बुधवार, 28 जून 2023
साँप के काटे की दवा
बरसात होने के कारण सांप बाहर आते हैं क्योंकि उनके बिल में पानी भर जाता है ।
*सांप डसने के बाद इलाज का रामबाण उपाय*
आपको मालूम होगा की सांप डसने से उसके दो दांत का निशान दिखाई देते हैं।दो दांतों से वह विष मनुष्य के शरीर में यानि जहर छोड़ता है। वह विष रक्त के द्वारा हृदय तक जाता है। उसके बाद पूरे शरीर में पहुंचता है। सांप शरीर में कहीं भी डसने के बाद वह विष पहले हृदय तक जाता है उसके बाद पूरे शरीर में फैलता है। यह विष पूरे शरीर में पहुंचने के लिए कम से कम तीन घंटे का समय लगता है। यानि कि जिस व्यक्ति को सर्प दंश हुआ है वह व्यक्ति तीन घंटे
तक नहीं मरेगा।जब मस्तिष्क के साथ साथ पूरा शरीर में विष पहुंचेगा तभी वह व्यक्ति मरेगा।
वह व्यक्ति को बचाने के लिए आपके पास तीन घंटे का समय है,इस तीन घंटे में आप बहुत कुछ कर सकते हो।यह बहुत अच्छा है।
आप क्या कर सकते हैं,,,?
एक दवाई आप अपने घर पर हमेशा रख सकते हैं
*यह औषधि होम्योपैथिक है तथा सस्ती है*
उसका नाम है
*NAJA २००*
यह दवाई है
किसी भी होम्योपैथिक दवाई की दुकान पर आसानी से मिल जाती है। इस दवाई से आप कम से कम सौ लोगों की जान बचा सकते हैं। तथा इसकी कीमत सिर्फ
*50 रूपये*
है।
*NAJA* नाजा यह दवाई विश्व का सबसे ख़तरनाक जहरीला सांप का ही जहर से बनाया गया है।
उस सांप का नाम है
*क्रॅक*.
इस सांप का विष सबसे घातक माना गया है, यह विष दूसरे सांप का विष उतारने के लिए काम आता है।
इस दवाई का एक बूंद जीभ में रखें, और दस मिनट के बाद फिर दूसरी बूंद रखें। फिर तीसरी बार एक बूंद फिर दस मिनट के बाद रखें।ऐंसा तीन बार करके छोड़ दें।
बस इतना करके उस व्यक्ति, प्राणी,जीव, जन्तु, पशु, पक्षी, जानवरों आदि का प्राण बचा सकते हैं।
भाईयो अपने गांव के मित्र मंडली नाते रिश्तेदारों तक अवश्य शेयर करें ।।
*दवा किसी भी होम्योपेथी की दुकान में मिल जाती है ... .......🙏🏻🙏🏻
सोमवार, 26 जून 2023
शुक्रवार, 23 जून 2023
मोदीजी की अमेरिका यात्रा
मोदीजी की ऐतिहासिक अमेरिका यात्रा
मोदीजी की अमेरिका की प्रथम राजकीय यात्रा जिसका बहुत सम्मान और गर्मजोशी से स्वागत किया गया यह अपने आप मे बहुत महत्वपूर्ण है। न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में मोदीजी के नेतृत्व में योग दिवस पर 135 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया एवं 180 देशों में योग दिवस मनाया गया। यह अपने आप मे विश्वकीर्तिमान बन गया।
मोदीजी इससे पहले भी अनेको बार अमेरिका जा चुके हैं लेकिन इस बार की यह यात्रा ऐतिहासिक यात्रा कही जाएगी। इस अवसर पर व्हाइट हाउस में मोदीजी का भव्य स्वागत हुआ एवं 21 तोपों से सलामी दी गई। मोदीजी भारत के ऐसे पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं जिनके सम्मान में खुद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने गर्मजोशी से मोदीजी का स्वागत किया। इस ऐतिहासिक यात्रा से दोनों देशों के सम्बंध बहुत प्रगाढ़ होने वाले हैं। दोनों देशों को एक दुसरे की जरूरतों को पूरा करने के साथ - साथ व्यापार, तकनीकी, डिफेंड आदि के अनेक क्षेत्रों में एक दूसरे का सहयोग मिलेगा। इतना ही नहीं साझा अंतरिक्ष अभियान, भारत मे जेट इंजन बनाने की प्रकिर्या, सेमी कंडक्ट चिप पर कार्य से भारत विश्व के अग्रणी देशों में शुमार होने वाला है। पर्यटन के क्षेत्र में भी बहुत बढ़ावा होने वाला है। मोदीजी ने 20 देशों के पर्यटन मंत्रियों के सम्मेलन में सभी से आह्वान किया कि सभी भारत आये और भारतीय लोकतंत्र के उत्सव देंखें। मोदीजी की यह यात्रा बहुत से मायनों में भारत के लिये बहुत उपयोगी सिध्द होने वाली है।
