शनिवार, 15 अक्टूबर 2022
सरकारी प्राइमरी स्कूल
बेहताशा सेलरी,पढ़ाना आता नहीं
देश में कई राज्यों के प्राइमरी सरकारी स्कूलों में बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो रहा है। इन सरकारी स्कूलों पढ़ाने वाले शिक्षकों का यह हाल है की खुद से ही नही पढ़ सकते बच्चों को क्या पढ़ायेंगे।
इन स्कूलों के शिक्षकों की बेहताशा सैलरी होने के बाद भी योग्यता ज़ीरो है। पता नहीं कैसे इनका चयन हो जाता है। वैसे तो इनका चयन भ्र्ष्टाचार का जीता जागता उदाहरण है। लेकिन यही तक भी बात खत्म नहीं होती। कहीं -कहीं तो शिक्षकों की डिग्री भी फर्जी होती है और कहीं-कहीं तो यह हाल है की नियुक्ति किसी की हुई पढ़ा रहा अन्य कोई है। ऐसा इसलिये हो रहा है की जिस शिक्षक की नियुक्ति हुई उसने अपनी जगह बहुत कम पैसे पर अन्य किसी को पढ़ाने का जिम्मा दे दिया होता है। ऐसा स्कूल के हेडमास्टर की मिलीभगत से होता है।
सरकारी प्राइमरी स्कूल के शिक्षक की सैलरी लगभग 50 हज़ार के करीब होती है। जबकि प्राइवेट स्कूल के शिक्षक की सैलरी 5 से 10 हज़ार ही होती है। प्राइवेट स्कूलों में कम सैलरी में भी अच्छी पढ़ाई कराई जाती है जबकि सरकारी स्कूल के शिक्षक बहुत से ऐसे हैं जिन्हें खुद से ही पढ़ना- पढ़ाना नहीं आता। ऐसे में वे बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ ही करते हैं। इसमें सभी राज्यों के शिक्षा मंत्रियों का दोष ज्यादा है जो भारत की भावी पीढ़ी को अनपढ़ ही बना देना चाह रहे हैं। भ्र्ष्टाचार के कारण ही ऐसे सब कुछ हो रहा है। जनहित में यह बहुत चिंताजनक है।
सुनील जैन राना
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