शुक्रवार, 29 अगस्त 2025

वोट चोर कौन?

भारतीय राजनीति के इतिहास में एक ऐसा दौर आया जब लोकतंत्र की परीक्षा ली गई। यह तस्वीर देखिए, जिसमें सरदार वल्लभभाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू साथ बैठे हुए हैं। लेकिन आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे चुनाव की, जहां वोटों की चोरी का आरोप लगा। 😠

 14 वोटों के मुकाबले सिर्फ 1 वोट से नेहरू की जीत हुई, और नतीजा था नेहरू का सत्ता में आना। यह घटना 1946 की कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव की है, जब देश आजादी के करीब था। क्या यह लोकतंत्र का मजाक नहीं था? 🤔

जब देश गुलामी की जंजीरों से मुक्त होने को बेताब था, तब कांग्रेस के अंदर भी सत्ता की लड़ाई चल रही थी। 15 प्रांतीय कांग्रेस समितियों में से 12 ने सरदार पटेल को नामित किया, 3 ने बहिष्कार किया, लेकिन नेहरू का नाम एक भी समिति ने नहीं रखा। फिर भी, गांधीजी के हस्तक्षेप से पटेल को नाम वापस लेना पड़ा। 😔 

नेहरू को अध्यक्ष बनाया गया, जो बाद में अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने वाले थे। यह 1 वोट बनाम 14 का खेल था, जहां नेहरू की जीत ने इतिहास बदल दिया। क्या यह वोट चोरी का उदाहरण नहीं? 💔

इस घटना ने साबित कर दिया कि राजनीति में कभी-कभी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा देशहित से ऊपर हो जाती है। पटेल जैसे मजबूत नेता को दरकिनार कर नेहरू को चुना जाना, कई इतिहासकारों के अनुसार एक बड़ी भूल थी। मौरिस आसद ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि अगर पटेल चुने जाते तो भारत का इतिहास अलग होता। 📖 नेहरू की जीत ने कांग्रेस को एक नया मोड़ दिया, लेकिन क्या यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अपमान नहीं था? 😡 14 वोटों की ताकत को 1 वोट ने हरा दिया, और नतीजा सबके सामने है।

आजादी के बाद नेहरू प्रधानमंत्री बने, लेकिन इसकी नींव 1946 के उस विवादास्पद चुनाव पर टिकी थी। पटेल को होम मिनिस्टर बनाया गया, लेकिन कई लोग मानते हैं कि अगर वे पीएम होते तो देश की आंतरिक सुरक्षा और एकीकरण ज्यादा मजबूत होता। 🇮🇳 नेहरू की विदेश नीति पर सवाल उठे, खासकर 1962 के युद्ध में, लेकिन यह सब उस एक वोट की जीत से शुरू हुआ। क्या हम ऐसी राजनीति को भूल सकते हैं? 🙄 वोट चोर का ताज नेहरू के सिर पर सजा, और देश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।

इस कहानी से सीख मिलती है कि सत्ता के खेल में सच्चाई अक्सर दब जाती है। सरदार पटेल जैसे 'लौह पुरुष' को नजरअंदाज कर नेहरू को चुना जाना, आज भी चर्चा का विषय है। 🏛️ 14 वोटों का समर्थन पटेल के पास था, लेकिन गांधीजी के दबाव में सब कुछ बदल गया। नतीजा नेहरू की जीत, लेकिन क्या यह न्यायपूर्ण था? 😢 राजनीति में वोटों की कीमत जानिए, और इतिहास से सबक लीजिए। यह घटना हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र में पारदर्शिता कितनी जरूरी है।

अंत में, यह तस्वीर हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या नेहरू की विरासत इस एक वोट की जीत पर टिकी हुई थी? 🤷‍♂️ 14 वोट बनाम 1 वोट, और नतीजा नेहरू की सत्ता। आज के युवा वर्ग को ऐसी कहानियां जाननी चाहिए, ताकि भविष्य में वोट चोरी जैसी घटनाएं न हों। 💪 जय हिंद! 🇮🇳

#VoteChori #Nehru #Congress #rajniti #politicalgyan

मंगलवार, 26 अगस्त 2025

धन और धर्म

*मनुष्य की चाल धन से भी बदलती*
*है और धर्म से भी बदलती है..*

*जब धन संपन्न होता है तब अकड़*
*कर चलता है, और जब धर्म संपन्न होता है,*
*तो विनम्र होकर चलता है..!!*

*जिंदगी भले छोटी देना मेरे भगवन्..*
*मगर देना ऐसी -*,
*कि सदियों तक लोगो के दिलों मे -*
*जिंदा रहूँ और हमेशा अच्छे कर्म कर सकूं..!!*

 *परिस्थितियां* 
*स्वभाव बदल देतीं हैं*
*इंसान तो कल भी वही था*
*आज भी वही है*

रविवार, 17 अगस्त 2025

हवन का महत्व



*फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमें उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः*

*आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है।जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है ।तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला।*

*गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।*

*टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।*

*हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की । क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होता है ?अथवा नही ? उन्होंने ग्रंथों में वर्णिंत हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया कि ये विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए । पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी तो एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर ९४ % कम हो गया।*

*यही नहीं उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया कि कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था। बार-बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।*

*यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र* *(resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर* *२००७ में छप चुकी है। रिपोर्ट में लिखा गया कि हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों एवं फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का भी नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है ।*

_लेख को पढ़ने के उपरांत आगे साझा अवश्य करें.......!!

*ये सामान्यजन उपयोगी है 🙏*

*सनातन, हिंदू धर्म और हिंदुत्व की सदैव ही जय*

गुरुवार, 14 अगस्त 2025

कुत्ते बेचारे कुत्ते

कुत्ते ये कुत्ते 
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कुत्ते - एनीमल राइट्स v/s ह्यूमन राइट्स 
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शीर्षक से ही मन में कुछ अजब तरह के विचार आने लगते हैं। उनका आना भी स्वाभाविक है। जब देश का सर्वोच्च न्यायालय इनको इंगित कर कोई फैसला ले और अनुपालना के लिए संबंधित सरकारों और संस्थाओं को निर्देशित करे तो कहने का हक तो बनता ही है।
     वैसे तो हर प्राणी के बच्चे बहुत ही प्यारे होते हैं, जिनसे हमारा पाला पड़ता है अर्थात जो पालतू पशुओं की श्रेणी में आते हैं। गाय, भैंस, घोड़ा, हाथी, ऊँट, बकरी, भेड़, खरगोश, बंदर यहाँ तक कि मनुष्य के भी! पक्षियों के बच्चे तो और भी प्यारे लगते हैं, जब चींचीं-चींचीं करते हैं। कुत्ते-बिल्ली के बच्चे तो बच्चों को खूब भाते हैं, विशेष कर कुत्ते के पिल्ले जिनसे वे अपना स्नेह खूब उड़ेलते हैं। इसके लिए बच्चों के माँ-बाप या तो स्ट्रीट डाॅग को गोद ले लेते हैं या फिर किसी प्रतिष्ठित कुत्ते विक्रेताओं से पिल्ले क्रय कर लेते हैं। दोनों ही स्थितियों में वह प्राणी घर का सदस्य बन जाता है। उसका लालन-पालन भी अपने बच्चे की तरह ही होता है। समय-समय पर डी-वर्मिंग, वैक्सीनेशन और फिर बीमार होने पर अच्छी प्रकार से ध्यान भी बच्चों की तरह ही दिया जाता है।
   सवाल जो उठता है या उठा है, वह स्ट्रीट के आवारा कुत्तों को लेकर है। इनकी फौज दिन पर दिन बढ़ती जा रही है और कहीं-कहीं तो आतंक का पर्याय भी बन रही है। इसी पर विस्तृत, सारगर्भित बातें इस आलेख में की जाएँगी।

 आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक-पक्ष
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असल में मनुष्य ही कुत्ते जैसा व्यवहार करने लगा है। एक दूसरे को देखते ही भोंकने लगता है, काटने लगता है! मनुष्य नहीं चाहता कि उसके अलावा और कोई इस ब्रह्माण्ड में रहे।अन्य जीव के लिए वह एक इंच भी नहीं छोड़ना चाहता, जबकि ईश्वर ने तो यह संसार सभी जीवों, चींटी से लेकर हाथी तक के लिए बनाया है।पर मनुष्य नाम का जीव सब पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता है और ऐसा करने में वह अपने सामाजिक संस्कार, सरोकारों को भी तिलांजलि दे चुका है। जब वह अपने माता-पिता तक को अपने आँगन में सहन नहीं कर सकता तो फिर अन्य जीव के बारे में सोचना तो उसके लिए असंभव-सा कार्य लगता है। गाँव में और गाँव से शहर में विस्थापित, चलो स्थापित कह देते हैं, उनके घरों में अब भी पहली रोटी गाय के लिए और अंतिम रोटी कुत्ते की निकलती ही निकलती है, ऐसा करने के पीछे उनकी परोपकार की भावना छिपी रहती है। हमारे बाबा जी के अनुसार ये तो बे झोली के फकीर हैं, इनका ध्यान रखना हम सब मनुष्यों का कर्तव्य है। भूख में प्राणी खूँखार हो ही जाता है, तब वह जीविका के लिए अन्य साधन खोजता है। आपने देखा होगा, जब से घरों में जाली वाले डोर लगे हैं, बिल्लियों ने , दूध-दही,चूहों के विकल्प तलाश लिए हैं।अब वे छत पर जाती हैं और एक कबूतर कुटक लेती हैं और फिर पूरे दिन मस्त हो सोती हैं! 
      कुत्ते के वफादारी के किस्से भी खूब समाज में विद्यमान हैं। प्रशिक्षित कुत्ते सेना और पुलिस के अभियान में विशेष भूमिका निभाते हैं। इसमें इनकी सूँघने की शक्ति काम आती है। हमारे मित्र की बेटी स्नान घर में लगे गैस गीजर से निकली गैस से दम घुटने से बेहोश हो गई।इसकी सूचना बार-बार भोंक कर उनकी पत्नी को देकर दरवाजा तोड़ कर जान बचाई गई। चोरों से सावधान करने के तो अनेक किस्से हैं। हमारे बाबा हमें बंजारे के बिना सोचे-समझे कुत्ते को मौत के घाट उतार कर पछताने का किस्सा खूब सुनाते थे। मुहावरे कुत्तों को लेकर खूब बने हैं। "कुत्ते की मौत मरेगा" एक प्रसिद्ध मुहावरा है।  फिल्मी डायलॉग भी - "कुत्ते-कमीने मैं तेरा खून पी जाऊँगा।" कुत्ते के आगे रोटी का टुकड़ा फे़कने पर और कुत्ते के पूँछ हिलाने को भी व्यंग्यात्मक रूप से लिया जाता है। अब तो हाॅट-डाॅग बाजारी फूड (जंक फूड) में शुमार हो चुका है। नाम में क्या रखा है, पर नाम में ही सबकुछ छुपा है!
कुत्ता एक भावुक प्राणी है। यह रिश्ते निभाना जानता है।अपनी जान देकर यह रिश्ता निभाता है।पांडवों के स्वर्गारोहण के साथ कुत्ते का भी जिक्र आता है। काले कुत्ते को काल भैरव का वाहन माना जाता है।
 
   
वैज्ञानिक-पक्ष
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स्ट्रीट डाॅग का एंटी रैबीज का वैक्सीनेशन तो होता नहीं है। पागलपन (रैबीज) से ग्रस्त कुत्ते काटने का कुकर्म भी कर लेते हैं, यह उनके स्वभाव के विपरीत है, पर एस मानसिक रोग में उनका स्वयं पर भी नियंत्रण नहीं होता! अब स्थानीय निकायों पर एक ही विकल्प कि वे इनकी नशबंदी करा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं ताकि इनकी जनसंख्या पर लगाम लगे। 
हाँ, एक बात तो आवश्यक है कि जो कुत्ते पालतू हैं, उनका प्रतिष्ठित पशु चिकित्सक से एंटी रैबीज वैक्सीनेशन करा के रक्खें। बच्चों को पालतू कुत्तों से भी दूर रक्खें। कुछ ब्रीड के कुत्ते कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो जाते हैं। ऐसी अनेकों घटनाएँ हम देख ही चुके हैं।

सांख्यिकीय-पक्ष
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अकेले दिल्ली में दस लाख कुत्ते हैं। बाइट के अड़सठ हजार केस 2024 में और छब्बीस हजार इस साल में। सैंतीस लाख केस पूरे देश में 2024 में और इसी साल में 54 मौत रैबीज के कारण पूरे देश में हुईं। देश में मणिपुर और विश्व में नीदरलैंड में आवारा कुत्ते नहीं हैं।

न्यायिक-पक्ष
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अब इस समस्या पर सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने सख्त रुख अपनाते हुए आदेश पारित किए हैं कि दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्ते 8 हफ्तों में सड़कों से हटाएँ। स्ट्रीट डाॅग्स के लिए दिल्ली में विशेष सैल्टर होम बनाए जाएँ। कोर्ट ने इस काम में बाधा डालने वालों व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी। कोर्ट ने कहा, कोई व्यक्ति या संगठन बाधा बना तो अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है । मासूम बच्चों को किसी भी कीमत पर रैबीज का शिकार नहीं होना चाहिए।खुशी को ऐसे ही नहीं छीना जा सकता। लोग निर्भीक होकर घूम फिर सकते हैं बिना किसी खौफ के। कोई व्यक्ति या संगठन इसमें अवरोध पैदा करेगा, इस आदेश की अवमानना मान कर स्वतत: संज्ञान लेकर दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी।
    कोर्ट ने कहा कि 6-8 सप्ताह में 5000कुत्तों के लिए शैल्टर होम बनाए जाएँ और 8 सप्ताह में इसकी रिपोर्ट दें। कोई कुत्ता बाहर न जाए, इसकी निगरानी सीसीटीवी से की जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि नसबंदी कर वहीं छोड़ना बेतुका है।
    
