सोमवार, 30 अक्तूबर 2023
गन्दगी ही गन्दगी
सामाजिक गन्दगी एवं राजनैतिक गन्दगी
आज के भौतिक युग में इंसान की सोच में काफी बदलाव आ रहा है लेकिन आज भी अनेक बातों में सामाजिक गन्दी एवं राजनैतिक गन्दगी में कमीं नहीं आई है। देश मे स्वच्छ अभियान से सार्वजनिक गन्दगी में भी काफी कमीं आई है। गली- मोहल्लों में अब पहले जैसी गन्दगी कम ही दिखाई देती है।
सामाजिक गन्दगी की बात करें तो आज भी अनेकों टीवी सीरियलों में घर- गृहस्ती में घोलने वाले सीरियल चल रहे हैं। एकता कपूर जैसी नारी ने अपने सीरियलों से भारतीय संस्कृति की धज्जियां उड़ा रखी हैं। अब तो वेब सीरीज़ उससे भी कहीं आगे बढ़कर गन्दगी परोस रही हैं। पता नहीं सेंसर बोर्ड को यह सब दिखाई क्यों नही दे रहा है?
एक प्रकार की गन्दगी टीवी चैनलों पर परोसी जा रही है जो राजनैतिक स्तर पर नेताओ की मानसिकता उजागर कर रही है। टीवी चैनल वाले 4 दलों के 4 प्रवक्ताओं को बुलाकर किसी भी मुद्दे पर जो निम्न स्तर की डिबेट कराते हैं उससे समाज मे जहर ही घुल रहा है। सभी जानते हैं कि किसी भी दल का प्रवक्ता अपने नेता की तारीफ़ करेगा एवं बाकियों को लज्जामय जबाब देगा। वर्तमान में बीजेपी की सरकार है तो एक प्रवक्ता बीजेपी का तीन प्रवक्ता अन्य दल के चौथा एंकर तो घमासान होना लाज़मी ही है। जनहित में ऐसी डिबेट बन्द होनी चाहियें। सभी दलों की सोच में भिन्नताएं तो होती ही हैं। लेकिन यदि डिबेट में पक्ष और विपक्ष बैठा हो तब वार्तालाप का स्तर किस हद तक गिर रहा है यह जनता देख रही है।
जनहित में भारतीय सामाजिक संस्कृति के विनाशक टीवी सीरियल एवं वेब सीरीज़ बन्द होनी चाहियें एवं समाचार चैनलों पर कई दलों के प्रवक्ताओं की डिबेट बन्द होनी चाहिये। किसी मुद्दे पर डिबेट ही करनी है तो उस मुद्दे से सम्बंधित बुद्धिजीवियों को बुलाना चाहिये।
सुनील जैन राना
NDA/ INDIA
एनडीए बनाम I.N.D.I.A गठबंधन
देश मे ज्यों- ज्यों चुनाव नज़दीक आ रहे हैं राजनैतिक स्तर पर सभी प्रकार के हथकंडे अपनाये का रहे हैं। मोदीजी के नेतृत्व में एनडीए के मुकाबले बाकी सभी दल महागठबंधन बना फिर उसे नया नाम I. N.D.I.A देकर मैदान में जुट गए हैं। सत्ता की खातिर सब एकत्र तो हो गए हैं लेकिन सबकी अपनी महत्वकांक्षा के कारण अभी से विवाद होने लगे हैं।
विवाद होने लाज़मी भी है क्योंकि भले ही सब मोदीजी दोबारा पीएम न बन जायें इस चक्कर मे एकत्रित तो हो गए लेकिन इनमें से ज्यादातर दल क्षेत्रीय दल हैं। जहाँ उन दलों की अच्छी पकड़ है और अपने ही प्रभाव के कारण बाज़ी जीतने के काबिल हैं तो ऐसे में वे दल अपने क्षेत्र में अन्य दलों को ज्यादा सीटें नहीं देना चाहते हैं। ऐसा अनेक राज्यों में सम्भव है। ऐसे में सबसे बड़ी समस्या सबसे बड़े दल कांग्रेस को ही आ रही होगी। कभी देश पर राज करने वाली कांग्रेस को आज ऐसे दलों के सामने झुकना पड़ा रहा है जो कांग्रेस के आगे कुछ भी प्रभाव नहीं रखते हैं। राजनीति के जानकार तो यहां तक कहते हैं की ऐसा लगता है लोकसभा के चुनावों में सीटों की बन्दरबाँट में कहीं ये दल सब मिलकर कांग्रेस को ही न निपटा दें। क्योंकि राज्यवार अनेक प्रभावी दल अपनी सीटों में कमी नहीं करना चाहेंगे।
यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण ही है की सत्ता की खातिर अनेक दिलजले दिल मिलाने को चले। जबकि अनेक दल अपने- अपने राज्यों में ही एक दूसरे से लड़ रहे हैं। सिर्फ मोदी विरोध को लेकर इन सब दलों ने देश में विकास को हाशिये पर रख दिया है। यह कोई नहीं सोच रहा की मोदी सरकार में कितना कार्य हुआ है। देश मे सड़को का जाल बिछा दिया है। पीने के पानी की उपलब्धता पहले से कई गुनी ज्यादा हुई है। बिजलीं पहले से कहीं ज्यादा मिल रही है। सेना के पास बुलेट प्रूफ जैकेट तक नहीं होती थी आज सेना का आधुनिकीकरण हो रहा है। हथियार देश मे बनने शुरू हो गए हैं। मेक इन इंडिया के तहत देश मे नये-नये उद्योग लग रहे हैं। विश्व स्तर पर भारत का नाम उचाईयों पर है।
विपक्ष का यह कहना की गैस महंगी है तो याद रखना चाहिए कि 2014 में गैस सिलेंडर 1200 तक का हो गया था। उस पर भी कहा जाता था एक साल में 9 ही मिलेंगे। बेरोजगारी पर रोना रोया जाता है। तो आज़ादी के बाद से ही बेरोजगारी कम नही हुई। जिस हिसाब से पॉपुलेशन बढ़ रही है कोई भी सरकार सबको रोजगार नहीं दे सकती। महंगाई बढ़ी है तो आमदनी भी बढ़ी है। आज कोई खाली भी दिखाई नहीं देता। कम मजदूरी में कोई काम नहीं कर रहा। यह तो हमेशा से विपक्ष का रोना है उसमें चाहे कोई भी दल हों।
सुनील जैन राना
अर्धनग्न कपड़े क्यों?
स्त्रियों के अर्धनग्न और छोटे कपडो़ में घूमने पर जो लोग या स्त्रियाँ ये कहते हैं कि कपड़े नहीं सोच बदलो
उन लोगों से कुछ प्रश्न हैं !! आशा है आप जवाब देंगे 🙏
1)पहली बात - हम सोच क्यों बदलें?? सोच बदलने की नौबत आखिर आ ही क्यों रही है??? आपके अनुचित आचरण के कारण ??? और आपने लोगों की सोच का ठेका लिया है क्या??
2) दूसरी बात - आप उन लड़कियों की सोच का आकलन क्यों नहीं करते?? कि उन्होंने क्या सोचकर ऐसे कपड़े पहने कि उसके स्तन पीठ जांघे इत्यादि सब दिखाई दे रहा है....इन कपड़ों के पीछे उसकी सोच क्या थी?? एक निर्लज्ज लड़की चाहती है की पूरा पुरुष समाज उसे देखे, वहीँ दूसरी तरफ एक सभ्य लड़की बिलकुल पसंद नहीं करेगी की कोई उसे इस तरह से देखे।
3)अगर सोच बदलना ही है तो क्यों न हर बात को लेकर बदली जाए??? आपको कोई अपनी बीच वाली ऊँगली का इशारा करे तो आप उसे गलत मत मानिए......सोच बदलिये..वैसे भी ऊँगली में तो कोई बुराई नहीं होती....आपको कोई गाली बके तो उसे गाली मत मानिए...उसे प्रेम सूचक शब्द समझिये..... ???
हत्या ,डकैती, चोरी, बलात्कार, आतंकवाद इत्यादि सबको लेकर सोच बदली जाये...सिर्फ नग्नता को लेकर ही क्यों? क्या ये सारे कार्य अभिव्यक्ति की आज़ादी की श्रेणी में ही आते हैं????
