सूरत में कोचिंग सैंटर में आग लगने से २२ बच्चों की मृत्यु
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बहुत दुःखद घटना है यह की सूरत के एक कोचीन सैंटर में अचानक आग लग जाने से लगभग २२ बच्चे अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठे। दुःखद यह भी है की कुछ बच्चे जल कर मर गए रो कुछ अपनी जान बचने को तीसरी मंजिल से खिड़की से सड़क पर कूद गए और अपनी जान गवाँ बैठे।
अब इस घटना को प्रशाशन की लापरवाही कहें या कोचिंग सैंटर की लापरवाही कहें। वास्तव में तो इसमें दोनों की ही लापरवाही नजर आती है। कोचिंग सैंटर ने क्यों नहीं आग बुझाने के यंत्र रखे और ऐसे हादसे की रोकथाम के समुचित उपाय क्यों नहीं किये ?
प्रशाशन की लापरवाही की बात ऐसी है की अधिकांश सरकारी विभागों के सभी कानून उपभोक्ता पूर्ण कर सके यह बहुत कठिन है। अक्सर महीना या सुविधाशुल्क देकर सभी कानूनों से मुक्ति मिल जाती है। पुरे देश के किसी भी नगर-मोहल्ले की बात करें तो सभी जगह ऐसी कॉमर्शियल दुकाने नज़र आ जाती हैं जो कानूनों का पालन कर ही नहीं सकती। देश की राजधानी दिल्ली के चांदनीचौक -सदर बाजार आदि में हज़ारो दुकानें गलियों में चल रही हैं जहां फायर बिग्रेड तो क्या किओ छोटा वाहन भी नहीं चल सकता। ऐसे में भगवान न करे और कोई हादसा हो जाए तो क्या हो ?
कहने का तातपर्य यहीहै की ऐसे हादसों के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। हम नागरिक खुद से सुरक्षा का ध्यान रखें तो हादसों से बचा जा सकता है। रही बात प्रशाशन की तो कहीं देर है कहीं अंधेर है। शहरों में बिना नक्शे के मुख्य मार्गो पर भवन बन जाते हैं। कोई आम आदमी अपना छोटा सा घर बनाने लगे तो यही नक्शे वाले उसको परेशान कर देते हैं।
बहराल बुराई दोनों तरफ है। हमे बुराई को छोड़कर अच्छाई की तरफ बढ़ना चाहिए। कुछ भी कार्य करे तो उसमे सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। कहते हैं सावधानी हटी -दुर्घटना घटी। उन सभी बच्चो को सादर नमन। * सुनील जैन राना *
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