सुनील जैन राना ब्लॉग स्पॉट
जियो और जीने दो एवं देशहित सर्व प्रथम।
रविवार, 14 दिसंबर 2025
शनिवार, 13 दिसंबर 2025
S I R से फायदा
📍 *SIR की दिलचस्प बातें:*
*SIR फॉर्म आया तो पूरा समाज एक लाइन में खड़ा हो गया। तीन अक्षरों का फॉर्म, लेकिन उद्देश्य इतना गहरा कि अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोगों का “हम तो सब जानते हैं” वाला भ्रम टूट गया।*
1️⃣ रिश्तों की रियलिटी चेक
*SIR ने साफ बता दिया- मां-बाप, दादा-दादी ही असली रिश्ते हैं, बाकी सब “जान-पहचान की सूची” में आते हैं।*
और मज़ेदार बात ये कि— *बेटियाँ शादी के बाद कितनी भी दूर चली जाएँ, रिश्ता मायके से ही साबित होता है— कागजों में, समाज में, और दिल में।*
2️⃣ टूटे हुए रिश्तों में नेटवर्क सिग्नल वापस
*वर्षों से बात न करने वाले लोग अब SIR फॉर्म भरवाने के नाम पर पत्नी के मायके जा रहे हैं, बेटियाँ गाँव लौट रही हैं, लोग दस्तावेज़ ढूँढते-ढूँढते वंशावली खोज रहे हैं। SIR ने वो रिश्ते जोड़ दिए जो व्हाट्सऐप भी नहीं जोड़ पाया।*
3️⃣ धर्म का भ्रम… SIR के आगे फ़ेल
*हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई— सब एक ही काउंटर पर लाइन में खड़े, एक ही पेन से फॉर्म भरते हुए। SIR ने वो कर दिया जो नेताओं की रैलियाँ नहीं कर पाई सबको एक ही नाव में सवार कर दिया।*
4️⃣ पुरानी यादें Rewind Mode में
*लोग आज फिर वही जगह ढूँढ रहे जहाँ— माँ-बाप रहा करते थे, दादा-दादी की छाया थी, और बचपन की धूल थी।* *किराएदार अपने मां-बाप का नाम उसी मकान मालिक से पूछ रहे हैं।*
*जिसे कभी किराया देना पड़ता था। इतिहास अब फेसबुक पोस्ट नहीं— घर-घर की खोज बन गया है।*
5️⃣ शिक्षा की असली औकात सामने
*SIR ने बता दिया— यह दुनिया पैसा नहीं, दस्तावेज़ माँगती है।*
*शिक्षा सिर्फ नौकरी नहीं, अपना वंश और पहचान जानने की योग्यता भी है।*
6️⃣ पुरखे सिर्फ फोटो नहीं—साक्ष्य हैं
*SIR ने साबित कर दिया— मां-बाप मरकर भी काम आते हैं, वे कागज़ों में, यादों में, और वंश में ज़िंदा रहते हैं।*
इसलिए:
*उन्हें याद करो, सम्मान दो, और अपनी वंशावली बच्चों को भी बताओ।*
7️⃣ सबसे चुभता सच
जब किसी से पूछा— *“तुम्हारे दादा-दादी, नाना-नानी का नाम?” तो आधे लोग नेटवर्क खोजते हैं, बाकी आधे गूगल नहीं, मम्मी को कॉल करते हैं। ये सिर्फ जानकारी नहीं— कटी हुई जड़ों की निशानी है।*
*SIR अभी शुरू हुआ है…*
*आगे कितने किस्से, कितनी कहानियाँ और कितने राज खुलेंगे— बस इंतज़ार करिए, देश भर में वंशावली का महाकाव्य लिखने वाला है*।
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शुक्रवार, 12 दिसंबर 2025
गुरुवार, 11 दिसंबर 2025
सेना के जूते
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*भारतीय सेना के जूते की दास्तान*
जयपुर की कंपनी सेना के लिए
जूते बनाती है,
फिर वह जूते इजराइल को बेचते थे,
फिर इजराइल वही जूते
भारत को बेचता था.
और फिर वे जूते भारतीय सैनिकों को
नसीब होते थे.
भारत एक नग जूते के
Rs. 25,000/- देता था,
और यही सिलसिला काँग्रेस द्वारा
कई सालों से चल रहा था.
जैसे ही पूर्व रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर को
यह पता चला, वो चौंके और
आग बबूला हो गए.
और तुरंत जयपुर कंपनी के
CEO को मिले, कारण पूछा, तो ...
जवाब मिला :
*भारत को डायरेक्ट जूते बेचने पर*
*भारत का सरकारी तंत्र सालों तक*
*पेमेंट नहीं देता था.*
इसलिए
हम दूसरे देशों में एक्सपोर्ट करने लगे.
मनोहर पर्रिकर ने कहा :
*एक दिन, सिर्फ एक दिन भी*
*पेमेंट लेट होता है, तो आप मुझे*
*तुरंत कॉल कीजिए.*
बस .... आपको हमें
डायरेक्ट जूते बेचना है,
आप प्राइस बताएं.
और इस तरह आखिर पर्रिकर ने
वही जूते सिर्फ *2200/-* में
फाइनल किया !!
सोचिए ... जूते के *25,000/-* देकर
काँग्रेस ने सालों तक
कितनी लूट मचा रखी थी !!
विश्वास नहीं हुआ ना ??
कोई बात नहीं.
RTI लगाइए या
Google खँगालिये.
😎 Google सर्च पर बस
इतना लिखिए 👇🏽
*भारतीय सेना के जूते की दास्तान*
सच सामने होगा.