       निश्चित ही इस समस्या से छुटकारा मिल जाएगा, यह विश्वास कर सकते हैं क्योंकि अब सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या के निदान का वीणा उठाया है। अब कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए सरकार, स्थानीय निकाय व संबंधित विभागों को संगठित होकर,कटिबद्ध होकर जुटना होगा।

सरकार का पक्ष 
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केंद्र सरकार ने आवारा कुत्तों के काटने की घटनाएँ बढ़ने और लावारिस पशुओं द्वारा नुकसान पहुँचाने की घटनाओं पर चिंता जताई है। संबंधित विभिन्न मंत्रालयों ने ऐसे पशुओं पर नियंत्रण के लिए मास्टर एक्सन प्लान बनाया है।

पशु-प्रेमियों का पक्ष
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पेटा इंडिया 
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कुत्तों को जेल में डालना कभी कारगर नहीं रहा। इससे रैबीज कम नहीं होगा, नहीं काटने से बचाव होगा, क्यों कि कुत्ते अंततः अपने इलाकों में लौट आते हैं।
कुत्तों को उनके आसपास से हटाना अमानवीय, असंवैधानिक है। कुत्ता एक टैरीटोरियल एनीमल है, विस्थापित होने पर भुखमरी, कुपोषण की समस्या पैदा होगी जिनकी परिणिति में डाॉग-बाइट और रैबीज के केस और बढ़ेंगे।

मेनका गांधी 
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गुस्से में दिया अजीब फैसला है। दिल्ली में एक भी शेल्टर होम नहीं है। इन्हें बनाने में 15 हजार करोड़ खर्च करने होंगे।3000 ऐसी जगहें ढूँढ़नी होंगी जहाँ कोई नहीं रहता।

कुत्तों को हटाने का निर्णय क्रूर निर्णय है । समाधान ज़रूर हो लेकिन इस तरह नहीं । पहले उनके रहने का ठिकाना खोजा जाना था । उनकी नसबंदी होनी थी । उनका टीकाकरण होना था । कुुत्तों को शहर से गायब कर देना ये अमेरिका के पदचिन्हो पर चलने वाला काम है । 
एस सी ने बिना सोच-विचार के फैसला लिया।

संध्या सिंह 
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 इन्सान की बढ़ती जनसंख्या सबको खा जायेगी । मुझे तो लगता है, इन्सान और जानवर सबकी संख्या सुनियोजित तरीके से कम होनी चाहिये । चिड़िया, तोते से ले कर शेर तक नहीं बचे । सबसे बड़ा भू माफ़िया इन्सान है और दुख की बात ये है कि इन्सान के खिलााफ़ कोई नियम नहीं । जानवरों के पक्ष में कोई कानून नहीं । जो हैं भी वो सब छद्म साबित हो रहे हैं । 

एक बात और ग़ौर तलब है, ये रील बना-बना कर कमाई करने वाले डॉग लवर्स के बाद आखिर क्यों कुत्तों के व्यवहार में परिवर्तन आया ?  पहले कुत्ते इतने आक्रामक नहीं थे । अब कुत्ते भी आक्रामक और डॉग लवर्स भी आक्रामक । 

मेरे विचार से डॉग लवर्स बोरे भर भर खाना सड़क पर डालने के बजाय इनकी संख्या और इनकी नसबंदी पर फोकस करें । इन्हें गोद लेने के लिये पब्लिक को मोटीवेट करिए । 

मेरे घर में 13 साल के हैल्दी जब्बो को देख कर मेरे कई मित्रों ने पप्पी गोद लिये ।

मेरे ख्याल से कुत्तों को हटाने के निर्णय के खिलाफ अपील होनी चाहिये । और कुत्तों के इंतज़ाम के लिये कोर्ट को थोड़ा समय देना चाहिये । ये बहुत भावुक प्राणी है । इनके बदलते व्यवहार के कारण पता करने चाहिये और उन्हें दूर करना चाहिये । 

आदेश पर संतुलित प्रतिक्रिया 
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राष्ट्र किंकर
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मुख्य रोड पर रहने के कारण कुत्तों के आतंक से परिचित हूं। ये कुत्ते राह निकलते लोगों पर झपटते हैं। अचानक कुत्ता झपटने से दोपहिया वाहन असंतुलित होकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है। बच्चे और बूढ़े इन कुत्तो के कारण चोटिल भी होते हैं।  कुत्तों के काटने से होने वाले रेबीज जैसी असाध्य रोग के दुष्प्रभाव को एक निकट मित्र के अनुभव से देखा जाना है जिसका इलाज केवल मृत्यु है ।
दूसरों को कोर्ट का आदेश मानने की नसीहत देने वालों को सड़कों से आवारा कुत्ते हटाने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को नाकारा बनाने के लिए सक्रिय देखकर कष्ट होता है। इनके मन में कुत्तों के प्रति 'मानवता' उमड़ रही है लेकिन इन कुत्तों ने जिन मानवों को काटा है उनके लिए इन्होंने क्या किया या क्या करेंगे, वे इस पर मौन है। आखिर पशु आवारा होने ही क्यों चाहिए? स्वयंभू पशु प्रेमियों को अपने घर में कुत्ते पालने से कौन रोकता है? लेकिन सड़क या गली में कुत्तों को दूध मांस आदि परोसने का अधिकार उन्हें किसने दिया? 
माना कि कुत्ता वफादार होता है लेकिन उसका जो उसे पलता है। जिसे वफादारी चाहिए वह नियमानुसार कुत्ते पाले लेकिन अपने परिसर में। कुत्तों के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद करने वाले क्या मानवीय सुरक्षा को कमतर मानते हैं? सड़क पर कुत्तों को भोजन और दूध आदि प्रस्तुत कर स्वयं को सगर्व जीव प्रेमी बताने वालों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए।

राहुल गांधी 
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ये बेजुबान आत्माएँ हैं, कोई समस्या नहीं! जन कल्याण के साथ-साथ  पशु कल्याण की बातें जरूरी हैं। बिना क्रूरता के भी सड़कों को सुरक्षित रख सकते हैं। मानवीय समाधान चाहिए।

प्रियंका गांधी 
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इससे बेहतर और उदारता से निबटना चाहिए।

वरुण गांधी 
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यह आदेश उन पर लागू है जो अपनी सुरक्षा नहीं कर सकते।

जाॅन अब्राहम 
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ये आवारा नहीं, सामुदायिक कुत्ते हैं। पत्र लिखकर फैसले की समीक्षा की गुहार लगाई।

जाह्नवी कपूर 
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आदेश कैद जैसा।

व्यंग्यात्मक-टिप्पणियाँ
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1-आवारा कुकुर....
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भईया मुद्दा भावनात्मक नहीं.... मामला अब उससे ज्यादा है 
में बीहड़ में जिया हूँ.... यहीं बचपन गुजरा...
कुत्ते या अन्य जीव छोड़िये साँप छिपकली भी मारे जाने या उनके परिवेश से छेड़छाड़ के सख्त खिलाफ़ हूँ 
बहुत प्यार है वन्य जीवन से....