विडम्बना की बात यह है की मोदीजी के विरोध में भारत का विपक्ष इस यात्रा से खुश नहीं है। विपक्ष को तो मोदीजी के हर कार्य की आलोचना ही करनी है यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। खासकर कांग्रेस ने तो सोशल मीडिया में अपनी एक प्रवक्ता को इसी कार्य पर लगा रखा है। वह बताती है की इस यात्रा से बेहतर तो 1949 में तत्कालीन पीएम नेहरूजी की यात्रा थी। वह यह भूल जाती हैं की उस समय जब भारतीय जनता बहुत गरीब थी, देश मे ऐसे हवाईजहाज भी नही थे जो अमेरिका तक सीधी उड़ान भर सके ऐसे में नेहरू जी ने इंग्लैंड से हवाईजहाज किराये पर मंगाकर अपने मित्रों आदि को लेकर सीधे अमेरिका पहुंच गए थे। तब वहां के राष्ट्रपति हैरी से सिर्फ 45 मिनट बात कर अमेरिका घूमने निकल गए थे। पौने दो महीने घूमने में बिताये और भारत की सुध भी नहीं ली थी। इस पर समाजवादी नेता लोहियाजी ने कहा था देश की जनता 4 आना रोज पर गुजारा कर रही है और नेहरू 25000 रुपये रोज गरीब जनता का धन खुद पर खर्च कर रहा है। यह सब बातें आज की कांग्रेस भूल जाती है। जबकि मोदीजी की यात्रा का उद्देश्य भारत की तरक्की करना है। मोदीजी भारत को प्रत्येक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना देना चाहते हैं।
सुनील जैन राना
मंगलवार, 20 जून 2023
हिंदुत्व विरोधी कांग्रेस
जयराम रमेश के “दिमाग” का
टेस्ट करा लेना चाहिए कांग्रेस को -
अब लगता है यह व्यक्ति “पागल”
हो गया है -
गीता प्रेस गोरखपुर को भी
गाली देगा यह निर्लज्ज -
हिंदुओं और मोदी के लिए यह है
“नफरत की दुकान”
वर्ष 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी ने सर्वसम्मति से गीता प्रेस गोरखपुर को देने का फैसला किया है लेकिन इस फैसले को सुनते ही कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश को जैसे एक पागलपन का दौरा सा पड़ गया - रमेश उबल पड़ा और बोला कि गीता प्रेस को यह पुरस्कार देना गोडसे व सावरकर को सम्मानित करने जैसा है -
मुझे लगता है अब कांग्रेस को गंभीरता से विचार करके जयराम रमेश के “दिमाग” का टेस्ट करा कर उसके “पागलपन” की जांच करानी चाहिए - कांग्रेस के नेता सच में पागल हो चुके हैं जिन्हें सोते जागते गोडसे और सावरकर दिखाई देते हैं - बेशर्म निर्लज्ज जयराम रमेश को पता भी है गीता प्रेस है क्या जो उसका अपमान करने निकल पड़ा -
गीता प्रेस 1923 बनी संस्था, जो दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाशन संस्थान है, ने कभी गलत तरीके से पैसा कमाना अपना उद्देश्य नहीं रखा जैसा कांग्रेस के लोग करते रहे हैं और देश को खोखला कर दिया - इस संस्था की आर्थिक हालत कितनी भी ख़राब रही है परंतु फिर भी इसके कर्मचारी समाज की सेवा में लगे रहे और संस्था ने कभी किसी के आगे मदद के लिए हाथ नहीं फैलाया -
यह संस्था 14 भाषाओँ में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित कर चुकी है जिसमें 16.21 करोड़ तो भगवत गीता ही हैं -कहीं यह भी कहा गया है कि 100 वर्ष में गीता प्रेस ने 93 करोड़ पुस्तकें छापी है - प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में निर्णायक मंडल ने “शांति और सामाजिक सद्भाव के गांधीवादी आदर्शों को बढ़ावा देने के लिए गीता प्रेस के अद्वितीय योगदान को मान्यता देते हुए यह पुरस्कार देने का निर्णय लिया है”
गीता प्रेस ने कम से कम कीमत पर पुस्तकें छापने और जनमानस तक पहुंचाने का अकल्पनीय कार्य किया है - कोलकाता के सेठ जयदयाल गोयनका जी द्वारा स्थापित गीता प्रेस का उद्देश्य ही जन जन तक धार्मिक पुस्तकें पहुंचाना रहा है -
ऐसे संस्थान को “गांधी शांति पुरस्कार” देने पर विधवा विलाप करने वाले जयराम रमेश को पागल ही कहा जा सकता है जिसका टेस्ट कराया जाना चाहिए - कितनी सीमा है कॉग्रेस के लोगों की गिरने की - अरे निकम्मों, हर वक्त सावरकर सावरकर रोते फिरते हो, एक बार सावरकर को मिली कालापानी की 2 आजीवन कारावास की सजा की कल्पना तो करके देखो, 5 मिनट के लिए बैल की जगह खुद कोल्हू में जुताई करा कर देखो - बेशर्मो, तुम अंग्रेज़ों के पिट्ठू थे जो एक भी कांग्रेसी को “कालापानी” की सजा नहीं हुई -
