शनिवार, 3 नवंबर 2018



राम के देश में राम मन्दिर बनेगा या नहीं ?
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रामायण काल से ही भारत देश में हिन्दू संस्कृति रच बस रही है। प्राचीन काल से ही अनेक संस्कृतियों का उत्थान एवं पतन होता रहा है। सैंकड़ो साल पहले का अखंड भारत आज अनेक खंडो में विभाजित हो चुका है। खासकर
 मुगलकाल में कुछ मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दू एवं जैन धर्म के मंदिरो एवं ग्रंथो को बहुत हानि पहुंचाई गई। अनेकों मंदिर तोड़ दिए गए ,अनेको मंदिरो को मस्जिद में तब्दील कर दिया गया। उनका मुख्य उद्देश्य यह रहा की सिर्फ इस्लाम धर्म होना चाहिए एवं सभी को इस्लाम धर्म मानने वाला होना चाहिए।

मुगलकाल में राजा अकबर के समय अकबर ने सभी धर्मो की महत्ता समझते हुए एक नया धर्म चलाया जिसे    *दीन ए इलाही * नाम दिया गया। इसमें सभी धर्मो को समाहित कर सभी धर्मो की अच्छी बातों को अपनाने पर जोर दिया गया। राजा अकबर के दरबार में भी सभी धर्मो के लोग दरबारी रहे हैं। नौ रत्नो के नाम से प्रसिद्ध नौ दरबारी जिनमे बीरबल  का नाम बहुत प्रसिद्ध है। बीरबल की बुद्धि का लोहा अकबर समेत सभी मानते थे।

अकबर के बाद के कुछ मुगल शासकों ने दीन ए इलाही को खत्म कर फिर से इस्लाम धर्म का पताका फहराना शुरू किया और हिन्दू एवं जैन धर्म पर प्रहार करना शुरू कर दिया। मुगलों के बाद भारत पर अंग्रेजो ने राज किया। अंग्रेजो से लड़ाई में धर्म से बढ़कर आज़ादी की लड़ाई महत्वपूर्ण हो गई। इस लड़ाई में सभी धर्मो के लोगो ने मिलकर भाग लिया और सभी के सहयोग और बलिदान से से भारत आज़ाद हुआ।

आज़ादी के बाद हिन्दू -मुस्लिम विवाद फिर से गहराया और बटवारें में पाकिस्तान का जन्म हुआ। पाकिस्तान मुस्लिम देश बन गया और भारत को हिन्दू देश न बनाकर धर्म निरपेक्ष देश बना दिया गया। भारत में सभी धर्मो के लोग मिलजुलकर रहते आये हैं। लेकिन भारत के कुछ नेता अपनी नेतागिरी चमकाने को नए नए फंडे ढूंढते रहे हैं ,जिसके फलस्वरूप भारत  विसंगतियों ने जन्म ले लिया। इनमें जातिवाद को बढ़ावा देकर वोटबैंक बनाने
के लिए घिनौने कार्य तक करने से नेतागण बाज़ नहीं आये।

आज देश में जातिवाद ने इतने पैर पसार लिए हैं की कोई भी मुद्दा हो उसमें धर्म घुसा दिया जाता है। देश की जनता आपस में मिलजुलकर रहती है ,रहती आयी है। लेकिन नेताओं ने वोटों की खातिर आपस में लड़वाना शुरू कर दिया है। कुछ मुद्दे जो आपसी सहमति से सुलझ सकते हैं उन्हें भी उलझाकर रख दिया। कुछ नेता लोग देश में शांति चाहते ही नहीं उन्हें सिर्फ कुर्सी प्यारी है। कुर्सी के लिए वे कुछ भी अनर्गल करने को तैयार हैं।

देश में तीन दशक से अयोध्या में राम मंदिर का मसला कुछ राजनैतिक पार्टियों के लिए वोटबैंक बन गया है तो कुछ दल इसका विरोधकर अपना वोटबैंक बना रहे हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया हुआ हुआ है। लेकिन कोर्ट इसपर फैसला नहीं दे पा रही है। तारीख पर तारीख लगाई जा रही है। हाल ही में कोर्ट द्वारा फैसला ना देने और आगे की तारीख लगा देने से राजनीति गरमा रही है। हिन्दू वादी दलों एवं देश की अधिकांश हिन्दू जनता अयोध्या में राम मंदिर बनने के पक्ष में बढ़चढ़कर बयान देने में लह गए हैं। वहीं भारतीय जनता पार्टी अभी भी कोर्ट के फैसले की इन्तजार में है। जबकि बीजेपी के कुछ नेता एवं सहयोगी पार्टी शिवसेना ने बीजेपी को ही आड़े हाथो लेना शुरू कर दिया है। वे चाहते हैं की यदि फैसला नहीं आ रहा है तो जनता की भावना अनुसार अध्यादेश लाकर ेआम मंदिर का निर्माण शुरू कराया जाये। जबकि विरोधी पक्ष कोर्ट के फैसले को मानने की बात करता है और अध्यादेश की बात को गलत बताता है।

अब आपसी सहमति की कोई संभावना नज़र नहीं आ रही है। राम भक्त राम मंदिर बनाने को व्याकुल हैं। आने वाले समय में भारतीय राजनीति में बहुत तूफ़ान उठने की संभावनाएं नज़र आ रही हैं। लेकन क्या ही अच्छा हो की आपसी सहमति से राम मंदिर का निर्माण हो। हिंदुओं के बहुत मंदिर तोड़े गए लेकिन फिर भी देश भर में हिन्दू सभी के साथ मिलजुलकर रहते आये हैं। ऐसे में विरोधी पक्ष भाई चारा कायम रखते हुए राम मंदिर बनाने की सहमति प्रदान करे तो यह भारतीय इतिहास का स्वर्ण काल कहलायेगा। भारत में जातिवाद से परे एक आपसी सहयोग से जीवन जीने की कला की नई शुरुवात होगी।                                 *सुनील जैन राना *



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