रविवार, 25 फ़रवरी 2024
असली- नकली पहचानिए
🍃 *Arogya*🍃
*दूध असली है या नकली ऐसे पहचानिए मिलावट के तरीके*
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लेकिन अब मिलावट के तरीके बदल गए हैं, काफी तकनीकी हो गए हैं। अब तो दूध को सीधा गलत तरीके से बनाने की कोशिश की जाती है। केवल दूध ही नही 6, दूध से बनने वाले अन्य खाद्य पदार्थ जैसे कि पनीर, घी, मावा, इत्यादि गलत तरीकों से बनाए जा रहे हैं।
*सर्फ*
जी हां… शायद आज तक आप इस सच्चाई से परे ही रहे हों, लेकिन दूध से बनने वाला ‘मावा’ अकेले दूध की मदद से ना बनकर कपड़े धोने वाले सर्फ के प्रयोग से बनाया जा रहा है। त्योहारों पर मिठाई की डिमांड बढ़ने पर मांग की पूर्ति करने के लिए दुकानदार खतरनाक तरीका अपना रहे हैं। वो ऐसे सिंथेटिक मावे की मिठाई बेच रहे हैं, जिनमें वाशिंग पाउडर तक मिलाया जाता है।
*मिठाई में भी*
देशभर में सप्लाई होने वाली इस मिठाई को मुरैना और भिंड में बड़े स्तर पर बनाया जाता है। एक बार माल तैयार होते ही उसे ग्वालियर भेजा जाता है और फिर देशभर में सप्लाई किया जाता है।
*वाशिंग पाउडर*
लेकिन मावे को बनाने के लिए वाशिंग पाउडर का इस्तेमाल क्यूं हो रहा है, इसके पीछे भी लोगों ने एक जुगत लगाई है। दरअसल इस सिंथेटिक मावे को बनाने के दौरान उसमें वाशिंग पाउडर भी डाला जाता है। पहले दूध से क्रीम निकाली जाती है, जिसके बाद उसमें यूरिया के अलावा डिटर्जेंट पाउडर और घटिया क्वालिटी का रिफाइंड या वनस्पति घी मिलाया जाता है।
*मावे को बनाने के लिए*
मावे को बनाने के लिए जिस यूरिया की जरूरत पड़ती है वह महंगा होता है, जब मिलावट करने वाले लोगों को समझ में आया कि यूरिया का काम वाशिंग पाउडर भी कर सकता है तो उन्होंने मिलावट का यह गंदा खेल आरंभ कर दिया। इन सभी मिलावटी चीजों को मिलाने के बाद जो पदार्थ तैयार होता है, उससे फिर मावा बना लिया जाता है।
*ऐसे पहचानें नकली दूध*
चलिए यहां आपको कुछ तरीके बताते हैं जो आपको असली या नकली दूध में फर्क बताने में सहायक सिद्ध होंगे।
*पहला तरीका*
सिंथेटिक दूध की पहचान करने के लिए उसे सूंघे। अगर उसमें साबुन जैसी गंध आती है तो इसका मतलब है कि दूध सिंथेटिक है जबकि असली दूध में कुछ खास गंध नहीं आती है।
*दूसरा तरीका*
असली दूध का स्वाद हल्का मीठा होता है, जबकि नकली दूध का स्वाद डिटर्जेंट और सोडा मिला होने की वजह से कड़वा हो जाता है।
*तीसरा तरीका*
असली दूध स्टोर करने पर अपना रंग नहीं बदलता,जबकि नकली दूध कुछ वक्त के बाद पीला पड़ने लगता है। दूध में पानी के मिलावट की पहचान के लिए दूध को एक काली सतह पर छोड़ें। अगर दूध के पीछे एक सफेद लकीर छूटे तो दूध असली है।
*चौथा तरीका*
अगर हम असली दूध को उबालें तो इसका रंग नहीं बदलता, वहीं नकली दूध उबालने पर पीले रंग का हो जाता है।
*पांचवा तरीका*
दूध में पानी की मिलावट की जांच करने के लिए किसी चिकनी लकड़ी या पत्थर की सतह पर दूध की एक या दो बूंद टपकाकर देखिए। अगर दूध बहता हुआ नीचे की तरफ गिरे और सफेद धार सा निशान बन जाए तो दूध शुद्ध है।
*छठा तरीका*
असली दूध को हाथों के बीच रगड़ने पर कोई चिकनाहट महसूस नहीं होती। वहीं, नकली दूध को अगर आप अपने हाथों के बीच रगड़ेंगे तो आपको डिटर्जेंट जैसी चिकनाहट महसूस होगी।