4) कुछ लड़कियां कहती हैं कि हम क्या पहनेगे ये हम तय करेंगे....पुरुष नहीं.....
जी बहुत अच्छी बात है.....आप ही तय करें....लेकिन हम पुरुष भी किन लड़कियों का सम्मान/मदद करेंगे ये भी हम तय करेंगे, स्त्रियां नहीं.... और
"हम किसी का सम्मान नहीं करेंगे इसका अर्थ ये नहीं कि हम उसका अपमान करेंगे।"
5)फिर कुछ विवेकहीन लड़कियां कहती हैं कि हमें आज़ादी है अपनी ज़िन्दगी जीने की.....
जी बिल्कुल आज़ादी है, ऐसी आज़ादी सबको मिले, व्यक्ति को चरस गंजा ड्रग्स ब्राउन शुगर लेने की आज़ादी हो, गाय भैंस का मांस खाने की आज़ादी हो, वैश्यालय खोलने की आज़ादी हो, पोर्न फ़िल्म बनाने की आज़ादी हो... हर तरफ से व्यक्ति को आज़ादी हो।????
6) लड़कों को संस्कारो का पाठ पढ़ाने वाला कुंठित स्त्री समुदाय क्या इस बात का उत्तर देगा कि क्या भारतीय परम्परा में ये बात शोभा देती है की एक लड़की अपने भाई या पिता के आगे अपने निजी अंगो का प्रदर्शन बेशर्मी से करे ??? क्या ये लड़कियां पुरुषों को भाई/पिता की नज़र से देखती हैं ??? जब ये खुद पुरुषों को भाई/पिता की नज़र से नहीं देखती तो फिर खुद किस अधिकार से ये कहती हैं कि
"हमें माँ/बहन की नज़र से देखो"???
कौन सी माँ बहन अपने भाई बेटे के आगे नंगी होती हैं??? भारत में तो ऐसा कभी नहीं होता था....
सत्य यह है की अश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधों की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दुकान है और इसका उत्पादन स्त्री समुदाय करता है।
मष्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशों में एक नशा अश्लीलता(से....) भी है।
आचार्य कौटिल्य ने चाणक्य सूत्र में वासना' को सबसे बड़ा नशा और बीमारी बताया है।।
यदि यह नग्नता आधुनिकता का प्रतीक है तो फिर पूरा नग्न होकर स्त्रियां पूर्ण आधुनिकता का परिचय क्यों नहीं देती????
गली गली और हर मोहल्ले में जिस तरह शराब की दुकान खोल देने पर बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है उसी तरह अश्लीलता समाज में यौन अपराधों को जन्म देती है।इसको किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता है.।।
विचार करिए और चर्चा करिए.... या फिर मौन धारण कर लीजिए ।।
शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2023
धार्मिक मान्यताएं
भारत देश विभिन्न संस्कृतियों का देश है। यहां के रीति रिवाज और धार्मिक मान्यतायें अपने आप में अनूठी हैं। सभी धर्मो के अनेको पर्व सभी के मन को लुभाते हैं। सभी धर्मो के अनेको पर्व पर बेहताशा धन का व्यय भी होता है। भगवान के नाम पर हम सभी दिल खोलकर अपनी हैसियत के अनुसार धन -धान्य आदि अर्पण करते हैं। लेकिन हमने कभी नहीं सोचा की हम जो भी अर्पण भगवान के नाम पर मंदिरो में कर रहे हैं क्या वह भगवान तक पहुंच रहा है ?
