भारत देश में जहां एक तरफ कोरोना महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्ता डगमगाई है वहीं दूसरी तरफ डीजल -पेट्रोल के बेहताशा बढ़ते दामों ने आम आदमी की जेब पर डाका डाला है। कारोबार मंदा है , नौकरियों में कमी आई है ,रोज कमाकर खाने वालो को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा है।
हैरत की बात यह है की तेल के दामों में बेहताशा बढ़ोतरी के बावजूद यात्री वाहनों की बिक्री लगातार बढ़ रही है। पिछले माह में यात्री वाहनों की बिक्री में ११९% का इज़ाफ़ा हुआ है। मनपसंद दोपहिया वाहन लेना हो या फिर कार लेनी हो तो जरूरी नहीं की वह आपको तुरंत शोरूम में जाते ही मिल जायेगी। हो सकता है की आपको अपने मनपसंद वाहन को खरीदने के लिए कुछ इन्तजार करना पड़े।
देश में कोरोना महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को नुक्सान पहुंचाया है लेकिन थोड़ी सी कोरोना की लहर में कमी आते ही होटल-रेस्टोरेन्ट में ,पिकनिक स्थलों पर जनता ऐसे टूट कर पड़ी है जैसे कई सालों से घर में बंद हो उन्हें कोरोना का भय भी नहीं रहा। यही नहीं रजिस्ट्री दफ्तर में ज़मीन -जायदाद आदि की रजिस्ट्री कराने को ऐसी भीड़ रहती है जैसे किसी सब्जी मंडी में रहती है।
यह सब सिक्के का एक पहलू है जो धनवान है, जिसके पास धन बहुत है। सिक्के का दूसरा पहलू दर्दनाक है ,जिसे मध्यमवर्ग कह कर पुकारा जाता है। इसी वर्ग में छोटी नौकरीपेशा लोग ,सड़क के किनारे ठेली लगाकर खाद्य पदार्थ बेचने वाले ,छोटे दुकानदार ,रोज मज़दूरी करने वाले आदि ऐसे लोग आज भी परेशान हैं। कोरोना के लॉकडाउन में उनकी आमदनी बहुत कम हो गई या फिर नगण्य ही हो गई थी। हालांकि भारत सरकार ने गरीबों को मुफ्त अनाज़ आदि देकर धोड़ी सहूलियत तो दी लेकिन यह काफी नहीं रही। सरकार को गरीब एवं मध्यमवर्ग की आमदनी के लिए कुछ योजनायें बनानी चाहिये ताकि ऐसी महामारी में सभी को भरपेट भोजन तो मिल ही सकें। *सुनील जैन राना *
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