शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

डूबती कांग्रेस - भागते सिपहसालार

भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अब धीरे -धीरे धरातल की ओर जा रही है। इंदिरा गाँधी के समय यह नैरा बुंलद हुआ था की *इंदिरा इज इंडिया* आज कांग्रेस का यह नारा बुलंद है की *गाँधी परिवार इज कांग्रेस * कभी जनता गर्व से कहती थी की हमने कांग्रेस को वोट दिया है आज बिलकुल इसके विपरीत है। ऐसा नहीं है की आज कांग्रेस में होनहारो की कमी है लेकिन गाँधी परिवार ने शायद कांग्रेस को अपनी बपौती समझ लिया है ,जिसके कारण आज कांग्रेस टूट के कगार पर है। जितने पुराने कांग्रेस नेतागण हैं आज भले ही कांग्रेस को छोड़ न पा रहे हो लेकिन मन से कांग्रेस से दूर होते जा रहे हैं। कांग्रेस के दिग्गज नेताओ की अनदेखी ही नहीं बल्कि बेजत्ती तक कर दी जाती है। आज कांग्रेस अध्यक्ष विहीन है क्योंकि गाँधी परिवार से बाहर का कोई अध्यक्ष बन नहीं सकता और माँ -बेटे दोनों कई बार बदल -बदल कर अध्यक्ष बन चुके हैं। अब स्तिथी ऐसी है की उन्हें भी इस बार खुद को अध्यक्ष घोषित करते हुए शर्म आ रही होगी इसलिये पूर्ण अध्यक्ष के नाम में देरी हो रही है। सोनिया गाँधी ने सुप्रीमो कमान थाम रही है और राहुल गाँधी जनता के सामने हर बार फेल साबित हुए हैं। उनके नेत्तृव में लगभग ३० चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। अगले साल उत्तर प्रदेश में चुनाव है तो चुनाव प्रचार से राहुल गाँधी ने खुद को प्रचार से दूर रख अपनी बहन प्रियंका बाड्रा गाँधी को प्रचार में उतारा है। लेकिन अब तो ऐसे लगता है की जैसे पहले अन्य छोटी -बड़ी पार्टियां कांग्रेस का सहारा लेकर पनपती थी अब कांग्रेस उन छोटी -बड़ी पार्टियों का सहारा लेकर खुद को जीवित रखना पड़ रहा है। गाँधी परिवार की नीतियों के कारण ही आज कांग्रेस धरातल में जा रही है। कांग्रेस मुक्त भारत बीजेपी के कारण नहीं बल्कि गाँधी परिवार की नीतियों के कारण हो रहा है। राहुल गाँधी और अब प्रियंका गाँधी जनप्रचार में कुछ रचनात्मक बातें नहीं करते बस बीजेपी की आलोचना में लगे रहते हैं। जबकि जनता इनसे आलोचना सुन -सुनकर ऊब गया है ,जनता अब रचनात्मक कार्य चाहती है। जब कुछ बात समझ में नहीं आती तो चुनावो में जीतने के बाद कुछ मुफ्त में देने ,कुछ बिल माफ़ करने ,कुछ कर्ज माफ़ करने जैसे वायदे कर दिए जाते हैं। चुनावों से पूर्व जनता को लालच देने को जीतने पर मुफ्त में की जाने वाली घोषणाओं से सभी पार्टियां अछूती नहीं हैं। जबकि चुनावों से पूर्व मुफ्त की घोषणा करने पर पाबंदी लगनी चाहिये। चुनाव आयोग और सुप्रीमकोर्ट को इस पर पाबंदी लगानी चाहिये। जनता की भलाई का धन किसी वर्ग विशेष को लालच देने के कार्यों में लगाया जाना हितकर नहीं है। कांग्रेस पुनः शक्तिशाली बन सकती है इसके लिए गाँधी परिवार को अध्यक्ष पद से कुर्बानी देनी होगी। कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर के अनेको नेता हैं उनके हाथ में कांग्रेस की बागडोर देनी होगी तभी कांग्रेस पतन के द्वार से निकल सकेगी। * सुनील जैन राना *

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शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2021

