई में काम आता।
दरअसल पिछले कानूनों की लचकता का फायदा उठाकर धनवानों ने देश को लूटा है। अब मोदी सरकार इन
सब का अध्ययन कर नए कठोर कानून बना रही है। लगभग दो लाख से ज्यादा फर्जी कम्पनियाँ बंद कर दी गई
हैं। देश का धन लेकर विदेशो में भागने वाले धनवानों को भगोड़ा घोषित कर देश में वापस लाने और उनकी सम्पत्ति नीलाम करने के लिए कठोर कानून बनाये जा रहे हैं।
जल्दी ऐसा समय आएगा की अब कोई माल्या माल लेकर निकल नहीं पायेगा।
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