कुत्ते ये कुत्ते
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कुत्ते - एनीमल राइट्स v/s ह्यूमन राइट्स
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शीर्षक से ही मन में कुछ अजब तरह के विचार आने लगते हैं। उनका आना भी स्वाभाविक है। जब देश का सर्वोच्च न्यायालय इनको इंगित कर कोई फैसला ले और अनुपालना के लिए संबंधित सरकारों और संस्थाओं को निर्देशित करे तो कहने का हक तो बनता ही है।
वैसे तो हर प्राणी के बच्चे बहुत ही प्यारे होते हैं, जिनसे हमारा पाला पड़ता है अर्थात जो पालतू पशुओं की श्रेणी में आते हैं। गाय, भैंस, घोड़ा, हाथी, ऊँट, बकरी, भेड़, खरगोश, बंदर यहाँ तक कि मनुष्य के भी! पक्षियों के बच्चे तो और भी प्यारे लगते हैं, जब चींचीं-चींचीं करते हैं। कुत्ते-बिल्ली के बच्चे तो बच्चों को खूब भाते हैं, विशेष कर कुत्ते के पिल्ले जिनसे वे अपना स्नेह खूब उड़ेलते हैं। इसके लिए बच्चों के माँ-बाप या तो स्ट्रीट डाॅग को गोद ले लेते हैं या फिर किसी प्रतिष्ठित कुत्ते विक्रेताओं से पिल्ले क्रय कर लेते हैं। दोनों ही स्थितियों में वह प्राणी घर का सदस्य बन जाता है। उसका लालन-पालन भी अपने बच्चे की तरह ही होता है। समय-समय पर डी-वर्मिंग, वैक्सीनेशन और फिर बीमार होने पर अच्छी प्रकार से ध्यान भी बच्चों की तरह ही दिया जाता है।
सवाल जो उठता है या उठा है, वह स्ट्रीट के आवारा कुत्तों को लेकर है। इनकी फौज दिन पर दिन बढ़ती जा रही है और कहीं-कहीं तो आतंक का पर्याय भी बन रही है। इसी पर विस्तृत, सारगर्भित बातें इस आलेख में की जाएँगी।
आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक-पक्ष
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असल में मनुष्य ही कुत्ते जैसा व्यवहार करने लगा है। एक दूसरे को देखते ही भोंकने लगता है, काटने लगता है! मनुष्य नहीं चाहता कि उसके अलावा और कोई इस ब्रह्माण्ड में रहे।अन्य जीव के लिए वह एक इंच भी नहीं छोड़ना चाहता, जबकि ईश्वर ने तो यह संसार सभी जीवों, चींटी से लेकर हाथी तक के लिए बनाया है।पर मनुष्य नाम का जीव सब पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता है और ऐसा करने में वह अपने सामाजिक संस्कार, सरोकारों को भी तिलांजलि दे चुका है। जब वह अपने माता-पिता तक को अपने आँगन में सहन नहीं कर सकता तो फिर अन्य जीव के बारे में सोचना तो उसके लिए असंभव-सा कार्य लगता है। गाँव में और गाँव से शहर में विस्थापित, चलो स्थापित कह देते हैं, उनके घरों में अब भी पहली रोटी गाय के लिए और अंतिम रोटी कुत्ते की निकलती ही निकलती है, ऐसा करने के पीछे उनकी परोपकार की भावना छिपी रहती है। हमारे बाबा जी के अनुसार ये तो बे झोली के फकीर हैं, इनका ध्यान रखना हम सब मनुष्यों का कर्तव्य है। भूख में प्राणी खूँखार हो ही जाता है, तब वह जीविका के लिए अन्य साधन खोजता है। आपने देखा होगा, जब से घरों में जाली वाले डोर लगे हैं, बिल्लियों ने , दूध-दही,चूहों के विकल्प तलाश लिए हैं।अब वे छत पर जाती हैं और एक कबूतर कुटक लेती हैं और फिर पूरे दिन मस्त हो सोती हैं!