शराब की बिक्री कार्ड से हो

शराब की बिक्री कार्ड से हो , यह बात छोटी सी है लेकिन इसके परिणाम बहुत बड़े निकलेंगे। मोदी सरकार में जब सब कार्यो को डिजीटल या आधार कार्ड से किया जा रहा है तो शराब की बिक्री के लिए भी आधार कार्ड अनिवार्य कर देना चाहिए। जब बिजली ,पानी ,राशन ,गैस ,बैंक आदि में सब जगह आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया गया है तो शराब की बिक्री को आधार से जोड़ने पर अनेको फायदे मिलेंगे। जिस प्रकार आधार से राशन को जोड़ते ही लाखों फर्जी राशन कार्ड खत्म किये गए ,आधार से गैस को जोड़ते ही लाखों फर्जी गैस कैन्कशन खत्म हो गए ,लाखों फर्जी मदरसे जो सरकार से इमदाद लेते थे वे बंद हो गए। लाखों फर्जी एनजीओ जिनके पास विदेशो से पैसा आता था वो बंद हो गए ठीक उसी प्रकार शराब को आधार से जोड़ते ही यह पता चल जायेगा की गरीबी की रेखा वाले लोग जिन्हे राशन एवं सब्सिडी आदि मिल रही है जिनके जनधन खाते में धन आ रहा है वे उसका उपयोग यदि शराब खरीदने में करते हैं तो उनकी सभी प्रकार की सरकारी सहायता बंद कर दी जायेगी। ऐसा करने से एक तो यह पता चल जाएगा की जो लोग किसी भी प्रकार की सब्सिडी या सरकारी सहायता लेकर उसका उपयोग शराब खरीदने में कर रहे हैं और फिर भी गरीबी का रोना रो रहे हैं उनकी सभी प्रकार की सुहलियते बंद कर दी जाए। लोक डाउन में शराब के ठेके खुलते ही लम्बी -लम्बी लाइने लग रही थी। जिनमें अधिकांश मध्यम वर्ग एवं गरीब वर्ग दिखाई दे रहा था। एक तरफ ऐसे लोग राशन के लिए भी लाइनों में लगे दिखाई देते थे दूसरी तरफ शराब के ठेको की लाइनों में दिखाई दे रहे थे। ऐसे लोग जिनके पास खाने को पैसे नहीं हैं तो शराब खरीदने के पैसे कहां से आ जाते होंगे। दरअसल गरीबी की पहचान नए तरिके से होनी चाहिए। बाज़ारो में बेहताशा भीड़ है ,सब काम में लगे हैं ,दूकान के लिए नौकर नहीं मिल रहे है ,कोई खाली दिखाई नहीं दे रहा है। पेट्रोल और डीजल के बेहताशा दाम बढ़ने के बावजूद दो पहियाँ और चार पहियाँ वाहनों की बिक्री पहले से ज्यादा है। रेस्टोरेंट और ढाबों पर भारी भीड़ रहती है। फिर ऐसे कौन लोग हैं जिन्हे भर पेट खाना नहीं मिल पाता है ,ऐसे लोगो की पहचान कर उनके लिए भरपूर मदद होनी चाहिए। शराब की बिक्री आधार से कर देने पर सरकार को राजस्व में भी भारी बढ़ोतरी मिलेगी। किस वर्ग के लोग शराब का ज्यादा सेवन करते हैं यह भी पता चल पायेगा। अवैध शराब की बिक्री पर अंकुश लगेगा। कुल मिलाकर शराब की बिक्री को आधार से जोड़ने पर देश की जनता की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति का पता चल सकेगा जो राष्ट्र नीति में सहायक हो सकता है। * सुनील जैन राना *

