मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025

जूता क्यों फेका?

जूता फेंका गया  उसके लिए लोग बहुत उद्वेलित हैं , लेकिन एक बारीक बात की तरफ ध्यान दिलाना चाहूंगा कि जूता फेंका जाना इसलिए अधिक तकलीफ दे रहा है क्योंकि #सनातन के नाम पर , #सनातन के अपमान पर फेंका गया है। सत्तर साल के एक पढ़े लिखे , कानून के जानकार ने अचानक तैश में आकर यह जूता नहीं फेंका है।मुझे पूरा विश्वाश है कि उन्होंने इस पर अवश्य विचार किया होगा , किंतु पीड़ा , छोभ इतनी गहरी  कि उससे बाहर निकल पाने का यही एक तरीका उन्हे उचित प्रतीत हुआ होगा।
तरीका अनुचित है , इसमें कोई संदेह नहीं , किंतु एक धर्म का , उसके आराध्यों का आप लगातार अपमान करते रहेंगे , अन्य धर्मों पर सबको सांप सूंघ जाएगा , उसके अवैध निर्माण तोड़ने पर आपका संवेदनशील ह्रदय कांप उठेगा और कोई हिंदू अपनी समस्या लेकर आपके पास जाएगा तो उसका समाधान करना तो दूर आप उसके आराध्य पर कटाक्ष करोगे।

भीख मत दो लेकिन कटोरा भी तो मत तोड़ो , धर्म के नाम पर  देश के टुकड़े कर एक संप्रदाय को सौंपने के पश्चात भी हिंदू शांति से अपने त्यौहार नहीं मना सकता। कोई राज्य सरकार उनके विरोध में कार्यवाही करेगी तो ऊपर से आदेश आ जाएगा , रुकिए आप गलत कर रहे हैं।

यह जूता भले एक व्यक्ति ने फेंका है  , गलत किए है , लेकिन उसकी गलती से करोड़ों लोग सहमत हैं। 

बहुसंख्यकों को हताशा  की अतल खाई में फेंकना बंद करिए , उसके एक अंश ने भी धैर्य छोड़ दिया तो देश के लिए समाज के लिए परिणाम बहुत भयावह होंगे। 

पर सच्चाई यह है कि हिंदुओं पर चौतरफा हमला हो रहा है , मुस्लमान हो , ईसाई हो , बौद्ध हो , सिख हो सबकी आंख में हिंदू खटक रहा है। जिस दिन हिंदू की आंख में जलन होने लगी , उसके कान भी किसी की आस्था के स्वर सुनकर फटने लगे तो समय कितना कठिन हो जाएगा आज हम और आप इसका अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं।
#कुमार_अश्विनी

शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

गलत निर्णय?

*भारत सरकार द्वारा फल- सब्जी  को भी मांसाहारी बनाने का दुश्चक्र*

-चिरंजी लाल बगड़ा, कोलकाता

# अभी हाल ही में भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा FCO (Fertilizer Control Order) 1985 में संशोधन करते हुए 13 अगस्त 2025 को गजट नोटिफिकेशन के माध्यम से ऐसे प्रावधान जोड़े हैं  जिनके तहत अब बायो-स्टिमुलेंट में पशु- आधारित अमीनो एसिड (Animal Source Amino Acid) को वैध कर दिया गया है। 

# गजट नोटिफिकेशन के आईटम नंबर 26 के अनुसार मछलियों के मांस और खाल से निकाले गये प्रोटीन हाईड्रोलाईजेट को आलू की फसलों में फर्टिलाइजर के रूप में उपयोग करने की रिकमेंडेशन है। इसी तरह आईटम 30 के अनुसार गौजातीय/Bovine पशुओं के मांस और चमड़े से प्राप्त किये गये प्रोटीन हाईड्रोलाईजेट को टमाटर की फसलों में फर्टिलाइजर के रुप में उपयोग करने की रिकमेंडेशन है। जबकि आलू और टमाटर ऐसी सब्जियां हैं जिनका शाकाहारी समाज द्वारा भरपूर उपयोग किया जाता है। 

₹  फर्टिलाइजर के लिये आवश्यक अमीनो एसिड प्राकृतिक रूप से पौधों, दलहन, सोयाबीन, समुद्री शैवाल आदि से भी प्राप्त किए जा सकते हैं। गजट में लिखा भी है। इसके बावजूद भी मंत्रालय ने कत्लखानों एवं चमड़ा घरों से निकली गंदगी (हड्डियाँ, खून, चमड़ा, आंतरिक अवशेष आदि) से बने उत्पादों को कृषि उत्पादन में उपयोग करने की मंजूरी दी है, जो कि एक अक्षम्य कृत्य है।

#  यह भ्रष्ट कृत्य न सिर्फ शाकाहारी समाज की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाता है, बल्कि चुपके से भारतीय कृषि और खाद्य श्रृंखला में _गौजातीय पशुओं के वेस्ट_ को घुसाने का षड्यंत्र भी है।

#  स्लॉटर हाउस और मीट इंडस्ट्री के पास तो प्रतिदिन लाखों टन वेस्ट बचता है। अब इस वेस्ट को बायो-स्टिमुलेंट के नाम पर फर्टिलाइज़र में खपाने का रास्ता मंत्रालय ने खोल दिया है, जिसका सीधा लाभ स्लॉटर हाउस लॉबी को होगा। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह निर्णय सरकार  और मीट लाबी की मिली भगत का नतीजा है?