और चुंकि प्यार है..... उसे जानता हूँ 
इस लिए कहता हूँ ये सड़कों के कुत्ते गंभीर आने वाला संकट है भारत में...

कुत्ते सबसे सफल शिकारी हैं 90% से ऊपर का सफलता का औसत है इनका...शेर का 4% होता है .. ये अगर तय कर लेते हैं... जान लेते हैं 
हाँ कुत्ता मानव का सबसे पुराना साथी है.... पर फ़र्क़ समझें.... 5 लोगों के बीच 1 कुत्ता दोस्त है...
लेकिन 50 कुत्तों के बीच एक मानव....... सिर्फ भोजन 

जैसे ही इनका 5-10 का झुण्ड बनता है मूलवृति जाग जाती है.... ये अपना लीडर चुनते हैं और उसे फ़ॉलो करते हैं...... और फिर भोजन और मादाओं की संख्या का संघर्ष.... आगे झुण्ड को तेजी से बढ़ाना....
और फिर भोजन के इलाके में वर्चस्व.....
बस यहाँ आप और वे आमने सामने होते हैं....

और इस आमने सामने में हद 10 साल लगेंगे......
आज वो बुजुर्ग बच्चों पर छुट पुट हमले कर रहे हैं 
ये तुम्हारे घर में घुस कर जान लेंगे बस थोड़ा इंतज़ार करो 
सारा प्रेम तिरोहित हो जाएगा-----

मुझे उनसे न घृणा है.... न बैर 
पर में जानता हूँ हमें इन्हे अंततः मारना ही होगा.....
ऑस्ट्रेलिया के खरगोश जैसा व्यापक अभियान चला 
खोज के पढ़ लो सिर्फ एक खरगोश लवर के 7 खरगोश ने क्या दुर्गत की थी ऑस्ट्रेलिया की जो अब भी जारी है 

तो भावनाओं को डालो सही जगह और समस्या को समझो!
सुरेन्द्र विक्रम सिंह 

2- कुलीन कुत्ते और आवारा कुत्ते
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सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से कुत्ता कुल या कुल कुत्ते सदमे मे है। कुछ विद्रोही मुद्रा मे न्याय व्यवस्था को कोस रहे है। कुत्ते मे भी आवारा और संभ्रान्त।  न्याय व्यवस्था गरीबो एवं कमजोरो के टोटल खिलाफ है। कुछ कह रहे है आतंकवादी,और बांग्लादेशी तो निकाल नही पाते सारी समस्या हमी है।
हम कुत्तो ने आखिर क्या बिगाडा है किसी का । सर्प दंश से तो मौत तक हो जाती है फिर भी ऐसा भयानक निर्णय उनके भी खिलाफ नही आया।
हमारी ही बिरादरी के कुछ शहरी कुत्ते भाई भोजन, भ्रमण एवं मार्ग उत्सर्जन  संरक्षण स्वाभिमान के साथ कर रहे है। अफसर पत्नियो के वे अत्यन्त प्रिय पात्र है। घूस उनके रखरखाव के लिए  आवश्यक है। समाज मे भ्रष्टाचार बढाने मे परोक्ष सहायता कर रहे है। लेकिन  उनकी ओर किसी की दृष्टि नही जाती। वर्गवाद का शिकार  हम लोग हो गए है। भूखे रहकर भी हम सुरक्षा मे रहते है फिर भी ये नाइंसाफी। 
काश! हमारे भी वोट होते। तो हमारा भी PDA पालतू  डाग एवं आवारा संगठन देश मे हमारे हक की लड़ाई  लड़ाई।  लेकिन लोकतंत्र मे हम वैसे ही है जैसे और तमाम गरीब, बेसहारा।
कालोनियो की आठ मे छुपा काल गाय, गिद्ध , बंदर, शेर,चीता, सबको नेवादा बना रहा है आहिस्ता-आहिस्ता।
फिल हाल सरकारी और अमीरो द्वारा संरक्षित कुत्ता कल्चर  बचा रहे यही विस्थापित कुत्ते समाज की आखिरी ख्वाहिश है। जब हम धर्मराज के साथ चले गए थे तो हमे दिल्ली वापस नही आना था।
 बिन मारे मर जाएगा, सारा श्वान समाज 
 निर्भय होकर कीजिए अब दिल्ली पर राज।
संजय मिश्र

राजनैतिक-पक्ष 
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कुकुर के लिए मेनका गाँधी को तकलीफ होती है। राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा भी परेशान हैं। उनका पशु प्रेम उमड़ पड़ा है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का विरोध कर रहे हैं। दिल्ली सहित भारत की सड़कों पर आने जाने वाली आम जनता और उनके बच्चों के प्रति उनकी संवेदना शून्य है। जो करोर्डों लोग देश भर के गली मोहल्लों, कालोनियों में रहते हैं उनके, उनके परिजनों और बच्चों से वोट तो चाहिए। उनको आवारा कुत्ते काटें, वे लोग रेबीज से मरें इनको कोई मतलब नहीं। 

प्राणियों के प्रति इनकी, इनके समर्थकों की, साथ ही तमाम पशु प्रेमियों की करुणा जाग उठती है कि क्योंकि ये बेजुबान हैं। वैसे जो भेड़, बकरियाँ हैं, मुर्गे, मुर्गी हैं। सुअर हैं। गाय, बैल, साँड़ हैं। नील गाय, बंदर सहित तमाम प्राणी हैं जिनमें से कुछ को रोज काटा जाता है, मारा जाता है। पकड़ कर इधर से उधर कर दिया जाता है वे सब इनको जुबानदार दिखते हैं।

यदि इन लोगों को कुत्तों से इतना ही प्रेम है तो अपने करोड़ों करोड़ की संपत्ति से कुछ शेल्टर होम बनवा दें। खुद आम आदमी की तरह परिवार के साथ बड़े सुरक्षित बंगलों को त्याग कर गली मोहल्लों में रहना शुरू करें। आम आदमी की तरह सड़कों पर पैदल, साइकल, ऑटो, स्कूटी, मोटर साइकिल आदि आदि साधनों पर चलें। आम भारतवासी का भय, तकलीफ समझ आने लगेगी। 

