गुरुवार, 30 सितंबर 2021

मुफ़्त की घोषणाओं पर पाबंदी लगे

जब भी चुनावों का समय आता है राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने के लिए अपने घोषणा पत्र में कुछ चीजें मुफ्त में देने का वायदा करते हैं। इस प्रथा से कोई दल अछूता नहीं है। मुफ्त बिजली ,मुफ्त पानी या किसी प्रकार के कर्ज की माफ़ी,किसी प्रकार के उपहार आदि देने की अनेक घोषणायें की जाती रही हैं। इस प्रकार की घोषणाओं से वोटर लालच में आ जाता है और सही प्रत्याशी को न चुनकर मुफ्त देने वाली पार्टी को वोट दे देता है। यह जरूरी नहीं है की मुफ्त का लालच देने वाली पार्टी की जीत हो। लेकिन ऐसी प्रथा जनहित में हानिकारक ही होती है। टैक्सपेयर जनता के धन से ऐसी मुफ्त घोषणा की पूर्ति की जाती है। ऐसी घोषणाओं का फायदा सभी को नहीं मिलता। माननीय सुप्रीम कोर्ट एवं चुनाव आयोग को चुनावो से पूर्व की जाने वाली घोषणाओं पर पाबंदी लगा देनी चाहिये। बल्कि इस संबंध में कानून बनना चाहिए जिसमे चुनावो से पूर्व किसी भी प्रकार की मुफ्त घोषणा या उपहार या किसी प्रकार के कर्ज की माफ़ी देने वाले दल की मान्यता समाप्त कर दी जाएगी। जनता से मिलने वाले टैक्स रूपी का धन का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए। यदि कोई दल इस प्रकार की घोषणा करता है तो उसकी पूर्ति उसे अपनी पार्टी के धन से पूरी करनी होगी। ऐसा करने से जनता के टैक्स से मिला धन जनता की भलाई के कार्यो में लगाया जा सकता है। आज के परिवेश में ऐसा करना बहुत जरूरी समझा जा रहा है। मुफ्त की घोषणाओं से कुछ जनता खुश हो सकती है लेकिन अधिकांश जनता मुफ्त की घोषणाओं का विरोध ही करती है। *सुनील जैन राना *

सोमवार, 27 सितंबर 2021

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शनिवार, 18 सितंबर 2021

उत्तम आकिंचन धर्म

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उत्तम आकिंचन धर्म

उत्तम आकिंचन धर्म

सरकारी टेलीफोन -जी का जंजाल

टेलीफोन एक्सचेंज, जनता परेशान सहारनपुर टेलीफोन विभाग की हालत बुरी है या कर रखी है।लैंडलाइन फोन इसी कारण जनता कटवाती जा रही है।जिसका मुख्य कारण अक्सर टेलीफोन का खराब रहना है। पिछले दस पन्द्रह वर्षो में नगर के अधिकांश उपभोक्ताओं ने परेशान होकर अपने टेलीफोन ही कटवा दिए। पता नही क्यो अक्सर टेलीफोन खराब हो जाते हैं या कर दिये जाते हैं। क्योंकि जितनी बार टेलीफोन खराब होगा उतनी बार लाइनमैन आएगा और उसको कच्चा ठीक कर जाएगा क्योंकि लाइनमैन को हर बार सौ रुपये मिल जाते हैं।बिना पैसे के ये अगली आएंगे ही नहीं। ऐसा चक्कर पिला देंगे की जिसका जबाब नही। कैसे कार्य करते हैं ये सरकारी कर्मचारी समझ मे नही आता। यह तो बात हुई टेलीफोन की अब बात करते हैं टेलीफोन के बिल की। टेलीफोन के बिल के लिये परेशान होना पड़ता है।कई बार जाकर भी बिल की छोटी सी पट्टी दे देते हैं। अब तो छोटी सी कागज को पट्टी भी नही देते बल्कि छोटी सी पर्ची पर बिल का अमाउंट लिखकर दे देते हैं। पूरा ए फ़ॉर के पेज पर उपभोक्ताके पास बिल आये तो वह उसे अपनी फ़ाइल में भी लगा सके।ऐसे ही बिल भुगतान में छोटी सी पर्ची कभी मिल जाती है कभी वो भी नही मिलती कह देते हैं की बिल जमा हो गया। इन्ही कारणों से जनता bsnl से दूर भाग रही है। शायद इन्हें कोई कहने सुनने वाला नही है। सरकारी टेलीफोन जी का जंजाल बन गए हैं। मोदीजी डिजिटल इंडिया बनाना चाह रहे हैं और यह टेलीफोन विभाग जनता को दल दल में ले जा रहा है। मोबाइल कम्पनिया बिना तार के बढ़िया कार्य कर रही हैं और bsnl अभी तक तारो में अटका पड़ा है।दरअसल ये कुछ करना भी नही चाहते।हमारे पास लगभग ४० -४५ साल से लैंडलाइन फोन है,लगता है अब सारे फोन कटवाने ही पड़ेंगे। केंद्र सरकार को दूर संचार विभाग दुरुस्त करना चाहिये।पिछली सरकारों में पासवान जी के नियंत्रण में जब यह विभाग था तब तुरन्त कार्य होता था।शिकायत करते ही फोन ठीक हो जाता था।अब फिर से वही सिस्टम अपनाना चाहिए।निचले स्तर के कर्मचारी कार्य करने में ढिलाई बरतते हैं उन पर अंकुश होना चाहिए। *सुनील जैन राना *