जहां तक गोडसे का सवाल है, उसके किए का फल तो तुमने 60 साल सत्ता भोग कर चखा है - क्रांतिकारियों के दम पर मिली देश को आज़ादी का Liberation Dividend और फिर Gandhi murder Dividend खूब भोगते हुए सत्ता से चिपके रहे 55 - 60 साल और देश को गर्त में धकेल दिया पर अपने घर भरते रहे - आज भी जयराम रमेश नहीं बोल रहा, उसके पीछे पार्टी की विदेशी सत्ता बोल रही है जिसके हाथ की कठपुतली हैं आज कांग्रेस के सभी नेता -
जयराम रमेश यह विलाप मुस्लिम वोटों को दिमाग में रख कर रहा है और यही हिन्दुओं एवं नरेंद्र मोदी के खिलाफ सबसे बड़ी “नफरत की दुकान’ खोली है कांग्रेस ने -
(सुभाष चन्द्र)
“मैं वंशज श्री राम का”
19/06/2023
सोमवार, 19 जून 2023
रविवार, 18 जून 2023
शराबबंदी से फायदा या नुकसान
शराबबंदी से फायदा या नुकसान
सरकार को राजस्व से आमदनी होने के पहलुओं ने शराब, गुटखा और तेल सबसे ज्यादा राजस्व देते हैं। हैरानी की बात यह है कि इनमें से पहले दोनों के बारे में सरकार का ही एक विभाग मद्य निषेध करोड़ो रूपये खर्च कर इनसे बचने के बारे में प्रचार करता है। शराब हानिकारक है और गुटखा कैंसर की मौत मारता है। यानि की दो परस्पर दो विरोधी विभाग। एक विभाग से आमदनी हो रही है एवं दूसरे विभाग से खर्च हो रहा है।
देशभर में शराब और शराबियों का बोलबाला है। देश के कुछ राज्यों में शराबबंदी लागू है। इनमें से एक राज्य बिहार भी है। बिहार की चर्चा इसलिये की अवैध कच्ची शराब सबसे ज्यादा बिहार में बनाई जाती है। जिसके कारण सबसे ज्यादा मौतें भी बिहार में हो रही हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है की बिहार में शराबबंदी से फायदा हुआ या नुकसान ज्यादा हो रहा है। शराबबंदी के बाद से बिहार में दूसरे राज्यों से स्मगलर कर लाई जाने वाली शराब की धरपकड़ भी बहुत होती है। पकड़ी गई शराब की खेप को कभी-कभी दिखावे को सड़क पर बुलडोजर से नष्ट करवा दिया जाता है। लेकिन ज्यादातर सरकारी मालखाने में जमा करवा दिया जाता है। जहाँ से उसका वापस मिलना असम्भव सा ही होता है। अक्सर सुनने में आ जाता है की शराब चूहे पी गए या ले गए।
सवाल यह है की जब पता है की किसी राज्य की स्थिति ऐसी है कि वहां की जनता बिना शराब के रह नहीं सकती तब ऐसे में उस राज्य के सीएम क्यों गाँधीजी बन जाते हैं और लोगो की जान से खिलवाड़ कर बैठते हैं। अंग्रेजी शराब न मिलने पर कच्ची जहरीली शराब पीने को मजबूर हो जाते हैं उस राज्य के लोग और अक्सर बड़ी तादाद में अपनी जान खो बैठते हैं। ऐसी शराबबंदी से फायदा हुआ या नुकसान यह सोचना चाहिये।
देश के कुछ राज्यो की एक तिहाई आबादी और कुछ राज्यो की एक चौथाई आबादी बिना शराब के रह नही सकती। या यों कहिये की कुछ राज्यों में शराब की खपत पर व्यक्ति बहुत ज्यादा है। इनमें छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, आंध्रप्रदेश, पंजाब, अरुणाचल, गोवा आदि हैं। इनमें बिहार का नम्बर बहुत बाद में है। लेकिन फिर भी इन राज्यो में बिहार जैसे कांड नहीं होते। अवैध कच्ची शराब नहीं बनती। शराब से जनहानि नहीं होती। बिहार में शराबबंदी से जहरीली कच्ची शराब को बढ़ावा मिला है जो लोगो की जान जोखिम में डाल देता है। ऐसे में शराबबंदी से फायदा हुआ या नुकसान हो रहा है यह सरकार को सोचना चाहिए।
सुनील जैन राना
शुक्रवार, 16 जून 2023
खाना, भोजन, आहार
*खाना, भोजन और आहार में अंतर-*
(जरूर पढ़िए)
*खाना खाओ या खाना बन गया कभी नहीं कहना चाहिए--??*
==क्योंकि==
इस्लामिक शब्द खान से खाना बना है-?