मंगलवार, 9 दिसंबर 2025
सदैव प्रसन्न रहें
मेरा यह निरीक्षण है कि यदि आप दुखी हैं तो आप किसी दुखी व्यक्ति को ही पाएँगे। दुखी लोग दुखी लोगों की तरफ आकर्षित होते हैं—और यह अच्छा है, स्वाभाविक है। अच्छा है कि दुखी लोग खुश लोगों की तरफ आकर्षित नहीं होते, नहीं तो वे उनकी खुशी नष्ट कर देंगे। यह बिल्कुल ठीक है।
💛 केवल खुश लोग खुश लोगों की तरफ आकर्षित होते हैं।
जैसा, वैसा आकर्षित करता है। बुद्धिमान लोग बुद्धिमानों की तरफ; मूर्ख लोग मूर्खों की तरफ।
आप हमेशा अपने ही स्तर के लोगों से मिलते हैं।
इसलिए पहली बात याद रखने की है: यदि संबंध दुख से उपजा है तो वह कड़वा ही होगा।
पहले खुश हों, आनन्दित हों, उत्सवमय हों—तब आपको कोई दूसरा उत्सव मनाता हुआ आत्मा मिलेगी और दो नाचती हुई आत्माओं का मिलन होगा, जिससे एक महान नृत्य जन्म लेगा।
अकेलेपन से संबंध मत माँगिए—नहीं!
वरना आप गलत दिशा में जा रहे हैं। तब आप दूसरे को एक साधन की तरह इस्तेमाल करेंगे और दूसरा आपको। और कोई भी साधन की तरह इस्तेमाल होना नहीं चाहता।
हर व्यक्ति अपने आप में एक लक्ष्य है—स्वयं में पूर्ण।
💛 पहले अकेले रहना सीखिए। ध्यान, अकेले होने की कला है।
यदि आप अकेले खुश रह सकते हैं, तो आपने खुश रहने का रहस्य सीख लिया।
अब आप साथ में भी खुश रह सकते हैं।
यदि आप खुश हैं, तो आपके पास कुछ देने के लिए है। और जब आप देते हैं तभी आपको मिलता है—यह उल्टा नहीं है।
तभी किसी से प्रेम करने की आवश्यकता महसूस होती है।
सामान्यतः लोगों की आवश्यकता होती है कि कोई उन्हें प्रेम करे। यह गलत आवश्यकता है, बचकानी है, अपरिपक्व है।
यह बच्चे का दृष्टिकोण है।
बच्चा जन्म लेता है—स्वाभाविक है कि वह माँ को प्रेम नहीं कर सकता, क्योंकि वह जानता ही नहीं कि प्रेम क्या है, और माँ कौन है। वह असहाय है, उसकी सत्ता अभी गठित नहीं हुई। वह केवल एक संभावना है।
माँ को प्रेम लुटाना होता है, पिता को प्रेम देना होता है, परिवार को प्रेम वर्षा करनी होती है।
यही देख–देखकर बच्चा सीखता है कि सबको उसे प्रेम करना चाहिए। वह यह कभी नहीं सीखता कि उसे भी प्रेम देना है।
वह बड़ा हो जाता है, लेकिन यदि यह दृष्टिकोण पकड़े रहता है कि सबको मुझे प्रेम करना चाहिए, तो वह पूरी जिंदगी दुख झेलता है।
उसका शरीर बड़ा हो गया, पर मन बचकाना ही रह गया।
💛 एक परिपक्व व्यक्ति वह है जिसे यह दूसरी आवश्यकता पता चलती है: अब मुझे किसी से प्रेम करना है।
प्रेम पाने की आवश्यकता बचकानी है।
प्रेम देने की आवश्यकता परिपक्व है।
और जब आप प्रेम देने के लिए तैयार हो जाते हैं, तभी एक सुंदर संबंध जन्म लेता है—अन्यथा नहीं।
“क्या यह संभव है कि संबंध में दो लोग एक–दूसरे के लिए बुरे हों?”
हाँ—यही दुनिया भर में हो रहा है। अच्छा होना बहुत कठिन है।
आप अपने प्रति ही अच्छे नहीं हैं—तो दूसरे के प्रति कैसे होंगे?
💛 आप स्वयं से प्रेम नहीं करते—तो किसी और से कैसे प्रेम करेंगे?
पहले स्वयं से प्रेम करें। अपने प्रति अच्छे बनें।
और आपके धार्मिक संतों ने आपको हमेशा सिखाया है कि अपने प्रति कठोर बनो, अपने प्रति प्रेम मत करो! दूसरों के प्रति कोमल रहो और अपने प्रति कठोर—यह बेतुका है।
मैं आपको सिखाता हूँ: सबसे पहला और सबसे ज़रूरी काम है—अपने प्रति प्रेममय होना।
अपने ऊपर कठोर मत बनो, कोमल रहो।
अपने प्रति care करो।
बार–बार, सात बार, सत्तर–सात बार, सात सौ सत्तर–सात बार—अपने आपको क्षमा करना सीखो।
अपने प्रति विरोधी मत बनो।
फिर आप खिल उठेंगे।
और जब आप खिलते हैं, तब आप किसी दूसरे फूल को आकर्षित करते हैं—यह स्वाभाविक है।
पत्थर पत्थरों को आकर्षित करते हैं; फूल फूलों को।
तब एक ऐसा संबंध जन्म लेता है जिसमें गरिमा है, सुंदरता है, वरदान है।
यदि आप ऐसा संबंध पा सकें, तो आपका संबंध प्रार्थना में बदल जाएगा, आपका प्रेम परमानंद बन जाएगा—और प्रेम के माध्यम से आप जानेंगे कि परमात्मा क्या है।
— ओशो,
Ecstasy: The Forgotten Language,
Chapter 2
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