#  यह आदेश  करोड़ों शाकाहारी लोगों की धार्मिक आस्था और जीवनशैली के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन है।

#  उपरोक्त निर्णय संपूर्ण अहिंसक शाकाहारी  समाज के लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य है और इसे तत्काल वापस लिया जाना चाहिए।

शनिवार, 20 सितंबर 2025

पुरानी बातें

👉 हमारी या आपकी दादी या नानी माँ ने कहीं से MBA नहीं किया था लेकिन संयुक्त परिवार का संयोजन और अर्थ का प्रबंधन वो सबसे सुंदर ढंग से करतीं थीं।

👉 उन्होंने कोई समाज शास्त्र या राजनीतिशास्त्र नहीं पढ़ा था पर अपने आसपास के समाज से, पूरे गांव से उनके मधुर संबंध होते थे और अपने व्यवहार से उन्होंने पूरे गांव को आत्मीय रिश्तों से जोड़ कर रखा था।

👉 उन्होंने कोई मेडिकल साइंस नहीं पढ़ी थी पर सर्दी, जुकाम, बदन दर्द, मोच, चेचक और बुखार जैसी बीमारियों को ठीक कर देने का सामर्थ्य रखतीं थी।

👉 उन्होंने कहीं से स्ट्रेस मैनेजमेंट या इंस्प्रेशनल वीडियो नहीं देखे थे पर परिवार के हर हतोत्साहित में उत्साह का संचार कर देती थी।

👉 वो पेटा या किसी और ऐसे संगठन की मेंबर नहीं थीं पर सुबह गाय को पहली रोटी डालने से लेकर दरवाजे पर बैठने वाले कुत्ते, बिल्लियों, बैल और चिड़ियों की चिंता करती थी।

👉 उसे वोट लेना नहीं था, न ही अपने कामों के फोटो फेसबुक या व्हाट्सएप पर अपलोड करना था पर तब भी वो दरवाजे पर आने वाले हर भिखारी, भांट, नट इत्यादि को अन्न, पैसे और भोजन देती थी। 

👉 उसे अपनी स्थानिक बोली को छोड़कर ठीक से हिंदी बोलना भी नहीं आता था पर वो भारत के सारे तीर्थस्थानों का भ्रमण कर लेती थीं।

👉 उसने रामायण, महाभारत या पुराण नहीं पढ़े थे पर उसे दर्जनों पौराणिक आख्यान स्मरण थे।

👉 वो कोई पर्यावरणविद नहीं थीं लेकिन गंगा को गंगा जी, यमुना को यमुना जी कहतीं थीं और पेड़ के पत्ते को भी बिना जरूरत तोड़ने से मना करतीं थीं। 

👉 उन्होंने जैव विविधता पर कोई कोर्स नहीं किया था लेकिन हमें कहती थीं कि अनावश्यक जीव हत्या नहीं करनी।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

चर्बी से बनते पेंट एवं घी

चमड़ा सिटी के नाम से मशहूर कानपुर में जाजमऊ से गंगा जी के किनारे किनारे 10 -12 किलोमीटर के दायरे में आप घूमने जाओ

तो आपको नाक बंद करनी पड़ेगी,

यहाँ सैंकड़ों की तादात में गंगा किनारे भट्टियां धधक रही होती हैं,

इन भट्टियों में जानवरों को काटने के बाद निकली चर्बी को गलाया जाता है,

इस चर्बी से मुख्यतः 3 चीजे बनती हैं।

1- एनामिल पेंट (जिसे हम अपने घरों की दीवारों पर लगाते हैं)

2- ग्लू (फेविकोल इत्यादि, जिन्हें हम कागज, लकड़ी जोड़ने के काम में लेते हैं)

3- और तीसरी जो सबसे महत्वपूर्ण चीज बनती है वो है "शुध्द देशी घी"

जी हाँ " शुध्द देशी घी" 
यही देशी घी यहाँ थोक मंडियों में 120 से 150 रूपए किलो तक भरपूर बिकता है,