*दोहा :-*
*खाना खाते खल सभी , संत करें आहार !!*
*सज्जन भोजन को करें ,भाषा क्रिया प्रकार !!!*
*अर्थ =* खाना दुष्ट लोग खाते हैं ,
भोजन सज्जन लोग करते हैं
और आहार संत लोग करते हैं !!
*"खाना " "भोजन " "आहार" में अंतर*
1=खाना खाया जाता है ,भोजन किया जाता है ,आहार लिया जाता है!!
2= खाना कांटे चम्मच से खाया जाता है ,भोजन एक हाथ से किया जाता है, आहार दोनों हाथ से लिया जाता है!!!
3=दूसरों का पेट काटकर अपना पेट भरना खाना है ,जीवन जीने के लिए भोजन है, तथा त्याग- तपस्या- संयम- साधना के लिए पेट भरना आहार है!!
*तो आज से हम सज्जन लोग भोजन करेंगेl करवाएंगे🙏*
बुधवार, 14 जून 2023
हम आखिरी पीढ़ी
फ्री होकर प्यार से पढना आनंद आयेगा 👇
उल्टी यात्रा
2021 से 1970 के दशक अर्थात बचपन की तरफ़
जो 50 को पार कर गये हैं या करीब हैं उनके लिए यह खास है🙏🏻🙏🏻🙏🏻
मेरा मानना है कि दुनिया में जितना बदलाव हमारी पीढ़ी ने देखा है हमारे बाद की किसी पीढ़ी को "शायद ही " इतने बदलाव देख पाना संभव हो
🤔🤔🤔
# हम_वो आखिरी_पीढ़ी_हैं जिसने बैलगाड़ी से लेकर सुपर सोनिक जेट देखे हैं। बैरंग ख़त से लेकर लाइव चैटिंग तक देखा है और "वर्चुअल मीटिंग जैसी" असंभव लगने वाली बहुत सी बातों को सम्भव होते हुए देखा है।
🙏🏻 *हम वो पीढ़ी हैं* 🇳🇪
जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं हैं। ज़मीन पर बैठकर खाना खाया है।
प्लेट में डाल डाल कर चाय पी है।
🙏 हम 🇳🇪 वो " लोग " हैं ?
जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल , खेले हैं ।
🙏हम आखरी पीढ़ी 🇳🇪 के वो लोग हैं ?
जिन्होंने चांदनी रात में डीबरी, लालटेन या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क किया है और दिन के उजाले में चादर के अंदर छिपा कर नावेल पढ़े हैं।
🙏हम वही 🇳🇪 पीढ़ी के लोग हैं ?
जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात खतों में आदान प्रदान किये हैं और उन ख़तो के पहुंचने और जवाब के वापस आने में महीनों तक इंतजार किया है।
🙏हम उसी 🇳🇪 आखरी पीढ़ी के लोग हैं ?
जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही बचपन गुज़ारा है। और बिजली के बिना भी गुज़ारा किया है।
🙏हम वो 🇳🇪 आखरी लोग हैं ?
जो अक्सर अपने छोटे बालों में सरसों का ज्यादा तेल लगा कर स्कूल और शादियों में जाया करते थे।
🙏हम वो आखरी पीढ़ी 🇳🇪 के लोग हैं ?
जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी किताबें, कपडे और हाथ काले-नीले किये है। तख़्ती पर सेठे की क़लम से लिखा है और तख़्ती धोई है।
🙏हम वो आखरी 🇳🇪 लोग हैं ?
जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है और घर में शिकायत करने पर फिर मार खाई है।
🙏हम वो 🇳🇪 आखरी लोग हैं ?
जो मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देख कर नुक्कड़ से भाग कर घर आ जाया करते थे। और समाज के बड़े बूढों की इज़्ज़त डरने की हद तक करते थे।
🙏 हम वो 🇳🇪 आखरी लोग हैं ?
जिन्होंने अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर खड़िया का पेस्ट लगा कर चमकाया है!