इन लोंगों के कुत्तों के प्रति इतने प्रेम का एक कारण इलीट क्लास के वे डॉग ब्रीडर भी हैं जो तथा कथित हाई सोसाइटी में अपने कुत्तों को बेचेते हैं, प्रदर्शित करते हैं । अगर आम आदमी की जान की कीमत कुत्तों से अधिक लगती है तो अपने चुनाव घोषणा पत्र और नीतियों में लिखें, " कुत्ते पहले आम जनता बाद में "। " बेजुबान प्राणी भारत में सिर्फ कुत्ते हैं "। हाँ अपने बड़े बड़े बंगलों के लॅान में कुत्ते रख लें और अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए भी इसे अनिवार्य एक शर्त बना दें। 

हम तो भारत के विभिन्न शहरों में रहे हैं । शहर में रात को घर लौटते हैं तो चार किलोमीटर के मार्ग में 150 से अधिक कुत्तों से बच कर चलने का युद्द जीवन का हिस्सा बन गया है। यह हमारे जैसे हजारों लाखों देश वासियों की पीड़ा है। कुत्ते के अधिकारों को लड़ने वालों को इस से क्या लेना देना। एक सुझाव है कुत्ते के लिए लड़ने वालों के लिए। एक पार्टी बना लें। कुत्ते पार्टी" जो कुत्ते जितना अधिक आम आदमी को काटे उसे टिकट देकर विभिन्न सदनों का सदस्य बनवा दें।
      (साभार ... श्री निशीथ जोशी)

कवि भी पीछे क्यों रहें 
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बस यों ही....

एकजुट हो रहे हैं, देश के समस्त श्वान
श्वान का भी स्वाभिमान, उसको बचाइए।
रोड से निकाला गया, बन्धनों में डाला गया
श्वान को भी योजना में, गेह दिलवाइये।
आदमी ही आदमी को, वोट करता रहा है
श्वान जी को श्वान से भी, वोट दिलवाइये।
बढ़ रहे श्वान पर, आदमी के अत्याचार
एक श्वान अधिकार, बोर्ड बनवाइये।।

(राहुल द्विवेदी 'स्मित')

( समाचार और कुछ सामग्री दैनिक भास्कर दिनांक: 12अगस्त,2025 से साभार और बहुत-कुछ संदर्भित व्यक्ति की पोस्ट से)

लेखक/संयोजक/संपादक 

डा आर पी सारस्वत
सहारनपुर
9557828950

बुधवार, 13 अगस्त 2025

सत्ता में आने की छटपटाहत

*"वोट चोरी" का प्रोपगंडा  खड़ा करके अमेरिकी कठपुतलियों को स्थापित करने के लिए एक हथियार के रूप में किया जाता है।* 
कुछ हालिया उदाहरण:

जॉर्जिया (2003): #वोटचोरी के आरोपों के कारण रोज़ क्रांति हुई। अमेरिका समर्थक सरकार सत्ता में आई।

यूक्रेन (2014): #वोटचोरी के आरोपों के कारण यानुकोविच को हटाया गया। अमेरिका समर्थक सरकार सत्ता में आई।

किर्गिस्तान (2005): #वोटचोरी के आरोपों के कारण अकायेव को हटाया गया। अमेरिका समर्थक सरकार सत्ता में आई।

पाकिस्तान (2022): #वोटचोरी के आरोपों के कारण इमरान खान को हटाया गया। अमेरिका समर्थक मुनीर सरकार सत्ता में आई।

बांग्लादेश (2024): #वोटचोरी के आरोपों के कारण शेख हसीना सरकार को हटाया गया। अमेरिका समर्थक सरकार सत्ता में आई।

भारत (2025): #वोटचोरी के आरोपों को कांग्रेस पार्टी और रवीश, बनर्जी और ध्रुव राठी जैसे यूट्यूबर्स जैसे डीप स्टेट एजेंटों का इस्तेमाल करके फैलाया जा रहा है। हिंसक विरोध प्रदर्शनों की योजना बनाई जा रही है। क्या अमेरिका भारत को गुलाम बनाएगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

