मंगलवार, 20 जुलाई 2021

डीजल - पेट्रोल के दाम बेहताशा लेकिन फिर भी ***

 भारत देश में जहां एक तरफ कोरोना महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्ता डगमगाई है वहीं दूसरी तरफ डीजल -पेट्रोल के बेहताशा बढ़ते दामों ने आम आदमी की जेब पर डाका डाला है। कारोबार मंदा है , नौकरियों में कमी आई है ,रोज कमाकर खाने वालो को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा है। 

हैरत की बात यह है की तेल के दामों में बेहताशा बढ़ोतरी के बावजूद यात्री वाहनों की बिक्री लगातार बढ़ रही है। पिछले माह में यात्री वाहनों की बिक्री में ११९% का इज़ाफ़ा हुआ है। मनपसंद दोपहिया वाहन लेना हो या फिर कार लेनी हो तो जरूरी नहीं की वह आपको तुरंत शोरूम में जाते ही मिल जायेगी। हो सकता है की आपको अपने मनपसंद वाहन को खरीदने के लिए कुछ इन्तजार करना पड़े। 

देश में कोरोना महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को नुक्सान पहुंचाया है लेकिन  थोड़ी सी कोरोना की लहर में कमी आते ही होटल-रेस्टोरेन्ट में ,पिकनिक स्थलों पर जनता ऐसे टूट कर पड़ी है जैसे कई सालों से घर में बंद हो उन्हें कोरोना का भय भी नहीं रहा। यही नहीं रजिस्ट्री दफ्तर में ज़मीन -जायदाद आदि की रजिस्ट्री कराने को ऐसी भीड़ रहती है जैसे किसी सब्जी मंडी में रहती है।

यह सब सिक्के का एक पहलू है जो धनवान है, जिसके पास धन बहुत है। सिक्के का दूसरा पहलू दर्दनाक है ,जिसे मध्यमवर्ग कह कर पुकारा जाता है। इसी वर्ग में छोटी नौकरीपेशा लोग ,सड़क के किनारे ठेली लगाकर खाद्य पदार्थ बेचने वाले ,छोटे दुकानदार ,रोज मज़दूरी करने वाले आदि ऐसे लोग आज भी परेशान हैं। कोरोना के लॉकडाउन में उनकी आमदनी बहुत कम हो गई या फिर नगण्य ही हो गई थी। हालांकि भारत सरकार ने गरीबों को मुफ्त अनाज़ आदि देकर धोड़ी सहूलियत तो दी लेकिन यह काफी नहीं रही। सरकार को गरीब एवं मध्यमवर्ग  की आमदनी के लिए  कुछ योजनायें बनानी चाहिये ताकि ऐसी महामारी में सभी को भरपेट भोजन तो मिल ही सकें।   *सुनील जैन राना *

बुधवार, 14 जुलाई 2021

बैंक क़र्ज़ की भरपाई

 बैंक अधिकारी और कॉरपोरेट जगत एवं नेतागण की मिलीभगत का नतीजा होता है एनपीए। दशकों से यही होता आ रहा है। जनता की भलाई का धन खा जाते हैं ये सब मिलकर। लचीले कानूनों का फायदा उठाते ये लोग भारत की उन्नति में बाधक रहे हैं। पिछले सात वर्षो में मोदी सरकार में ऐसे लचीले कानूनों को सख्त बनाया गया है ,लेकिन हैरत की बात यह है की अभी भी बैंको का एनपीए खत्म नहीं हो पाया है। बैंको का धन लेकर भागे अनेक भगोड़ो पर कार्यवाही स्वरूप उनकी सम्पत्ति जब्त की जा चुकी है ,लेकिन आज तक किसी बैंक अधिकारी पर एक -आध को छोड़कर अन्य किसी पर कार्यवाही होते दिखाई नहीं दी है। 

हैरत की बात यह भी है की भारत में ऐसा कोई कानून नहीं था की यदि कोई कम्पनी दिवालिया हो जाये तो उससे बैंक का धन कैसे वसूल किया जाये। मोदी सरकार में NCLT  नेशनल कम्पनी लॉ ट्रिब्यूनल कानून बनाकर कम्पनियो के दिवालिया हो जाने पर कम्पनी को नीलाम कर उससे प्राप्त धन से बैंक आदि से लिए कर्ज की पूर्ति एवं अन्य देनदारियां की पूर्ति की जाएगी। अब ऐसा नहीं है की किसी कम्पनी ने करोड़ो -अरबो का कर्ज लिया थोड़े समय बाद अपनी कम्पनी का दिवाला निकाल दिया और फिर उसी धन से मज़े की जिंदगी बसर की। अब तो कर्ज ली गई कम्पनी के मालिकों को नये कानून के तहत जबाबदेही से गुजरना होगा और क़र्ज़ के नुकसान की भरपाई करनी होगी। 

अभी भी कुछ ऐसे लोच हैं  जिनके कारण बैंको का एनपीए खत्म नहीं हो पा रहा है ऐसे में उनकी जांच कर नियम कानून और कठोर बनाने की जरूरत है ,साथ ही बैंक की जिम्मेदारी भी नियत होनी चाहिये। केज देने से पहले बैंक अधिकारियो को चाहिये की क़र्ज़ लेने वाले की हैसियत की जांच कर गिरवी  में उचित दस्तावेज़ आदि प्राप्त करे। यदि बैंको का एनपीए खत्म हो जाये तो उसी धन से राष्ट्र निर्माण तेज़ी से हो सकेगा। * सुनील जैन राना *


ज्ञानी - अज्ञानी

 

ज्ञानी - अज्ञानी 

सोमवार, 12 जुलाई 2021

ध्वजारोहण

*UPSC इंटरव्यू में पूछा जाने वाला ऐसा सवाल जिसका उत्तर बहुत कम अभ्यर्थी दे पाते हैं-* स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में झंडा फहराने में क...