🙏हम वो 🇳🇪 आखरी लोग हैं जिन्होंने गुड़ की चाय पी है। काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है और कभी कभी तो नमक से या लकड़ी के कोयले से दांत साफ किए हैं।
🙏हम निश्चित ही वो 🇳🇪 लोग हैं
*जिन्होंने चांदनी रातों में, रेडियो पर BBC की ख़बरें, विविध भारती, आल इंडिया रेडियो, बिनाका गीत माला और हवा महल जैसे प्रोग्राम पूरी शिद्दत से सुने हैं।*
🙏हम वो 🇳🇪 आखरी लोग हैं
*जब हम सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे।*
उसके बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे।
*एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था।*
*सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे।*
*वो सब दौर बीत गया। चादरें अब नहीं बिछा करतीं।*
*डब्बों जैसे कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुज़रते हैं।*
🙏हम वो 🇳🇪 आखरी पीढ़ी के लोग हैं
*जिन्होने वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग देखे हैं,* *जो लगातार कम होते चले गए।*
*अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं, उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता, अकेलेपन, व निराशा में खोते जा रहे हैं।*
और
🙏हम वो 🇳🇪 खुशनसीब लोग हैं
जिन्होंने रिश्तों की मिठास महसूस की है...!!
🙏 *और हम इस दुनियाँ के वो लोग भी हैं जिन्होंने एक ऐसा "अविश्वसनीय सा" लगने वाला नजारा देखा है।*
*आज के इस करोना काल में परिवारिक रिश्तेदारों (बहुत से पति-पत्नी , बाप - बेटा ,भाई - बहन आदि ) को एक दूसरे को छूने से डरते हुए भी देखा है।*
🙏 *पारिवारिक रिश्तेदारों की तो बात ही क्या करे खुद आदमी को अपने ही हाथ से अपनी ही नाक और मुंह को छूने से डरते हुए भी देखा है।*
🙏 *" अर्थी " को बिना चार कंधों के श्मशान घाट पर जाते हुए भी देखा है।*
*"पार्थिव शरीर" को दूर से ही "अग्नि दाग" लगाते हुए भी देखा है।*🙏
🙏हम आज के 🇳🇪 भारत की *एकमात्र वह पीढी हैं जिसने अपने " माँ-बाप "की बात भी मानी और " बच्चों " की भी मान रहे है।* 🙏 *शादी में (buffet) खाने में वो आनंद नहीं जो पंगत में आता था जैसे....*
*सब्जी देने वाले को गाइड करना, *हिला के दे या तरी तरी देना!*
.👉 *उँगलियों के इशारे से 2 लड्डू और गुलाब जामुन, काजू कतली लेना*
.👉 *पूडी छाँट छाँट के और गरम गरम लेना !*
👉 *पीछे वाली पंगत में झांक के देखना क्या क्या आ गया, अपने इधर क्या बाकी है और जो बाकी है उसके लिए आवाज लगाना*
.👉 पास वाले रिश्तेदार के पत्तल में जबरदस्ती पूडी
🍪 रखवाना !
.👉 *रायते वाले को दूर से आता देखकर फटाफट रायते का दोना पीना ।*
.👉 *पहले वाली पंगत कितनी देर में उठेगी उसके हिसाब से बैठने की पोजीशन बनाना।*
.👉 और आखिर में पानी वाले को खोजना।
😜
..............
एक बात बोलूँ इंकार मत करना ये मेसिज जितने मर्जी लोगों को भेजना क्योंकि
जो इस मेसिज को पढेगा
उसको उसका बचपन जरुर याद आयेगा.वो आपकी वजह से अपने बचपन में चला जाएगा , चाहे कुछ देर के लिए ही सही।
और ये आपकी तरफ से उसको सबसे अच्छा गिफ्ट होगा.
😊
सोमवार, 12 जून 2023
मंगलवार, 6 जून 2023
नारी का वस्त्र सारी
(सामायिक चिंतन )
(अंग प्रदर्शन के लिए निर्वस्त्र होना क्या जरुरी हैं )
क्या हम पहनावे से आधुनिक माने जायेंगे या सोच से !-- विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल
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वैसे खान -पान पूजा -पाठ कपडा पहनना ये सब व्यक्ति की व्यक्तिगत /निजता हैं इसमें किसी को कोई विवाद ,तर्क ,समझाइश देने या करने की जरुरत नहीं हैं .पर जब मर्यादाओं की सीमाओं का उल्लंघन होने पर उन पर प्रतिबन्ध लगाने की जरुरत क्यों पड़ती हैं .
आज खान पान पहिनावा पर बहुत अधिक चर्चा के साथ विवाद हो रहा हैं .जैसे खान पान में आजकल पश्चिमी खान पान ने हमारे देश की पारम्परिक खान पान में ऐसी सेंध लगाई हैं .इस समय होटल और हॉस्पिटल का व्यापार बहुत फलफूल रहा हैं क्योकि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं .
आक्रामिक बाज़ारीकरण के कारण विज्ञापनों के हमें मानसिक गुलाम के साथ पंगु बना दिया हैं की उससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं .यह बहुत बड़ी और दूरगामी सोची समझी राजनीति .रणनीति हैं .आज महंगाई के एक बहाना लेकर परिवार के प्रत्येक सदस्य कमाई करने वाला बनाया .मशीनी उपकरण की उपलब्धता जैसे फ्रिज ,वाशिंग मशीन ,मिक्सी ,चक्की .टीवी ,मोबाइल आदि से और शारीरिक और मानसिक गुलाम बनाकर समय का कृतिम अभाव बनाकर अन्य क्रिया कलापों में उलझाकर रखना जैसे इंटरनेट ने अधिकांश लोगों को एकाकी बना दिया .इससे हमें सब क्षेत्रों का ज्ञान बहुत जल्दी और सुगमता से उपलब्ध होने से वे हम सब काल्पनिक और आभासी दुनिया में जी रहे हैं .इससे बचे तो व्यसन और अपराध की दुनिया में चले गए .
आज हमारे घरों में खान पान की सामग्री भी बने बनाये आने से हम रासायनिक और मिलावटी खाद्य खाने से हम अनेक बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं और खाने के साथ दवाइयों का उपयोग बराबरी से होने के कारण हमारी आमदनी का बहुत बड़ा हिस्सा होटल और हॉस्पिटल में जा रहा हैं .उससे बची राशि हमारे परिधानों और वस्त्रों में हो रहा हैं .आज नवयुवक और नौकरी करने वाले घर ,कार के साथ अन्य घरेलु सामान क़र्ज़ या लोन से लेने से उनका बचा धन उसको चुकाने में जाने से वे बचत नहीं कर प् रहे हैं जिससे वे अधिक तनाव और अवसाद में रह रहे हैं .
हम आधुनिक बनते जा रहे हैं और बन चुके हैं पर हम उसे व्यवहारिक धरातल में नहीं उतार पा रहे हैं .आज कल महिलाओं के पहनावे पर बहुत अधिक विवाद के साथ तर्क वितर्क हो रहे हैं .अंग प्रदर्शन के साथ छोटे छोटे कपडे पहनने पर उनका अपना तर्क हैं और होना भी चाहिए .पर वे स्वयं इस प्रकार के पहने हुए अन्य महिलाओं और अपनी पुत्री ,बहिन. बहु को देखकर प्रसन्न और ख़ुशी महसूस करती हैं .क्या ऐसे वेशभूषा में वे अपनी माँ, बाप ,भाई ,चाचा ,दादा के सामने सुखद अनुभूति करती हैं या नहीं .तब अन्य पुरुषों से क्या अपेक्षा करना इसका स्वयं निर्णय ले .क्योकि बलात्कार छेड़खानी के अपराध में उनके कपड़ों का कारण भी हो सकता हैं या माना जाता हैं .
ड्रेस / यूनिफार्म हमें अनुशासन सिखाता हैं ,क्या मिलिटरीमैन ,पुलिस .वकील, डॉक्टर,विद्यार्थीअपनी यूनिफार्म से पहचाने जाते हैं .आज हम इतने आधुनिक होने के बावजूद पर भी गुरुद्वारा ,मस्जिद में एक प्रकार की ड्रेस में ही प्रवेश दिया जाता हैं वहां कोई समझौता नहीं होता हैं पर हमारे जैन मंदिरों में हिन्दू मंदिरों में कोई नियम धर्म नहीं हैं कुछ भी पहनकर जाना जैसे छोटे छोटे कपडे , पारदर्शी ड्रेस पहनना और तंग चुस्त कपडे पहनकर अंगों का दिखावा करने से क्या वे स्वयं अच्छा महसूस करती हैं .उनके पहनावे से अन्य लोग भी आकर्षित होते हैं और उनका ध्यान भगवान् की ओर न जाकर उनके अंगो और उनकी सुंदरता को देखने को विवश हो जाते हैं .
इसी को ध्यान रखकर कई जैन मंदिरों और हिन्दू मंदिरों में उचित परिधान पहनकर प्रवेश मिलेगा अन्यथा उन्हें वापिस कर दिया जायेगा और हो सकता हैं उनको बेइज्जती का सामना हो सकता हैं .
मंदिरों में प्रवेश ऐसी ड्रेस में जाए जो स्वयं के साथ दूसरे को भी अच्छा लगे .हां अपने निजी घर में वे निर्वस्त्र रहे कोई को कोई आपत्ति नहीं हैं पर जब हम सामाजिक ,धार्मिक ,पारिवारिक क्षेत्रों में वहां के अनुकूल क्यों पहनते हैं .