रविवार, 10 अगस्त 2025

गोडसे बनाम गाँधी

आखिर क्या कारण है जो कुछ लोग गोडसे को हीरो और गाँधी को विलेन मानते है कुछ तथ्य पेश है-
अगर रोना चाहे तो बिलकुल पढे :-
क्या थी विभाजन की पीड़ा ?
विभाजन के समय हुआ क्या क्या ?
विभाजन के लिए क्या था विभिन्न राजनैतिक पार्टियों दृष्टिकोण ?
क्या थी पीड़ा पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थियों की … मदन लाल पाहवा और विष्णु करकरे की?
क्या थी गोडसे की विवशता ?
क्या गोडसे नही जानते थे की आम आदमी को मरने में और एक राष्ट्रपिता को मरने में क्या अंतर है ?
क्या होगा परिवार का ?
कैसे कैसे कष्ट सहने पड़ेंगे परिवार और सम्बन्धियों को और मित्रों को ?
क्या था गांधी वध का वास्तविक कारण ?
क्या हुआ 30 जनवरी की रात्री को … पुणे के ब्राह्मणों के साथ ?
क्या था सावरकर और हिन्दू महासभा का चिन्तन ?
क्या हुआ गोडसे के बाद नारायण राव आप्टे का .. कैसी नृशंस फांसी दी गयी उन्हें l
यह लेख पढने के बाद कृपया बताएं कैसे उतारेगा भारतीय जनमानस हुतात्मा नाथूराम गोडसे जी का कर्ज….
आइये इन सब सवालों के उत्तर खोजें ….
पाकिस्तान से दिल्ली की तरफ जो रेलगाड़िया आ रही थी, उनमे हिन्दू इस प्रकार बैठे थे जैसे माल की बोरिया एक के ऊपर एक रची जाती हैं.अन्दर ज्यादातर मरे हुए ही थे, गला कटे हुए lरेलगाड़ी के छप्पर पर बहुत से लोग बैठे हुए थे, डिब्बों के अन्दर सिर्फ सांस लेने भर की जगह बाकी थी l बैलगाड़िया ट्रक्स हिन्दुओं से भरे हुए थे, रेलगाड़ियों पर लिखा हुआ था,,” आज़ादी का तोहफा ” रेलगाड़ी में जो लाशें भरी हुई
थी उनकी हालत कुछ ऐसी थी की उनको उठाना मुश्किल था, दिल्ली पुलिस को फावड़ें में उन लाशों को भरकर उठाना पड़ा l ट्रक में भरकर किसी निर्जन स्थान पर ले जाकर, उन पर पेट्रोल के फवारे मारकर उन लाशों को जलाना पड़ा इतनी विकट हालत थी उन मृतदेहों की… भयानक बदबू……
सियालकोट से खबरे आ रही थी की वहां से हिन्दुओं को निकाला जा रहा हैं, उनके घर, उनकी खेती, पैसा-अडका, सोना-चाँदी, बर्तन सब मुसलमानों ने अपने कब्जे में ले लिए थे l मुस्लिम लीग ने सिवाय कपड़ों के कुछ भी ले जाने पर रोक लगा दी थी. किसी भी गाडी पर हमला करके हाथ को लगे उतनी महिलाओं- बच्चियों को भगाया गया.बलात्कार किये बिना एक भी हिन्दू स्त्री वहां से वापस नहीं आ सकती थी … बलात्कार किये बिना…..?
जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आई वो अपनी वैद्यकीय जांच करवाने से डर रही थी….
डॉक्टर ने पूछा क्यों ???
उन महिलाओं ने जवाब दिया… हम आपको क्या बताये हमें क्या हुआ हैं ?
हमपर कितने लोगों ने बलात्कार किये हैं हमें भी पता नहीं हैं…उनके सारे शारीर पर चाकुओं के घाव थे.
“आज़ादी का तोहफा”
जिन स्थानों से लोगों ने जाने से मना कर दिया, उन स्थानों पर हिन्दू स्त्रियों की नग्न यात्राएं (धिंड) निकाली गयीं, बाज़ार सजाकर उनकी बोलियाँ लगायी गयीं और उनको दासियों की तरह खरीदा बेचा गया l
1947 के बाद दिल्ली में 400000 हिन्दू निर्वासित आये, और इन हिन्दुओं को जिस हाल में यहाँ आना पड़ा था, उसके बावजूद पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने ही चाहिए ऐसा महात्मा गाँधी जी का आग्रह था…क्योकि एक तिहाई भारत के तुकडे हुए हैं तो भारत के खजाने का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान को मिलना चाहिए था l
विधि मंडल ने विरोध किया, पैसा नहीं देगे….और फिर बिरला भवन के पटांगन में महात्मा जी अनशन पर बैठ गए…..पैसे दो, नहीं तो मैं मर जाउगा….एक तरफ अपने मुहँ से ये कहने वाले महात्मा जी, की हिंसा उनको पसंद नहीं हैं l दूसरी तरफ जो हिंसा कर रहे थे उनके लिए अनशन पर बैठ गए… क्या यह हिंसा नहीं थी .. अहिंसक आतंकवाद की आड़ में
दिल्ली में हिन्दू निर्वासितों के रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी, इससे ज्यादा बुरी बात ये थी की दिल्ली में खाली पड़ी मस्जिदों में हिन्दुओं ने शरण ली तब बिरला भवन से महात्मा जी ने भाषण में कहा की दिल्ली पुलिस को मेरा आदेश हैं मस्जिद जैसी चीजों पर हिन्दुओं का कोई ताबा नहीं रहना चाहिए l निर्वासितों को बाहर निकालकर मस्जिदे खाली करे..क्योंकि महात्मा जी की दृष्टी में जान सिर्फ मुसलमानों में थी हिन्दुओं में नहीं…
जनवरी की कडकडाती ठंडी में हिन्दू महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों को हाथ पकड़कर पुलिस ने मस्जिद के बाहर निकाला, गटर के किनारे रहो लेकिन छत के निचे नहीं l क्योकि… तुम हिन्दू हो….
4000000 हिन्दू भारत में आये थे,ये सोचकर की ये भारत हमारा हैं….ये सब निर्वासित गांधीजी से मिलाने बिरला भवन जाते थे तब गांधीजी माइक पर से कहते थे क्यों आये यहाँ अपने घर जायदाद बेचकर, वहीँ पर अहिंसात्मक प्रतिकार करके क्यों नहीं रहे ??
यही अपराध हुआ तुमसे अभी भी वही वापस जाओ..और ये महात्मा किस आशा पर पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने निकले थे ?
कैसा होगा वो मोहनदास करमचन्द गाजी उर्फ़ गंधासुर … कितना महान … जिसने बिना तलवार उठाये … 35 लाख हिन्दुओं का नरसंहार करवाया
2 करोड़ से ज्यादा हिन्दुओं का इस्लाम में धर्मांतरण हुआऔर उसके बाद यह संख्या 10 करोड़ भी पहुंची l
10 लाख से ज्यादा हिन्दू नारियों को खरीदा बेचा गया l
20 लाख से ज्यादा हिन्दू नारियों को जबरन मुस्लिम बना कर अपने घरों में रखा गया, तरह तरह की शारीरिक और मानसिक यातनाओं के बाद
ऐसे बहुत से प्रश्न, वास्तविकताएं और सत्य तथा तथ्य हैं जो की 1947 के समकालीन लोगों ने अपनी आने वाली पीढ़ियों से छुपाये, हिन्दू कहते हैं की जो हो गया उसे भूल जाओ, नए कल की शुरुआत करो …
परन्तु इस्लाम के लिए तो कोई कल नहीं .. कोई आज नहीं …वहां तो दार-उल-हर्ब को दार-उल-इस्लाम में बदलने का ही लक्ष्य है पल.. प्रति पल
विभाजन के बाद एक और विभाजन का षड्यंत्र …
आपने बहुत से देशों में से नए देशों का निर्माण देखा होगा, U S S R टूटने के बाद बहुत से नए देश बने, जैसे ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान आदि … परन्तु यह सब देश जो बने वो एक परिभाषित अविभाजित सीमा के अंदर बने l
और जब भारत का विभाजन हुआ .. तो क्या कारण थे की पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान बनाए गए… क्यों नही एक ही पाकिस्तान बनाया गया… या तो पश्चिम में बना लेते या फिर पूर्व में l
परन्तु ऐसा नही हुआ …. यहाँ पर उल्लेखनीय है की मोहनदास करमचन्द ने तो यहाँ तक कहा था की पूरा पंजाब पाकिस्तान में जाना चाहिए, बहुत कम लोगों को ज्ञात है की 1947 के समय में पंजाब की सीमा दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र तक होती थी … यानी की पाकिस्तान का बोर्डर दिल्ली के साथ होना तय था … मोहनदास करमचन्द गाँधी के अनुसार l
नवम्बर 1968 में पंजाब में से दो नये राज्यों का उदय हुआ .. हिमाचल प्रदेश और हरियाणा l
पाकिस्तान जैसा मुस्लिम राष्ट्र पाने के बाद भी जिन्ना और मुस्लिम लीग चैन से नहीं बैठे …
उन्होंने फिर से मांग की … की हमको पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं l
1. पानी के रास्ते बहुत लम्बा सफर हो जाता है क्योंकि श्री लंका के रस्ते से घूम कर जाना पड़ता है l
2. और हवाई जहाज से यात्राएं करने में अभी पाकिस्तान के मुसलमान सक्षम नही हैं l इसलिए …. कुछ मांगें रखी गयीं 1. इसलिए हमको भारत के बीचो बीच एक Corridor बना कर दिया जाए….
2. जो लाहोर से ढाका तक जाता हो … (NH – 1)
3. जो दिल्ली के पास से जाता हो …
4. जिसकी चौड़ाई कम से कम 10 मील की हो … (10 Miles = 16 KM)
5. इस पूरे Corridor में केवल मुस्लिम लोग ही रहेंगे l
30 जनवरी को गांधी वध यदि न होता, तो तत्कालीन परिस्थितियों में बच्चा बच्चा यह जानता था की यदि मोहनदास करमचन्द 3 फरवरी, 1948 को पाकिस्तान पहुँच गया तो इस मांग को भी …मान लिया जायेगा
तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार तो मोहनदास करमचन्द किसी की बात सुनने की स्थिति में था न ही समझने में …और समय भी नहीं था जिसके कारण हुतात्मा नाथूराम गोडसे जी को गांधी वध जैसा अत्यधिक साहसी और शौर्यतापूर्ण निर्णय लेना पडा l
हुतात्मा का अर्थ होता है जिस आत्मा ने अपने प्राणों की आहुति दी हो …. जिसको की वीरगति को प्राप्त होना भी कहा जाता है l
यहाँ यह सार्थक चर्चा का विषय होना चाहिए की हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे जीने क्या एक बार भी नहीं सोचा होगा की वो क्या करने जा रहे हैं ?
किसके लिए ये सब कुछ कर रहे हैं ?
उनके इस निर्णय से उनके घर, परिवार, सम्बन्धियों, उनकी जाती और उनसे जुड़े संगठनो पर क्या असर पड़ेगा ?
घर परिवार का तो जो हुआ सो हुआ …. जाने कितने जघन्य प्रकारों से समस्त परिवार और सम्बन्धियों को प्रताड़ित किया गया l
परन्तु ….. अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले मोहनदास करमचन्द के कुछ अहिंसक आतंकवादियों ने 30 जनवरी, 1948 की रात को ही पुणे में 6000 ब्राह्मणों को चुन चुन कर घर से निकाल निकाल कर जिन्दा जलाया l
10000 से ज्यादा ब्राह्मणों के घर और दुकानें जलाए गए l
सोचने का विषय यह है की उस समय संचार माध्यम इतने उच्च कोटि के नहीं थे, विकसित नही थे … फिर कैसे 3 घंटे के अंदर अंदर इतना सुनियोजित तरीके से इतना बड़ा नरसंहार कर दिया गया ….
सवाल उठता है की … क्या उन अहिंसक आतंकवादियों को पहले से यह ज्ञात था की गांधी वध होने वाला है ?
जस्टिस खोसला जिन्होंने गांधी वध से सम्बन्धित केस की पूरी सुनवाई की… 35 तारीखें पडीं l
अदालत ने निरीक्षण करवाया और पाया हुतात्मा पनदिर नाथूराम गोडसे जी की मानसिक दशा को तत्कालीन चिकित्सकों ने एक दम सामान्य घोषित किया l पंडित जी ने अपना अपराध स्वीकार किया पहली ही सुनवाई में और अगली 34 सुनवाइयों में कुछ नहीं बोले … सबसे आखिरी सुनवाई में पंडित जी ने अपने शब्द कहे “”
गाँधी वध के समय न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर सुनाने की अनुमति मांगी थी और उसे यह अनुमति मिली थी | नाथूराम गोडसे का यह न्यायालयीन वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था |इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध नाथूराम गोडसे के भाई तथा गाँधी वध के सह अभियुक्त गोपाल गोडसे ने ६० वर्षों तक वैधानिक लडाई लड़ी और उसके फलस्वरूप सर्वोच्च न्यायलय ने इस प्रतिबन्ध को हटा लिया तथा उस वक्तव्य के प्रकाशन की अनुमति दे दी।
नाथूराम गोडसे ने न्यायलय के समक्ष गाँधी वध के जो १५० कारण बताये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियोंको आतंकवादी कहा जाता है।
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।
14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक देशभक्त सच्चे भारतीय युवक ने गान्धी का वध कर दिया।
न्य़यालय में चले अभियोग के परिणामस्वरूप गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर उस अभियोग के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा-
“नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थींऔर उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।”
तो भी नथूराम ने भारतीय न्यायव्यवस्था के अनुसार एक व्यक्ति की हत्या के अपराध का दण्ड मृत्युदण्ड के रूप में सहज ही स्वीकार किया। परन्तु भारतमाता के विरुद्ध जो अपराध गान्धी ने किए, उनका दण्ड भारतमाता व उसकी सन्तानों को भुगतना पड़ रहा है। यह स्थिति कब बदलेगी?
प्रश्न यह भी उठता है की पंडित नाथूराम गोडसे जी ने तो गाँधी वध किया उन्हें पैशाचिक कानूनों के द्वारा मृत्यु दंड दिया गया परन्तु नाना जी आप्टे ने तो गोली नहीं मारी थी … उन्हें क्यों मृत्युदंड दिया गया ?
नाथूराम गोडसे को सह अभियुक्त नाना आप्टे के साथ १५ नवम्बर १९४९ को पंजाब के अम्बाला की जेल में मृत्यु दंड दे दिया गया। उन्होंने अपने अंतिम शब्दों में कहा था…
यदि अपने देश के प्रति भक्तिभाव रखना कोई पाप है तो मैंने वो पाप किया है और यदि यह पुन्य हिया तो उसके द्वारा अर्जित पुन्य पद पर मैं अपना नम्र अधिकार व्यक्त करता हूँ
– नाथूराम गोडसे
2014 की पोस्ट