यह बहुत ही संजीदा प्रश्न है। जिसका उत्तर हम सभी अपने -अपने तरीके से दे सकते हैं। यह कटु सत्य है की जब एक आम आदमी बड़ा आदमी बन जाता है यानी पैसे वाला बन जाता है तो फिर उसके झुकाव धर्म की तरफ नहीं बल्कि किसी भगवान की तरफ हो जाता है। इसके भी दो कारण होते हैं ,प्रथम तो यह की उसे प्राप्त धन में से वह कुछ हिस्सा भगवान के नाम पर मंदिर में देकर अपना फर्ज अदा करना चाह रहा होता है ,द्वितीय यह की अब उसे समाज में बड़े आदमी की तरह बड़े नाम की शोहरत चाहिए होती है जिसे वह मंदिर में कुछ बड़ा अर्पण कर या बड़ी बोली लेकर पूर्ण करना चाहता है।
अनादिकाल से ऐसा ही होता चला आ रहा है। लेकिन आज के भौतिक युग में ,बढ़ती जनसंख्या में अपनी कुछ धार्मिक मानसिकता बदलनी चाहिये। मंदिर के भगवान के अलावा परोपकार भी तो धर्म का ही हिस्सा है। तब क्यों नहीं धनवान लोग मंदिर में दान की अपेक्षा परोपकार को महत्ता देते हैं। कॉरपोरेट्स जगत में ऐसे कई नाम हैं जो अपने लाभ का एक हिस्सा परोपकार में लगा देते हैं। लेकिन आज भी अधिकांश आम आदमी मंदिर में चढ़ावे को ही अच्छा मानता है परोपकार के कार्यो से दूर रहता है।
हमें यह सोचना चाहिए की हमारे द्वारा मंदिर में दिये गये दान का क्या होता है ?भगवान के नाम पर हम जो भोग लगा रहे हैं उसे कौन खा रहा है ?मंदिर में दान स्वरूप आये करोड़ो रुपयों का क्या हो रहा है ? मंदिर में चढाये सोने -चांदी , हीरे -जवाहरात के जेवर का क्या हो रहा है ?क्या यह सब भगवान के पास पहुंचा है ?
सच बात तो यह है की भगवान कुछ देते ही हैं कभी कुछ लेते नहीं हैं। ऐसे में हमने जो कुछ भी भगवान को चढ़ाया है उसे भगवान नहीं बल्कि मंदिर के पुजारी -कमेटी आदि ग्रहण कर लेती है। साउथ के एक अमीर मंदिर के पुजारी की बेटी की शादी की फोटो सोशल मिडिया पर देखी। जिसमे पुजारी की लड़की ने गले से लेकर नाभि तक सोने के हार पहन रखे थे जो पुजारी ने उसको दहेज में दिये होंगे। ऐसे में हमें सोचना चाहिये की हमारा दान कहां जा रहा है।
इसलिये हमें परोपकार में अपना तन -मन धन लगाना चाहिये। वही सच्चा धर्म है। *सुनील जैन राना *
सोमवार, 16 अक्तूबर 2023
रविवार, 15 अक्तूबर 2023
गृहणी
💗 सभी महिलाओं को समर्पित 💗
रसायनशास्त्र से शायद ना पड़ा हो पाला
पर सारा रसोईघर प्रयोगशाला
दूध में साइटरीक एसिड डालकर पनीर बनाना या
सोडियम बाई कार्बोनेट से केक फूलाना
चम्मच से सोडियम क्लोराइड का सही अनुपात तोलती
रोज कितने ही प्रयोग कर डालती हैं
पर खुद को कोई वैज्ञानिक नही
बस गृहिणी ही मानती हैं
रसोई गैस की बढ़े कीमते या सब्जी के बढ़े भाव
पैट्रोल डीजल महँगा हो या तेल मे आए उछाल
घर के बिगड़े हुए बजट को झट से सम्हालती है
अर्थशास्त्री होकर भी
खुद को बस गृहिणी ही मानती हैं
मसालों के नाम पर भर रखा
आयूर्वेद का खजाना
गमलो मे उगा रखे हैं
तुलसी गिलोय करीपत्ता
छोटी मोटी बीमारियों को
काढ़े से भगाना जानती है
पर खुद को बस गृहिणी ही मानती हैं।
सुंदर रंगोली और मेहँदी में
नजर आती इनकी चित्रकारी
सुव्यवस्थित घर में झलकती है
इनकी कलाकारी
ढोलक की थाप पर गीत गाती नाचती है
कितनी ही कलाए जानती है पर
खुद को बस गृहिणी ही मानती हैं
