विडंबना - आश्चर्यजनक किन्तु सत्य
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ऐसा किसी के भी साथ नहीं होना चाहिए। मेरे बड़े भाई साहब श्री देवेंद्र जैन जो ६९ साल के थे। उनके
निचले हिस्से में एक दाना सा हो गया था। स्थानीय डॉक्टर ने बताया की यह बालतोड़ है और दवाई दे
दी। कुछ दिन दवाई से आराम रहा लेकिन पिछले दो दिन से उन्हें कुछ असहाय सा लगने लगा। तब
हमारी आपस में सलाह बनी की मेदांता - गुरुग्राम ,दिल्ली में दिखा लिया जाए। भाई साहब और
भाभीजी दस जुलाई को दोपहर अपने बेटे के साथ मेदांता पहुंच कर जांच के लिए डॉक्टर के पास गए।
डॉक्टर ने कुछ जांच के लिए पेशाब और खून लिया और अगले दिन आने को कहा। अगले दिन ११ जुलाई
को दोपहर में फिर से मेदांता जाने पर डॉक्टर ने बताया की आपकी जांच रिपोटें ठीक नहीं हैं। शरीर के
कुछ हिस्सों में पस हो गई है। उन्होंने भाई साहब को इमर्जेन्सी वार्ड में भर्ती कर लिया। भर्ती करने के
थोड़ी देर बाद ही बताया गया की भाई साहब को साँस लेने में परेशानी हो रही है। तब उन्हें पहले ICU में
फिर थोड़ी देर बाद ही वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया। ततपश्चात उपचार चलना बताया जाता रहा
लेकिन दूसरे दिन १३ जुलाई को प्रातः सात बजे उनका निधन हो गया।
समझ में नहीं आ रहा की यह सब क्या हो गया ?पहले कभी ऐसा नहीं सुना की कोई खुद से अपनी
जांच कराने अस्पताल गया हो और दो उसकी बॉडी घर आये। अब पता नहीं जगह ने उन्हें वहां बुलाया
था और लाखों रूपये का अस्पताल का कोई कर्जा था क्या ?
विज्ञानं पर आस्था भारी या नियति ही सब कुछ
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नीचे की फोटो मेदांता अस्पताल के अंदर ओ पी डी की है जहां लोगो की लाइने लगती हैं उसके बाहर
इस जगह पर दो बड़े बाउल लाल धागे से भरे रखे रहते हैं। जिसमे से अक्सर रोगी के परिवार वाले
लाल धागे को मन्नत के रूप में यहां बांधते हैं। अब यह दिलासा है -आस्था है या धंधा है ?
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