इसे बोलचाल की भाषा में "पूजा वाला घी" बोला जाता है,

इसका सबसे ज़्यादा प्रयोग भंडारे कराने वाले करते हैं। लोग 15 किलो वाला टीन खरीद कर मंदिरों में दान करके पुण्य कमा रहे हैं।

इस "शुध्द देशी घी" को आप बिलकुल नही पहचान सकते 
बढ़िया रवेदार दिखने वाला ये ज़हर सुगंध में भी एसेंस की मदद से बेजोड़ होता है,

औद्योगिक क्षेत्र में कोने कोने में फैली वनस्पति घी बनाने वाली फैक्टरियां भी इस ज़हर को बहुतायत में खरीदती हैं, गांव देहात में लोग इसी वनस्पति घी से बने लड्डू विवाह शादियों में मजे से खाते हैं। शादियों पार्टियों में इसी से सब्जी का तड़का लगता है। जो लोग जाने अनजाने खुद को शाकाहारी समझते हैं। जीवन भर मांस अंडा छूते भी नहीं। क्या जाने वो जिस शादी में चटपटी सब्जी का लुत्फ उठा रहे हैं उसमें आपके किसी पड़ोसी पशुपालक के कटड़े (भैंस का नर बच्चा) की ही चर्बी वाया कानपुर आपकी सब्जी तक आ पहुंची हो। शाकाहारी व व्रत करने वाले जीवन में कितना बच पाते होंगे अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।

अब आप स्वयं सोच लो आप जो वनस्पति घी आदि खाते हो उसमे क्या मिलता होगा।

कोई बड़ी बात नही कि देशी घी बेचने का दावा करने वाली कम्पनियाँ भी इसे प्रयोग करके अपनी जेब भर रही हैं।

इसलिए ये बहस बेमानी है कि कौन घी को कितने में बेच रहा है,

अगर शुध्द घी ही खाना है तो अपने घर में गाय पाल कर ही आप शुध्द खा सकते हो, या किसी गाय भैंस वाले के घर का घी लेकर खाएँ, या खुद घर मे बनाये, हम घर मे ही बनाते है। यही बेहतर होगा ||
आगे जैसे आपकी इच्छा.....
🙏

गुरुवार, 18 सितंबर 2025

कांग्रेस का कालापन

सरदार पटेल की जब मृत्यु हुई तो एक घंटे बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसकी घोषणा की। 
घोषणा के तुरन्त बाद उसी दिन एक आदेश जारी किया। उस आदेश के दो बिन्दु थे। पहला यह था की सरदार पटेल को दिया गया सरकारी कार उसी वक्त वापिस लिया जाय और दूसरा बिन्दु था की गृह मंत्रालय के वे सचिव/अधिकारी जो सरदार पटेल के अन्तिम संस्कार में बम्बई जाने चाहते हैं वो अपने खर्चे पर जायें।

लेकिन तत्कालीन गृह सचिव वी पी मेनन ने प्रधानमंत्री नेहरु के इस पत्र का जिक्र ही अपनी अकस्मात बुलाई बैठक में नहीं किया और सभी अधिकारियों को बिना बताये अपने खर्चे पर बम्बई भेज दिया।

उसके बाद नेहरु ने कैबिनेट की तरफ से तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद को सलाह भेजवाया की वे सरदार पटेल के अंतिम संस्कार में भाग न लें। लेकिन राजेंद्र प्रसाद ने कैबिनेट की सलाह को दरकिनार करते हुए अंतिम संस्कार में जाने का निर्णय लिया। लेकिन जब यह बात नेहरु को पता चली तो उन्होंने वहां पर सी राजगोपालाचारी को भी भेज दिया और सरकारी स्मारक पत्र पढने के लिये राष्ट्रपति के बजाय उनको पत्र सौप दिया।
इसके बाद कांग्रेस के अन्दर यह मांग उठी की इतने बङे नेता के याद में सरकार को कुछ करना चाहिए और उनका स्मारक बनना चाहिए तो नेहरु ने पहले तो विरोध किया फिर बाद में कुछ करने की हामी भरी।

कुछ दिनों बाद नेहरु ने कहा की सरदार पटेल किसानों के नेता थे इसलिये सरदार पटेल जैसे महान और दिग्गज नेता के नाम पर हम गावों में कुआँ खोदेंगे। यह योजना कब शुरु हुई और कब बन्द हो गयी किसी को पता भी नहीं चल पाया।

उसके बाद कांग्रेस के अध्यक्ष के चुनाव में नेहरु के खिलाफ सरदार पटेल के नाम को रखने वाले पुराने और दिग्गज कांग्रेसी नेता पुरुषोत्तम दास टंडन को पार्टी से बाहर कर दिया। 
ये सब बाते बरबस ही याद दिलानी पङती हैं जब कांग्रेसियों को सरदार पटेल का नाम जपते देखता हूं।