परिधान से व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रदर्शित होता हैं .हमारा कहना हैं आधुनिकता जरूर अपनाओ पर अपनी सीमा में और अपनी संस्कृति को बचाओ .कम या छोटे पहनावे से कोई भी उनकी प्रशंसा नहीं नहीं करता और यदि वे स्वयं अपने आपको ऐना के सामने खड़े होकर देखो और कैसी लग रही हूँ और अन्य मुझे देखकर कैसी दृष्टि या प्रतिक्रिया देंगे .
कपडे इज्जत ढांकने के लिए होते हैं .अंग प्रदर्शन के लिए निर्वस्त्र रहना ही सबसे सस्ता और सुलभ साधन हैं .एक बार ऐसा करके देखो .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू, नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ९४२५००६७५३
लड़कियों के लिये
प्रश्न है : पापा आपने क्यों नहीं बताया हिन्दू कल्चर के बारे में.?
उत्तर : बेटा क्या नहीं बताया.?
तुम्हारी आंख फूटी हुई थी जब तुम देखती थी कि जप, तप, व्रत और त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं!
तुम्हारी आँखों को चश्मे की जरूरत थी.? जो तुम्हें नवरात्रि में दुर्गा पूजा के समय दुर्गा जी समस्त अस्त्रों शस्त्रों से सुसज्जित होकर एक राक्षस का वध कर रहीं हैं, यह नहीं दिखा.?
क्या तुमने रामलीला में यह नहीं देखा कि अपनी पत्नी के लिए एक भगवान श्री राम समुद्र पार कर रावण का सर्वनाश कर आएं!
माना तुम्हारा पिता कम्युनिष्ट है, अनपढ़ है, वक्त नहीं दे पाए लेकिन तुम्हें व्हाट्सअप्प से चैटिंग करना तो कभी नहीं सिखाया.?
फिर कैसे सीख गई.?
तुम्हारी माँ ने तुम्हें प्रेम करना तो नही सिखाया फिर तुम्हारे अंदर प्रेम के भाव क्यों स्वयं ही फूटने लगे.?
"तेरा भगवान रोता है" यह बात कैसे तुझे पता चल गई.? यदि यह बात पता चल गई तो रोने के बाद कितना तांडव मचाएं थें यह बात कैसे पता नहीं चली, उनके तांडव को रोक पाने की शक्ति किसी में नहीं थी, यह बात तुझे कैसे पता नहीं चली.?
तुम्हें वह पाकिस्तानी सीरियल देखने के लिए तो इस बाप ने कभी नहीं बताया फिर तुम्हें पाकिस्तानी सीरियल के बारे में कैसे पता चल गया.?
देश दुनिया की सारी बातें तुम्हें पता चल गई पर तुम्हें अपना सनातन धर्म और संस्कृति नहीं पता चला क्योंकि माँ बाप ने नहीं बताया.?
तुम्हारा यह बहाना दर्शाता है कि तुम कितनी चतुर हो और सिर्फ अपनी कमी छिपा रही हो!
जैसे तुम्हें बाकि की बातें पता चली वैसे ही यह भी पता चल जाना चाहिए था!
सनातन धर्म तो उत्सव प्रधान धर्म है, हर उत्सव का एक कारण हैं यदि जैसे तमाम बिन बताई चीजों को तुम जान गई तो यह सब देख सुनकर क्यों नहीं जानी.?
कपूर की संगति में आकर डिबिया भी महकने लगती है पर तुम तो कपूर पास देखकर भी कीचड़ में लोटने पहुंच जाती हो और जानबूझकर आरोप लगाती हो कि कपूर के बारे में बताया ही नहीं, कीचड़ के बारे में भी तो नहीं बताया था बेटा जी
उन समस्त भोली-भाली मासूम लड़कियों को समर्पित, जिन्हें लगता है उनके मम्मी पापा ने कल्चर नहीं बताया लेकिन उन्होंने पाकिस्तानी सीरियल के बारे में बिना मम्मी पापा के बताए सब जान लिया!
तुम्हें अब्दुल और आशिफा पसंद आते हैं लेकिन तिलक लगाए और गले में रुद्राक्ष की माला डाले हुए लड़का धार्मिक उन्मादी दिखता है तो गलती आपकी है! सोच बदलिए.!!!
सोमवार, 5 जून 2023
रविवार, 4 जून 2023
शब्दों का व्यायाम
!! मुख / जीभ का व्यायाम...!!