गुरुवार, 7 अगस्त 2025

सांड क्यों बैल बना

#बधियाकरण_से_बचो ।।

पता है सांड को बैल क्यूँ बनाया जाता है ?

कितना भी बलिष्ठ बैल हो वह एक दुर्बल से दुर्बल सांड से भी लड़ने का दुस्साहस कभी नहीं करता क्योंकि बैल में मर्दानगी शून्य होती है।

गाय का जो बछड़ा होता है वो आगे चलकर सांड (Bull) बनता है। सांड को अपनी शक्ति का अनुमान होता है।
वैसे तो सामान्यतः सांड शांत होता है किंतु चिढ़ने पर भयंकर हो जाता है। सांड सरलता से वश में भी नहीं होता और इसी कारण उसके द्वारा हल से खेत नहीं जोता जा सकता।

उसे काटना भी आसान नहीं, हिंसक प्रतिकार करता है किंतु उसको बधिया कर बैल बनाया जाता है तो वो नपुंसक हो जाता है। सामर्थ्य तो रहता है किंतु सरलता से वश में आ जाता है। हल गाड़ी, माल ढोने, कोल्हू से तेल निकालने आदि कई काम में आता है। कहावत भी है - कोल्हू का बैल, सुना ही होगा आपने किंतु कोल्हू का सांड सुना है कभी ?