समाजशास्त्र ना पढ़ा हो शायद
पर इतना पता है कि
परिवार समाज की इकाई है
परिवार को उन्नत कर
समाज की उन्नति में
पूरा योगदान डालती है
पर खुद को बस गृहिणी ही मानती हैं।
मनो वैज्ञानिक भले ही ना हो
पर घर में सबका मन पढ लेती है
रिश्तों के उलझे धागों को
सुलझाना खूब जानती है
पर खुद को बस गृहिणी ही मानती हैं।
योग ध्यान के लिए समय नहीं है
ऐसा अक्सर कहती हैं
और प्रार्थना मे ध्यान लगाकर
घर की कुशलता मांगती है
खुद को बस गृहिणी ही मानती हैं।
ये गृहणियां सच में महान है
कितने गुणों की खान है
सर्वगुण सम्पन्न हो कर भी
अहंकार नहीं पालती है
खुद को बस गृहिणी ही मानती हैं।
🙏🙏🙏
साभार
जातीय जनगणना
जातीय जनगणना की सियासत
विकास के रास्ते पर चल रहे देश को सत्ता की खातिर जातियों में बांटकर सत्ता कब्जाने के प्रयास हो रहे हैं। आज़ादी मिली लेकिन हिन्दू- मुस्लिम के चक्कर मे देश का बंटवारा हो गया। पूर्व पीएम वी पी सिंह ने मंडल - कमंडल कर देश मे फिर से जातिवाद को हवा देकर देश मे अराजकता का माहौल बना दिया। आरक्षण की हवा से एक बार फिर से देश को बांटने का प्रयास किया गया। कांग्रेस ने अल्पसंख्यक के नाम पर राज तो किया लेकिन अल्पसंख्यको का भला नहीं किया।
वर्तमान में चुनाव नजदीक आते ही देश की कई पार्टियों को एक बार फिर से जात- पात का बीज बोकर अपना वोटबैंक बनाने की सूझ रही है। जातिवाद के नाम पर बांट देना चाहते हैं देश को। जातीय जनगणना की सियासत कर रहे कुछ दलों को चुनावो के नज़दीक आने पर अपनी स्थिति कमजोर देख जातीय समीकरण पर जीत हासिल करने की सोच के कारण उन्हें जातीय जनगणना कराने की सूझ रही है। बिहार सरकार ने बिहार में जातीय जनगणना कराकर राज्य में द्वेष भाव का बीज बो दिया है। इससे किसे अधिक फायदा होगा यह तो चुनावों के बाद ही पता चलेगा। लेकिन इसकी देखा देखी अन्य कुछ राज्यो में जातिगत जलूस निकलने लगे हैं। अब हर कोई अपनी जाति संख्या को मजबूत बताकर सरकारों से सरकार में अपनी हिस्सेदारी की बात करने लग रहा है। ऐसा होना दुर्भाग्यपूर्ण ही है। लोगो के आपस मे भाईचारे में ही कमी आयेगी जो समाज के लिये घातक सिद्ध हो सकती है।
अल्पसंख्यक समाज जिसमें आती तो कई कौम हैं लेकिन उनमें मुस्लिम समाज की ही प्रमुखता है। बहुसंख्यक समाज जो हिन्दू समाज भी कहा जाता है जातीय जनगणना के नाम पर उसको बाटने की साज़िश हो रही लगती हैं। इतिहास गवाह है की हिंदू समाज में भले ही अनेकों धर्म के लोग हों लेकिन सभी मिलजुल कर रहते आये हैं। चुनावों के समय जातिगत जनगणना का बीज बोकर अपनी फ़सल काटने वाले लोग सबका भला नहीं कर सकते। सिर्फ सत्ता की खातिर विकास की उपेक्षा कर सत्ता प्राप्त करने वाले देशहित की बात सोच ही नहीं सकते। जनता को अपने भविष्य को ध्यान में रखकर वोट देते समय सही पार्टी का चुनाव कर वोट करना चाहिये।
सुनील जैन राना
सोमवार, 9 अक्तूबर 2023
रविवार, 8 अक्तूबर 2023
जैन धर्म पर आपदा
जैन तीर्थो पर हो रहे हमले
जैन समाज जो सदैव अहिंसा, जीवदया, परोपकारी कार्यों में अग्रणी रहता है। 50 लाख से भी कम आज़ादी होने के बावजूद देश के राजस्व का लगभग एक चौथाई टैक्स के रूप में अर्पित करता है। देश मे सर्वाधिक चैरिटेबल संस्थाएं एवं गौशालाएं जैन समाज के द्वारा चलाई जाती हैं। देश मे भाईचारे की मिसाल है जैन समाज।