शनिवार, 13 सितंबर 2025

नामकरण संस्कार

🌹नामकरण : संस्कृति और पहचान🌹

भारतीय धर्मों के परिवार आजकल बच्चों के नाम पाश्चात्य तर्ज़ पर रखने लगे हैं। पूर्व में, विशेषकर तमिलनाडु में दिगम्बर जैन समुदाय में नामकरण की परंपरा तीर्थंकरों, जैन कथानकों में वर्णित पात्रों तथा जैन अधिष्ठाता देव–देवियों के नामों पर आधारित होती थी। आज भी कुछ परिवार इस परंपरा को संजोए हुए हैं। लेकिन देखने-सुनने में आता है कि श्वेताम्बर जैन परिवारों में पाश्चात्य तर्ज़ पर नाम रखने का चलन अधिक बढ़ गया है। जैसे—निकिता, आनवी, युवीर, येदांत, साख , अयान आदि। कई बार बुज़ुर्ग इन नामों का सही उच्चारण भी नहीं कर पाते हैं । प्रश्न यह है कि क्या हमें अपने बच्चों के नाम भी विदेशों से आयात करने चाहिए ?

वहीं दूसरी ओर विदेशी धर्मावलंबी आज भी परंपरागत नामों को महत्व देते हैं। उनके नाम से ही धर्म की पहचान हो जाती है। इसके विपरीत भारतीय धर्मों में नामों से पहचान करना कठिन होता जा रहा है। विदेशी शैली पर नाम रखकर हम क्या सिद्ध करना चाहते हैं ? याद कीजिए—लॉर्ड मैकाले ने सौ वर्ष पहले कहा था कि भारत पर स्थायी विजय पाने के लिए भारतीय संस्कृति को समाप्त करना आवश्यक है। अंग्रेजों के शासनकाल में यह पूरी तरह संभव नहीं हो पायी । लेकिन उनके जाने के बाद धीरे-धीरे भारतीय संस्कृति में ह्रास शुरू हो गया।

भाषा बदली—लोग अंग्रेज़ी में बात करना अपनी शान समझने लगे। पहनावा बदला—रीति-रिवाज़ बदल गए।खानपान बदला—पढ़ाई और शिक्षा पद्धति बदली। स्वरोज़गार के बजाय नौकर बनना ज़्यादा पसंद आने लगा। मंदिरों की पूजा-पद्धति और समय में भी बदलाव होने लगा। जन्मदिन, नववर्ष जैसे पाश्चात्य जश्न ने धार्मिक पर्वों का स्थान लेना शुरू कर दिया।

अब समय है कि हम गंभीर चिंतन और मनन करें। नामकरण से लेकर जीवनशैली तक भारतीय बने रहें, यही हमारी असली पहचान है। यदि हम अपने बच्चों को भारतीय और धार्मिक नाम देंगे तो उनमें संस्कार, आस्था और परंपरा स्वतः जीवित रहेगी। नाम केवल पहचान नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के संस्कार का आधार है। आइए हम संकल्प लें कि भारतीय संस्कृति की धरोहर को जीवित रखें और इसे गर्व के साथ आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएँ।

सुगालचन्द जैन, चेन्नई

शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

क्या होगा नेपाल का?

अब क्या होगा नेपाल का 
सरकार गिरा दी.
संसद फूक दी. 
जेल से अपराधी भगा दिए.
किसी को जिन्दा जला दिया.
किसी का घर जला दिया.
राष्ट्रपति भवन जला दिया.
सुप्रीम कोर्ट जला दिया.
क्या यह सही किया?
 सिर्फ सरकार बदलनी थी 
बाकी सब क्या जरूरी था? 
जोश में होश खो बैठना 
जनता का ही नुकसान है 
अब पुनः निर्माण होगा 
जनता की भलाई का धन 
निर्माण कार्य में लगेगा 
जो दस्तावेज जल गये 
उनकी पूर्ति कैसे होगी?
नई सरकार क्या ठीक होगी? 
क्या उसमेँ भृष्टाचारी नहीं होंगे?
किसी भी देश में कैसा भी 
आंदोलन हो उसमेँ 
आगजनी से जनता का ही 
नुकसान है. हो सकता है 
ऐसे में अराजक तत्व ही 
आगजनी करते हो 
ऐसे तत्वों का ध्यान 
बाकी जनता को रखना चाहिए.
देश की सम्पत्ति का नुकसान 
जनता का नुकसान भी होता है.

जूता क्यों फेका?

जूता फेंका गया  उसके लिए लोग बहुत उद्वेलित हैं , लेकिन एक बारीक बात की तरफ ध्यान दिलाना चाहूंगा कि जूता फेंका जाना इसलिए अधिक तकलीफ दे रहा ह...