गुरुवार, 9 सितंबर 2021

सब उल्टा पुल्टा

इस नए फॉर्मेट में सब उल्टा पुल्टा हो रहा है। पहले वाला फॉर्मट अच्छा था। इसमें न तो मोबाईल से फोटो उपलोड होती है। फाउंड छोटे ही रहते हैं बड़े नहीं होते। लिखने के बाद सब एक पैराग्राफ में सिमट जाता है। हाइकु तीन अलग लाइनों में लिखा जाता है लेकिन लिखने के बाद सब एकत्र हो जाता है। गूगल जी से निवेदन है की इन समस्या का हल निकालें। धन्यवाद।

दश लक्षण धर्म

दिगंबर जैन धर्म के पावन पर्व दश लक्षण धर्म कल से प्रारम्भ हो रहे हैं। इस अवसर पर प्रत्येक दिन धर्म अनुसार एक सुंदर हाइकु प्रेषित किया जायेगा। प्रारम्भ होने से पूर्व का हाइकु जैन मनाते दश लक्षण धर्म आत्म ध्यान के कल प्रथम दिन उत्तम क्षमा का दिन है।

मंगलवार, 7 सितंबर 2021

राजनीति से प्रेरित किसान आंदोलन

किसानों के हित के कानूनों को काले कानून बताकर कुछ किसान सरकार के विरोध में लगे है। किसानों के मसीहा बने राकेश टिकैत ने मुज़फरनगर में किसानों की भीड़ जुटाई जिसमें किसानों के हित के मुद्दे कम बल्कि मोदीजी -योगीजी की सरकार को उखाड़ फेंकने पर ज्यादा बयान दिए गये। समझ में नहीं आ रहा है की उत्तर प्रदेश के किसान योगीजी की सरकार को उखाड़ने की बात करें तो भी ठीक है लेकिन जो किसान पंजाब आदि अन्य राज्यों से आये उन्हें योगीजी की सरकार से क्या फर्क पड़ेगा शायद उन्हें भी नहीं पता था। पिछले ९ महीनो से दिल्ली की कई सड़को पर कब्जा कर बैठे कथित किसान सिर्फ आने -जाने वाली जनता को परेशान कर रहे हैं इसके अलावा उनका कोई साफ़ मक़सद नज़र नहीं आ रहा। पक्के टैण्टो में ऐसी लगाकर बैठे इन लोगो को देखकर लगता है जैसे इनकी कोई खेती बाड़ी नहीं है। ये तो बस सरकार का विरोध करने अखाडा जमाकर बैठे हैं। टैण्टो के बाहर महंगी गाड़ियां खड़ी रहती हैं ऐसा लगता ही नहीं जैसे यहां कोई किसान बैठे हों।२६ जनवरी पर राकेश टिकैत की अगुवाई में लाल किले पर जो कुछ हुआ उसे बहुत दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जायेगा। किसानों के बीच खालिस्तानियों का होना संदेह जताता है। मुज़फरनगर के किसान आंदोलन में जिस तरह किसानो के हित के मुद्दे छोड़कर मोदीजी -योगीजी की सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया गया यह राजनीति से प्रेरित ही कहा जायेगा। ऐसा लगता है जैसे सभी विपक्षी दल इस आंदोलन में अपनी जगह ढूंढ रहे हों। लाख -पचास हज़ार की भीड़ ने सिर्फ नगर में अव्यवस्था को जन्म दिया इससे ज्यादा इस आंदोलन की कोई सार्थकता दिखाई नहीं दी। राकेश टिकैत शायद देश की राजनीतिक पार्टियों को नहीं समझ रहे। अब यह आंदोलन किसानो का न होकर दलगत होता दिखाई दे रहा है। देश का अधिकांश किसान गरीब है जिसके लिए सरकार द्वारा सुविधाएं एवं योजनाएं चलाई जा रही हैं। किसानों को पारम्परिक खेती के अलावा नई नई खेती के बारे में बताया जा रहा है जिससे किसानो की आमदनी में इज़ाफ़ा हो। पिछले ७० सालों में यदि ऐसे उपाय किये होते तो आज किसान गरीब न रहता.विडंबना की बात यह भी है की सरकार द्वारा चलाई योजनाओं का लाभ बड़ा किसान तो तुरंत उठा लेता है लेकिन छोटे किसान को इन सभी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पता है। सरकार को अब ऐसा करना चाहिए की छोटे और बड़े किसानों का वर्गीकरण करे जो खेती की जमीन के हिसाब से हो सकता है। बड़े किसानो को किसी सरकारी मदद की जरूरत नहीं होती,उसके पास धन की कमी नहीं होती जबकि छोटा किसान सदैव धन की तंगी से परेशान रहता है। सरकारी योजनाओं का लाभ छोटे किसानो को होना चाहिए। मुज़फरनगर किसान आंदोलन में टिकैत द्वारा अल्ला हू अकबर के नारे लगवाना उनकी विघटनकारी मंशा को दर्शाता है। क्या ही अच्छा होता की वे साथ में जय श्रीराम और हर हर महादेव के नारे भी लगवाते। ऐसी जहरीली सोच वाले नेतागण ही समाज का वातावरण दूषित कर रहे हैं। हिन्दू मुस्लिम समाज मिलकर रहता है लेकिन ऐसे लोग आपसी संबंधो में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। राकेश टिकैत जो कोई चुनाव नहीं जीता बल्कि जमानत जब्त कराई आज किसानो का मसीहा बनने चला है। लेकिन अब यह आंदोलन किसानों के नाम पर ज्यादा दिन नहीं चल पायेगा अब यह राजनीति से प्रेरित होकर रह जाएगा। * सुनील जैन राना *