इसी तरह एक समाज को सांड से बैल में परिवर्तित का सब से उचित तरीका है कि उसको बदनाम करते रहो।
उस की सहनशीलता के मापदंड आप बनाओ और अपनी इच्छानुसार उन्हें बदलते रहो। बदनामी की इतनी मार मारो कि आपको देखते ही वो गर्दन झुकाकर स्वयं ही जुआ रखवाना स्वीकार कर ले।

सांड को बैल वही बनाते हैं, जो उसे जब तक चाहें जोतते हैं और उसकी मेहनत का स्वयं खाते हैं और अंत में उसे भी काटकर अपना हित साधते हैं।

हे हिन्दुओं! अब कोल्हू का बैल बनना बंद करो।

 सामर्थ्यवान बनो। वीर बनो। योद्धा की भाँति जीना सीखो।💪

हर हर महादेव 👏🥰❤️❣️

सोमवार, 4 अगस्त 2025

चारपाई है बैड से बेहतर

"चारपाई – हमारी सबसे सस्ती, सरल और वैज्ञानिक खोज!"

कमर दर्द, सर्वाइकल, पीठ की परेशानियाँ…
इन सबका इलाज हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले ढूंढ लिया था — चारपाई।

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🌿 सोचिए! अगर हमारे पूर्वज लकड़ी को चीरकर डबल बेड बना सकते थे,
तो उन्होंने रस्सी से बुनने वाली खाट क्यों बनाई?

क्योंकि ये सिर्फ बिस्तर नहीं — स्वास्थ्य, विज्ञान और समझदारी की कला थी।

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🩺 जब हम सोते हैं, खासकर खाने के बाद, तो
पेट को पाचन के लिए ज़्यादा खून चाहिए होता है।
चारपाई की हल्की सी झोल, शरीर को वही आराम देती है,
जो किसी महंगे ऑर्थोपेडिक बेड से भी नहीं मिलता।

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👶🏻 पालना भी पहले कपड़े की झोल का होता था,
अब उसे भी लकड़ी में बदलकर बच्चों की पीठ बिगाड़ दी।

चारपाई पर सोने से
✅ कमर दर्द नहीं होता
✅ पीठ सीधी रहती है
✅ शरीर को पूरा येक्युप्रेशर मिलता है!

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🛏️ डबल बेड भारी होता है, नीचे अंधेरा,
धूल, कीटाणु, बैक्टीरिया की फैक्ट्री!
रोज़ाना उठाकर साफ नहीं कर सकते।

🌞 लेकिन चारपाई ?
रोज़ खड़ी करो, नीचे झाड़ू लगाओ,
धूप लगाओ — प्राकृतिक कीटनाशक का इलाज भी हो गया।

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🩹 डॉक्टर अगर किसी को Bed Rest लिखे,
और वो अंग्रेजी बेड (डबल बैड, दिवान)पर लेट जाए —
2 दिन में Bed Sores (कमर मे फुंसियां, घाव) शुरू हो जाते हैं।

लेकिन चारपाई?
💨 हवा आर-पार होती है,
❌ कोई घाव नहीं,
✅ सिर्फ आराम।

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🔥 गर्मियों में मोटा गद्दा = गर्मी + AC
लेकिन चारपाई = ठंडी हवा नीचे से भी,
AC की जरूरत भी कम।

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💸 और अब सुनिए असली बात —
विदेशों में ये देसी चारपाई 1 लाख रुपए में बिक रही है!
अमेरिकन कंपनियां इसे “Handcrafted Ayurvedic Cot” के नाम से बेच रही हैं।

और हम?
👉 अपनी ही विरासत को छोड़कर
👉 महंगे, बीमारियों से भरे आधुनिक बेड पर लेटे हैं।

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🙌 चारपाई सिर्फ चार लकड़ी के पाए नहीं… ये विज्ञान, परंपरा और सादगी की विरासत है।
जिसे हमारे पूर्वजों ने अनुभव से बनाया,
और आज हम बिना सोचे छोड़ते जा रहे हैं।

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🚩 जय श्री राम | जय गोविंदा | जय सनातन संस्कृति
विरासत को पहचानिए, अपनाइए… और गर्व से आगे बढ़ाइए।
जय महादेव🙏🙏 ki,

शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

भगवा आतंकवाद


इसे जरा ध्यान से पढ़ें, आपको वो जानकारियां मिलेंगी जो किसी ने नहीं बताई, होश संभाल के पढ़ें

क्या आपको पता है ?

अजमल आमिर कसाब के पास , “समीर चौधरी” के नाम से अरुणोदय कॉलेज हैदराबाद का फ़र्ज़ी स्टूडेन्ट आई कार्ड बरामद हुआ था .

इसके ही दूसरे साथी के पास “नरेश वर्मा” के नाम का आई कार्ड बरामद हुआ था , और सभी 10 आतंकियों के हाथों पर कलावा भी बंधा हुआ था, जो हिन्दू अक्सर अपनी हाथों की कलाइयों पर बांधते हैं

इन आतंकियों का हुलिया भी मुस्लिमो जैसा नहीं था, सभी की दाढ़ी कटी हुई थी, ऊपर से इनको देखके कोई बता ही नहीं सकता था की ये मुस्लिम है

जबकि इस्लामिक आतंकी अक्सर ऐसे दिखाई देते है, देखिये कश्मीर में हिज्बुल के आतंकी, इनको देखके आसानी से बताया जा सकता है की ये किस मजहब के लोग हैं अहसान मानिए “वीर तुकाराम ओम्बले” का जिसने 26/11 को RSS की साजिश बनने के आरोप से बचा लिया नही तो यकीन मानिये कांग्रेस ने पुरी तैयारी कर ली थी

ये भी पढ़े :
मुम्बई हमले को हिंदू आतंकवादी घटना बनाने के लिये और दिग्विजय ने तो किताब भी लांच कर दी थी “26/11 RSS की साजिश के नाम से”.

और ये किताब आतंकी हमले से पहले ही छपवा ली गयी थी

अगर तुकाराम ने अजमल कसाब को नहीं पकड़ा होता तो राज्य और केंद्र दोनों में कांग्रेस की सरकार थी, इन दसों आतंकियों को हिन्दू आतंकी घोषित कर दिया जाता, कभी बताया ही नहीं जाता की ये इस्लामिक आतंकी है और पाकिस्तान से आये है|

ये यहाँ अपने हाथों मे कलावा बांध के हिंदुओं के नाम की फर्जी आईडी लेके हमला करते हैं और इनका एक नेता तुरंत इसे हिंदू आतंकवाद का नाम देके और किताब का विमोचन भी करवा देता है ।

और हम आज तक ये जाने बिना की हिन्दू आतंकवाद शब्द कहाँ से,क्यू और किसलिए आया, इसे सच बनाने के लिए इस पर चर्चा भी करते रहे ।
राहुल गांधी उर्फ पप्पु ने साक्षात्कार में कहा था कि देश को इस्लामिक आतंकवाद से नहीं भगवा आतंकवाद से खतरा है ।
कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा को बिना सबूत के जेल और अमानवीय यातनायें इसका प्रमाण हैं पर हमारे हिंदु भाई बहुत जल्दी सब कुछ भूल जाते हैं और सो जाते हैं
इसलिये हिंदु भाईयों 
जाग जाओ

सिंथेटिक दूध