कुत्ते के वफादारी के किस्से भी खूब समाज में विद्यमान हैं। प्रशिक्षित कुत्ते सेना और पुलिस के अभियान में विशेष भूमिका निभाते हैं। इसमें इनकी सूँघने की शक्ति काम आती है। हमारे मित्र की बेटी स्नान घर में लगे गैस गीजर से निकली गैस से दम घुटने से बेहोश हो गई।इसकी सूचना बार-बार भोंक कर उनकी पत्नी को देकर दरवाजा तोड़ कर जान बचाई गई। चोरों से सावधान करने के तो अनेक किस्से हैं। हमारे बाबा हमें बंजारे के बिना सोचे-समझे कुत्ते को मौत के घाट उतार कर पछताने का किस्सा खूब सुनाते थे। मुहावरे कुत्तों को लेकर खूब बने हैं। "कुत्ते की मौत मरेगा" एक प्रसिद्ध मुहावरा है। फिल्मी डायलॉग भी - "कुत्ते-कमीने मैं तेरा खून पी जाऊँगा।" कुत्ते के आगे रोटी का टुकड़ा फे़कने पर और कुत्ते के पूँछ हिलाने को भी व्यंग्यात्मक रूप से लिया जाता है। अब तो हाॅट-डाॅग बाजारी फूड (जंक फूड) में शुमार हो चुका है। नाम में क्या रखा है, पर नाम में ही सबकुछ छुपा है!
कुत्ता एक भावुक प्राणी है। यह रिश्ते निभाना जानता है।अपनी जान देकर यह रिश्ता निभाता है।पांडवों के स्वर्गारोहण के साथ कुत्ते का भी जिक्र आता है। काले कुत्ते को काल भैरव का वाहन माना जाता है।
वैज्ञानिक-पक्ष
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स्ट्रीट डाॅग का एंटी रैबीज का वैक्सीनेशन तो होता नहीं है। पागलपन (रैबीज) से ग्रस्त कुत्ते काटने का कुकर्म भी कर लेते हैं, यह उनके स्वभाव के विपरीत है, पर एस मानसिक रोग में उनका स्वयं पर भी नियंत्रण नहीं होता! अब स्थानीय निकायों पर एक ही विकल्प कि वे इनकी नशबंदी करा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं ताकि इनकी जनसंख्या पर लगाम लगे।
हाँ, एक बात तो आवश्यक है कि जो कुत्ते पालतू हैं, उनका प्रतिष्ठित पशु चिकित्सक से एंटी रैबीज वैक्सीनेशन करा के रक्खें। बच्चों को पालतू कुत्तों से भी दूर रक्खें। कुछ ब्रीड के कुत्ते कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो जाते हैं। ऐसी अनेकों घटनाएँ हम देख ही चुके हैं।
सांख्यिकीय-पक्ष
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अकेले दिल्ली में दस लाख कुत्ते हैं। बाइट के अड़सठ हजार केस 2024 में और छब्बीस हजार इस साल में। सैंतीस लाख केस पूरे देश में 2024 में और इसी साल में 54 मौत रैबीज के कारण पूरे देश में हुईं। देश में मणिपुर और विश्व में नीदरलैंड में आवारा कुत्ते नहीं हैं।
न्यायिक-पक्ष
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अब इस समस्या पर सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने सख्त रुख अपनाते हुए आदेश पारित किए हैं कि दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्ते 8 हफ्तों में सड़कों से हटाएँ। स्ट्रीट डाॅग्स के लिए दिल्ली में विशेष सैल्टर होम बनाए जाएँ। कोर्ट ने इस काम में बाधा डालने वालों व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी। कोर्ट ने कहा, कोई व्यक्ति या संगठन बाधा बना तो अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है । मासूम बच्चों को किसी भी कीमत पर रैबीज का शिकार नहीं होना चाहिए।खुशी को ऐसे ही नहीं छीना जा सकता। लोग निर्भीक होकर घूम फिर सकते हैं बिना किसी खौफ के। कोई व्यक्ति या संगठन इसमें अवरोध पैदा करेगा, इस आदेश की अवमानना मान कर स्वतत: संज्ञान लेकर दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी।