मुगलों के समय गुरुगोविंद जी के दोनों लड़कों के अंतिम संस्कार को
दो गज जगह 78 हज़ार सोने की मोहरें देकर टोडरमल जैन ने खरीदी। महाराणा प्रताप द्वारा मुगलों से युद्ध करते-करते धन खत्म हो जाने पर उनके मित्र भामाशाह जैन ने अपनी सम्पदा देकर महाराणा प्रताप की मदद की। आज़ादी के समय अनेक जैन विभूतियों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। ऐसे जैन समाज पर आज विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ रहा है।
बहुत रोषपूर्ण, दुर्भाग्यपूर्ण शब्दो मे यह कहना पड़ रहा है की आज जैन पर कुठाराघात हो रहा है। जैन समाज को राजनैतिक और धार्मिक क्षेत्र में हाशिये पर ले जाने का कार्य हो रहा है। जिस पर सरकार व अन्य समाज चुप है।
जैन तीर्थो पर हमले हो रहे हैं, जैन तीर्थ कब्जाएँ जा रहे हैं, जैन तीर्थो की उपेक्षा हो रही है। ऐसा लगता है जैसे यह सब सुनियोजित तरीके से किया जा रहा हो। शाश्वत तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी को अभ्यारण बनाने की घोषणा करना। अब इस पवित्र पहाड़ पर रोपवे बनाने की योजना बनाना। श्री गिरनारजी तीर्थ पर से जैनियों को पूजा पाठ के अधिकार से वंचित कर वहां तीर्थंकर नेमीनाथ का अस्तित्व मिटाने का प्रयास करना। इंदौर में गोम्मटगिरी पर कब्जे की कोशिश करना। यही नहीं पालीताणा, उदयगिरि, केसरियाजी, पावागढ़, रणकपुर आदि प्राचीन तीर्थो पर कब्ज़े के प्रयास हो रहे हैं। उज्जैन स्थित 500 वर्ष प्राचीन पार्श्वनाथ मन्दिर जी को हटाने की कोशिश हो रही है।
यह सब होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। जैन श्रमण संस्कृति का उल्लेख नेट पर सर्च करें तो पता चले की कितनी सम्पन्न और प्राचीन संस्कृति है जैन धर्म की। वर्तमान में जैन समाज के जो तीर्थ चले गये उनकी मांग नहीं करता लेकिन अभी जो तीर्थ, मन्दिर आदि बचे हैं उनकी सुरक्षा की मांग केंद्र सरकार से करते हैं। ऐसा तो नहीं हो सकता की केंद्र सरकार इन सब बातों से अवगत न हो। क्योंकि इन्ही बातों के विरोध में जैन समाज दो बार सड़को पर आकर विरोध प्रकट कर चुका है। लेकिन इस बार एक नहीं कई तीर्थो पर हमले से जैन समाज क्षुब्ध है। पानी सर से ऊपर उतर रहा है। यदि सरकार नहीं चेती तो अहिंसा का द्योतक जैन समाज एक बार पुनः अपने तीर्थों को बचाने के लिये कुछ भी करने को तैयार हो जायेगा।
सुनील जैन राना
मंगलवार, 3 अक्तूबर 2023
भारत / इंडिया
*इण्डिया v/s भारत*
*भारत में गाँव है,गली है, चौबारा है,इण्डिया में सिटी है, मॉल है,पंचतारा है।*
*भारत में घर है,चबूतरा है, दालान है,इण्डिया में फ्लेट है, मकान है।*
*भारत में काका है,बाबा है, दादा है,दादी है,इण्डिया में अंकल-आंटी की आबादी है।*
*भारत में खजूर है,जामुन है, आम है,इण्डिया में मेगी है, पिज्जा है,छलकते जाम है।*
*भारत में मटके है,दोने है, पत्तल है,इण्डिया में पोलिथीन, प्लास्टिक,बाटल है।*
*भारत में गाय है,घी है,मक्खन है,कंडे है,इण्डिया में चिकन है, बिरयानी है,अंडे है।*