🌸🌸ॐ नमो नारायणाय🌸🌸
1. कच्चा पापड़, पक्का पापड़-
सबसे प्रसिद्ध और हमारे दिल के सबसे क़रीब. एक बार में 15 बार बोल के दिखाओ तो जानें.
2. फालसे का फासला-
20 बार बिना रुके बोल कर दिखाओ.
3. पीतल के पतीले में पपीता पीला पीला
- मुस्कुरा का रहे हो, 12 बार इसे बोल कर दिखाओ.
4. पके पेड़ पर पका पपीता पका पेड़ का पका पपीता-
मेरी जीभ तो लगभग फ्रैक्चर होते-होते बची है.
5. ऊँट ऊँचा , ऊँट की पीठ ऊँची . ऊँची पूँछ ऊँट की
क्या हुआ?
6. समझ समझ के समझ को समझो, समझ समझना भी एक समझ है. समझ समझ के जो न समझे, मेरे समझ में वो ना समझ है.
इसे एक बार ही बोल के दिखाएँ
7. दूबे दुबई में डूब गया-
अच्छा ठीक है.ज़्यादा ख़ुश मत हों. ये आपकी फूलती सांसों को आराम देने के लिए था.
8. चंदु के चाचा ने चंदु की चाची को, चांदनी चौक में, चांदनी रात में, चांदी के चम्मच से चटपटी चटनी चटाई-
अब चाहे जो कुछ भी करना, मगर अपने बाल मत नोंचना.
9. जो हंसेगा वो फंसेगा, जो फंसेगा वो हंसेगा-
आपको ये आसान लग रहा है. जरा इसे 10 बार से ज़्यादा बार बोल कर दिखाइए.
10. खड़क सिंह के खड़कने से खड़कती हैं खिड़कियां, खिड़कियों के खड़कने से खड़कता है खड़क सिंह-
मेरे तो पूरे बदन में खड़कन हो रही है.
11. मर हम भी गए, मरहम के लिए, मरहम न मिला. हम दम से गए, हमदम के लिए, हमदम न मिला-
बोलो-बोलो मुँह मत चुराओ.
12. तोला राम ताला तोल के तेल में तल गया, तला हुआ तोला तेल के तले हुए तेल में तला गया-
ऐसे देख का रहे हो?
13. डाली डाली पे नज़र डाली, किसी ने अच्छी डाली, किसी ने बुरी डाली, जिस डाली पर मैने नज़र डाली वो डाली किसी ने तोड़ डाली-
बोलो बोलो......
कुसंस्कार- सुसंस्कार
संस्कारविहीन बच्चें, गर्त की ओर
मेरा मानना है की संस्कार एक पूर्ण शब्द नहीं है। कैसे संस्कार, सुसंस्कार या कुसंस्कार? यानि की अच्छे संस्कार या बुरे संस्कार। आज की पीढ़ी बुरे संस्कारो की वजह से गर्त की ओर जा रही है।
प्रायः संस्कार तो बचपन से ही माँ- बाप से मिलते हैं। माता-पिता के संस्कारों का प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। पुराने जमाने मे संस्कारो की पाठशालाएं चलती थी। मैं भी लगभग 50 वर्ष पहले जब लगभग 10 साल का था तो पाठशाला जाता था। उस समय से आज तक पाठशाला में प्राप्त की धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा ने गलत मार्ग पर बढ़ने नहीं दिया। आज के दौर में भी पाठशालाएं चलती हैं। खासकर जैन समाज मे पाठशाला एवं संस्कार शिविरों का बहुत प्रचलन है। शायद यही कारण है की आधा करोड़ से कम आबादी वाला जैन समाज सभी क्षेत्र में अग्रणी समाज है।
संस्कारो की कमी आज के बच्चों में बहुत दिखाई दे रही है। खानपान, पहनावा, आधुनिकता की दौड़ में युवा पीढ़ी गलत दिशा की ओर बढ़ रही है। बेमेल दोस्ती, लिव इन रिलेशनशिप के परिणाम कत्लेआम तक पहुँच रहे हैं। इन सब रिश्तों में लड़कियों के माँ- बाप की अनदेखी या उनकी संस्कारविहीनता उनकी बेटियों की जिंदगी लील रही है। जिन घरों के बड़ो में अच्छे संस्कार होते हैं उन घरों के बच्चें भी सुसंस्कारी होते है।
देश मे यारी- दोस्ती फिर हत्या के कई कांड हो चुके हैं। यह सब घरवालों की लापरवाही का नतीज़ा है। समय रहते शुरू से ही बच्चों को अच्छे संस्कार सिखाने चाहिये। बच्चों को बचपन मे ही संस्कार शिविरों में भेजना चाहिये। ताकि बच्चें बड़े होकर अपना अच्छा- बुरा खुद सोच सके और सही निर्णय ले सकें।
सुनील जैन राना
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