कोर्ट ने कहा कि 6-8 सप्ताह में 5000कुत्तों के लिए शैल्टर होम बनाए जाएँ और 8 सप्ताह में इसकी रिपोर्ट दें। कोई कुत्ता बाहर न जाए, इसकी निगरानी सीसीटीवी से की जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि नसबंदी कर वहीं छोड़ना बेतुका है।
निश्चित ही इस समस्या से छुटकारा मिल जाएगा, यह विश्वास कर सकते हैं क्योंकि अब सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या के निदान का वीणा उठाया है। अब कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए सरकार, स्थानीय निकाय व संबंधित विभागों को संगठित होकर,कटिबद्ध होकर जुटना होगा।
सरकार का पक्ष
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केंद्र सरकार ने आवारा कुत्तों के काटने की घटनाएँ बढ़ने और लावारिस पशुओं द्वारा नुकसान पहुँचाने की घटनाओं पर चिंता जताई है। संबंधित विभिन्न मंत्रालयों ने ऐसे पशुओं पर नियंत्रण के लिए मास्टर एक्सन प्लान बनाया है।
पशु-प्रेमियों का पक्ष
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पेटा इंडिया
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कुत्तों को जेल में डालना कभी कारगर नहीं रहा। इससे रैबीज कम नहीं होगा, नहीं काटने से बचाव होगा, क्यों कि कुत्ते अंततः अपने इलाकों में लौट आते हैं।
कुत्तों को उनके आसपास से हटाना अमानवीय, असंवैधानिक है। कुत्ता एक टैरीटोरियल एनीमल है, विस्थापित होने पर भुखमरी, कुपोषण की समस्या पैदा होगी जिनकी परिणिति में डाॉग-बाइट और रैबीज के केस और बढ़ेंगे।
मेनका गांधी
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गुस्से में दिया अजीब फैसला है। दिल्ली में एक भी शेल्टर होम नहीं है। इन्हें बनाने में 15 हजार करोड़ खर्च करने होंगे।3000 ऐसी जगहें ढूँढ़नी होंगी जहाँ कोई नहीं रहता।
कुत्तों को हटाने का निर्णय क्रूर निर्णय है । समाधान ज़रूर हो लेकिन इस तरह नहीं । पहले उनके रहने का ठिकाना खोजा जाना था । उनकी नसबंदी होनी थी । उनका टीकाकरण होना था । कुुत्तों को शहर से गायब कर देना ये अमेरिका के पदचिन्हो पर चलने वाला काम है ।
एस सी ने बिना सोच-विचार के फैसला लिया।
संध्या सिंह
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इन्सान की बढ़ती जनसंख्या सबको खा जायेगी । मुझे तो लगता है, इन्सान और जानवर सबकी संख्या सुनियोजित तरीके से कम होनी चाहिये । चिड़िया, तोते से ले कर शेर तक नहीं बचे । सबसे बड़ा भू माफ़िया इन्सान है और दुख की बात ये है कि इन्सान के खिलााफ़ कोई नियम नहीं । जानवरों के पक्ष में कोई कानून नहीं । जो हैं भी वो सब छद्म साबित हो रहे हैं ।
एक बात और ग़ौर तलब है, ये रील बना-बना कर कमाई करने वाले डॉग लवर्स के बाद आखिर क्यों कुत्तों के व्यवहार में परिवर्तन आया ? पहले कुत्ते इतने आक्रामक नहीं थे । अब कुत्ते भी आक्रामक और डॉग लवर्स भी आक्रामक ।
मेरे विचार से डॉग लवर्स बोरे भर भर खाना सड़क पर डालने के बजाय इनकी संख्या और इनकी नसबंदी पर फोकस करें । इन्हें गोद लेने के लिये पब्लिक को मोटीवेट करिए ।
मेरे घर में 13 साल के हैल्दी जब्बो को देख कर मेरे कई मित्रों ने पप्पी गोद लिये ।
मेरे ख्याल से कुत्तों को हटाने के निर्णय के खिलाफ अपील होनी चाहिये । और कुत्तों के इंतज़ाम के लिये कोर्ट को थोड़ा समय देना चाहिये । ये बहुत भावुक प्राणी है । इनके बदलते व्यवहार के कारण पता करने चाहिये और उन्हें दूर करना चाहिये ।