*Dr.(Vaid) Deepak Kumar*
*Adarsh Ayurvedic Pharmacy*
*Kankhal Hardwar* *aapdeepak.hdr@gmail.com*
*9897902760*
बुधवार, 21 फ़रवरी 2024
रविवार, 18 फ़रवरी 2024
किसान आंदोलन
किसान आंदोलन देशहित में नहीं
किसान आंदोलन पंजाब से शुरू हो रहा है। पंजाब के किसान पंजाब सरकार से अपनी मांगे न मनवाकर सीधे दिल्ली कूच कर केंद्र सरकार पर दबाब डालने की राजनीति बनाने का प्रयास कर रहे हैं। पंजाब के किसान देश के अमीर किसानों की श्रेणी में आते हैं। अभी तक सरकार द्वारा किसानों को जो छूट दी गई है उसका सबसे ज्यादा फायदा पंजाब के किसान ही उठाते हैं। फिर क्यों ये किसान ऐसी मांगो को लेकर आंदोलन कर रहे हैं जो किसी भी सरकार के लिए मानी नहीं जा सकती।
ऐसा लगता है जैसे यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित है। विपक्ष को मोदीजी की सफलता रास नहीं आ रही है। जब विपक्ष में बैठी होती थी तब इन्होंने MSP जैसे कानूनों को लागू करने से मना कर दिया था क्योंकि ये कानून देशहित में नहीं थे। आज विपक्ष खासकर राहुल गांधी सत्ता की चाहत में कह रहे हैं की हमारी सरकार आई तो हम किसानों की सभी बातों को मान लेंगे। राहुल गांधी के सुर में सुर मिलाकर किसानों की मांगों के समर्थन की बात कर रहे हैं। जबकि उन्हें भी पता है कि MSP की सभी मांगो को पूरा करना सम्भव नहीं है।
देश का बजट 46 लाख करोड़ रुपये है और MSP की सभी मांगो को मान लेने में ही 40 लाख करोड़ रुपये खर्च हो जाएगा। लेकिन सत्ता की छटपटाहट में विपक्षी नेतागण सबकी सब मांगे मान लेने को तैयार बैठे हैं। वे यह नहीं सोच रहे की इन मांगों को मान लेने पर इनकी पूर्ति कैसे करेंगे? वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा किसानों के हित मे अनेक योजनाएं बनाई गई है जिसका लाभ किसान उठा रहे हैं। किसानों के बैंक खाते में धन, खाद में सब्सिडी, बिजली बिल में छूट, बैंक लोन में माफी एवं छूट आदि अनेको योजनाओं का लाभ देश के किसान उठा रहे हैं। एक आम आदमी को भी इतनी छूट नहीं मिलती जितनी किसानों को मिल रही है। वास्तव में तो किसानों को मिलने वाली छूट छोटे किसानों को मिलनी चाहियें। बड़े किसान जो करोडपति हैं उन्हें खुद से किसानों को मिलने वाले लाभों को छोड़ कर छोटे किसानों ला सहयोग करना चाहिए। लेकिन इस आंदोलन में बड़े- बड़े किसान मर्सडीज आदि गाड़ियां लेकर चल रहे हैं। ऐसे किसानों का आंदोलन अराजकता फैलाने के लिये ही किया जा रहा लगता है। किसानों की इन मांगों से देश मे महंगाई बेहताशा बढ़ जायेगी। आम आदमी का जीवन दुश्वार हो जायेगा। किसानों को सबके हित की बात भी सोचनी चाहिये।
सुनील जैन राना
बुधवार, 14 फ़रवरी 2024
ये अमीर किसान