*भारत में दूध है,दहीं है,लस्सी है,इण्डिया में विस्की,कोक, पेप्सी है।*
*भारत में रसोई है,आँगन है, तुलसी है,इण्डिया में रूम है, कमोड की कुर्सी है।*
*भारत में कथड़ी है,खटिया है, खर्राटे है,इण्डिया में बेड है, डनलप है,करवटें है।*
*भारत में मंदिर है,मंडप है, पंडाल है,इण्डिया में पब है, डिस्को है,हाल है।*
*भारत में गीत है,संगीत है, रिदम है,इण्डिया में डांस है,पॉप है,आइटम है।*
*भारत में बुआ है,मोसी है, बहिन है,इण्डिया में सब के सब कजिन है*
*भारत में पीपल है,बरगद है, नीम है,इण्डिया में वाल पर पूरे सीन है।*
*भारत में आदर है,प्रेम है, सत्कार है,इण्डिया में स्वार्थ है, नफरत है,दुत्कार है।*
*भारत में हजारों भाषा है, बोली है,इण्डिया में एक अंग्रेजी बड़बोली है।*
*भारत सीधा है,सहज है,सरल है,इण्डिया धूर्त है,चालाक है, कुटिल है।*
*भारत में संतोष है,सुख है,चैन है,इण्डिया बदहवास,दुखी, बेचैन है।*
*क्योंकि भारत को देवों ने संतों ने वीरों रचाया है,इण्डिया को लालची अंग्रेजों ने बसाया है।*
*मैं भारत हूँ,भारत में रहना चाहता हूँ,अपनी संतानों को भी भारत ही देना चाहता हूँ।* *🙏⚘️सादर जय जिनेन्द्र जी⚘️🙏*
सोमवार, 2 अक्तूबर 2023
रविवार, 1 अक्तूबर 2023
प्रतिक्रमण
श्रावक प्रतिक्रमण
श्रावक प्रतिक्रमण किसे कहते हैं ?
जब तक जीव संसार में है अर्थात् जब तक मन, वचन और काय का व्यापार बुद्धिपूर्वक होता है तब तक दोषों की उत्पत्ति सहज है | यानी जब तक प्रवृत्ति है तब तक सर्वथा निर्दोष कोई कोई नहीं होता | जैन धर्म में करुणावन्त आचार्यों ने पाप क्रियाओं से एवं पाप के दुःखमय फलों से बचने के लिए अनेक धर्म साधनों का निर्देश दिया है, उनमें है - प्रतिक्रमण |
गृहीत व्रतों / कर्त्तव्यों में लगे हुए दोषों के परिमार्जन को प्रतिक्रमण कहते हैं अर्थात् द्रव्य, क्षेत्र,काल एवं भावों के निमित्त से कषाय और प्रमाद के वशीभूत से व्रतों में लगे हुए अतिचारों का शोधन करना प्रतिक्रमण हैं | साधु-साध्वी, क्षुल्लिक-क्षुल्लिका और व्रती श्रावक-श्राविकाएँ नियम से प्रतिदिन प्रतिक्रमण करते हैं |
पाक्षिक, नैष्ठिक और साधक के भेद से श्रावक तीन प्रकार के हैं - श्रावक (व ज्ञाविका) अर्थात् श्रद्धावान, विवेकवान और क्रियावान | श्रावक के उक्त तीन भेदों में पाक्षिक श्रावक अपने धर्म, देव-शास्त्र-गुरु तथा अहिंसादि के परिपालनार्थ सदा पक्ष रखता है | आज्ञा प्रधानी वह पाक्षिक श्रावक जिनेन्द्र देव की आज्ञा का पालन करते हुए हिंसादि त्याग हेतु सर्वप्रथम सप्त-व्यसनों का त्याग कर अष्टमूल गुण धारण करता है और षट् आवश्यकों का पालन करता है | प्रतिमा अनुरुप व्रत ग्रहण करने की शक्ति न होने के कारण वह उपर्युक्त क्रियाओं के साथ सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान को भी अवश्य धारण करता है |
इन नियमों के प्रतिपालन में प्रमाद आदि के कारण प्रतिदिन अनेक दोष लगते हैं अतः इन दोषों की शुद्धि हेतु प्रायश्चित एवं पश्चात्ताप पूर्वक प्रतिदिन प्रतिक्रमण कर अपने श्रावकीय जीवन को सार्थक करना चाहिए |
श्रावक प्रतिक्रमण (लघु)
नमः सिद्धेभ्यः | नमः सिद्धेभ्यः | नमः सिद्धेभ्यः
चिदानन्दैकरुपाय जिनाय परमात्मने |