आदेश पर संतुलित प्रतिक्रिया
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राष्ट्र किंकर
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मुख्य रोड पर रहने के कारण कुत्तों के आतंक से परिचित हूं। ये कुत्ते राह निकलते लोगों पर झपटते हैं। अचानक कुत्ता झपटने से दोपहिया वाहन असंतुलित होकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है। बच्चे और बूढ़े इन कुत्तो के कारण चोटिल भी होते हैं। कुत्तों के काटने से होने वाले रेबीज जैसी असाध्य रोग के दुष्प्रभाव को एक निकट मित्र के अनुभव से देखा जाना है जिसका इलाज केवल मृत्यु है ।
दूसरों को कोर्ट का आदेश मानने की नसीहत देने वालों को सड़कों से आवारा कुत्ते हटाने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को नाकारा बनाने के लिए सक्रिय देखकर कष्ट होता है। इनके मन में कुत्तों के प्रति 'मानवता' उमड़ रही है लेकिन इन कुत्तों ने जिन मानवों को काटा है उनके लिए इन्होंने क्या किया या क्या करेंगे, वे इस पर मौन है। आखिर पशु आवारा होने ही क्यों चाहिए? स्वयंभू पशु प्रेमियों को अपने घर में कुत्ते पालने से कौन रोकता है? लेकिन सड़क या गली में कुत्तों को दूध मांस आदि परोसने का अधिकार उन्हें किसने दिया?
माना कि कुत्ता वफादार होता है लेकिन उसका जो उसे पलता है। जिसे वफादारी चाहिए वह नियमानुसार कुत्ते पाले लेकिन अपने परिसर में। कुत्तों के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद करने वाले क्या मानवीय सुरक्षा को कमतर मानते हैं? सड़क पर कुत्तों को भोजन और दूध आदि प्रस्तुत कर स्वयं को सगर्व जीव प्रेमी बताने वालों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए।
राहुल गांधी
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ये बेजुबान आत्माएँ हैं, कोई समस्या नहीं! जन कल्याण के साथ-साथ पशु कल्याण की बातें जरूरी हैं। बिना क्रूरता के भी सड़कों को सुरक्षित रख सकते हैं। मानवीय समाधान चाहिए।
प्रियंका गांधी
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इससे बेहतर और उदारता से निबटना चाहिए।
वरुण गांधी
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यह आदेश उन पर लागू है जो अपनी सुरक्षा नहीं कर सकते।
जाॅन अब्राहम
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ये आवारा नहीं, सामुदायिक कुत्ते हैं। पत्र लिखकर फैसले की समीक्षा की गुहार लगाई।
जाह्नवी कपूर
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आदेश कैद जैसा।
व्यंग्यात्मक-टिप्पणियाँ
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1-आवारा कुकुर....
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भईया मुद्दा भावनात्मक नहीं.... मामला अब उससे ज्यादा है
में बीहड़ में जिया हूँ.... यहीं बचपन गुजरा...
कुत्ते या अन्य जीव छोड़िये साँप छिपकली भी मारे जाने या उनके परिवेश से छेड़छाड़ के सख्त खिलाफ़ हूँ
बहुत प्यार है वन्य जीवन से....
और चुंकि प्यार है..... उसे जानता हूँ
इस लिए कहता हूँ ये सड़कों के कुत्ते गंभीर आने वाला संकट है भारत में...
कुत्ते सबसे सफल शिकारी हैं 90% से ऊपर का सफलता का औसत है इनका...शेर का 4% होता है .. ये अगर तय कर लेते हैं... जान लेते हैं
हाँ कुत्ता मानव का सबसे पुराना साथी है.... पर फ़र्क़ समझें.... 5 लोगों के बीच 1 कुत्ता दोस्त है...