हाइकु

सदैव विरोध करना हितकर नहीं होता

विश्व में कोरोना महामारी ने लाखों जाने ले ली। भारत में भी इसका व्यापक असर हुआ और इसकी चपेट में लाखों लोग आ गए इनमे से बहुत से मृत्यु को भी प्राप्त हुए। पिछले वर्ष कोरोना प्रकोप में हुए लोक डाउन में सभी अपने घरो में कैद तो रहे लेकिन उनमें भय का माहौल नहीं था। घर पर रहकर खानपान का मज़ा लिया था लेकिन इस बार के लोक डाउन में भय का माहौल था ,ऐसा कोई घर होगा जिसके परिचितों में से कोई न कोई कोरोना से मृत्यु को प्राप्त न हुआ होगा। केंद्र सरकार द्वारा कोरोना से निपटने के लिए व्यापक कदम उठाये गए लेकिन मई के महीने में दी जा रही सुविधा कम पड़ जाने से भी कुछ जाने गई। कोरोना से लड़ने को कोरोना का टीका होना लाजमी हो गया था ,इसपर केंद्र सरकार ने देश की बड़ी दवा कम्पनियों को कोरोना वैक्सीन बनाने को प्रोत्साहित किया। कई दवा कंपनियों ने दिन रात मेहनत करके कोरोना की वैक्सीन बना ही ली। ऐसा देश के इतिहास में पहली बार हुआ की किसी माहमारी की वैक्सीन एक साल के अंदर ही बना ली गई हो। कोरोना वैक्सीन से पहले देश में एड्स का टीका नहीं बना ,पोलियो का टीका नहीं बना ,खसरे का टीका नहीं बना ,मलेरिया का टीका नहीं बना ,चिकन पॉक्स का टीका नहीं बना ये सभी टीके विदेशो से आयात किये जाते रहे हैं। पिछले ६० सालों में कांग्रेस के राज में कोई टीका नहीं बना और अब कोरोना का टीका मोदीजी के प्रोत्साहन से जल्दी बन गया तो इस पर भी कांग्रेस सवाल करती है जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। देश में १३० करोड़ जनता को टीका लगाना भी कोई मामूली कार्य नहीं है। फिर भी टीकाकरण का कार्य अन्य विकसित देशो के मुकाबले बहुत तेज़ गति से हो रहा है। कोरोना काल में कामधन्दे बंद हो जाने से देश की अर्थ व्यवस्था डगमगा रही थी फिर भी मोदीजी के नेत्तृव में कोरोना का टीका सभी को मुफ्त लगाया जा रहा है यह कोई साधारण बात नहीं है। विदेशी टीके ७०० रूपये से १००० रूपये की कीमत के बताये जा रहे हैं। यदि देश में कोरोना का टीका न बनता तो सोचो देश पर कितना आर्थिक बोझ पड़ता। देश में कोरोना का टीका बनने से जहां देश को विदेशी मुद्रा की बचत हुई वहीं दूसरी ओर देश की कम्पनियों को फायदा हुआ और मेक इन इंडिया को बल मिला। विश्व भर में मोदीजी के कार्यो की धूम मची है लेकिन अपने ही देश के विपक्ष के लोग प्रत्येक अच्छे कार्य में भी सरकार को कोसते रहते हैं। किसी गलत कार्य का विरोध करें तो समझ में आता है लेकिन बीजेपी विरोध में अच्छे कार्यो का विरोध करना हितकर नहीं है। देश की जनता यह सब देख रही है चुनावों में जबाब देगी। * सुनील जैन राना *

ज्ञानी - अज्ञानी

ज्ञानी - अज्ञानी

उत्तम विचार

उत्तम विचार

ध्वजारोहण

*UPSC इंटरव्यू में पूछा जाने वाला ऐसा सवाल जिसका उत्तर बहुत कम अभ्यर्थी दे पाते हैं-* स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में झंडा फहराने में क...