परमात्मप्रकाशाय नित्यं सिद्धात्मने नमः ||
अर्थ - उन श्री जिनेन्द्र परमात्मा सिद्धत्मा को नित्य नमस्कार है जो चिदानन्द रुप हैं (अष्ट कर्मों को जीत चुके हैं), परमात्मा स्वरुप हैं और परमात्मा तत्त्व को प्रकाशित करने वाले हैं|
पाँच मिथ्यात्व, बारह अवत, पन्द्रह योग, पच्चीस कषाय इस प्रकार सत्तावन आस्रव का पाप लगा हो मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे |
नित्य निगोद सात लाख, इतर निगोद सात लाख, पृथ्वीकाय सात लाख, जलकाय सात लाख, अग्निकाय सात लाख, वायुकाय सात लाख, वनस्पतिकाय दस लाख, दो इन्द्रिय दो लाख, तीन इन्द्रिय दो लाख, चार इन्द्रिय दो लाख, नरकगति चार लाख, तिर्यंचगति चार लाख, देवगति चार लाख, मनुष्यगति चौदह लाख ऐसी चौरासी लाख मातापक्ष में चौरासी लाख योनियाँ, एवं पितापक्ष में एक सौ साढ़े निन्याणवे लाख कुल कोटि, सूक्ष्म-बादर, पर्याप्त-अपर्याप्त भेद रुप जो किसी जीव की विराधना की हो मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे|
तीन दण्ड, तीन शल्य, तीन गारव, तीन मूढ़ता, चार आर्त्तध्यान, चार रौद्रध्यान, चार विकथा - इन सबका पाप लगा हो, मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे|
व्रत में, उपवास में अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार का पाप लगा हो, मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे |
पंच मिथ्यात्व, पंच स्थावर, छह त्रस-घात, सप्तव्यसन, सप्तभय, आठ मद, आठ मूलगुण, दस प्रकार के बहिरंग परिग्रह, चौदह प्रकार के अन्तरंग परिग्रह सम्बन्धी पाप किये हों वह सब पाप मिथ्या होवे| पन्द्रह प्रमाद, सम्यक्त्वहीन परिणाम का पाप लगा हो मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे | हास्यादि, विनोदादि दुष्परिणाम का, दुराचार, कुचेष्टा का पाप लगा हो मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे |
हिलते, डोलते, दौड़ते-चलते, सोते-बैठते, देखे, बिना देखे, जाने-अनजाने, सूक्ष्म व बादर जीवों को दबाया हो, डराया हो, छेदा हो, भेदा हो, दुःखी किया हो, मन-वचन-काय कृत मेरा वह सब पाप मिथ्या हो |
मुनि, आर्यिका, श्राविका रुप चतुर्विध संघ की, सच्चे देव शास्त्र गुरु की निन्दा कर अविनय का पाप किया हो मेरा सब पाप मिथ्या होवे| निर्माल्य द्रव्य का पाप लगा हो, मेरा सब पाप मिथ्या होवे | मन के दस, वचन के दस, काया के बारह ऐसे बत्तीस प्रकार के दोष सामायिक में दोष लगे हों, मेरे वे सब पाप मिथ्या होवे | पाँच इन्द्रियों व छठे मन से जाने-अनजाने जो पाप लगा हो, मेरा सब पाप मिथ्या होवे|
मेरा किसी के साथ वैर-विरोध, राग-द्वेष, मान, माया, लोभ, निन्दा नहीं, समस्त जीवों के प्रति मेरी उत्तम क्षमा है |
मेरे कर्मों के क्षय हों, मुझे समाधिमरण प्राप्त हो, मुझे चारों गतियों के दुःखो से मुक्तिफल मिले | शान्तिः ! शान्तिः ! शान्तिः !
राकेश जैन जी द्वारा प्रेषित
1 oct 2012 फेसबुक पर
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पुरानी यादें
एक जमाना था... खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि साइकिल बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे म...