लेकिन 50 कुत्तों के बीच एक मानव....... सिर्फ भोजन
जैसे ही इनका 5-10 का झुण्ड बनता है मूलवृति जाग जाती है.... ये अपना लीडर चुनते हैं और उसे फ़ॉलो करते हैं...... और फिर भोजन और मादाओं की संख्या का संघर्ष.... आगे झुण्ड को तेजी से बढ़ाना....
और फिर भोजन के इलाके में वर्चस्व.....
बस यहाँ आप और वे आमने सामने होते हैं....
और इस आमने सामने में हद 10 साल लगेंगे......
आज वो बुजुर्ग बच्चों पर छुट पुट हमले कर रहे हैं
ये तुम्हारे घर में घुस कर जान लेंगे बस थोड़ा इंतज़ार करो
सारा प्रेम तिरोहित हो जाएगा-----
मुझे उनसे न घृणा है.... न बैर
पर में जानता हूँ हमें इन्हे अंततः मारना ही होगा.....
ऑस्ट्रेलिया के खरगोश जैसा व्यापक अभियान चला
खोज के पढ़ लो सिर्फ एक खरगोश लवर के 7 खरगोश ने क्या दुर्गत की थी ऑस्ट्रेलिया की जो अब भी जारी है
तो भावनाओं को डालो सही जगह और समस्या को समझो!
सुरेन्द्र विक्रम सिंह
2- कुलीन कुत्ते और आवारा कुत्ते
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सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से कुत्ता कुल या कुल कुत्ते सदमे मे है। कुछ विद्रोही मुद्रा मे न्याय व्यवस्था को कोस रहे है। कुत्ते मे भी आवारा और संभ्रान्त। न्याय व्यवस्था गरीबो एवं कमजोरो के टोटल खिलाफ है। कुछ कह रहे है आतंकवादी,और बांग्लादेशी तो निकाल नही पाते सारी समस्या हमी है।
हम कुत्तो ने आखिर क्या बिगाडा है किसी का । सर्प दंश से तो मौत तक हो जाती है फिर भी ऐसा भयानक निर्णय उनके भी खिलाफ नही आया।
हमारी ही बिरादरी के कुछ शहरी कुत्ते भाई भोजन, भ्रमण एवं मार्ग उत्सर्जन संरक्षण स्वाभिमान के साथ कर रहे है। अफसर पत्नियो के वे अत्यन्त प्रिय पात्र है। घूस उनके रखरखाव के लिए आवश्यक है। समाज मे भ्रष्टाचार बढाने मे परोक्ष सहायता कर रहे है। लेकिन उनकी ओर किसी की दृष्टि नही जाती। वर्गवाद का शिकार हम लोग हो गए है। भूखे रहकर भी हम सुरक्षा मे रहते है फिर भी ये नाइंसाफी।
काश! हमारे भी वोट होते। तो हमारा भी PDA पालतू डाग एवं आवारा संगठन देश मे हमारे हक की लड़ाई लड़ाई। लेकिन लोकतंत्र मे हम वैसे ही है जैसे और तमाम गरीब, बेसहारा।
कालोनियो की आठ मे छुपा काल गाय, गिद्ध , बंदर, शेर,चीता, सबको नेवादा बना रहा है आहिस्ता-आहिस्ता।
फिल हाल सरकारी और अमीरो द्वारा संरक्षित कुत्ता कल्चर बचा रहे यही विस्थापित कुत्ते समाज की आखिरी ख्वाहिश है। जब हम धर्मराज के साथ चले गए थे तो हमे दिल्ली वापस नही आना था।
बिन मारे मर जाएगा, सारा श्वान समाज
निर्भय होकर कीजिए अब दिल्ली पर राज।
संजय मिश्र
राजनैतिक-पक्ष
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कुकुर के लिए मेनका गाँधी को तकलीफ होती है। राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा भी परेशान हैं। उनका पशु प्रेम उमड़ पड़ा है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का विरोध कर रहे हैं। दिल्ली सहित भारत की सड़कों पर आने जाने वाली आम जनता और उनके बच्चों के प्रति उनकी संवेदना शून्य है। जो करोर्डों लोग देश भर के गली मोहल्लों, कालोनियों में रहते हैं उनके, उनके परिजनों और बच्चों से वोट तो चाहिए। उनको आवारा कुत्ते काटें, वे लोग रेबीज से मरें इनको कोई मतलब नहीं।