इनका बिजली माफ होना चाहिए इनका कर्ज माफ होना चाहिए इनको सब्सिडी मिलनी चाहिए इनको एमएसपी चाहिए इनकी आमदनी पर किसी भी प्रकार का कोई टैक्स नहीं होना चाहिए अराजकता फैलाने की पूरी छूट चाहिए और अब तो इन्हें अपना अलग देश भी चाहिए क्योंकि यह अन्नदाता है यह अपने लिए कुछ नहीं पैदा करते हैं कृषि इनकी रोजी-रोटी नहीं है व्यवसाय नहीं है यह तो बस जो भी कर रहे हैं वह दूसरों के लिए बिना किसी स्वार्थ के कर रहे हैं......एक शब्द में कहिए कि किसान के नाम पर आंदोलन करने वाले लोग सरकार को ब्लैकमेल करने वाले लोग हैं विपक्षी पार्टियों के टूल किट के किरदार हैं देश विरोधी ताकतों के पालतू लोग हैं यही इनकी असलियत है है कड़वा है लेकिन सच है। सरकार को सिर्फ गरीब किसानों के लिये योजनाएं बनानी चाहिए। गरीब किसान परेशान रहता है। अमीर किसान को मदद की कोई जरूरत नही होती। अमीर किसान आंदोलन मर मर्सडीज गाड़ियां लेकर चल रहे है। ये सिर्फ अराजकता फैलाना चाहते है किसी के इशारों पर।
मंगलवार, 13 फ़रवरी 2024
रविवार, 11 फ़रवरी 2024
रिटायरमेंट के बाद
*रिटायरमेंट के बाद का जीवन:-*
_दिल्ली शहर के सरोजनी नगर में एक आईएएस अफसर रहने के लिए आए, जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे।_
_ये बड़े वाले रिटायर्ड आईएएस अफसर, हैरान-परेशान से रोज शाम को पास के पार्क में टहलते हुए, अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे।_
_एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगूँ के लिए बैठे और फिर रोज़ाना उनके पास बैठने लगे_
_लेकिन उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था- *"मैं दिल्ली में इतना बड़ा आईएएस अफ़सर था कि पूछो मत! यहाँ तो मैं मजबूरी में आ गया हूँ। मुझे तो अमेरिका में बसना चाहिए था..."*_
_और वो बुजुर्ग प्रतिदिन शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे।_
_परेशान होकर एक दिन बुजुर्ग ने उनको समझाया - *"आपने कभी फ्यूज बल्ब देखे हैं? बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है कि बल्ब किस कम्पनी का बना हुआ था? या कितने वाट का था? या उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी?*_
_*बल्ब के फ्यूज़ होने के बाद ये सब बातें कोई मायने नहीं रखती हैं... बताओ, लोग ऐसे बल्ब को कबाड़ में डाल देते हैं कि नहीं!"*_
_रिटायर्ड आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति में सिर हिलाया तो बुजुर्ग फिर बोले -_ _*"रिटायरमेंट के बाद करीब करीब सभी की स्थिति, फ्यूज बल्ब जैसी हो जाती है।*_
_*हम कहाँ काम करते थे, कितने बड़े अथवा छोटे पद पर थे, हमारा क्या रुतबा था, ये कुछ भी मायने नहीं रखता।"*_
_वे आगे बोले- *"मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूँ और मैंने आजतक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार संसद सदस्य रह चुका हूँ।*_
_*वो जो सामने जाटव जी बैठे हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे।*_
_*वे सामने से आ रहे माहौर जी साहब- सेना में ब्रिगेडियर थे।*_
_*वो माँझी जी- इसरो में चीफ थे... मग़र ये बात उन्होंने किसी को नहीं बताई है, मुझे भी नहीं! अब वो हों चाहे मैं! हम यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि सारे फ्यूज़ बल्ब करीब-करीब एक जैसे ही हो जाते हैं, चाहे जीरो वाट का हो 50 वाट का हो या 100 वाट का!"*_
_सीधा फंडा है- रोशनी नहीं तो उपयोगिता नहीं।_
_उगते सूर्य को जल चढ़ा कर सभी पूजा करते हैं। पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं करता।_
_कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते हैं कि रिटायरमेंट के बाद भी उनसे अपने जलबे, भुलाए नहीं जाते! वे अपने घर के आगे नेम प्लेट लगाते हैं - रिटायर्ड आइएएस/रिटायर्ड आईपीएस/रिटायर्ड पीसीएस/ रिटायर्ड जज आदि-आदि।_
_अब ये रिटायर्ड IAS/IPS/PCS/ Engineer/तहसीलदार/ पटवारी/ बाबू/ प्रोफेसर/ प्रिंसिपल/ अध्यापक आदि... जाने कितनी और कौन-कौनसी पोस्ट होती हैं भाई?_
_माना कि आप बहुत बड़े आफिसर थे, बहुत काबिल भी थे, या छोटे भी थे तो आपके हुनर की पूरे महकमे में तूती बोलती थी!_
_पर अब यह सब बातें मायने नहीं रखतीं! अब मायने रखती है तो सिर्फ़ यह बात - कि पद पर रहते समय आप इंसान कैसे थे...?_
_आपने कितनी जिंदगियों को छुआ...?_
_आपने आम लोगों को कितनी तबज्जो दी कि नहीं?..._
_आपने समाज को क्या दिया?_
_लोगों के कितने काम आए?_
_लोगों की मदद की या अपने पद के घमंड में ही सूजे रहे...?_
_मित्रों, 'ये सीख' इस समय जो लोग पदों पर आसीन हैं... कार्यरत हैं... उनके लिए भी है कि- अगर पद पर रहते हुए कभी घमंड आए... तो बस याद कर लेना कि- एक दिन सबको फ्यूज होना है, और फ़्यूज होने के बाद अग़र अहमियत रहेगी तो सिर्फ़ इस बात की- कि आपने अपने जीवनकाल में (जब आप सक्षम थे तब) कितने लोगों को रोशनी प्रदान की।_
_अतः मित्रों, चाहे आप पद पर हों या न हों! अभी भी वक्त है। चिंतन करिए... तथा समाज एवं सोसायटी का, जो भी संभव हो हित कीजिए... अपने आभामंडल रूपी बल्ब से समाज एवं देश को रोशन कीजिए।_
_😊
गुरुवार, 8 फ़रवरी 2024
प्राचीन भारतीय ज्ञान
यदि हमारे पूर्वजो को हवाई जहाज बनाना नहीं आता, तो हमारे पास "विमान" शब्द भी नहीं होता।
यदि हमारे पूर्वजों को Electricity की जानकारी नहीं थी, तो हमारे पास "विद्युत" शब्द भी नहीं होता।
यदि "Telephone" जैसी तकनीक प्राचीन भारत में नहीं थी तो, "दूरसंचार" शब्द हमारे पास क्यो है।
Atom और electron की जानकारी नहीं थी तो अणु और परमाणू शब्द कहा से आए।
Surgery का ज्ञान नहीं था तो, "शल्य चिकितसा" शब्द कहा ये आया।
विमान, विद्युत, दूरसंचार , ये शब्द स्पष्ट प्रमाण है, कि ये तकनीक भी हमारे पास थी।
फिसिक्स के सारे शब्द आपको हिन्दी में मिल जाएगे।
बिना परिभाषा के कोई शब्द अस्तित्व में रह नहीं सकता।
सौरमंडल में नौ ग्रह है व सभी सूर्य की परिक्रमा लगा रहे है, व बह्ममांड अनंत है, ये हमारे पूर्वजो को बहुत पहले से पता था। रामचरित्र मानस में काक भुशुंडि - गरुड संवाद पढिए, बह्ममांड का ऐसा वर्णन है, जो आज के विज्ञान को भी नहीं पता।
अंग्रेज जब 17-18 सदी में भारत आये तभी उन्होने विज्ञान सीखा, 17 सदी के पहले का आपको कोई साइंटिस्ट नहीं मिलेगा,
17 -18 सदी के पहले कोई अविश्कार यूरोप में नहीं हुआ, भारत आकर सीखकर, और चुराकर अंग्रेजो ने अविश्कार करे।
भारत से सिर्फ पैसे की ही लूट नहीं हुई, ज्ञान की भी लूट हुई है।
वेद ही विज्ञान है और हमारे ऋषि ही वैज्ञानिक है
जय श्री राम , जय सनातन संस्कृति ।
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पुरानी यादें
एक जमाना था... खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि साइकिल बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे म...