दलित - अब नहीं भेदभाव
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जातिवाद को ढाल बनाकर देश के नेताओं ने देश में विकास की रफ़्तार को लील लिया है। कभी दलित ,
कभी अल्पसंख्यक ,कभी जाट ,कभी मराठा आदि को लुभावने लालच देकर अपना वोट बैंक बनाने की
कोशिश में ये नेता लोग भूल गए हैं की सबसे पहले देश सर्वोपरि होता है। इन नेताओं को पता है की सरकारी नौकरियाँ तो है नहीं लेकिन फिर भी आरक्षण के नाम पर युवा वर्ग को बरगलाते रहते हैं।
इन सबमें खासकर दलित शब्द को खूब भुनाया गया। दलित और अल्पसंख्यक के नाम पर नेता करोड़पति हो गए लेकिन ये दोनों समुदाय आज भी विकास की लहर में पिछड़े हुए हैं। इनके नेताओ ने इनके नाम पर वोट तो बहुत लिए लेकिन इनके विकास के लिए कुछ नहीं किया सिवाय अपनी जेबें भरने के।
आज एक समाचार छपा की बाबा गोरखनाथ मंदिर के पुजारी दलित हैं। इसमें आश्चर्य की बात कुछ नेताओ के लिए हो सकती है लेकिन आम जनता के लिए नहीं। क्योकि ऐसा तो बहुत जगह है लेकिन दलित नेता हमेशा दलित के उत्पीड़न की चर्चा करते हैं। दलित और अन्य समाज के भाई चारे की चर्चा नहीं करते। विडंबना की बात यह भी है की दलित नेता कुछ ही सालों में अमीर हो जाते हैं और आरक्षण से आगे बढ़े दलित को अपना घर ,समाज याद नहीं रहता। होना तो यह चाहिए की एक परिवार को आरक्षण का लाभ मिलने पर आगे की उनत्ति उसकी योग्यता पर निर्भर होनी चाहिए और अन्य परिवार के जरूरतमंद को नई नौकरी मिलनी चाहिए। वैसे तो आरक्षण आर्थिक आधार पर ही होना न्यायसंगत है। जिससे हर गरीब को आगे बढ़ने का मौका मिल सके।
हो सकता है की कुछ जगहों पर कथित दबंग अपनी दबंगई दिखाने को दलितों पर अत्याचार या छुआछूत करते हों लेकिन हकीकत कुछ और ही है। आज दलित बेरोजगार नहीं है ,कुछ न कुछ कार्य या नौकरी कर रहा है। अनेक होटलों में ,ब्याह -शादी में दलित आदि वेटर का कार्य करते हैं। कथित बड़े लोगो या दबंगो की शादी आदि में जो अपने गांव -देहात में छुआ छूत से ग्रस्त रहते हैं ब्याह -शादी में इनके हाथों से डट कर भोजन करते हैं। ऐसी अन्य अनेक बाते हैं जो दिखाती हैं की आज दलित सबके
साथ मिलजुलकर कार्य कर रहा है। व्यापार में ,कारखाने में ,बैंक में अन्य सरकारी -गैर सरकारी संस्थानों में आज दलित सबके साथ मिलजुलकर सभी प्रकार का कार्य करता नज़र आता है।
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अपना मल तो सब अपने हाथ से ही धोते हैं
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कटु सत्य है की हम जिस इंसान को जिस कार्य के लिए अछूत समझते हैं हम सभी प्रातः सबसे पहले
अपना वही कार्य अपने हाथ से करते हैं। फिर हम नहा धोकर शुद्ध हो जाते हैं लेकिन वही कार्य करने वाला समाज में अछूत कहलाता है -क्यों ?
यदि नहाने धोने से शरीर शुद्ध हो जाता है तो सबका हो जाना चाहिये। इसमें भेदभाव की क्या बात है ?
हम किसी जगह किसी पंक्ति में खड़े हो हमे पता नहीं होता हमारे आगे -पीछे वाला कौन है ?बस में ,रेल में ,हवाईजहाज में हमारे बराबर की सीट पर कौन जात है हमें पता नहीं होता। फिर क्यों पता चले ही हम असहाय से क्यों हो जाते हैं। अब हमे इस मानसिकता को बदलना ही होगा। हमारे नेताओं को भी जात पात से परे देश की उन्नति के लिए सोचना चाहिए। http://suniljainrana.blogspot.com/
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