प्राणियों के प्रति इनकी, इनके समर्थकों की, साथ ही तमाम पशु प्रेमियों की करुणा जाग उठती है कि क्योंकि ये बेजुबान हैं। वैसे जो भेड़, बकरियाँ हैं, मुर्गे, मुर्गी हैं। सुअर हैं। गाय, बैल, साँड़ हैं। नील गाय, बंदर सहित तमाम प्राणी हैं जिनमें से कुछ को रोज काटा जाता है, मारा जाता है। पकड़ कर इधर से उधर कर दिया जाता है वे सब इनको जुबानदार दिखते हैं।
यदि इन लोगों को कुत्तों से इतना ही प्रेम है तो अपने करोड़ों करोड़ की संपत्ति से कुछ शेल्टर होम बनवा दें। खुद आम आदमी की तरह परिवार के साथ बड़े सुरक्षित बंगलों को त्याग कर गली मोहल्लों में रहना शुरू करें। आम आदमी की तरह सड़कों पर पैदल, साइकल, ऑटो, स्कूटी, मोटर साइकिल आदि आदि साधनों पर चलें। आम भारतवासी का भय, तकलीफ समझ आने लगेगी।
इन लोंगों के कुत्तों के प्रति इतने प्रेम का एक कारण इलीट क्लास के वे डॉग ब्रीडर भी हैं जो तथा कथित हाई सोसाइटी में अपने कुत्तों को बेचेते हैं, प्रदर्शित करते हैं । अगर आम आदमी की जान की कीमत कुत्तों से अधिक लगती है तो अपने चुनाव घोषणा पत्र और नीतियों में लिखें, " कुत्ते पहले आम जनता बाद में "। " बेजुबान प्राणी भारत में सिर्फ कुत्ते हैं "। हाँ अपने बड़े बड़े बंगलों के लॅान में कुत्ते रख लें और अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए भी इसे अनिवार्य एक शर्त बना दें।
हम तो भारत के विभिन्न शहरों में रहे हैं । शहर में रात को घर लौटते हैं तो चार किलोमीटर के मार्ग में 150 से अधिक कुत्तों से बच कर चलने का युद्द जीवन का हिस्सा बन गया है। यह हमारे जैसे हजारों लाखों देश वासियों की पीड़ा है। कुत्ते के अधिकारों को लड़ने वालों को इस से क्या लेना देना। एक सुझाव है कुत्ते के लिए लड़ने वालों के लिए। एक पार्टी बना लें। कुत्ते पार्टी" जो कुत्ते जितना अधिक आम आदमी को काटे उसे टिकट देकर विभिन्न सदनों का सदस्य बनवा दें।
(साभार ... श्री निशीथ जोशी)
कवि भी पीछे क्यों रहें
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बस यों ही....
एकजुट हो रहे हैं, देश के समस्त श्वान
श्वान का भी स्वाभिमान, उसको बचाइए।
रोड से निकाला गया, बन्धनों में डाला गया
श्वान को भी योजना में, गेह दिलवाइये।
आदमी ही आदमी को, वोट करता रहा है
श्वान जी को श्वान से भी, वोट दिलवाइये।
बढ़ रहे श्वान पर, आदमी के अत्याचार
एक श्वान अधिकार, बोर्ड बनवाइये।।
(राहुल द्विवेदी 'स्मित')
( समाचार और कुछ सामग्री दैनिक भास्कर दिनांक: 12अगस्त,2025 से साभार और बहुत-कुछ संदर्भित व्यक्ति की पोस्ट से)
लेखक/संयोजक/संपादक
डा आर पी सारस्वत
सहारनपुर
9557828950