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गुरुवार, 14 अक्तूबर 2021

मनोरंजन बैंक के नोट

मनोरंजन बैंक के नोट छापने की परमिशन किसे मिलती है? कैसे मिलती है? क्यों मिलती है? मनोरंजन बैंक के नोट हूबहू असली नोट की तरह ही दिखाई देते हैं। इनका पेपर पतला होता है और इन पर मनोरंजन बैंक लिखा होता है। मनोरंजन बैंक के नोट छपने की क्या जरूरत पड़ती है? किसके मनोरंजन के लिए मनोंरजन बैंक नाम देकर नोट छापे जाते हैं? क्या कोई भी मनोरंजन बैंक के नाम से नोट छाप सकता है? दरअसल यह बहुत पेचीदा सवाल है की असली नोटो की हूबहू शक्ल जैसे नकली नोट छापना क्या देशहित में है? यदि सरकारी परमिशन द्वारा ऐसे नोट छापे जाते हैं तो क्या उस प्रेस की निगरानी होती है? क्या यह सम्भव नहीं है की हूबहू नकली नोटों की आड़ में हूबहू असली जैसे नकली नोट छापे जा सकें? गावँ -देहात ही नहीं बल्कि शहरों के अनेक बुजुर्ग लोग भी कभी -कभी मनोरंजन बैंक के नोट को असली समझ धोखा खा जाते हैं। आम प्रचलन में इतने डिजाईन एवं कलर के नोट आ गये हैं जो गाँव -देहात तक बहुत दिनों के बाद बहुत कम मात्रा में पहुंचते हैं। ऐसे में मनोरंजन बैंक के नोटो के द्वारा धोखाधड़ी भी की जा सकती है या कहीं -कहीं होती भी होगी। सरकार को मनोरंजन बैंक के असली नोटो जैसे नकली नोट बनाने की परमिशन देनी नहीं चाहिये। इन नोटो से फायदा कुछ नहीं नुक्सान बहुत भयंकर वाला हो सकता है। साथ ही सरकार/रिजर्व बैंक को चाहिये की अब जब सभी नये नोट आ गये हैं तो पुराने नोट प्रचलन से बाहर कर देने चाहिये। आम आदमी /व्यापारी कई -कई मेल के नोटो से बहुत दुखी है। बैंक वाले भी परेशान हैं की जब एक सौ के नोट की गड्डी में सौ के नये व् पुराने नोट मिक्स होते हैं तो उन्हें गिनने में बहुत समय लगता है। ऐसे में किसी का ज्यादा कैश मिक्स नोटो का हो तो समझिये कितना समय लगता होगा। अंत में इतना ही कहना चाहते हैं की मनोरंजन नोट कसी भी दृस्टि से देशहित में नहीं हैं। *सुनील जैन राना *

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रविवार, 10 अक्तूबर 2021

डाक विभाग की घोर लापरवाही

डाक विभाग की घोर लापरवाही सहारनपुर, कैसी विडंबना है की देश के प्रधानमंत्री डाक विभाग को डिजिटल बना कर अनेको सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध कराना चाह रहे हैं लेकिन स्थानीय डाकघरों का हाल यह है की जरा सी रजिस्ट्री कराने जाओ तो कह देते हैं की अभी सर्वर डाउन है बाद में आना।यह हाल लगभग सभी छोटे डाकघरों का है। सर्वर डाउन के बाद डाक वितरण की बात करें तो पिछले कई सालों से ऐसा लगता है जैसे डाक विभाग द्वारा साधारण डाक का वितरण बन्द ही कर दिया हो और सिर्फ रजिस्टर्ड डाक का वितरण कर इति श्री कर ली जाती हो। हालांकि अब पहले की तरह चिट्ठी लिखने का कार्य बहुत कम हो गया है लेकिन ऐसा नही है कि बिल्कुल खत्म हो गया हो।चिट्ठी के अलावा अनेक पत्र ,पत्रिकाएं, चेकबुक आदि अनेक जरूरी प्रपत्र आते थे लेकिन अब आने बन्द हो गए हैं।साधारण डाक न मिलने से बहुत से लोगो को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।कई बार चेकबुक बड़े डाकघर जाने पर बोरो में से ढूढ़ने पर मिल गई।ऐसे में बोरो में भरी बाकी डाक का क्या होता होगा डाकघर वाले ही जानते होंगे। हमारा समाचार पत्र प्रत्येक सोमवार को नेट पर एवम डाक में पोस्ट कर दिया जाता है।डाकघर के समीप ही हमारा कार्यालय है।लेकिन दस में से एक या दो समाचार पत्र प्राप्त होते होंगे।इसके अलावा अनेक अन्य समाचार पत्र ,पत्रिकाएं अन्य पत्र नियमित आते थे अब नही आ रहे हैं।ऐसे में कैसे आगे बढ़ेगा भारत , कैसे डिजिटल हो सकेंगे डाकघर।ऐसा लगभग सभी शहरों के मुख्य डाकघर को छोड़कर बाकी डाकघरों का हाल है। हम पिछले लगभग दो सालों से साधारण डाक वितरण में खामी की शिकायत बड़े डाकघर, प्रवर डाकघर,पी एम जी बरेली,लखनऊ को रजिस्टर्ड शिकायत कर चुके हैं लेकिन कोई फायदा नही हुआ। पोस्टमैन से पूछने पर वह कहता है की मुझे जितनी डाक मिल रही है उतनी बाट रहा हूँ।ऐसे में डाक कहां गायब हो रही है यह जांच का विषय है,जनहित में इसकी जांच होनी चाहिये।

ध्वजारोहण

*UPSC इंटरव्यू में पूछा जाने वाला ऐसा सवाल जिसका उत्तर बहुत कम अभ्यर्थी दे पाते हैं-* स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में झंडा फहराने में क...